मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: अमेरिका और चीन भारत की बढ़ती ताकत को जानते हैं h3>
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3 घंटे पहले
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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
आईएमएफ के अनुसार, 2025 के अंत तक भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वहीं, 2027 तक भारत जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका होगा और केवल अमेरिका और चीन से पीछे होगा। भारत के आलोचक हमें लगातार बताते हैं कि भारत अब भी दुनिया के सबसे गरीब देशों में से है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय 3,000 डॉलर है। तो हमें बढ़ती जीडीपी से क्यों खुश होना चाहिए?
सबसे पहले तो यह कि प्रति व्यक्ति आय (पर-कैपिटा इनकम) को विनिमय दरों के कारण ठीक से समझा नहीं जा सकता, इसलिए आईएमएफ देशों के बीच जीवनयापन की लागतों और वेतनमान में व्यापक अंतर को ध्यान में रखते हुए क्रय-शक्ति समता (पर्चेसिंग पॉवर पैरिटी या पीपीपी) का उपयोग करता है।
इसीलिए जहां विनिमय दरों के आधार पर प्रति-व्यक्ति आय भारत के लिए 3,000 डॉलर और चीन के लिए 14,000 डॉलर है, वहीं पीपीपी पर यह भारत के लिए 12,000 डॉलर और चीन के लिए 22,000 डॉलर है। ऐसे में दोनों देशों के बीच प्रति-व्यक्ति आय के अनुपात में अंतर घटकर 2:1 से भी कम हो जाता है।
इसका यह मतलब नहीं है कि भारत में गरीबी नहीं है। लेकिन ब्रिटिश राज के बाद 1947 में जहां गरीबी की दर 80% थी, वहीं वह अब 8% रह गई है। हालांकि भारत जैसे बड़े देश में गरीबी की 8% दर का मतलब यह है कि लगभग 12 करोड़ भारतीय आज भी रोज कमाकर खा रहे हैं।
ऐसे में गरीबी को खत्म करने का एकमात्र तरीका अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाना है। ट्रम्प के टैरिफ-युद्ध ने चीजों को जटिल बना दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की राह पर आगे बढ़ रही थी, लेकिन इन ट्रेड सम्बंधी व्यवधानों ने अस्थायी मंदी की चिंताएं पैदा कर दी हैं। सरकार के आलोचक वैश्विक आर्थिक संकट का इस्तेमाल भारत की भविष्य की संभावनाओं को खारिज करने के लिए करते हैं। लेकिन विदेशी अर्थशास्त्री ऐसा नहीं सोचते।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जैफ्री सैक्स ने हाल ही में कहा कि अधिकांश भारतीय भारत की वास्तविक आर्थिक और भू-राजनीतिक क्षमता को नहीं समझते हैं। भारत सदियों तक दुनिया की सबसे बड़ी या दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, जब तक कि अंग्रेज नहीं आए।
ब्रिटिश राज के दौरान भारत में गरीबी आई थी। सुधार धीमा और रुक-रुक कर हुआ, खासकर नेहरू-इंदिरा के समाजवादी युग में। वास्तविक आर्थिक सुधार 1991 में नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के साथ शुरू हुए।
अब अमेरिका-चीन ट्रेड-वॉर ने भारत के लिए नई भू-राजनीतिक खिड़की खोल दी है। वॉशिंगटन और बीजिंग दोनों ही भारत को अपने पक्ष में चाहते हैं, जो 2030 तक दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- अमेरिका, चीन और भारत के बीच शक्ति के त्रिकोण के रूप में विकसित हो जाएगा।
इन मायनों में भारत एक स्विंग-स्टेट है। चीन ने भारतीय निवेशकों को लुभाना शुरू कर दिया है। अमेरिका 21 अप्रैल को उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और उनकी भारतीय मूल की पत्नी उषा चिलुकुरी को चार दिवसीय यात्रा पर भारत भेज रहा है।
भारत को अब अपने पत्ते समझदारी से खेलने चाहिए। चीन को लेकर भारत सतर्क है। उसने चीनी विदेश मंत्री वांग यी की इस टिप्पणी का स्वागत किया है कि ‘ड्रैगन (चीन) और हाथी (भारत) को साथ मिलकर नृत्य करना चाहिए।’ लेकिन नई दिल्ली को इस बात की चिंता है कि चीन भारत में अपने वो सस्ते सामान डम्प कर रहा है, जिन्हें वह अमेरिका में नहीं बेच सकता।
अमेरिका से हमारे रिश्ते भी पेचीदा हैं। अमेरिका भारत का इस्तेमाल चीन को पछाड़ने के लिए करना चाहता है। ऐसे में भारत को अमेरिका का मोहरा नहीं बनना चाहिए। भारत के नीति-निर्माता जानते हैं कि एक महान शक्ति के रूप में पहचाने जाने के लिए उसके पास न केवल सैन्य क्षमता होनी चाहिए, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर पेश करने की क्षमता और इच्छाशक्ति भी होनी चाहिए।
अब तक भारत क्वाड जैसे बहुपक्षीय सुरक्षा गठबंधनों का हिस्सा बनकर संतुष्ट रहा है। लेकिन हमें हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे भी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए। पीपीपी के अनुसार भारत की प्रति-व्यक्ति आय के आगामी दस वर्षों में दोगुनी होकर 24,000 डॉलर हो जाने का अनुमान है।
2035 तक तो दुनिया एक बहुत ही अलग जगह पर होगी और नई दिल्ली के पास भू-राजनीतिक सुई को अपनी मनचाही दिशा में मोड़ने की शक्ति होगी। अमेरिका और चीन दोनों ही यह अच्छी तरह से जानते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
आईएमएफ के अनुसार, 2025 के अंत तक भारत जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वहीं, 2027 तक भारत जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका होगा और केवल अमेरिका और चीन से पीछे होगा। भारत के आलोचक हमें लगातार बताते हैं कि भारत अब भी दुनिया के सबसे गरीब देशों में से है, जिसकी प्रति व्यक्ति आय 3,000 डॉलर है। तो हमें बढ़ती जीडीपी से क्यों खुश होना चाहिए?
