मोहन भागवत बोले- बंधुभाव ही असली धर्म: बाबासाहेब अंबेडकर ने भी यही समझाया; RSS चीफ की अपील- मतभेदों का सम्मान करें, सद्भाव से रहें

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मोहन भागवत बोले- बंधुभाव ही असली धर्म:  बाबासाहेब अंबेडकर ने भी यही समझाया; RSS चीफ की अपील- मतभेदों का सम्मान करें, सद्भाव से रहें

मोहन भागवत बोले- बंधुभाव ही असली धर्म: बाबासाहेब अंबेडकर ने भी यही समझाया; RSS चीफ की अपील- मतभेदों का सम्मान करें, सद्भाव से रहें

भिवंडी1 घंटे पहले

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भागवत ने अपने भाषण में देश, समाज और व्यक्ति के विकास के बारे में भी बात की।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने महाराष्ट्र के ठाणे में भिवंडी शहर के एक कॉलेज में गणतंत्र दिवस समारोह में हिस्सा लिया। उन्होंने तिरंगा फहराने के बाद दिए भाषण में कहा- बंधुभाव ही असली धर्म है। यह बात डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने संविधान देते समय अपने भाषण में भी समझाई है।

भागवत ने कहा- समाज आपसी सद्भावना के आधार पर काम करता है। इसलिए मतभेदों का सम्मान किया जाना चाहिए। प्रकृति भी हमें विविधता देती है। विविधता के कारण भारत के बाहर संघर्ष हो रहे हैं। हम इसे जीवन का हिस्सा मानते हैं।

उन्होंने कहा कि आपकी अपनी विशेषताएं हो सकती हैं, लेकिन आपको एक-दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार करना चाहिए। अगर आप जीना चाहते हैं, तो आपको एक साथ रहना चाहिए।

भिवंडी के कॉलेज में मोहन भागवत को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था।

भागवत के भाषण की बड़ी बातें…

  • अगर आपका परिवार दुखी है, तो आप खुश नहीं रह सकते। इसी तरह, अगर शहर में कोई परेशानी है, तो कोई परिवार खुश नहीं रह सकता।
  • तिरंगे पर धम्मचक्र केवल एक प्रतीक नहीं है, बल्कि एक संदेश है जिसे हमें अपने जीवन में अपनाना चाहिए। यह राष्ट्र की प्रगति के लिए हमारी जिम्मेदारी की याद दिलाता है।
  • बिना सोचे-समझे किया गया कोई भी काम फल नहीं देता, बल्कि परेशानी लाता है। बिना ज्ञान के किया गया काम पागलों का काम बन जाता है।
  • अगर आपको चावल पकाना नहीं आता और आप सूखा चावल खाकर, पानी पीकर, घंटों धूप में खड़े रहते हैं, तो कभी भोजन नहीं बना पाएंगे। समर्पण के साथ ज्ञान जरूरी है।
  • व्यक्ति आगे बढ़े, इसके लिए स्वतंत्रता और समानता की जरूरत है। किसी का दमन नहीं होना चाहिए। सभी को अवसर मिलना चाहिए।

1971 के युद्ध और पोखरण के परीक्षणों के बाद बढ़ा भारत का सम्मान

भागवत ने कॉलेज में मौजूद छात्रों से कहा- आजादी के बाद शुरुआती दौर में राष्ट्रीय गौरव और सम्मान अनिश्चित थे। खासकर चीन के साथ 1962 के युद्ध में मिली हार के बाद। उन्होंने कहा, “स्वतंत्रता के बाद भी संदेह बना रहा। चीन के खिलाफ युद्ध में हमें पीछे हटना पड़ा और हमारे लिए सम्मान खत्म हो गया। लेकिन 1971 के युद्ध और पोखरण के सफल परीक्षणों के बाद हमारी प्रतिष्ठा बढ़ी और दुनिया ने फिर से हमारा सम्मान करना शुरू कर दिया।

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