मौत के सीवर…! सफाई के दौरान सैकड़ों कर्मचारी गंवा चुके हैं जान, क्‍यों बनते हैं हादसे की वजह, क्‍या कहते हैं नियम?

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मौत के सीवर…! सफाई के दौरान सैकड़ों कर्मचारी गंवा चुके हैं जान, क्‍यों बनते हैं हादसे की वजह, क्‍या कहते हैं नियम?

मौत के सीवर…! सफाई के दौरान सैकड़ों कर्मचारी गंवा चुके हैं जान, क्‍यों बनते हैं हादसे की वजह, क्‍या कहते हैं नियम?

Sewer cleaning claims many lives: लखनऊ में सीवर सफाई (Sewer cleaning) के लिए मैनहोल (Manhole) में उतरे 2 कर्मचारियों की मौत के बाद दोबारा सरकारों पर अंगुलियां उठने लगी हैं। पिछले कुछ सालों में ऐसी घटनाएं बार-बार देखने को मिली हैं। हालांकि, सरकारों का रुख इस मामले में ठंडा रहा है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की फटकार का भी असर नहीं हुआ है। हर बार कर्मचारियों की मौत के पीछे एक ही कारण होता है। पर्याप्‍त उपकरणों का नहीं होना। पिछले कुछ सालों में सीवर में सफाई कर्मचारियों की मौत का सिलसिला बदस्‍तूर जारी रहा है। यह और बात है कि इंतजाम के नाम पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। नियमों के विरुद्ध सीवर में सफाई करने के लिए कर्मचारियों को मरने के लिए उतारा गया है। इसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इसे लेकर नियम क्‍या हैं? ऐसी घटनाओं में कितने लोग जान गंवा चुके हैं? कैसे मौत का कारण बन जाते हैं ये सीवर? आइए, यहां इन सभी सवालों का जवाब जानते हैं।

पहले ताजा मामले की बात कर लेते हैं। लखनऊ में सहादतगंज के गुलाब नगर में तीन सफाईकर्मी सीवर में उतरे थे। इनमें से दो की मौत हो गई। एक की हालत गंभीर है। बताया जाता है कि इन कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवर में सफाई के लिए उतार दिया गया था। इनके पास न तो कोई सुरक्षा उपकरण थे न अन्‍य साजो-सामान। ऑक्सिजन की कमी के चलते दो कर्मचारियों मौत हो गई। ज्यादा देर तक सीवर टैंक में रहना दोनों युवकों की मौत की वजह बना। एक ट्रामा सेंटर में है।

मंगलवार को ही लखनऊ की इस घटना से पहले रायबरेली शहर में मनिका रोड पर अमृत योजना के तहत निर्मित सीवर लाइन की सफाई के दौरान दो श्रमिकों की मौत हो गई। ये मैन होल में सफाई करने के लिए उतरे थे। इस दौरान जहरीली गैस से वो बेहोश हो गए। सीवर से जब तक इन्‍हें निकाला गया तब तक इनकी मौत हो गई थी।

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यह संयोग ही है कि दिल्‍ली में भी इसी दिन कुछ ऐसी ही घटना सामने आई। रोहिणी के सेक्‍टर 16 में सीवर लाइन में चार लोग फंस गए। ये चारों लापता हैं। माना जाता है कि इनमें से कोई भी जिंदा नहीं बचा है। वैसे ये सफाईकर्मी नहीं थे, बल्कि दूरसंचार कंपनी के ल‍िए वायरवर्क कर रहे थे। इस दौरान उन्‍हें सीवर में उतरने की जरूरत पड़ी थी।

सैकड़ों कर्मचारियों की हो चुकी है मौत
बीते कुछ सालों में मैनुअल स्‍कैवेंजिंग यानी हाथ से नालों की सफाई करते हुए सैकड़ों लोगों ने जान गंवाई है। 2020 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की संस्था राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने डराने वाले आंकड़े बताए थे। उसने कहा था कि 2010 से मार्च 2020 तक सीवर सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई। आंकड़ों के अनुसार, 2019 में सीवर की सफाई के दौरान 110 लोगों ने जान गंवाई। इसी तरह 2018 में 68 और 2017 में 193 मौतें हुईं।

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मामले से जुड़े लोग कहते हैं कि सफाई के लिए आधुनिक मशीनों की सुविधाएं नहीं होने और ज्यादातर जगहों पर अनुबंध की व्यवस्था होने से सफाईकर्मियों की मौतें हो रही हैं। अनुबंध की स्थिति में सरकारें सफाईकर्मियों के हितों का उचित ध्यान नहीं रखती हैं। दिल्ली और हरियाणा जैसे कुछ राज्यों ने सीवर की सफाई के लिए मशीनों का इस्तेमाल शुरू किया है। हालांकि, ऐसी व्‍यवस्‍था पूरे देश में नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट लगा चुका है फटकार
कुछ साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर केंद्र सरकार को फटकार भी लगाई थी। देश की सबसे बड़ी अदालत ने तब कहा था कि कोई भी देश अपने लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में नहीं भेजता। आजादी के इतने साल बाद भी मैनुअल स्‍कैवेंजिंग जारी है। यह दिखाता है कि देश में भेदभाव बना हुआ है। सभी बराबर हैं। लेकिन, सरकारें बराबर सुविधाएं नहीं दे रही हैं।

क्‍या कहते हैं नियम?
मैनुअल स्‍कैवेंजिंग एक्‍ट 2013 के तहत सीवर में सफाई के लिए किसी भी व्‍यक्ति को उतारना पूरी तरह गैर-कानूनी है। एक्‍ट में इस पर रोक का प्रावधान है। किसी खास स्थिति में अगर व्‍यक्ति को सीवर में उतारना ही पड़ जाए तो उसके लिए कई तरह के नियमों का पालना जरूरी है। मसलन, जो व्‍यक्ति सीवर की सफाई के लिए उतर रहा है, उसे ऑक्सिजन सिलेंडर, स्‍पेशल सूट, मास्‍क, सेफ्टी उपकरण इत्‍यादि देना जरूरी है। अमूमन इन नियमों की अनदेखी होती है।



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