मेडिकल निग्लिजेंसी व विशेष ग्रुप का खून नहीं मिलनें से हो रही गर्भवती महिलाओं की मौते | shortage of blood is cause for death of pregnant woman during delivery | Patrika News h3>
केस एक: समाजवादी नगर की उमा पंवार की मौत मेडिकल निग्लिजेंसी से हो गई। उनके पति संजय पंवार ने बताया, यह तीसरा बच्चा था। समय पर इलाज मिल जाता तो वह बच जाती। मेरी दो बेटियां हैं, एक मानसिक विकलांग है। दूसरी बेटी को पैर में परेशानी है। इस पर पीएचसी की डॉक्टर संतोषजनक जवाब नहीं दे सकीं।
इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की टालमटोल जिम्मेदार रही।
केस दो: सिमरोल निवासी 22 वर्षीय ज्योति खरते की मौत डिलीवरी के बाद हुई। महू हॉस्पिटल में हुई मौत का कारण कोई नहीं बता सका। प्रभारी डॉक्टर ने कहा, इनका ब्लड ग्रुप रेयर था। नहीं मिल सका। कलेक्टर व सांसद ने कहा कि यह तो लापरवाही है। महू में नहीं मिला तो इंदौर में बताते। इस मामले में भी डॉक्टर, एएनएम एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने लगे।
इस मामले में डॉक्टर्स को ही ब्लड डोनर्स ग्रुप की जानकारी नहीं होना हैरानी की बात।
केस तीन: भागीरथपुरा की अंजलि शुक्ला की सातवीं डिलीवरी थी। कलेक्टर ने पूछा स्वास्थ्य विभाग ने नसबंदी क्यों नहीं करवाई? डॉक्टर से पूछा कि आपने सलाह क्यों नहीं दी? जब हाइरिस्क केस था तो निजी हॉस्पिटल कैसे भेजा? डॉ. पूर्णिमा गडरिया ने बताया, यह मौत दयानंद हॉस्पिटल में सर्जरी के बाद हुई। वहां का संचालक अनिल पंड्या बिना मेडिकल डिग्री के संचालन कर रहा है। कलेक्टर ने हॉस्पिटल सील करने व एफआइआर करने के निर्देश दिए।
सारे मामले में स्वास्थ्य विभाग का निगरानी सिस्टम कमजोर। झोलाछाप या बिना डिग्री के डॉक्टर ही चला रहे हास्पिटल।
मातृ मृत्युदर की समीक्षा के दौरान विभाग द्वारा प्रस्तुत मौत के आंकड़ों पर सांसद शंकर लालवानी और कलेक्टर मनीष सिंह ने सीएमएचओ बीएस सैत्या से पूछा, अस्पतालों में हो रही इतनी मौतों पर आपको आश्चर्य नहीं होता। ग्रामीण क्षेत्रों में इतनी कम मौतों पर आप कैसे भरोसा कर लेते हैं? सांवेर में एक भी मौत रिपोर्ट नहीं होने पर आपने जांच नहीं करवाई। सिमरोल के स्टाफ को दो टूक कहा, आप वहां जाते ही नहीं हैं, रिकॉर्ड क्या पता होगा। हरसिध्दी की डिस्पेंसरी प्रभारी डॉक्टर से कहा कि आपको जानकारी ही नहीं हैं, आप इलाज कैसे करती होंगी?
