राज्यसभा चुनाव में ‘नीतीश कॉलिंग कॉलिंग’, क्या फिर चौंकाएंगें मुख्यमंत्री… या फिर होंगे बगावत का शिकार जानिए Inside Story h3>
पटना : जेडीयू के कोटे से राज्य सभा की एक सीट किंग महेंद्र के निधन से खाली हुई थी। जिसे अनिल हेगड़े से भर दिया गया है। सोमवार को अनिल हेगड़े निर्विरोध राज्य सभा सदस्य निर्वाचित हुए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें प्रमाण पत्र सौंप कर राज्य सभा सदस्य के तौर पर राज्य सभा भेज दिया। लेकिन एक सीट और है। जो जुलाई में खाली होने वाली है। यह सीट आरसीपी सिंह है। इसी सीट पर नए नाम को लेकर रार है। पिछले 15 दिनों से जेडीयू में सर फुटव्वल जारी है। मंथन का दौर चल रहा है। महौल बनाने की कोशिश है। इन सब के बीच पार्टी के भीतर भी खेमे सक्रिय हो गए हैं। पार्टी के भीतर भी कई तरह की चर्चाएं चल रही हैं। कई तरह के अफवाह फैलाए जा रहे हैं। कई नाम उछाले जा रहे हैं। कभी इंजीनियर सुनील, तो कभी केसी त्यागी, कभी मनीष वर्मा तो कभी और खुद नीतीश कुमार। राज्य सभा सदस्य के उम्मीदवार में चर्चाएं आसमान पर हैं। कभी आरसीपी सिंह के दोबारा रीपीट होने की चर्चाएं उड़ान भरने लगतींं हैं। तो कभी ललन सिंह का भी नाम हवा में तैरने लगा। लेकिन अब तक किसी नाम पर कोई पुख्ता मुहर नहीं लगी है।
क्या चौंकाएंगे नीतीश उनके इस बयान का क्या मतलब?
दरअसल, नीतीश कुमार की पुरानी आदत है। वो ऐसे फैसलों पर लोगों को चौंकाते ही हैं। जिन नामों की चर्चा होती है। उन नामों के विपरीत एक नया चेहरा होता है। जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती है। राजनीति में जो करना है उसकी भनक किसी को न लगने देने का ये तरीका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों का है। ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार अंत समय में एक नाम की घोषणा करेंगे और राज्य सभा भेज देंगे। एक दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि आपलोग इसकी चिंता मत कीजिए, समय आने पर सब हो जाएगा। यानी मतलब साफ है। नीतीश कुमार के मन में तस्वीर भी साफ है। अब वो लोगों के मन को भापने में लगे हैं।
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क्या बाहर से होगा नया नाम?
ऐसा देख गया है कि नीतीश कुमार राज्य सभा के नामों के ऐलान में बिल्कुल चौंकाते हैं। अचानक से एक नाम सामने आता है। जिसे राज्य सभा भेज दिया जाता है। अभी अनिल हेगड़े इसके ताजा उदाहरण हैं। एक गुमनाम चेहरा जो 37 साल से नीतीश कुमार से जुड़ा रहा। जिसे सोमवार को राज्य सभा भेज दिया गया। माना जा रहा है अगला नाम भी ऐसा ही होगा। राजनीति के जानकारों की मानें तो जेडीयू में गुटबाजी और खेमेबंदी बहुत तेजी हावी है। ललन गुट और आरसीपी गुट सक्रिय है। तभी तो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को ये ऐलान करना पड़ा कि जेडीयू के पोस्टर में नीतीश कुमार के अलावा किसी का चेहरा नहीं होगा। इसके अलावा कई तकनीकी दिक्कतें भी हैं। यदि इन चिर्चित नामों में से कोई राज्य सभा भेजा जाता है तो कई तरह के सवाल उठेंगे जो आंतरिक कलह का कारण बन सकते हैं। लिहाजा नीतीश कुमार अपने चौंकाने वाली नीति पर चलते नजर आ सकते हैं।
क्या बाहरियों पर एक बार फिर दिखाएंगे भरोसा?
