मां की मौत- बेटे की गवाही पर पिता को सजा: महिला को देवी मानते हैं, फिर भी उसे मारते-पीटते हैं- जज रवि कुमार दिवाकर – Bareilly News

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मां की मौत- बेटे की गवाही पर पिता को सजा:  महिला को देवी मानते हैं, फिर भी उसे मारते-पीटते हैं- जज रवि कुमार दिवाकर – Bareilly News

मां की मौत- बेटे की गवाही पर पिता को सजा: महिला को देवी मानते हैं, फिर भी उसे मारते-पीटते हैं- जज रवि कुमार दिवाकर – Bareilly News

बरेली में जज रवि कुमार दिवाकर का एक आदेश एक बार फिर सुर्खियों में है। दस साल के मासूम बेटे की गवाही पर पिता को हुई सजा के मामले में जज ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मैं इस निर्णय के माध्यम से सभी लोगों से, विशेष रूप से युवाओं और शादीशुदा महिलाओं से यह आ

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30 अगस्त 2023 को वंदना ने की थी आत्महत्या

दरअसल, बरेली के मढ़ीनाथ की वंदना का विवाह 6 नवंबर 2011 को संजयनगर के विकास उपाध्याय उर्फ विक्की से हुआ था। शादी के बाद विकास रोज शराब पीकर आता था और वंदना के साथ मारपीट करता था। शादी के बाद वंदना ने दो बच्चों को जन्म दिया- एक बेटा और एक बेटी। वंदना ने 29 अगस्त को घरवालों को फोन करके कहा कि आप लोग मुझे ले जाओ, जिस पर परिवारवालों ने कहा कि हम लोग सुबह आएँगे। 30 अगस्त 2023 की सुबह जब परिजन पहुँचे, तो पता चला कि वंदना की मौत हो गई है।

एक महीने बाद दर्ज हुई एफआईआर

परिजन एक महीने तक थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने उनकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की। इसके बाद अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) के आदेश पर बारादरी थाने में एक महीने और 5 दिन बाद मुकदमा दर्ज किया गया। मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में पति और ससुराल वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। इसके बाद पुलिस ने विवेचना शुरू की और सभी के बयान दर्ज किए।

बेटा बोला, पापा मम्मी को बहुत मारते थे

10 साल के बेटे आयुष्मान ने कोर्ट में गवाही दी कि पापा मम्मी को बहुत मारते-पीटते थे। वे रोज शराब पीकर आते थे और मम्मी से गाली-गलौज करते थे। हम भाई-बहन की स्कूल की फीस भी पापा नहीं देते थे। इसी वजह से परेशान होकर मम्मी ने फाँसी लगा ली। वंदना के दो बच्चे हैं- 10 साल का बेटा आयुष्मान और 8 साल की बेटी रितिका।

भारत में महिला को देवी का दर्जा देते हैं और फिर शराब पीकर मारते-पीटते हैं- जज रवि कुमार दिवाकर

जज रवि कुमार दिवाकर ने अपने आदेश में कहा कि इस संबंध में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि विकास उपाध्याय उर्फ विक्की ने अपनी पत्नी वंदना को आए दिन शराब पीकर मारापीटा, गाली-गलौज की और ताने मारे, जिससे वह ऐसी परिस्थितियों में पहुँच गई कि उसे मजबूरन फाँसी लगाकर आत्महत्या करनी पड़ी। वंदना की उम्र लगभग 27 वर्ष थी। उसके सामने पूरा जीवन पड़ा था।

भारतवर्ष में हम महिला को देवी का दर्जा तो देते हैं, किंतु उसे महिला होने का अधिकार नहीं देते। यदि भारतीय पुरुष वास्तव में महिला को देवी का दर्जा देते, तो क्या वे शराब पीकर महिलाओं को जानवरों की तरह मारते-पीटते और गाली-गलौज करते? इस मामले में यही हुआ है।

वंदना के मासूम बच्चों की पीड़ा को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता- जज रवि कुमार दिवाकर

वंदना के दो छोटे बच्चे होते हुए भी उसे मजबूरन फाँसी लगाकर आत्महत्या करनी पड़ी। वंदना एमए (इंग्लिश लिटरेचर) तक पढ़ी थी। जाहिर है कि वह बहुत कष्ट में रही होगी, इसीलिए एक बेटा और एक बेटी होने के बावजूद उसने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाया। वंदना एक शिक्षित महिला थी, इसलिए वह भली-भाँति जानती थी कि इस दुनिया से विदा होने के बाद उसके दोनों बच्चों का भविष्य क्या होगा। दोनों बच्चे जीवनभर बिना माँ के पीड़ा में रहेंगे और न्यायालय शायद वंदना के बच्चों की पीड़ा को शब्दों में व्यक्त भी नहीं कर सकता।

युवाओं को संदेश: जीवन एक तपस्या है- जज रवि कुमार दिवाकर

मैं इस निर्णय के माध्यम से सभी लोगों से और विशेष रूप से युवाओं एवं शादीशुदा महिलाओं से आग्रह करूँगा कि वे जीवन में कैसी भी परिस्थितियाँ आएँ, उनका डटकर मुकाबला करें। किसी भी हालत में भगवान द्वारा दिए गए अनमोल जीवन को समाप्त न करें।

छोटी-छोटी परेशानियों से डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि रात कितनी भी काली क्यों न हो, उसके बाद सुबह जरूर होती है। इस प्रकरण में मैं दो कविताओं के माध्यम से भी जीवन के महत्व को बताना चाहता हूँ-

आत्महत्या करने वालों,

किसी से भी डरो नहीं,

जीवन अमूल्य है,

आत्महत्या करके कभी भी मरो नहीं।

कुछ समस्या हो तो,

अपने आप सुलझाओ,

सुलझा ना सको तो,

अपने यार-दोस्तों को जाकर बताओ।

समाधान होगा जरूर,

समस्या कितनी भी बड़ी हो,

आत्महत्या कर मरने की जरूरत क्यों पड़ी?

जन्म लिया है तो,

हम सबको है एक दिन मरना,

मौत आने से पहले,

आत्महत्या क्यों करना?

जब तक मौत न आए,

किसी भी हालत में मरना नहीं,

जीवन अमूल्य है, आत्महत्या करो नहीं।

जज की दूसरी कविता

कभी ना सोचो भूलकर, आत्महत्या के बारे में,

पहले सोचो एक बार, परिवार-संसार के बारे में।

सबके जीवन में है दुख, कोई एक दिखा दो सदा खुश।

फिर क्यों उठा रहे हो गलत कदम?

हौसलों को उड़ान दो, जंग लड़ने की ठान लो।

तुम संतान हो उस भगवान की,

क्षमता है तुममें हर समाधान की।

इसके बाद जज रवि कुमार दिवाकर ने आरोपी विकास उपाध्याय को दस वर्ष के कारावास और 50,000 रुपये के अर्थदंड से दंडित किया।

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