मेरी फिल्म पसंद आए तब पेमेंट करें दर्शक: डबल रोल-सिंगल शॉट वाली फिल्म के मेकर बोले- चकाचौंध भरी है लखनऊ की शाम – Lucknow News h3>
डबल रोल वाली सिंगल शॉट फिल्म कृष्ण और अर्जुन लोगों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है। यूट्यूब में लॉन्च हुई इस फिल्म के अब तक करीब डेढ़ लाख व्यूज हो चुके हैं। हाल ही में इसके मेकर हेमवंत तिवारी लखनऊ के दौरे पर आए थे। वह इस फिल्म में रोल भी निभा रहे है
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सवाल : लखनऊ में कुछ खास दिखा? यहां दोबारा कब आ रहे हैं?
जवाब : लखनऊ बहुत जल्द आने की कोशिश करूंगा। मुझे लखनऊ में बच्चों के ऊपर एक फिल्म बनानी है। लखनऊ के बारे में मैंने जो सुना था, वही पाया। यहां के लोगों के बात करने का लहजा बहुत अच्छा है। यहां की सड़कें मुझे मुंबई से भी ज्यादा अच्छी लगीं।
मुंबई मेरी कर्मभूमि है, उसको मैं प्रणाम करता हूं पर यहां जो मुझे अच्छा लगा, वह मैं आपसे बता रहा हूं। यहां आने के बाद मेरी गाड़ी को हल्का भी जर्क नहीं लगा। मैं रूमी दरवाजा घूमने गया। लखनऊ की नाइट लाइफ भी बेहद चकाचौंध से भरी है।
मुझे उम्मीद नहीं थी पर नाइट लाइफ देखकर बहुत अच्छा लगा। देखने से लखनऊ बहुत प्यारा लग रहा है। इसके अलावा मेरा यहां के लोगों से कहना है कि आप लोग सिनेमा देखिए। इंडिपेंडेंट फिल्म मेकर का ध्यान रखिए। सीएम साहब को मेरा प्रणाम। यहां की राज्यपाल भी बहुत अच्छी हैं।
सवाल : अपनी नई फिल्म और उसकी वन शॉट टेक्नीक के बारे में बताएं?
जवाब : लगान, स्वदेश फिल्म बनाने वाले आशुतोषजी ने मेरी पहली फिल्म लोमड़ को लेकर ट्वीट किया था। उन्होंने कहा था कि वन शॉट फिल्म जैसी कोई फिल्म पहले नहीं देखी। मेरी दूसरी फिल्म ‘कृष्ण और अर्जुन’ है। यह दुनिया की पहली डबल रोल वाली सिंगल वन शॉट फिल्म है। मैंने इसके नाम की टी-शर्ट भी पहनी हुई है।
2 घंटे 14 मिनट के लिये एक्टर्स ने लगातार काम किया है। कैमरा भी नॉनस्टॉप चला है। यानी कि कैमरा बीच रुका ही नहीं, कोई कट नहीं कोई एडिट नहीं। चलती फिल्म के अंदर आप सेट बदलाव देखेंगे, सेट बदल जाएगा। कहानी रेस्टोरेंट के अंदर चली जाएगी, पुलिस स्टेशन में चली जाएगी, हॉस्पिटल में चली जाएगी, गाड़ी के अंदर की कहानी होगी, फिर गाड़ी कहीं चली जाएगी।
उसके बाद आप वापस उसी सीन में आएंगे। यह सबकुछ वन शॉट में होता है। इस दरम्यान सेट चेंजेस, फ्लैशबैक, स्ट्रीम चेंजेस, स्लो मोशन शॉट्स आदि सबकुछ होता है। दूसरी सबसे अहम बात फिल्म की कहानी है, जो आपको बांधे रखेगी।
सवाल : यूट्यूब पर क्यों लॉन्च किया?
जवाब : फिल्म ऑडियंस को समझ में आएगी क्योंकि इसकी स्टोरी बेहद इंटरेस्टिंग है। दुनिया के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म यूट्यूब पर हमने इसे लॉन्च किया है। मेरे जैसे इंडिपेंडेंट फिल्ममेकर को थिएटर मिलता नहीं। ऐसे में यूट्यूब पर ही रिलीज करना ऑप्शन बचा था।
अभी तक जो रिस्पॉन्स हैं वो भी बेहतरीन है। फिल्म की शुरुआत में ही हमने QR कोड रखा है। फिल्म देखने के बाद आप खुद के हिसाब से टिकट प्राइस पे कर सकते हैं। जब आप थिएटर में जाते हैं तो कई बार पैसे लेने के बावजूद बाहर आने पर कहते हैं कि अरे यार बकवास फिल्म थी।
सवाल : वन शॉट फिल्मों का ट्रेंड आज की डेट में क्यों रिलेवेंट है?