इससे पहले भी राज्यसभा के लिए नीतीश कुमार बाहरी चेहरे पर ज्यादा भरोसा करते रहे हैं। नीतीश कुमार इससे पहले आधे दर्जन बाहरी नेताओं पर भरोसा कर चुके हैं। इनमें पहला नाम तो जॉर्ज फर्नांडिस (George Fernandes) का ही है। जो नीतीश कुमार के अभिभावक भी थे और उनके राजनीति के साथी भी। जॉर्ज फर्नांडिस बंगलुरु के थे। पढ़ाई लिखाई और राजनीतिक सफर की शुरुआत बिहार के बाहर से ही हुई लेकिन अंत बिहार में हुआ। जॉर्ज मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़े।
शरद यादव
मूल रूप से शरद यादव (Sharad Yadav) भी बिहार के नहीं थे। शरद यादव का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के बधाई गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा होशंगाबाद में ही हुई उसके बाद वह जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट हुए। इसके बाद वह राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित हुए। राजनीति में सक्रिय हुए और कई आंदोलनों में भाग लिया। मीसा के तहत कई बार हिरासत में लिए गए। उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद वह पहली बार 74 में मध्यप्रदेश के जबलपुर लोकसभा से सांसद हुए। बाद में नीतीश कुमार ने उन्हें भी जेडीयू के सीट से राज्यसभा भेजा।
पवन वर्मा
ऐसा ही नाम पवन वर्मा (Pawan Verma) का भी है। जो जिनका बिहार से कोई संबंध नहीं रहा। पवन वर्मा भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे और नागपुर में पले बढ़े हैं। नीतीश कुमार ने उन्हे भी जेडीयू के कोटे से राज्य सभा का सदस्य बनाया। उन्हें अपने काफी करीब लाने की कोशिश की। वो सीएम नीतीश कुमार के सलाहकार की भूमिका में भी रहे। लिहाजा नीतीश कुमार ने उन्हें 2014 में राज्यसभा सदस्य बनाया गया था। 2016 तक जेडीयू के राज्यसभा सदस्य रहे। जब जेडीयू और भाजपा की करीबी हुई तो पवन वर्मा ने इसका विरोध किया था। नीतीश कुमार को उन्होंने पत्र लिखकर इससे रोका था। उसके बाद से पार्टी से उनकी दूरी बढ़ने लगी थी। काफी दिनों तक साइडलाइन रहने के बाद पवन वर्मा ने टीएमसी का दामन थाम लिया।
हरिवंश
हरिवंश का संबंध भी बिहार की राजनीति से नहीं रहा। वह सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं। हरिवंश राजनीति में जयप्रकाश नारायण के आदर्शों से भी प्रेरित हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिताब दियारा गांव में 30 जून, 1956 को जन्मे हरिवंश को जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। झारंखड में पत्रकारिता की। हरिवंश (Hariwansh ) ने 1990-91 के कुछ महीनों तक तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Chandrasekhar) के अतिरिक्त सूचना सलाहकार (संयुक्त सचिव) के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काम किया। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने राज्यसभा में भेजा। उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री और नीतीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है।
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केसी त्यागी और अनिल हेगड़े भी बिहार से नहीं
केसी त्यागी (KC Tyagi) को भी नीतीश कुमार ने राज्य सभा भेजा। जिनका बिहार से कोई ताल्लुक कभी नहीं रहा। के सी त्यागी ने 1974 में राजनीतिक मैदान में उतरे और 1984 में पहली बार हापुड़-गाजियाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़े। चार दशकों तक वे 1989 में अपना पहला संसदीय चुनाव जीतने वाले जनता दल के एक सक्रिय सदस्य रहे। ऐसा ही नाम अनिल हेगडे़ (Anil Hegde) का भी है। जो अचानक सामने आया और बिहार से उनका कोई संबंध नहीं था। उन्होंने कभी भी बिहार में काम नहीं किया लेकिन 38 साल तक पार्टी के शुरुआती दिनों से जुड़े रहे। जमीनी स्तर पर काम किया।
