रामभद्राचार्य बोले- मायावती को बहन कहने में संकोच लगता है: चित्रकूट में कहा- अंबेडकर को संस्कृत नहीं आती थी; मनुस्मृति जलाने की कोशिश की – Chitrakoot News h3>
जितेन्द्र मिश्रा। चित्रकूट3 मिनट पहले
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‘बाबा साहब अंबेडकर को संस्कृत का ज्ञान नहीं था। अगर अंबेडकर को संस्कृत की समझ होती, तो वे मनुस्मृति जलाने का प्रयास नहीं करते। मनुस्मृति को गाली देने की शुरुआत मायावती ने की, जिन्हें मनुस्मृति का एक अक्षर भी नहीं पता।’
यह कहना है जगद्गुरु रामभद्राचार्य का, जो शनिवार को चित्रकूट में थे। रामभद्राचार्य यहां दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में भारतीय न्याय संहिता 2023 पर एक गोष्ठी में बोल रहे थे। कार्यक्रम में विधान परिषद के सभापति कुमार मानवेंद्र सिंह और करीब 50 विधायक भी मौजूद रहे।
पढ़िए जगद्गुरु रामभद्राचार्य की कही बड़ी बातें
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जगद्गुरु रामभद्राचार्य भी पहुंचे थे।
मनु को गाली देने वाले को क्या कहूं जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा- मनु महाराज से लेकर ऋषियों तक जो परंपरा रही है, वह न्याय देने की परंपरा ही रही है। मनु के मस्तिष्क में सब कुछ था। मनु को गाली देने वाले को क्या कहूं? बहन तो कहने में संकोच लग रहा है। मनु को गाली देने की शुरुआत मायावती ने की थी। उनको मनुस्मृति का एक अक्षर भी ज्ञात नहीं है।
अगर बाबा साहब अंबेडकर ठीक-ठाक संस्कृत जानते होते, तो मनुस्मृति को जलाने का प्रयास नहीं करते। उन्हें संस्कृत का जरा भी ज्ञान नहीं था। मैं दावे से कह सकता हूं कि मनु स्मृति में एक भी अक्षर राष्ट्र के निर्माण के विरोध में नहीं लिखा गया।
भारतीय न्याय संहिता की अवधारणा रामायण काल से होनी चाहिए उन्होंने कहा- भारतीय न्याय संहिता की अवधारणा रामायण काल से होनी चाहिए। रामायण और महाभारत काल के युद्धों का उदाहरण देते हुए कहा कि महाभारत में बड़ा संहार हुआ। जबकि रामायण काल के युद्ध में भारत का कोई व्यक्ति नहीं मारा गया।
जगद्गुरु ने कहा- भारतीय संविधान में और सुधार की आवश्यकता है।
न्याय व्यवस्था में और सुधार की आवश्यकता जगद्गुरु ने कहा- भारतीय संविधान में अब तक 129 संशोधन हो चुके हैं। फिर भी न्याय व्यवस्था में और सुधार की जरूरत है। न्याय का मतलब सिर्फ दंड देना नहीं है। यह अपराधों को रोकने और न्यायप्रिय समाज बनाने की संहिता भी है।
प्रधानमंत्री से करेंगे न्याय प्रणाली में सुधार की मांग गोष्ठी में संतों और विद्वानों ने न्याय की परिभाषा पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि जहां प्रसाद है, वहां अवसाद नहीं होता। जहां संवाद है, वहां विषाद नहीं होता। जहां समीक्षा है, वहां परीक्षण नहीं होता। जहां मानवता का मंगल है, वहां प्रतिशोध नहीं होता।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बताया- वे इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा करेंगे। साथ ही न्याय प्रणाली में सुधार की मांग भी रखेंगे।
विधान परिषद के सभापति ने भारतीय न्याय संहिता की सराहना की विधान परिषद के सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने भारतीय न्याय संहिता की सराहना की। उन्होंने कहा- यह कानून गुलामी की मानसिकता से मुक्ति दिलाएगा। 4 साल के विचार-विमर्श के बाद यह नया कानून लाया गया है। यह पहला ऐसा कानून है, जो भारतीय संविधान और भारतीय जनता की चिंताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। विरोध में नहीं लिखा गया।