इस दौरान निजी अस्पतालों की लापरवाहियों पर भी चर्चा की गई। समीक्षा के बाद कलेक्टर ने डॉक्टर पूर्णिमा गडरिया से कहा कि आप सभी के विरूद्ध कार्रवाई प्रस्तावित करें। गर्भवतियों व नवजातों के इलाज में लापरवाही करने वाले डॉक्टर-कर्मचारी नहीं चाहिए।
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ओटी कल्चर की जांच का ही सीएमएचओ पता नहीं
सांसद लालवानी ने सीएमएचओ से पूछा कि अस्पतालों में ओटी कल्चर की जांच आप करते हैं। सीएमएचओ ने गोलमोल जवाब दिया तो उन्होंने कहा, दल गठित कर जांच करवाएं। आश्चर्य है कि शहर में प्रसव के दौरान या बाद में महिलाओं की मौत हो रही है। गंभीरता से काम करें।
केस एक: समाजवादी नगर की उमा पंवार की मौत मेडिकल निग्लिजेंसी से हो गई। उनके पति संजय पंवार ने बताया, यह तीसरा बच्चा था। समय पर इलाज मिल जाता तो वह बच जाती। मेरी दो बेटियां हैं, एक मानसिक विकलांग है। दूसरी बेटी को पैर में परेशानी है। इस पर पीएचसी की डॉक्टर संतोषजनक जवाब नहीं दे सकीं।
इस मामले में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों की टालमटोल जिम्मेदार रही।
केस दो: सिमरोल निवासी 22 वर्षीय ज्योति खरते की मौत डिलीवरी के बाद हुई। महू हॉस्पिटल में हुई मौत का कारण कोई नहीं बता सका। प्रभारी डॉक्टर ने कहा, इनका ब्लड ग्रुप रेयर था। नहीं मिल सका। कलेक्टर व सांसद ने कहा कि यह तो लापरवाही है। महू में नहीं मिला तो इंदौर में बताते। इस मामले में भी डॉक्टर, एएनएम एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने लगे।
इस मामले में डॉक्टर्स को ही ब्लड डोनर्स ग्रुप की जानकारी नहीं होना हैरानी की बात।
केस तीन: भागीरथपुरा की अंजलि शुक्ला की सातवीं डिलीवरी थी। कलेक्टर ने पूछा स्वास्थ्य विभाग ने नसबंदी क्यों नहीं करवाई? डॉक्टर से पूछा कि आपने सलाह क्यों नहीं दी? जब हाइरिस्क केस था तो निजी हॉस्पिटल कैसे भेजा? डॉ. पूर्णिमा गडरिया ने बताया, यह मौत दयानंद हॉस्पिटल में सर्जरी के बाद हुई। वहां का संचालक अनिल पंड्या बिना मेडिकल डिग्री के संचालन कर रहा है। कलेक्टर ने हॉस्पिटल सील करने व एफआइआर करने के निर्देश दिए।
सारे मामले में स्वास्थ्य विभाग का निगरानी सिस्टम कमजोर। झोलाछाप या बिना डिग्री के डॉक्टर ही चला रहे हास्पिटल।
मातृ मृत्युदर की समीक्षा के दौरान विभाग द्वारा प्रस्तुत मौत के आंकड़ों पर सांसद शंकर लालवानी और कलेक्टर मनीष सिंह ने सीएमएचओ बीएस सैत्या से पूछा, अस्पतालों में हो रही इतनी मौतों पर आपको आश्चर्य नहीं होता। ग्रामीण क्षेत्रों में इतनी कम मौतों पर आप कैसे भरोसा कर लेते हैं? सांवेर में एक भी मौत रिपोर्ट नहीं होने पर आपने जांच नहीं करवाई। सिमरोल के स्टाफ को दो टूक कहा, आप वहां जाते ही नहीं हैं, रिकॉर्ड क्या पता होगा। हरसिध्दी की डिस्पेंसरी प्रभारी डॉक्टर से कहा कि आपको जानकारी ही नहीं हैं, आप इलाज कैसे करती होंगी?
इस दौरान निजी अस्पतालों की लापरवाहियों पर भी चर्चा की गई। समीक्षा के बाद कलेक्टर ने डॉक्टर पूर्णिमा गडरिया से कहा कि आप सभी के विरूद्ध कार्रवाई प्रस्तावित करें। गर्भवतियों व नवजातों के इलाज में लापरवाही करने वाले डॉक्टर-कर्मचारी नहीं चाहिए।
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ओटी कल्चर की जांच का ही सीएमएचओ पता नहीं
सांसद लालवानी ने सीएमएचओ से पूछा कि अस्पतालों में ओटी कल्चर की जांच आप करते हैं। सीएमएचओ ने गोलमोल जवाब दिया तो उन्होंने कहा, दल गठित कर जांच करवाएं। आश्चर्य है कि शहर में प्रसव के दौरान या बाद में महिलाओं की मौत हो रही है। गंभीरता से काम करें।