राजकुमार जैन का कॉलम: सतर्क रहें, आज एआई के नाम पर कुछ भी बेचा जा रहा है!

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राजकुमार जैन का कॉलम:  सतर्क रहें, आज एआई के नाम पर कुछ भी बेचा जा रहा है!

राजकुमार जैन का कॉलम: सतर्क रहें, आज एआई के नाम पर कुछ भी बेचा जा रहा है!

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9 घंटे पहले

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राजकुमार जैन एआई विशेषज्ञ एंव स्वतंत्र लेखक

एआई की सुविधाओं के साथ ही एआई वॉशिंग की समस्याओं ने भी जन्म लिया है। यह वो प्रक्रिया है, जिसमें व्यावसायिक संस्थाएं अपने उत्पादों अथवा सेवाओं को एआई से संचालित बताकर उपभोक्ताओं और निवेशकों को भ्रमित करती हैं, जबकि वास्तविकता में उनकी तकनीक इस दावे से कोसों दूर होती है। एआई वॉशिंग, ग्रीन वॉशिंग की तर्ज पर एक नया छल है। ग्रीन वॉशिंग में पर्यावरणीय चेतना के नाम पर झूठे और भ्रामक दावे किए जाते हैं।

एआई वॉशिंग में कोई साधारण सॉफ्टवेयर- जो मात्र नियम-आधारित तर्क पर कार्य करता हो- उसे एआई-जनरेटेड कहकर प्रचारित किया जाता है।इसका उद्देश्य है उपभोक्ताओं की तकनीकी जिज्ञासा और निवेशकों की आर्थिक आकांक्षा को भुनाना। बाजार में किसी उत्पाद या सेवा की क्षमताओं को ‘एआई’ के नाम पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है, ताकि यह वास्तव में जितना है उससे अधिक परिष्कृत, अभिनव या बुद्धिमान लगे और बड़े मुनाफे से साथ आसानी से बेचा जा सके।

वर्तमान में वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का व्यापक दखल और असर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। विभिन्न क्षेत्रों की कंपनियां एआई-पॉवर्ड उत्पादों और सेवाओं का अतिरंजित प्रचार कर रही हैं। एआई के उपयोग से मानव जीवन को बेहतर बनाने के लुभावने वादे किए जा रहे हैं। लेकिन ये दावे पूरी तरह से सच्चे नहीं होते हैं। इस प्रवृत्ति का उद्भव हाल के दशक में तीव्र हुआ है।

स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन (2023) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 60 फीसदी से अधिक स्टार्टअप्स- जो अपने उत्पादों को एआई-संचालित बताते हैं- वास्तव में मशीन लर्निंग या डीप लर्निंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग नहीं करते। भारत में भी यह चलन बढ़ता जा रहा है, जहां तकनीकी स्टार्टअप्स की संख्या 2024 तक 1,00,000 से अधिक हो चुकी थी (नासकॉम रिपोर्ट, 2024), और इनमें से एक बड़ा हिस्सा अपने प्रचार में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द का प्रयोग करता है।

अतीत ने हमें सिखाया है कि नई तकनीक के आगमन के साथ फरेबी और मौकापरस्त भी आते हैं। एआई वॉशिंग का इस्तेमाल कंपनियां अपने उत्पादों में इस्तेमाल की जाने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक की मात्रा को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए करती हैं। शीतलपेय कंपनियां भी एआई के नाम पर भारी लाभ कमाने के आकर्षण से बच नहीं पाई हैं।

स्वास्थ्य से जुड़ी अपनी बिगड़ती छवि निखारने के लिए उनमें से एक कंपनी ने एक नया पेय पेश किया है और उनका दावा है कि इसे एआई का उपयोग करके बनाया गया है। जबकि हम जानते हैं कि एआई स्वाद का निर्माण या पहचान नहीं कर सकता। मार्च 2024 में अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) ने दो निवेश फर्मों- डेल्फिया एडवाइजर्स और ग्लोबल प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स पर जुर्माना लगाया था, क्योंकि इन्होंने अपने निवेश मॉडल को एआई-संचालित बताकर ग्राहकों को गुमराह किया।

जांच में पाया गया कि इनका सॉफ्टवेयर पारंपरिक डेटा विश्लेषण पर आधारित था, न कि मशीन लर्निंग पर। भारत में भी कई फिनटेक कंपनियां अपने ऋण-वितरण मॉडल को एआई-आधारित बताती हैं, जबकि वे केवल बुनियादी एल्गोरिदम का उपयोग करती हैं। 2022 में एक प्रसिद्ध भारतीय ई-कॉमर्स कंपनी ने अपने चैटबॉट को एआई-संचालित सहायक के रूप में प्रचारित किया, किंतु यूजर्स ने पाया कि यह केवल पूर्व-लिखित स्क्रिप्ट्स का पालन करता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अपने आप में एक व्यापक शब्द है और एक आम आदमी के लिए इसकी परिभाषा अस्पष्ट और लचीली होती है। यही अस्पष्टता एआई वॉशिंग को बढ़ावा दे रही है। इसकी तुलना डॉट-कॉम बबल से की जा सकती है, जब व्यवसाय अपने मूल्यांकन को बढ़ाने के लिए व्यवसाय के नाम के अंत में “डॉट-कॉम’ शब्द जोड़ते थे। भारत में अभी तक एआई शब्द के प्रयोग पर कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं हैं। सरकार को विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के साथ मिलकर ऐसे नियम बनाना चाहिए, जो कंपनियों को जवाबदेह ठहराएं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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