महाभारत काल की न्याय प्रक्रिया अधूरी थी और रामायण काल की न्याय प्रक्रिया समग्र थी। भगवान श्रीराम ने मनु को अपने जीवनकाल में उतार कर न्याय किया। इसलिए कानून बनाते समय साधु-संतों से भी विचार-विमर्श करना चाहिए था। नए कानून में मनु को ध्यान में रखकर न्याय प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।
नए कानून में तीन बातें होने चाहिए। इसमें सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का दमन, कर्तव्य की व्यवस्था, दुष्टों पर क्रोध, सज्जनों का शोध और कर्तव्य का बोध इसी के आधार पर नए कानून होना चाहिए।
जगद्गुरु ने मायावती पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा- मायावती को बहन कहने में भी संकोच हो रहा है।
जानिए कौन हैं रामभद्राचार्य रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। वे प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं। वे रामानंद संप्रदाय के मौजूदा चार जगद्गुरुओं में से एक हैं और इस पद पर 1988 से आसीन हैं। महाराज चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति भी हैं।
चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। इन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल चार महाकाव्यों की रचना की है। इन्हें भारत में तुलसीदास पर सबसे बेहतरीन विशेषज्ञों में गिना जाता है। साल 2015 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
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जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर नाराजगी जताई है। स्वामी रामभद्राचार्य ने न्यूज एजेंसी PTI के साथ बातचीत में कहा कि संघ प्रमुख का व्यक्तिगत बयान है। ये उन्होंने अच्छा नहीं कहा। संघ भी हिंदुत्व के आधार पर बना है। जहां-जहां मंदिर या मंदिर के अवशेष मिल रहे हैं, उन्हें हम लेंगे। जहां अवशेष नहीं हैं, वहां नहीं लेंगे। पढे़ं पूरी खबर…
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जितेन्द्र मिश्रा। चित्रकूट3 मिनट पहले
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‘बाबा साहब अंबेडकर को संस्कृत का ज्ञान नहीं था। अगर अंबेडकर को संस्कृत की समझ होती, तो वे मनुस्मृति जलाने का प्रयास नहीं करते। मनुस्मृति को गाली देने की शुरुआत मायावती ने की, जिन्हें मनुस्मृति का एक अक्षर भी नहीं पता।’
यह कहना है जगद्गुरु रामभद्राचार्य का, जो शनिवार को चित्रकूट में थे। रामभद्राचार्य यहां दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में भारतीय न्याय संहिता 2023 पर एक गोष्ठी में बोल रहे थे। कार्यक्रम में विधान परिषद के सभापति कुमार मानवेंद्र सिंह और करीब 50 विधायक भी मौजूद रहे।
पढ़िए जगद्गुरु रामभद्राचार्य की कही बड़ी बातें
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जगद्गुरु रामभद्राचार्य भी पहुंचे थे।
मनु को गाली देने वाले को क्या कहूं जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा- मनु महाराज से लेकर ऋषियों तक जो परंपरा रही है, वह न्याय देने की परंपरा ही रही है। मनु के मस्तिष्क में सब कुछ था। मनु को गाली देने वाले को क्या कहूं? बहन तो कहने में संकोच लग रहा है। मनु को गाली देने की शुरुआत मायावती ने की थी। उनको मनुस्मृति का एक अक्षर भी ज्ञात नहीं है।
