‘मेक इन इंडिया’ की धाक, दिग्गज रूसी कंपनी का बड़ा प्लान, भारत में जंगी पोत बनाकर बदलने वाली है पूरा सीन! h3>
नई दिल्ली: पूरा सीन बदलने वाला है। दिग्गज डिफेंस कंपनियां भारत की ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) मुहिम से जुड़ने को बेताब हैं। भारत के लिए उनका बड़ा प्लान है। इन्हीं में से एक है यूनाइटेड शिपबिल्डिंग कॉरपोरेशन (USC)। यह पोत बनाने वाला रूस का सबसे बड़ा समूह है। इस ग्रुप की 40 कंपनियां हैं। भारत सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम का यह हिस्सा बन सकती है। इसके लिए कंपनी के बड़े प्लान हैं। वह भारत में मैन्यूफैक्चरिंग करने के बारे में सोच रही है। अभी उसके सामने दो प्रस्ताव हैं। उसने यह भी साफ कर दिया है कि नौसेना के इंजन के लिए उसकी यूक्रेन पर निर्भरता खत्म हो चुकी है। उसने वैकल्पिक व्यवस्था तैयार कर ली है। रूसी दिग्गज का भारत की मेक इन इंडिया मुहिम से जुड़ना कई मायनों में महत्वपूर्ण है। यह भारत की मैन्यूफैक्चरिंग का केंद्र बनने की मंशा को बल देगा। यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध में भारत ने न्यूट्रल स्टैंड बनाए रखा। इसके कारण न केवल वह रूस के साथ अपनी पुरानी दोस्ती बनाए रखने में सफल हुआ। अलबत्ता, उसने अमेरिका जैसे नए पार्टनरों को भी नाराज नहीं किया। यूक्रेन युद्ध ने भारत को कई सेक्टरों में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत दिखाई है।
मेक इन इंडिया मुहिम के तहत सरकार ने विदेशी डिफेंस कंपनियों को भारत में निर्माण करने का न्यौता दिया है। यूएससी के डायरेक्टर जनरल एलेक्सी रखमनोव ने कहा है कि वह मेक इन इंडिया में हिस्सेदार बनना चाहते हैं। भारत में वह मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाएंगे। उनकी शिपबिल्डिंग यार्ड बनाने की योजना है। उन्होंने कई प्रस्ताव होने की बात कही है। इन प्रस्तावों पर समूह विचार कर रहा है।
तब नहीं बन पाई थी बात
इसके पहले यूएससी ने पिपावाव शिपयार्ड का अधिग्रहण करना चाहा था। लेकिन, वह दिवालिया हो गई थी। भारत और रूस के बीच 2016 के अंतर-सरकारी समझौते (IGA) के अनुसार, रूस में 1 अरब डॉलर के सौदे के तहत दो स्टील्थ फ्रिगेट निर्माणाधीन हैं। जबकि दो और गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) के तहत बनाए जा रहे हैं। इन्हें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत बनाया जा रहा है। सभी चार फ्रिगेट यूक्रेन के जोर्या-मशप्रोएक्ट के गैस टरबाइन इंजन से संचालित हैं।
भारत में निर्माणाधीन दो युद्धपोतों के इंजनों के बारे में रखमनोव ने कहा बताया है कि यूक्रेन पर निर्भरता कुछ समय पहले समाप्त हो गई है। सैटर्न कंपनी ने इंजन विकसित किए हैं। यूक्रेन पर कोई निर्भरता अब इतिहास है। अगर भारत रूसी इंजन (निर्माणाधीन युद्धपोतों के लिए) का चयन करता है तो उनकी आपूर्ति खुशी-खुशी की जाएगी।
क्या होते हैं फ्रिगेट?
फ्रिगट नए जंगी पोत हैं। ये डिस्ट्रॉयर से छोटे होते हैं। नौसेना के बेड़े में इन दोनों युद्धपोतों की मौजूदगी है। नवंबर 2018 में रूस की एकमात्र डिफेंस एक्सपोर्टर रोसोबोरॉनएक्सपोर्ट ने गोवा शिपयार्ड के साथ 50 करोड़ डॉलर की डील साइन की थी। इसमें में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होना था। जीएसएल ने रक्षा मंत्रालय के साथ भाी डील पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें भारतीय नौसेना को दो अडवांस मिसाइल फ्रिगेट बनाकर देने की बात कही गई थी। रक्षा मंत्रालय और गोवा शिपयार्ड के बीच यह कॉन्ट्रैक्ट 25 जनवरी 2019 को साइन हुआ था।
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तब नहीं बन पाई थी बात
इसके पहले यूएससी ने पिपावाव शिपयार्ड का अधिग्रहण करना चाहा था। लेकिन, वह दिवालिया हो गई थी। भारत और रूस के बीच 2016 के अंतर-सरकारी समझौते (IGA) के अनुसार, रूस में 1 अरब डॉलर के सौदे के तहत दो स्टील्थ फ्रिगेट निर्माणाधीन हैं। जबकि दो और गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) के तहत बनाए जा रहे हैं। इन्हें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत बनाया जा रहा है। सभी चार फ्रिगेट यूक्रेन के जोर्या-मशप्रोएक्ट के गैस टरबाइन इंजन से संचालित हैं।
भारत में निर्माणाधीन दो युद्धपोतों के इंजनों के बारे में रखमनोव ने कहा बताया है कि यूक्रेन पर निर्भरता कुछ समय पहले समाप्त हो गई है। सैटर्न कंपनी ने इंजन विकसित किए हैं। यूक्रेन पर कोई निर्भरता अब इतिहास है। अगर भारत रूसी इंजन (निर्माणाधीन युद्धपोतों के लिए) का चयन करता है तो उनकी आपूर्ति खुशी-खुशी की जाएगी।
क्या होते हैं फ्रिगेट?
फ्रिगट नए जंगी पोत हैं। ये डिस्ट्रॉयर से छोटे होते हैं। नौसेना के बेड़े में इन दोनों युद्धपोतों की मौजूदगी है। नवंबर 2018 में रूस की एकमात्र डिफेंस एक्सपोर्टर रोसोबोरॉनएक्सपोर्ट ने गोवा शिपयार्ड के साथ 50 करोड़ डॉलर की डील साइन की थी। इसमें में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर होना था। जीएसएल ने रक्षा मंत्रालय के साथ भाी डील पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें भारतीय नौसेना को दो अडवांस मिसाइल फ्रिगेट बनाकर देने की बात कही गई थी। रक्षा मंत्रालय और गोवा शिपयार्ड के बीच यह कॉन्ट्रैक्ट 25 जनवरी 2019 को साइन हुआ था।
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