यहां मिलती हैं सबसे सस्ती ब्रांडेड दवाएं, जानकारी नहीं होने से लुटते हैं लोग | MRP of generic and ethical medicine in mp | Patrika News h3>
निगरानी का सिस्टम नहीं: जेनरिक की एमआरपी एथिकल से भी ज्यादा
जेनरिक दवाएं सस्ती, लेकिन दुकानदारों के मनमर्जी दाम पर खरीदने की मजबूरी
रेट में अंतर होने से मरीज यह तय नहीं कर पाता कि वह मनमानी छूट वाली जेनरिक दवा लेकर राहत महसूस करे कि अपने को ठगा हुआ माने। 80 फीसदी जेनरिक दवाओं के रैपर में एमआरपी एथिकल दवाओं की तरह या उनसे कहीं ज्यादा है। जानकार बताते हैं कि एथिकल और जेनरिक दोनों ही दवा कंपनियां साल्ट एक होते हैं, लेकिन खेल कंपनी के ब्रांडेड व जेनरिक नाम से हो रहा है। बाजार में जो एथिकल ब्रांडेड दवाएं हैं, उनके दाम पूरे देश में एक है और थोक व फुटकर का कमीशन भी फिक्स रहता है, जो कि 10 से 35 प्रतिशत तक रहता है।
मार्जिन की सीमा तय नहीं
सस्ती कही जाने वाली जेनरिक दवा के रेपर में जो उसकी कीमत दर्ज होती है, वह ब्रांडेड की तरह या उससे ज्यादा होती है। मार्जिन की कोई तय सीमा नहीं होती है। जो दवा का पत्ता 40 रुपए का थोक रेट में होता है फुटकर में उसकी एमआरपी 2 सौ रुपए तक है। जेनरिक की एमआरपी तय नहीं होने से आम आदमी को कितना राहत मिलेगा। यह दुकानदार की पर्चे पर मिलेगा।
अलग-अलग दर
शहर के अलग-अलग मेडिकल स्टोर में डिस्काउंट की दर अलग-अलग है। एक ओर जहां दवा दुकानदार ब्रांडेड दवा में फिक्स में 15 से 20 प्रतिशत तक डिस्काउंट दे रहे हैं तो जेनरिक पर यह 20 से 50 प्रतिशत तक , कुछ दुकानों में जेनरिक दवा में 20 से 80 प्रतिशत , 90 प्रतिशत तक डिस्काउंट के बोर्ड लगे थे परंतु वह अधिकतम डिस्काउंट 30 प्रतिशत तक ही दे रहे हैं। रसल चौक स्थित एक दुकान से एक एंटीबायोटिक एमाक्सीक्लेब सीबी 625 के दाम पूछे। अलग-अलग ब्रांडेड दवा की कीमत 192 से 200 रुपए थी। जिसमें 15 प्रतिशत डिस्काउंट देने की बात कही गई। डिस्काउंट के बाद वह दवा लगभग 160 रुपए की थी। इस बीच दुकानदार ने 200 रुपए की एमआरपी वाली दवा जो कि डबल पैङ्क्षकग में थी। डिस्काउंट काट कर 140 रुपए डिस्काउंट पर देने की बात कही। डबल रैपर की पैङ्क्षकग में पैङ्क्षकग में पैक उस दवा की थोक कीमत लगभग 40 रुपए रही। इस तरह लगभग उस दवा पर 120 रुपए का सीधा सीधा मुनाफा रहा। यही स्थिति अन्य दवाओं की भी रही।
सरकार को चाहिए कि जेनरिक दवा के दाम उसके रैपर में ही कम अंकित हो। कौन सी जेनरिक दवा है यह आम नागरिक को समझ में आए। इसका उल्लेख रैपर में होना चाहिए। अन्यथा 50 से 90 प्रतिशत डिस्काउंट के दावे के बीच मरीज को राहत नहीं मिलेगी।
– डॉ. एके सिन्हा, सेवानिवृत्त, सिविल सर्जन जिला अस्पताल
मरीजों को दवा के दाम में राहत देना है तो एथिकल व जेनरिक की अपेक्षा एक देश एक दाम निर्धारित किए जाएं। दवाओं की कीमत जब एक होगी तो इसका फायदा मरीजों को मिलेगा। दवाओं के दाम एक होने चाहिए।
