मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: कुम्भ का बहिष्कार करना कांग्रेस की समझदारी नहीं h3>
6 घंटे पहले
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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
महाकुम्भ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई थी। यह भारत की लगभग आधी आबादी है। लेकिन महाकुम्भ का बहिष्कार करके इंडिया गठबंधन ने न तो राजनीतिक समझदारी दिखाई और न ही भारत के 110 करोड़ हिंदुओं के प्रति सम्मान जताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो कुम्भ से पूरे समय गैर-हाजिर रहे थे। हालांकि कुछ अन्य कांग्रेस नेता महाकुम्भ को नजरअंदाज करने के कांग्रेस हाईकमान के अलिखित फरमान की अवहेलना करते हुए प्रयागराज पहुंचे।
दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गुट की प्रतिक्रिया बताती है कि उसने भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए एक बहुत नाकाम रणनीति अपना ली है। क्योंकि महाकुम्भ हिंदुत्व का नहीं, हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करता है। जो लोग उसकी अवहेलना करते हैं, वे सनातन धर्म की अवहेलना कर रहे होते हैं।
हिंदू धर्म का सम्मान करने के लिए आपको हिंदू होने की जरूरत नहीं है। आज के आधुनिक युग में जहां भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स और टेक स्टार्टअप हैं, वहां विज्ञान और अध्यात्म के इस संयोजन की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन कांग्रेस, सपा, राजद, एनसीपी और डीएमके जैसी पार्टियां इसके ठीक उलट काम करती हैं।
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की उनकी ही पार्टी ने हाल में निंदा की, क्योंकि वे तमिलनाडु के कोयंबटूर में सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
कांग्रेस नेताओं को इस बात से गुस्सा आया कि शिवकुमार ने कुम्भ में भी डुबकी लगाई थी। महाशिवरात्रि कार्यक्रम में जाना दूसरा “अपराध’ था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कुम्भ में शामिल होने वालों पर हमला करने वालों का नेतृत्व कर रहे थे।
शिवकुमार ने इस तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा : हमारे कांग्रेस अध्यक्ष का नाम मल्लिकार्जुन खरगे है। मल्लिकार्जुन कौन हैं? वे शिव ही तो हैं। तो क्या उन्हें अपना नाम बदल लेना चाहिए? मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं और हिंदू के रूप में ही मरूंगा।
शिवकुमार ने आगे कहा : महाकुम्भ को लेकर मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। जिस तरह से उन्होंने इसे आयोजित किया, मैं उसकी सराहना करता हूं। यह कोई छोटा काम नहीं है। यहां-वहां कुछ समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन मुझे खामियां निकालना पसंद नहीं है। शिवकुमार ने जोर देते हुए कहा कि वे जैन मंदिरों, दरगाहों और चर्चों में भी जाते हैं। उन्होंने कहा, जब मैं जेल में था, तो मैंने सिख धर्म और उसकी स्थापना के बारे में सीखा था।
शिवकुमार के कांग्रेस हाईकमान से मतभेद नए नहीं हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के बाद सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री पद को बारी-बारी से साझा करने के लिए कांग्रेस हाईकमान राजी नहीं हुआ।
अगर इस मुद्दे को जल्द ही नहीं सुलझाया गया तो शिवकुमार कांग्रेस छोड़ सकते हैं, जिससे कर्नाटक सरकार अस्थिर हो सकती है। बेंगलुरु के राजनीतिक हलकों में पहले ही शिवकुमार को कर्नाटक का एकनाथ शिंदे कहा जा रहा है!
