मौसम की मार: जीरा मंडी नहीं होने से हर साल बाड़मेर से 25 लाख क्विंटल जीरा व ईसबगोल ऊंझा की मंडी में जा रहा – Barmer News

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मौसम की मार:  जीरा मंडी नहीं होने से हर साल बाड़मेर से 25 लाख क्विंटल जीरा व ईसबगोल ऊंझा की मंडी में जा रहा – Barmer News

मौसम की मार: जीरा मंडी नहीं होने से हर साल बाड़मेर से 25 लाख क्विंटल जीरा व ईसबगोल ऊंझा की मंडी में जा रहा – Barmer News

गडरारोड इलाके में जीरे की फसल कटाई करते किसान।

पश्चिमी राजस्थान में इस बार सर्दी से ज्यादा गर्मी की चर्चा रही है, क्योंकि इस सीजन में सबसे कम सर्दी पड़ी। मौसम की मार की वजह से ही जीरा और ईसबगोल का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। 2023-24 में जितना उत्पादन हुआ था, उसके मुकाबले इस बार 30-35% उत्पादन कम

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इसकी वजह ये है कि नवंबर तक पारा 37-38 पर था। ऐसे में 20 नवंबर के बाद बुवाई शुरू हुई। दिसंबर में फसलें अंकुरित हुई तो सर्दी ने जोर नहीं पकड़ा। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जीरा 2.41 लाख हेक्टेयर और ईसबगोल 1.63 लाख हेक्टेयर में बुवाई की गई। उसके मुताबिक अगर उत्पादन हो तो करीब 25 लाख िक्वंटल से ज्यादा का उत्पादन होना है। जबकि मौसम की मार की वजह से इस बार 17-18 लाख क्विंटल ही उत्पादन की संभावना है।

किसान फसल कटाई में लगे, बोले- मौसम की मार, इस बार मेहनत ज्यादा, मुनाफा कम

दैनिक NEWS4SOCIALटीम ने जीरा-ईसबगोल की फसल को लेकर बाड़मेर जिले के सिणधरी, गुड़ामालानी, रामजी का गोल, धोरीमन्ना, सेड़वा, धनाऊ, चौहटन, बींजराड़, रामसर, गडरारोड, शिव, बाड़मेर में करीब 100 से ज्यादा किसानों तक पहुंची। किसानों ने बताया कि दिसंबर और जनवरी में महज 20 दिन ही कड़ाके की ठंड पड़ी। इससे फसलें वृद्धि नहीं कर पाई। फरवरी की शुरूआत के साथ ही पछुआ हवा चलने लगी।

फसल फूल आने की स्थिति में ही जलने लग गई। इससे जीरा-ईसबगोल दोनों फसलों पर दाने कम पड़े और अध पक्की फसल जल गई। इस बार मौसम कमजोर रहने से जीरे की फसल में सबसे ज्यादा रोग लगे। इससे दवाइयों का खर्चा भी ज्यादा आया। इसके बाद समय से पहले गर्मी का मौसम आ गया और पछुआ हवा चल गई। इससे अध पक्की फसल जल गई।

इस बार फसल अंकुरित नहीं होने से एक ही जगह पर 20-20 दिन तक लगातार सिंचाई करनी पड़ी। ये ही वजह है कि मेहनत ज्यादा और मुनाफा कम रहा। हर बार एक हेक्टेयर में 8-10 क्विंटल जीरा हो जाता है, लेकिन इस बार 5-6 क्विंटल भी मुश्किल है। इधर जीरा-ईसबगोल के भाव भी गिर गए। इससे आमदनी आधी रह गई है।

बाड़मेर में 8 साल से सिर्फ कागजों में जीरा मंडी

बाड़मेर में जीरा मंडी की घोषणा 2015-16 के बजट में की गई थी। इसके बाद 2017 में भूखंड आवंटन के लिए आवेदन भी लिए गए। कृषक व निर्यातकों को भूखंड आवंटन हुए। आवंटन प्रक्रिया में हुए भ्रष्टाचार के कारण मामला कोर्ट में चला गया। इसके बाद पिछले 5 साल से जांचें चल रही है। अप्रैल 2023 में 34 भूखंडों का आवंटन किया गया। 9 भूखंड अपीलों की वजह से पेडिंग है।

जीरा मंडी निर्माण पर करोड़ों का बजट खर्च किया गया, लेकिन शुरू नहीं हो पाई। इसी वजह से बाड़मेर-जैसलमेर के किसान जीरे की फसल को गुजरात की ऊंझा मंडी बेचने को मजबूर है। इससे राजस्थान सरकार को भारी राजस्व नुकसान भी हो रहा है। गुजरात में जीरा-ईसबगोल पर आधा प्रतिशत मंडी टैक्स है। अकेले बाड़मेर से हर साल गुजरात सरकार 15 करोड़ से ज्यादा कमा रही है।

उपज कम, भाव भी गिरे

ऊंझा मंडी के व्यापारी जीबी बोहरा के मुताबिक 45 हजार बोरी जीरे की रोज आवक हो रही है। हवा वाले जीरे के भाव 180-185, सूखा जीरा 190-200 रुपए किलो है। इसी तरह ईसबगोल के भाव 120-127 रुपए प्रति किलो है। जबकि 2024 में जीरे के भाव 260-280 रुपए व ईसबगोल के 150-170 रुपए किलो तक थे। ऐसे में कमजोर उत्पादन के साथ भावों में भी गिरावट है।

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