जिन्हें राज्य सभा भेजा उन्होंने छोड़ा नीतीश का साथ
जॉर्ज फर्नांडीज की बात की जाए या शरद यादव की या फिर पवन वर्मा की। नीतीश कुमार ने इन नेताओं को जेडीयू के सीट से राज्य सभा भेजा मगर इन नेताओं ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया। चाहे जॉर्ज फर्नांडिस होंं या शरद यादव दोनों पुराने समाजवादी नेता थे। जेडीयू और लोहिया के विचारों से प्रेरित थे और नीतीश कुमार के पुराने साथी थे। नीतीश कुमार के बीच मतभेद हो गए 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस ने जेडीयू का टिकट छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। लेकिन अपनी पुरानी सीट होने के बावजूद वह हार जाए। बीजेपी और जेडीयू की नजदीकियों का विरोध कर रहे शरद यादव ने खुद को पार्टी से अलग कर लिया और आरजेडी में अपनी पार्टी का विलय कर दिया। यहां भी ऐसा देखा गया कि नीतीश कुमार ने जिन बाहरी नेताओं को राज्यसभा सदस्य बनाया उन बाहरी नेताओं में से ज्यादातर ने नीतीश कुमार के खिलाफ ही रुख अख्तियार किया। उनमें से पवन वर्मा भी एक नाम थे।
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क्या बागियों की राह पर हैं आरसीपी सिंह
हाल के दिनों में देखा जाए तो आरसीपी सिंह (Rcp Singh) के तेवेर भी कुछ ठीक नजर नहीं आ रहे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त से देखा जाए तो कहीं न कहीं उनकी नजदीकियां बीजेपी से ज्यादा होती नजर आईं। वहीं पार्टी के दिए कामों में वो असफल होते नजर आए। जिसका खामियाजा जेडीयू को यूपी चुनाव में भुगतना पड़ा।वहीं इसका फायदा बीजेपी को ज्यादा हुआ। तस्वीर गौर से देखी जाए तो आरसीपी सिंह यूंं तो जेडीयू के कोटे से केंद्र में कैबिनेट मंत्री हैं। पहले कभी उनके वॉल पर नीतीश कुमार की फोटो हुआ करती थी। जहां अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की नजर आती है। वहीं, जेडीयू से ज्यादा उनका इंवॉल्वमेंट बीजेपी के कार्यक्रमों में नजर आता है। माना जा रहा है नीतीश से दूरियों की वजह यह भी है। वहीं ललन सिंह ने तो यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान जेडीयू का गठबंधन बीजेपी से न हो पाने का सीधा कारण आरसीपी को बता दिया था। उन्होंंने इसके लिए नाराजगी भी जाहिर की थी। राजनीति के जानकार मानते हैं कि ये नजदीकियां जेडीयू के खिलाफ बीजेपी की रणनीति हो सकती है।वहीं आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार का साथ छोड़ने वाले नेताओं में शुमार हो सकते हैं।
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दरअसल, नीतीश कुमार की पुरानी आदत है। वो ऐसे फैसलों पर लोगों को चौंकाते ही हैं। जिन नामों की चर्चा होती है। उन नामों के विपरीत एक नया चेहरा होता है। जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती है। राजनीति में जो करना है उसकी भनक किसी को न लगने देने का ये तरीका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों का है। ऐसे में माना जा रहा है कि नीतीश कुमार अंत समय में एक नाम की घोषणा करेंगे और राज्य सभा भेज देंगे। एक दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि आपलोग इसकी चिंता मत कीजिए, समय आने पर सब हो जाएगा। यानी मतलब साफ है। नीतीश कुमार के मन में तस्वीर भी साफ है। अब वो लोगों के मन को भापने में लगे हैं।
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क्या बाहर से होगा नया नाम?