जवाब : ऐसा नहीं है कि वन शॉट फिल्में आज ही रिलेवेंट हैं। ये पहले भी रिलेवेंट था। 1948 में अल्फ्रेड हिचकॉक ने एक नई फिल्म बनाई थी- ‘रोप’, जो 1 घंटे 48 मिनट की थी, वह वन शॉट ही है। उन दिनों कैमरे में रील होती थी, जो 10 मिनट ही चलती थी और फिर दूसरी बदलनी पड़ती थी।
उस जीनियस आदमी ने उसे दौर में भी इसे ट्राई किया था और करके दिखाया था। पर आज के दौर में लोग इसलिए इसको नहीं ट्राई करते क्योंकि ये सबसे रिस्की फिल्म मेकिंग है।
इमैजिन करिए कि हम लोग आपसे बात कर रहे हैं, इस दौरान कैमरे की बैटरी खत्म हो जाए या पीछे से लोग आ जाएं और आवाज आ जाए, ये सब रिहर्सल करना पड़ता है। लगभग 6 महीने तक ताकि फाइनल शूट करने के दौरान कहीं कोई गड़बड़ी न हो और सिंगल शॉट में ही हम पूरी फिल्म को शूट कर सके।
यही कारण है कि ये सबसे रिस्की फिल्म मेकिंग है और कोई इसे करता नहीं पर मैं इसको दुनिया के सामने लेकर आना चाहता हूं और ये काम मैंने किया है। इसी का नतीजा है कि मुंबई में कुछ लोग ये कहने लगे हैं कि लोगों को फिल्म बनाने में 60 दिन लगते हैं। वहीं, हेमवंत तिवारी कुछ घंटों में ही पूरी फिल्म बना देते हैं।
सवाल : यह तरीका कैसे अपनाया, थिएटर में लॉन्चिंग क्यों नहीं?
जवाब : अपनी पहली फिल्म लोमड़ के दौरान मैं एक लोमड़ी के कॉस्टयूम में लोगों के बीच निकल पड़ा था। लोकल, मेट्रो में, स्टेडियम और हॉल, जहां कही भी लोगों की भीड़ दिखी वहां पर पहुंचा। इसी से मैं फेमस हुआ और इसी से लोगों को फिल्म के बारे में पता चला। दूसरी फिल्म के लिए भी मैंने यही तरीका अपनाया है।
27 मार्च को यह फिल्म रिलीज हुई है, अब तक 1 लाख 30 हजार से ज्यादा व्यूज हो चुके हैं। बहुत अच्छा रिस्पॉन्स आ रहा है। सबसे अच्छी बात ये है कि लोग पैसे भी दे रहे हैं। मैं यह कहना चाहूंगा कि इंडिपेंडेंट सिनेमा अब आप सभी दर्शकों के हाथ में है। हमने रिस्क लेकर कुछ नया बनाया है।
यह एक इंगेजिंग और थ्रिलिंग सिनेमा के साथ टेक्निकल फ्रंट पर भी कुछ बेहद नया और बेहतरीन है, इसलिए इसे जरूर देखना चाहिए। इंडिपेंडेंट फिल्म मेकर के पास थिएटर को लेकर बहुत चैलेंजेस रहते हैं। पहले तो टाइमिंग नहीं मिलती और यदि मिलती भी है तो बेहद ऑड टाइमिंग।
सवाल : ऐसी फिल्मों का भविष्य आप कहां देखते हैं?
जवाब : भविष्य का मुझे नहीं पता पर मेरी फिल्म की टीशर्ट पर एक बात लिखी हैं, ‘जो है – अभी है’। आज और अभी के मोमेंट में ही जीना है। हां, ये सही है कि मैं भविष्य के लिए कुछ नया करके जाना चाहता हूं। कुछ नया रिवोल्यूशन लाने की कोशिश है।
अगर मैं इसमें पास हो गया तो आने वाले दिनों में एक बड़ी तादाद QR कोड लेकर आएगी और ऐसी फिल्में देखने को मिलेंगी। जो पहले आपको फिल्म दिखाएगी और फिर पैसे देने का ऑप्शन देगी।