रमजान में चल रहा इबादत का दौर: तीन अशरों में बंटा होता है पवित्र माह, जानें- रहमत, मगफिरत और निजात के मायने – Indore News

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रमजान में चल रहा इबादत का दौर:  तीन अशरों में बंटा होता है पवित्र माह, जानें- रहमत, मगफिरत और निजात के मायने – Indore News

रमजान में चल रहा इबादत का दौर: तीन अशरों में बंटा होता है पवित्र माह, जानें- रहमत, मगफिरत और निजात के मायने – Indore News

इस्लाम के पवित्र महीने रमजान के मौके पर मस्जिदों में रौनक है। शहर के अलग-अलग क्षेत्रों की मस्जिदों में लोग नमाज अता करने पहुंच रहे हैं। रमजान इस्लाम का सबसे पवित्र महीना है, जिसमें इबादत कर अल्लाह की रहमत, मगफिरत और जहन्नुम से निजात पाने का अवसर मिल

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इंदौर के खजराना रिंग रोड स्थित मुल्तानी मस्जिद में नमाज अता करने पहुंचे हाजी मोहम्मद दाउद करीब 90 रमजान देख चुके हैं। उन्होंने बताया कि रमजान का पवित्र माह तीन अशरों में बंटा होता है- पहले दस दिन रहमत, अगले दस दिन मगफिरत और अंतिम दस दिन जहन्नुम से निजात के लिए होते हैं। इन अशरों की खास दुआएं पढ़ने से रोजेदार को अधिक सवाब मिलता है और उसकी दुआएं कबूल होती हैं।

पहला अशरा

यह अशरा अल्लाह की रहमत हासिल करने के लिए है। इस दौरान अल्लाह की रहमत और सुकून पाने के लिए दुआ करनी चाहिए। इसमें दुआ ‘अल्लाहुम्मा अर्हम्नी’ पढ़ी जाती है।

दूसरा अशरा

यह अशरा गुनाहों की माफी के लिए है। रोजेदार को अपने पिछले गुनाहों की माफी के लिए अल्लाह से तौबा करनी चाहिए। इसमें दुआ- ‘अस्तग़्फिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्लि जम्बिन वा अतूबु इलैहि’ पढ़ी जाती है।

तीसरा अशरा

जहन्नुम से निजात पाने और जन्नत मांगने का अशरा। लैलातुल कद्र इन्हीं दिनों में आती है, जिसमें अल्लाह अपने बंदों को माफ कर देते हैं। इसमें दुआ ‘अल्लाहुम्मा अजिरना मिनान नार’ पढ़ी जाती है।

खजराना रिंग रोड स्थित मुल्तानी मस्जिद

शब-ए-कद्र सबसे खुशनसीब रात

मौलाना सैयद शाहिद अली ने बताया कि रमजान में पांच रातें ऐसी आती हैं, जब अपने अल्लाह से खूब दुआएं करनी होती हैं। 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वी रात का इस्लाम में विशेष महत्व है। इन रातों में मुस्लिम समाज के लोग मस्जिदों में और महिलाएं व बच्चे घरों में जागकर इबादत करते हैं। इन्हीं में से एक रात शब-ए-कद्र होती है, जिसे हजरत मोहम्मद साहब ने सबसे खुशनसीब रात बताया है।

मस्जिद में इबादत के बाद लौटते समाजजन

सवाब 70 साल की इबादत के बराबर

हाजी गब्बर भाई ने बताया कि आखिरी असरे की इन रातों में सभी के लिए दुआ मांगी जाती है, देश में अमन शांति रहे इसके लिए दुआ मांगी जाती है। इस रात अल्लाह अपने फरिश्तों से फरमाते हैं कि जो उनकी इबादत में मशगूल हैं, उनके गुनाह माफ कर दिए जाएं। शब-ए-कद्र की इबादत का सवाब 70 साल की इबादत के बराबर होता है। मुसलमान इस रात कब्रों पर जाकर अपने प्रियजनों की मगफिरत की दुआ मांगते हैं और गुनाहों से तौबा करते हैं।

नमाज अता करते समाजजन

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