मेघना पंत का कॉलम: सुनीता की सफलता वर्षों की दृढ़ता से ​गढ़ी गई थी

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मेघना पंत का कॉलम:  सुनीता की सफलता वर्षों की दृढ़ता से ​गढ़ी गई थी

मेघना पंत का कॉलम: सुनीता की सफलता वर्षों की दृढ़ता से ​गढ़ी गई थी

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5 घंटे पहले

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मेघना पंत, पुरस्कृत लेखिका, पत्रकार और वक्ता

जब हमारी बिल्डिंग-सोसायटी के लोग सुनीता विलियम्स की वापसी का जश्न मना रहे थे, तो मैंने एक आंटी को यह कहते हुए सुना : “सुनीता की सफलता जरूर बहुत बड़ी है, लेकिन दु:ख की बात है कि उनके कोई बच्चे नहीं हैं!’ मैंने उन्हें टोकते हुए कहा, महिलाएं केवल चलती-फिरती कोख नहीं होतीं।

लेकिन इसी के साथ मैं सोचने लगी कि सुनीता विलियम्स के करियर का अकसर अनदेखा किया जाने वाला पहलू वह जीवन है, जिसे उन्होंने चुना, और वह जीवन भी, जिसे उन्होंने त्यागने का फैसला किया। बच्चे न होना एक ऐसा तथ्य है, जो किसी सफल व्यक्ति के बारे में बातें करते समय अप्रासंगिक होना चाहिए। लेकिन महिलाओं की उपलब्धियों के बारे में होने वाली चर्चाओं में यह अघोषित रूप से हमेशा बना रहता है।

समाज- चाहे भारत का हो या अमेरिका का- महिलाओं को उनकी पेशेवर उपलब्धियों के बजाय व्यक्तिगत पसंद के आधार पर जज करना जारी रखता है। अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वांस ने भी कमला हैरिस के संतानहीन होने पर अभद्र​ टिप्पणी की थी।

आकाश को छूने के लिए सुनीता ने ऐसे फैसले भी लिए, जिन्हें लेने से कई लोग हिचकिचाते हैं। शादी? हां। मातृत्व? नहीं। यह एक ऐसा विकल्प है, जिस पर पुरुषों के लिए शायद ही कभी सवाल उठाया जाता है। लेकिन विलियम्स ने कभी अपने सफर को किसी तरह के त्याग के परिप्रेक्ष्य से नहीं देखा। वे रोमांच, टीमवर्क और तकनीक की बात करती हैं। अंतरिक्ष में, उत्कृष्टता का कोई जेंडर नहीं होता।

एक एस्ट्रोनॉट बनना केवल बुद्धिमत्ता और प्रशिक्षण के बारे में ही नहीं है। इसके लिए परिवार के समर्थन, एक ठोस शैक्षिक आधार और अपेक्षाओं को चुनौती देने वाली मजबूत इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। सुनीता के पिता भारतीय मूल के न्यूरोएनाटोमिस्ट हैं।

उनकी स्लोवेकियाई मां ने उनमें अनुशासन और महत्वाकांक्षा के गुण भरे। उन्होंने यूएस नेवल एकेडमी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री हासिल की और 1998 में नासा द्वारा चुने जाने से पहले एक टेस्ट पायलट के रूप में प्रशिक्षण लिया। उनकी सफलता सिर्फ प्रतिभा नहीं, वर्षों की दृढ़ता से ​गढ़ी गई थी।

फिर भी, महिलाओं की महत्वाकांक्षा को अक्सर पीछे छूटी हुई चीजों के चश्मे से देखा जाता है। जहां पुरुषों के करियर को एक “प्रोवाइडर’ के रूप में उनकी भूमिकाओं का विस्तार माना जाता है, वहीं महिलाओं की सफलता को उनके विपथ होने के रूप में देखा जाता है। सुनीता विलियम्स की कोई संतान न होने के बारे में भी कानाफूसी की जाती हैं, लेकिन शायद ही कभी इस रूढ़ि पर खुलकर बात की जाती है। अगर वे पुरुष होतीं, क्या तब भी इसका जिक्र किया जाता?

सुनीता इन सामाजिक पूर्वाग्रहों पर ध्यान नहीं देतीं। वे जैसी हैं, वैसी ही रहकर उनका विरोध करती हैं। उनकी उपलब्धियां- 9 बार स्पेसवॉक, अंतरिक्ष में कुल 609 दिन बिताना, कई अभूतपूर्व मिशन- उनको लेकर होने वाली किसी भी बहस से ज्यादा मुखर हैं।

अब जब वे बोइंग स्टारलाइनर पर सवार होकर धरती पर लौट आई हैं तो पूरा भारत उनकी सराहना कर रहा है- न केवल एक भारतवंशी, बल्कि एक अंतरिक्ष-यात्री के रूप में भी। और इस बात के प्रमाण के रूप में भी कि जब जेंडर संबंधी बाधाओं की अनदेखी करके प्रतिभाओं को पोषित किया जाता है तो क्या कुछ कर गुजरना संभव हो सकता है।

भारत में हम महिलाएं अपने अनेक कार्यों के लिए निरर्थक और क्रूर आलोचना का सामना करती हैं। हमें नगण्य महसूस कराया जाता है। महिलाओं के शरीर पर राय देना सभी अपना अधिकार समझते हैं। यह वही समाज है, जो कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, वैवाहिक दुष्कर्म और गर्भपात जैसे गंभीर मुद्दों पर सुविधाजनक रूप से दूरी बना लेता है।

अब समय आ गया है कि हम रूढ़ियों के बजाय अपने अनुभव पर भरोसा करें। हर महिला को यह बताया जाना चाहिए कि अगर वे बच्चे चाहती हैं, और जब चाहती हैं, तभी उसका निर्णय लें। आज जब इसरो महिलाओं के नेतृत्व वाली परियोजनाओं के साथ मानवयुक्त मिशनों की तैयारी कर रहा है, ऐसे में सुनीता की कहानी एक सबक है।

ब्रह्मांड- हमारे बच्चों, शादी या त्यागों के बारे में नहीं पूछता। वह केवल उन लोगों को पहचानता है, जो आगे बढ़ने की हिम्मत रखते हैं। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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