सबसे पहले तो यह कि प्रति व्यक्ति आय (पर-कैपिटा इनकम) को विनिमय दरों के कारण ठीक से समझा नहीं जा सकता, इसलिए आईएमएफ देशों के बीच जीवनयापन की लागतों और वेतनमान में व्यापक अंतर को ध्यान में रखते हुए क्रय-शक्ति समता (पर्चेसिंग पॉवर पैरिटी या पीपीपी) का उपयोग करता है।
इसीलिए जहां विनिमय दरों के आधार पर प्रति-व्यक्ति आय भारत के लिए 3,000 डॉलर और चीन के लिए 14,000 डॉलर है, वहीं पीपीपी पर यह भारत के लिए 12,000 डॉलर और चीन के लिए 22,000 डॉलर है। ऐसे में दोनों देशों के बीच प्रति-व्यक्ति आय के अनुपात में अंतर घटकर 2:1 से भी कम हो जाता है।
इसका यह मतलब नहीं है कि भारत में गरीबी नहीं है। लेकिन ब्रिटिश राज के बाद 1947 में जहां गरीबी की दर 80% थी, वहीं वह अब 8% रह गई है। हालांकि भारत जैसे बड़े देश में गरीबी की 8% दर का मतलब यह है कि लगभग 12 करोड़ भारतीय आज भी रोज कमाकर खा रहे हैं।
ऐसे में गरीबी को खत्म करने का एकमात्र तरीका अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाना है। ट्रम्प के टैरिफ-युद्ध ने चीजों को जटिल बना दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था विकास की राह पर आगे बढ़ रही थी, लेकिन इन ट्रेड सम्बंधी व्यवधानों ने अस्थायी मंदी की चिंताएं पैदा कर दी हैं। सरकार के आलोचक वैश्विक आर्थिक संकट का इस्तेमाल भारत की भविष्य की संभावनाओं को खारिज करने के लिए करते हैं। लेकिन विदेशी अर्थशास्त्री ऐसा नहीं सोचते।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जैफ्री सैक्स ने हाल ही में कहा कि अधिकांश भारतीय भारत की वास्तविक आर्थिक और भू-राजनीतिक क्षमता को नहीं समझते हैं। भारत सदियों तक दुनिया की सबसे बड़ी या दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था, जब तक कि अंग्रेज नहीं आए।
ब्रिटिश राज के दौरान भारत में गरीबी आई थी। सुधार धीमा और रुक-रुक कर हुआ, खासकर नेहरू-इंदिरा के समाजवादी युग में। वास्तविक आर्थिक सुधार 1991 में नरसिंह राव और मनमोहन सिंह के साथ शुरू हुए।
अब अमेरिका-चीन ट्रेड-वॉर ने भारत के लिए नई भू-राजनीतिक खिड़की खोल दी है। वॉशिंगटन और बीजिंग दोनों ही भारत को अपने पक्ष में चाहते हैं, जो 2030 तक दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- अमेरिका, चीन और भारत के बीच शक्ति के त्रिकोण के रूप में विकसित हो जाएगा।
इन मायनों में भारत एक स्विंग-स्टेट है। चीन ने भारतीय निवेशकों को लुभाना शुरू कर दिया है। अमेरिका 21 अप्रैल को उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और उनकी भारतीय मूल की पत्नी उषा चिलुकुरी को चार दिवसीय यात्रा पर भारत भेज रहा है।
भारत को अब अपने पत्ते समझदारी से खेलने चाहिए। चीन को लेकर भारत सतर्क है। उसने चीनी विदेश मंत्री वांग यी की इस टिप्पणी का स्वागत किया है कि ‘ड्रैगन (चीन) और हाथी (भारत) को साथ मिलकर नृत्य करना चाहिए।’ लेकिन नई दिल्ली को इस बात की चिंता है कि चीन भारत में अपने वो सस्ते सामान डम्प कर रहा है, जिन्हें वह अमेरिका में नहीं बेच सकता।
अमेरिका से हमारे रिश्ते भी पेचीदा हैं। अमेरिका भारत का इस्तेमाल चीन को पछाड़ने के लिए करना चाहता है। ऐसे में भारत को अमेरिका का मोहरा नहीं बनना चाहिए। भारत के नीति-निर्माता जानते हैं कि एक महान शक्ति के रूप में पहचाने जाने के लिए उसके पास न केवल सैन्य क्षमता होनी चाहिए, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर पेश करने की क्षमता और इच्छाशक्ति भी होनी चाहिए।
अब तक भारत क्वाड जैसे बहुपक्षीय सुरक्षा गठबंधनों का हिस्सा बनकर संतुष्ट रहा है। लेकिन हमें हिंद महासागर क्षेत्र और उससे आगे भी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए। पीपीपी के अनुसार भारत की प्रति-व्यक्ति आय के आगामी दस वर्षों में दोगुनी होकर 24,000 डॉलर हो जाने का अनुमान है।
2035 तक तो दुनिया एक बहुत ही अलग जगह पर होगी और नई दिल्ली के पास भू-राजनीतिक सुई को अपनी मनचाही दिशा में मोड़ने की शक्ति होगी। अमेरिका और चीन दोनों ही यह अच्छी तरह से जानते हैं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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