– डॉ.चंद्रेश जैन, सचिव, जबलपुर ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन
निगरानी का सिस्टम नहीं: जेनरिक की एमआरपी एथिकल से भी ज्यादा
जेनरिक दवाएं सस्ती, लेकिन दुकानदारों के मनमर्जी दाम पर खरीदने की मजबूरी
रेट में अंतर होने से मरीज यह तय नहीं कर पाता कि वह मनमानी छूट वाली जेनरिक दवा लेकर राहत महसूस करे कि अपने को ठगा हुआ माने। 80 फीसदी जेनरिक दवाओं के रैपर में एमआरपी एथिकल दवाओं की तरह या उनसे कहीं ज्यादा है। जानकार बताते हैं कि एथिकल और जेनरिक दोनों ही दवा कंपनियां साल्ट एक होते हैं, लेकिन खेल कंपनी के ब्रांडेड व जेनरिक नाम से हो रहा है। बाजार में जो एथिकल ब्रांडेड दवाएं हैं, उनके दाम पूरे देश में एक है और थोक व फुटकर का कमीशन भी फिक्स रहता है, जो कि 10 से 35 प्रतिशत तक रहता है।
मार्जिन की सीमा तय नहीं
सस्ती कही जाने वाली जेनरिक दवा के रेपर में जो उसकी कीमत दर्ज होती है, वह ब्रांडेड की तरह या उससे ज्यादा होती है। मार्जिन की कोई तय सीमा नहीं होती है। जो दवा का पत्ता 40 रुपए का थोक रेट में होता है फुटकर में उसकी एमआरपी 2 सौ रुपए तक है। जेनरिक की एमआरपी तय नहीं होने से आम आदमी को कितना राहत मिलेगा। यह दुकानदार की पर्चे पर मिलेगा।
अलग-अलग दर
शहर के अलग-अलग मेडिकल स्टोर में डिस्काउंट की दर अलग-अलग है। एक ओर जहां दवा दुकानदार ब्रांडेड दवा में फिक्स में 15 से 20 प्रतिशत तक डिस्काउंट दे रहे हैं तो जेनरिक पर यह 20 से 50 प्रतिशत तक , कुछ दुकानों में जेनरिक दवा में 20 से 80 प्रतिशत , 90 प्रतिशत तक डिस्काउंट के बोर्ड लगे थे परंतु वह अधिकतम डिस्काउंट 30 प्रतिशत तक ही दे रहे हैं। रसल चौक स्थित एक दुकान से एक एंटीबायोटिक एमाक्सीक्लेब सीबी 625 के दाम पूछे। अलग-अलग ब्रांडेड दवा की कीमत 192 से 200 रुपए थी। जिसमें 15 प्रतिशत डिस्काउंट देने की बात कही गई। डिस्काउंट के बाद वह दवा लगभग 160 रुपए की थी। इस बीच दुकानदार ने 200 रुपए की एमआरपी वाली दवा जो कि डबल पैङ्क्षकग में थी। डिस्काउंट काट कर 140 रुपए डिस्काउंट पर देने की बात कही। डबल रैपर की पैङ्क्षकग में पैङ्क्षकग में पैक उस दवा की थोक कीमत लगभग 40 रुपए रही। इस तरह लगभग उस दवा पर 120 रुपए का सीधा सीधा मुनाफा रहा। यही स्थिति अन्य दवाओं की भी रही।
सरकार को चाहिए कि जेनरिक दवा के दाम उसके रैपर में ही कम अंकित हो। कौन सी जेनरिक दवा है यह आम नागरिक को समझ में आए। इसका उल्लेख रैपर में होना चाहिए। अन्यथा 50 से 90 प्रतिशत डिस्काउंट के दावे के बीच मरीज को राहत नहीं मिलेगी।
– डॉ. एके सिन्हा, सेवानिवृत्त, सिविल सर्जन जिला अस्पताल
मरीजों को दवा के दाम में राहत देना है तो एथिकल व जेनरिक की अपेक्षा एक देश एक दाम निर्धारित किए जाएं। दवाओं की कीमत जब एक होगी तो इसका फायदा मरीजों को मिलेगा। दवाओं के दाम एक होने चाहिए।
– डॉ.चंद्रेश जैन, सचिव, जबलपुर ड्रगिस्ट एंड केमिस्ट एसोसिएशन