अगर बाबा साहब अंबेडकर ठीक-ठाक संस्कृत जानते होते, तो मनुस्मृति को जलाने का प्रयास नहीं करते। उन्हें संस्कृत का जरा भी ज्ञान नहीं था। मैं दावे से कह सकता हूं कि मनु स्मृति में एक भी अक्षर राष्ट्र के निर्माण के विरोध में नहीं लिखा गया।
भारतीय न्याय संहिता की अवधारणा रामायण काल से होनी चाहिए उन्होंने कहा- भारतीय न्याय संहिता की अवधारणा रामायण काल से होनी चाहिए। रामायण और महाभारत काल के युद्धों का उदाहरण देते हुए कहा कि महाभारत में बड़ा संहार हुआ। जबकि रामायण काल के युद्ध में भारत का कोई व्यक्ति नहीं मारा गया।
जगद्गुरु ने कहा- भारतीय संविधान में और सुधार की आवश्यकता है।
न्याय व्यवस्था में और सुधार की आवश्यकता जगद्गुरु ने कहा- भारतीय संविधान में अब तक 129 संशोधन हो चुके हैं। फिर भी न्याय व्यवस्था में और सुधार की जरूरत है। न्याय का मतलब सिर्फ दंड देना नहीं है। यह अपराधों को रोकने और न्यायप्रिय समाज बनाने की संहिता भी है।
प्रधानमंत्री से करेंगे न्याय प्रणाली में सुधार की मांग गोष्ठी में संतों और विद्वानों ने न्याय की परिभाषा पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि जहां प्रसाद है, वहां अवसाद नहीं होता। जहां संवाद है, वहां विषाद नहीं होता। जहां समीक्षा है, वहां परीक्षण नहीं होता। जहां मानवता का मंगल है, वहां प्रतिशोध नहीं होता।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बताया- वे इस विषय पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा करेंगे। साथ ही न्याय प्रणाली में सुधार की मांग भी रखेंगे।
विधान परिषद के सभापति ने भारतीय न्याय संहिता की सराहना की विधान परिषद के सभापति कुंवर मानवेंद्र सिंह ने भारतीय न्याय संहिता की सराहना की। उन्होंने कहा- यह कानून गुलामी की मानसिकता से मुक्ति दिलाएगा। 4 साल के विचार-विमर्श के बाद यह नया कानून लाया गया है। यह पहला ऐसा कानून है, जो भारतीय संविधान और भारतीय जनता की चिंताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। विरोध में नहीं लिखा गया।
महाभारत काल की न्याय प्रक्रिया अधूरी थी और रामायण काल की न्याय प्रक्रिया समग्र थी। भगवान श्रीराम ने मनु को अपने जीवनकाल में उतार कर न्याय किया। इसलिए कानून बनाते समय साधु-संतों से भी विचार-विमर्श करना चाहिए था। नए कानून में मनु को ध्यान में रखकर न्याय प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।
नए कानून में तीन बातें होने चाहिए। इसमें सज्जनों की रक्षा, दुष्टों का दमन, कर्तव्य की व्यवस्था, दुष्टों पर क्रोध, सज्जनों का शोध और कर्तव्य का बोध इसी के आधार पर नए कानून होना चाहिए।
जगद्गुरु ने मायावती पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा- मायावती को बहन कहने में भी संकोच हो रहा है।
जानिए कौन हैं रामभद्राचार्य रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं। उनका वास्तविक नाम गिरधर मिश्रा है। वे प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं। वे रामानंद संप्रदाय के मौजूदा चार जगद्गुरुओं में से एक हैं और इस पद पर 1988 से आसीन हैं। महाराज चित्रकूट में जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति भी हैं।
चित्रकूट में तुलसी पीठ की स्थापना का श्रेय भी इन्हें ही जाता है। इन्होंने दो संस्कृत और दो हिंदी में मिलाकर कुल चार महाकाव्यों की रचना की है। इन्हें भारत में तुलसीदास पर सबसे बेहतरीन विशेषज्ञों में गिना जाता है। साल 2015 में भारत सरकार ने इन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
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