राजस्थान में संभवतया पहली बार वकील पर 50 हजार जुर्माना: अधिवक्ता द्वारा हाईकोर्ट में भ्रामक तर्क के आधार पर केस की जल्द सुनवाई करने की कोशिश पड़ी भारी – Jodhpur News h3>
– नागौर की मूंडवा पंचायत समिति के रूण ग्राम पंचायत से जुड़े तीन मामलों की संयुक्त सुनवाई
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जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने नागौर की मूंडवा पंचायत समिति के रूण ग्राम पंचायत से जुड़े संयुक्त तीन मामलों की सुनवाई प्राथमिकता सूची में शामिल हो सके, इसके लिए कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश परिवादियों के वकील को ही भारी पड़ गई, जब प्रतिवादी अधिवक्ता ने हाईकोर्ट के सामने तमाम तथ्य प्रस्तुत कर दिए, जिन्हें देखकर जस्टिस रेखा बोराणा ने अधिवक्ता सीएस कोटवानी को फटकार लगाते हुए कोर्ट को गुमराह करने वाले तर्क रखने पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाने का आदेश दे दिया।
इसके साथ ही जस्टिस बोराणा ने स्पष्ट रूप से कहा कि बार और बेंच के बीच में सामंजस्य की अहमियत समझनी होगी और इसमें सभी अधिवक्ताओं की भी यह जिम्मेदारी है कि वे कोर्ट को गुमराह करने का प्रयास कत्तई नहीं करें और न ही केस से जुड़े किसी भी तरह के तथ्यों को ही छिपाने की कोशिश करें। जस्टिस बोराणा ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के कई उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि जब भी कोर्ट को धोखा देने की कोशिश होती है, तो वह कदम व्यावसायिक कदाचार का परिचायक होता है।
यह था मामला
दरअसल, नागौर कोर्ट के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने गत वर्ष 6 मार्च को जारी आदेश को लेकर रूण निवासी हुसैन पुत्र शहाबुद्दीन, फकरूद्दीन पुत्र रमजान और तेजाराम पुत्र घमडाराम की ओर से ग्राम पंचायत के विरूद्ध राजस्थान हाईकोर्ट में अपील की गई थी। इन तीनों मामलों में ट्रायल कोर्ट ने तीनों अपीलकर्ताओं के आवेदनों को खारिज कर दिया था। इन तीनों के दीर्घकालिक आवासीय कब्जे व निर्माण के नियमितिकरण के लिए लंबित आवेदनों के दावों के पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं था। साथ ही यह भी सामने आया कि विचाराधीन भूखंड पर कॉमर्शियल गतिविधियां संचालित की जा रही है, जबकि तीनों ही अन्य जगह पर रहते थे।
इसी मामले में तीनों अपीलार्थियों की ओर से अधिवक्ता सीएस कोटवानी ने हाईकोर्ट को बताया कि उनके क्लाइंट 40 साल से भी अधिक समय से उस भूखंड पर काबिज हैं और इनके नियमितिकरण आवेदन को पंचायत ने गलत खारिज किया था। इस पर हाईकोर्ट ने तीनों को आवश्यक दस्तावेजी साक्ष्य पेश करने को कहा, तब तीनों की ओर से कुछ दस्तावेज कोर्ट में सौंपे गए, लेकिन उनमें जमीन की पुष्टि हो सके, ऐसा कोई भी विवरण उपलब्ध नहीं था।
तर्क – तहसीलदार की रिपोर्ट ही गलत थी
तीनों अपीलार्थियों की ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि वर्ष 2023 में तहसीलदार द्वारा दी गई रिपोर्ट ही गलत थी और इसके पीछे पंचायत उन्हें निशाना बनाकर बेदखल करना चाहती थी, जबकि उनके पास रहने का कोई दूसरा ठिकाना नहीं था। हाईकोर्ट में इनकी यह दलील भी काम नहीं आई। इसके साथ ही ग्राम पंचायत की ओर से हाईकोर्ट को बताया गया कि अपीलार्थियों ने गत वर्ष 6 मार्च से पहले कभी नियमितिकरण के लिए आवेदन ही नहीं किया, तो अन्य चर्चा का कोई औचित्य ही नहीं बनता। जून-2024 में किए गए आवेदन भी विवादित की बजाय किसी अन्य भूमि से संबंधित थे। इतना ही नहीं, तीनों ही अपीलार्थियों के पास बरसों से अन्यत्र रहवासीय आवास हैं और विवादित जमीन पर ये व्यावसायिक गतिविधियां संचालित कर रहे हैं, जिससे संबंधित रेवेन्यू रिकॉर्ड और फोटोग्राफ्स भी उपलब्ध कराए गए।
ग्राम पंचायत के अधिवक्ता संज्ञान में नहीं लाते, तो अपीलार्थियों को लाभ मिल जाता
राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस बोराणा ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यदि ग्राम पंचायत रूण की ओर से एडवोकेट मनीष टाक व दिनेश सोलंकी तमाम तथ्य कोर्ट के संज्ञान में नहीं लाते, तो अपीलार्थियों को निश्चित ही तथ्यों को छिपाने और गैर-प्रकटीकरण करने का लाभ मिल जाता। कोर्ट में बताए गए भ्रामक तथ्य न केवल गुमराह करने का प्रयास था, अपितु कोर्ट का कीमती समय भी जाया करने की कोशिश है।
हाईकोर्ट ने अपीलाथियों की ओर से उठाए गए सभी तर्कों को भ्रामक और मिथ्या पाया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस मामले में जल्दी सुनवाई के लिए बताई गई प्राथमिकता भ्रामक थी, क्योंकि मामला मई 2024 से कई स्टे के साथ लंबित था। अपीलार्थियों के अधिवक्ता ने नियमितिकरण आवेदन और संपत्तियों की प्रकृत्ति के बारे में झूठे तथ्य रखे। ऐसे में इन तीनों ही अपीलों को खारिज करने के साथ ही अधिवक्ता पर भी 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाते हुए 15 दिनों में यह राशि वादी कल्याण कोष में जमा कराने के निर्देश भी दिए।