ऐसा देख गया है कि नीतीश कुमार राज्य सभा के नामों के ऐलान में बिल्कुल चौंकाते हैं। अचानक से एक नाम सामने आता है। जिसे राज्य सभा भेज दिया जाता है। अभी अनिल हेगड़े इसके ताजा उदाहरण हैं। एक गुमनाम चेहरा जो 37 साल से नीतीश कुमार से जुड़ा रहा। जिसे सोमवार को राज्य सभा भेज दिया गया। माना जा रहा है अगला नाम भी ऐसा ही होगा। राजनीति के जानकारों की मानें तो जेडीयू में गुटबाजी और खेमेबंदी बहुत तेजी हावी है। ललन गुट और आरसीपी गुट सक्रिय है। तभी तो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को ये ऐलान करना पड़ा कि जेडीयू के पोस्टर में नीतीश कुमार के अलावा किसी का चेहरा नहीं होगा। इसके अलावा कई तकनीकी दिक्कतें भी हैं। यदि इन चिर्चित नामों में से कोई राज्य सभा भेजा जाता है तो कई तरह के सवाल उठेंगे जो आंतरिक कलह का कारण बन सकते हैं। लिहाजा नीतीश कुमार अपने चौंकाने वाली नीति पर चलते नजर आ सकते हैं।
क्या बाहरियों पर एक बार फिर दिखाएंगे भरोसा?
इससे पहले भी राज्यसभा के लिए नीतीश कुमार बाहरी चेहरे पर ज्यादा भरोसा करते रहे हैं। नीतीश कुमार इससे पहले आधे दर्जन बाहरी नेताओं पर भरोसा कर चुके हैं। इनमें पहला नाम तो जॉर्ज फर्नांडिस (George Fernandes) का ही है। जो नीतीश कुमार के अभिभावक भी थे और उनके राजनीति के साथी भी। जॉर्ज फर्नांडिस बंगलुरु के थे। पढ़ाई लिखाई और राजनीतिक सफर की शुरुआत बिहार के बाहर से ही हुई लेकिन अंत बिहार में हुआ। जॉर्ज मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़े।
शरद यादव
मूल रूप से शरद यादव (Sharad Yadav) भी बिहार के नहीं थे। शरद यादव का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के बधाई गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा होशंगाबाद में ही हुई उसके बाद वह जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट हुए। इसके बाद वह राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रेरित हुए। राजनीति में सक्रिय हुए और कई आंदोलनों में भाग लिया। मीसा के तहत कई बार हिरासत में लिए गए। उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद वह पहली बार 74 में मध्यप्रदेश के जबलपुर लोकसभा से सांसद हुए। बाद में नीतीश कुमार ने उन्हें भी जेडीयू के सीट से राज्यसभा भेजा।
पवन वर्मा
ऐसा ही नाम पवन वर्मा (Pawan Verma) का भी है। जो जिनका बिहार से कोई संबंध नहीं रहा। पवन वर्मा भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे और नागपुर में पले बढ़े हैं। नीतीश कुमार ने उन्हे भी जेडीयू के कोटे से राज्य सभा का सदस्य बनाया। उन्हें अपने काफी करीब लाने की कोशिश की। वो सीएम नीतीश कुमार के सलाहकार की भूमिका में भी रहे। लिहाजा नीतीश कुमार ने उन्हें 2014 में राज्यसभा सदस्य बनाया गया था। 2016 तक जेडीयू के राज्यसभा सदस्य रहे। जब जेडीयू और भाजपा की करीबी हुई तो पवन वर्मा ने इसका विरोध किया था। नीतीश कुमार को उन्होंने पत्र लिखकर इससे रोका था। उसके बाद से पार्टी से उनकी दूरी बढ़ने लगी थी। काफी दिनों तक साइडलाइन रहने के बाद पवन वर्मा ने टीएमसी का दामन थाम लिया।
हरिवंश
हरिवंश का संबंध भी बिहार की राजनीति से नहीं रहा। वह सामाजिक सरोकार की पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं। हरिवंश राजनीति में जयप्रकाश नारायण के आदर्शों से भी प्रेरित हैं। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सिताब दियारा गांव में 30 जून, 1956 को जन्मे हरिवंश को जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया। झारंखड में पत्रकारिता की। हरिवंश (Hariwansh ) ने 1990-91 के कुछ महीनों तक तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर (Chandrasekhar) के अतिरिक्त सूचना सलाहकार (संयुक्त सचिव) के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काम किया। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने राज्यसभा में भेजा। उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री और नीतीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है।