कांग्रेस द्वारा अपनाए जा रहे हिंदू-विरोधी रुख की वजह सीधे तौर पर राहुल गांधी हैं। हालांकि दिसंबर 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले थोड़े समय के लिए राहुल ने कई मंदिरों का दौरा किया और मतदाताओं के सामने यह साबित करने के लिए अपना जनेऊ दिखाया कि वे ब्राह्मण हैं।
राहुल की यह द्विज-हिंदू रणनीति कारगर भी रही। कांग्रेस 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में अरसे बाद भाजपा को 100 से नीचे लाने में कामयाब रही। इसके एक साल बाद कांग्रेस ने हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत भी हासिल की। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस घबरा गई।
सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी हाईकमान अपनी माइनोरिटी-फर्स्ट की नीति पर फिर से लौट आया। हार के लिए राहुल की मंदिर-राजनीति से नाराज मुस्लिम वोटबैंक को जिम्मेदार ठहराया गया। जबकि भाजपा की जीत का असली कारण बालाकोट में पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर एयर-स्ट्राइक से देश में पैदा हुआ राष्ट्रवादी उत्साह था।
मुस्लिम-फर्स्ट की राजनीति ने कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया है। देश के 80 प्रतिशत लोग जिस धर्म का पालन करते हैं, उसकी उपेक्षा करना एक खराब रणनीति है। महाकुम्भ पर कांग्रेस के रवैये में भी यही नजर आया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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6 घंटे पहले
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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
महाकुम्भ में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई थी। यह भारत की लगभग आधी आबादी है। लेकिन महाकुम्भ का बहिष्कार करके इंडिया गठबंधन ने न तो राजनीतिक समझदारी दिखाई और न ही भारत के 110 करोड़ हिंदुओं के प्रति सम्मान जताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो कुम्भ से पूरे समय गैर-हाजिर रहे थे। हालांकि कुछ अन्य कांग्रेस नेता महाकुम्भ को नजरअंदाज करने के कांग्रेस हाईकमान के अलिखित फरमान की अवहेलना करते हुए प्रयागराज पहुंचे।
दुनिया के इस सबसे बड़े धार्मिक आयोजन पर कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गुट की प्रतिक्रिया बताती है कि उसने भाजपा के हिंदुत्व का मुकाबला करने के लिए एक बहुत नाकाम रणनीति अपना ली है। क्योंकि महाकुम्भ हिंदुत्व का नहीं, हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व करता है। जो लोग उसकी अवहेलना करते हैं, वे सनातन धर्म की अवहेलना कर रहे होते हैं।
हिंदू धर्म का सम्मान करने के लिए आपको हिंदू होने की जरूरत नहीं है। आज के आधुनिक युग में जहां भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स और टेक स्टार्टअप हैं, वहां विज्ञान और अध्यात्म के इस संयोजन की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन कांग्रेस, सपा, राजद, एनसीपी और डीएमके जैसी पार्टियां इसके ठीक उलट काम करती हैं।
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार की उनकी ही पार्टी ने हाल में निंदा की, क्योंकि वे तमिलनाडु के कोयंबटूर में सदगुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन द्वारा आयोजित महाशिवरात्रि कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
कांग्रेस नेताओं को इस बात से गुस्सा आया कि शिवकुमार ने कुम्भ में भी डुबकी लगाई थी। महाशिवरात्रि कार्यक्रम में जाना दूसरा “अपराध’ था। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कुम्भ में शामिल होने वालों पर हमला करने वालों का नेतृत्व कर रहे थे।
शिवकुमार ने इस तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा : हमारे कांग्रेस अध्यक्ष का नाम मल्लिकार्जुन खरगे है। मल्लिकार्जुन कौन हैं? वे शिव ही तो हैं। तो क्या उन्हें अपना नाम बदल लेना चाहिए? मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं और हिंदू के रूप में ही मरूंगा।
शिवकुमार ने आगे कहा : महाकुम्भ को लेकर मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। जिस तरह से उन्होंने इसे आयोजित किया, मैं उसकी सराहना करता हूं। यह कोई छोटा काम नहीं है। यहां-वहां कुछ समस्याएं हो सकती हैं। लेकिन मुझे खामियां निकालना पसंद नहीं है। शिवकुमार ने जोर देते हुए कहा कि वे जैन मंदिरों, दरगाहों और चर्चों में भी जाते हैं। उन्होंने कहा, जब मैं जेल में था, तो मैंने सिख धर्म और उसकी स्थापना के बारे में सीखा था।
शिवकुमार के कांग्रेस हाईकमान से मतभेद नए नहीं हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत के बाद सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री पद को बारी-बारी से साझा करने के लिए कांग्रेस हाईकमान राजी नहीं हुआ।
अगर इस मुद्दे को जल्द ही नहीं सुलझाया गया तो शिवकुमार कांग्रेस छोड़ सकते हैं, जिससे कर्नाटक सरकार अस्थिर हो सकती है। बेंगलुरु के राजनीतिक हलकों में पहले ही शिवकुमार को कर्नाटक का एकनाथ शिंदे कहा जा रहा है!
कांग्रेस द्वारा अपनाए जा रहे हिंदू-विरोधी रुख की वजह सीधे तौर पर राहुल गांधी हैं। हालांकि दिसंबर 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले थोड़े समय के लिए राहुल ने कई मंदिरों का दौरा किया और मतदाताओं के सामने यह साबित करने के लिए अपना जनेऊ दिखाया कि वे ब्राह्मण हैं।
राहुल की यह द्विज-हिंदू रणनीति कारगर भी रही। कांग्रेस 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में अरसे बाद भाजपा को 100 से नीचे लाने में कामयाब रही। इसके एक साल बाद कांग्रेस ने हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत भी हासिल की। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस घबरा गई।
सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी हाईकमान अपनी माइनोरिटी-फर्स्ट की नीति पर फिर से लौट आया। हार के लिए राहुल की मंदिर-राजनीति से नाराज मुस्लिम वोटबैंक को जिम्मेदार ठहराया गया। जबकि भाजपा की जीत का असली कारण बालाकोट में पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर एयर-स्ट्राइक से देश में पैदा हुआ राष्ट्रवादी उत्साह था।
मुस्लिम-फर्स्ट की राजनीति ने कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया है। देश के 80 प्रतिशत लोग जिस धर्म का पालन करते हैं, उसकी उपेक्षा करना एक खराब रणनीति है। महाकुम्भ पर कांग्रेस के रवैये में भी यही नजर आया है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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