नीतीश कुमार ने ज्ञानवापी के मुद्दे पर साध ली चुप्पी, अनिल हेगड़े का पर्चा भरवाने आए थे
केसी त्यागी और अनिल हेगड़े भी बिहार से नहीं
केसी त्यागी (KC Tyagi) को भी नीतीश कुमार ने राज्य सभा भेजा। जिनका बिहार से कोई ताल्लुक कभी नहीं रहा। के सी त्यागी ने 1974 में राजनीतिक मैदान में उतरे और 1984 में पहली बार हापुड़-गाजियाबाद सीट से लोकसभा चुनाव लड़े। चार दशकों तक वे 1989 में अपना पहला संसदीय चुनाव जीतने वाले जनता दल के एक सक्रिय सदस्य रहे। ऐसा ही नाम अनिल हेगडे़ (Anil Hegde) का भी है। जो अचानक सामने आया और बिहार से उनका कोई संबंध नहीं था। उन्होंने कभी भी बिहार में काम नहीं किया लेकिन 38 साल तक पार्टी के शुरुआती दिनों से जुड़े रहे। जमीनी स्तर पर काम किया।
जिन्हें राज्य सभा भेजा उन्होंने छोड़ा नीतीश का साथ
जॉर्ज फर्नांडीज की बात की जाए या शरद यादव की या फिर पवन वर्मा की। नीतीश कुमार ने इन नेताओं को जेडीयू के सीट से राज्य सभा भेजा मगर इन नेताओं ने नीतीश कुमार का साथ छोड़ दिया। चाहे जॉर्ज फर्नांडिस होंं या शरद यादव दोनों पुराने समाजवादी नेता थे। जेडीयू और लोहिया के विचारों से प्रेरित थे और नीतीश कुमार के पुराने साथी थे। नीतीश कुमार के बीच मतभेद हो गए 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस ने जेडीयू का टिकट छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। लेकिन अपनी पुरानी सीट होने के बावजूद वह हार जाए। बीजेपी और जेडीयू की नजदीकियों का विरोध कर रहे शरद यादव ने खुद को पार्टी से अलग कर लिया और आरजेडी में अपनी पार्टी का विलय कर दिया। यहां भी ऐसा देखा गया कि नीतीश कुमार ने जिन बाहरी नेताओं को राज्यसभा सदस्य बनाया उन बाहरी नेताओं में से ज्यादातर ने नीतीश कुमार के खिलाफ ही रुख अख्तियार किया। उनमें से पवन वर्मा भी एक नाम थे।
RCP राज्यसभा जा रहे हैं? मुस्कुराकर बोले नीतीश- चिंता मत कीजिए
क्या बागियों की राह पर हैं आरसीपी सिंह
हाल के दिनों में देखा जाए तो आरसीपी सिंह (Rcp Singh) के तेवेर भी कुछ ठीक नजर नहीं आ रहे। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के वक्त से देखा जाए तो कहीं न कहीं उनकी नजदीकियां बीजेपी से ज्यादा होती नजर आईं। वहीं पार्टी के दिए कामों में वो असफल होते नजर आए। जिसका खामियाजा जेडीयू को यूपी चुनाव में भुगतना पड़ा।वहीं इसका फायदा बीजेपी को ज्यादा हुआ। तस्वीर गौर से देखी जाए तो आरसीपी सिंह यूंं तो जेडीयू के कोटे से केंद्र में कैबिनेट मंत्री हैं। पहले कभी उनके वॉल पर नीतीश कुमार की फोटो हुआ करती थी। जहां अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की नजर आती है। वहीं, जेडीयू से ज्यादा उनका इंवॉल्वमेंट बीजेपी के कार्यक्रमों में नजर आता है। माना जा रहा है नीतीश से दूरियों की वजह यह भी है। वहीं ललन सिंह ने तो यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान जेडीयू का गठबंधन बीजेपी से न हो पाने का सीधा कारण आरसीपी को बता दिया था। उन्होंंने इसके लिए नाराजगी भी जाहिर की थी। राजनीति के जानकार मानते हैं कि ये नजदीकियां जेडीयू के खिलाफ बीजेपी की रणनीति हो सकती है।वहीं आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार का साथ छोड़ने वाले नेताओं में शुमार हो सकते हैं।