महिलाओं को बिस्तर पर क्या पसंद है? सेक्शुअल डिजायर पर बनी ये 5 फिल्में दिमाग की बत्ती जला देंगी h3>
‘मर्द बनना छोड़..पहले इंसान बनना सीख ले।’ ये एक डायलॉग नहीं बल्कि समाज की उस गंदी सोच पर तमाचा है जिन्हें लगता है कि सेक्स मर्दों की बपौती है। ये संवाद लीना यादव की फिल्म ‘पार्च्ड’ (Parched movie) से है। जहां दिखाया जाता है कि बेशक कितना ही खुद को हम मॉडल मानने लगे और कितनी ही तरक्कियों को छू लें लेकिन आज भी हमारी सोसाइटी में आमतौर पर महिलाओं को खुद के फैसले लेने का हक नहीं होता। वहीं बात अगर सेक्शुअल डिजायर (Sexual Desire) यानी यौन इच्छा की हो तो इसके बारे में महिलाएं डिस्कस तक नहीं कर सकती। अगर लड़कियां या बहुएं ऐसा करेंगी तो काकी और ताई का मुंह फटा रह जाएगा। लोगों को एक मिनट नहीं लगेगा और उसके कैरेक्टर का पूरा पोस्टमार्टम कर दिया जाएगा। यही वजह है कि आज भी इंडिया में लड़कियां सेक्शुअल डिजायर को लेकर बात करना दूर सोचने से भी कतराती हैं। लेकिन हमारी फिल्म इंडस्ट्री में कुछ ऐसी फिल्में हैं जो इस टॉपिक को न केवल मजबूती से उठाती है बल्कि खूबसूरती के साथ इस विषय को संजोती भी है। आइए आज आपको उन चुनिंदा फिल्मों (Indian Movies on Women Sexual Desire) से रूबरू करवाते हैं जो औरतों की सेक्शुअल डिजायर (Women Sexual Desire) को प्राथमिकता देती हैं।
पार्च्ड (Parched)
साल 2015 में आई लीना यादव की फिल्म ‘पार्च्ड’ (Parched) इस विषय को मजबूती से दिखाती है। फिल्म में न केवल औरतों की यौन इच्छा बल्कि सोसाइटी की दकियानूसी विचार, भेदभाव, बाल विवाह, मैरिटल रेप, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और ऐसे कई विषयों को दमदार तरीके से दर्शाया गया है। फिल्म की कहानी चार महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है। किसी का पति उसे पीटता है तो किसी का बेटा शराब के नशे में अपनी पत्नी पर जोर जबरदस्ती करने को मर्दानगी समझता है। साथ ही एक सेक्स वर्कर का किरदार भी है जो फिल्म को और मजबूती देता है। फिल्म में एक है लाजो, जिसे शादी के कई साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ। रोज उसका पति बांझ का दोष देकर उसे पीटता है। लेकिन एक दिन लाजो को पता चलता है कि बांझ औरत ही नहीं एक आदमी भी हो सकता है। बच्चे की चाहत में वह एक दिन अन्य पुरुष से संबंध बनाती है और इस तरह औरतों की सेक्शुअल डिजायर को प्राथमिकता से दिखाया जाता है।
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का (Lipstick Under My Burkha)
साल 2017 में आई अलंकृता श्रीवास्तव एक अनूठे अंदाज में चार महिलाओं की कहानी को पर्दे पर लेकर आती हैं। जिनका मकसद सिर्फ इन महिलाओं के जरिए असल जिंदगी की औरतों के आजाद ख्याल और उनकी झिझक को पर्दे पर दिखाती हैं। बहुत सादगी और व्यंग के साथ निर्देशिका ने कई महत्वपूर्ण चीजें इस फिल्म में दर्शकों के लिए परोसी है। ऐसे ही एक 55 साल की औरत का किरदार है, जो शरारती और जवान लड़के से आकर्षित है। इस किरदार के जरिए बढ़ती उम्र की महिलाओं की इच्छाओं और उमंगों को फिल्म में जबरदस्त अंदाज में दिखाया गया है।
फायर (Fire)
साल 1996 में आई फायर फिल्म वाकई एक दमदार फिल्म थी। उस जमाने में इस फिल्म के विषय और इसके दृश्यों से काफी बवाल हुआ। दो महिलाओं के संबंध और रिश्ते पर बनी फिल्म में नंदिता दास और शबाना आजमी देवरानी और जेठानी के किरदार में नजर आईं। दोनों के बीच समलैंगिक संबंधों और उनकी यौन इच्छा को प्राथमिकता से दिखाया गया था।
मार्गरिटा विद स्ट्रॉ (Margarita with a Straw)
कल्कि कोचलिन और सयानी गुप्ता की बेहद खूबसूरत विषय पर साल 2015 में फिल्म मार्गरिटा विद स्ट्रॉ आई। शोनाली बोस की सबसे खूबसूरत फिल्मों में से ये एक है। फिल्म में एक मस्तिष्क पक्षाघात ( सेलिब्रल पेल्सी) बीमारी से पीड़ित लड़की लायला है, जो व्हील चेयर पर है। लेकिन उसकी ख्वाहिशें आसमान पर है। लायला की इच्छाएं आम लोगों और आम औरतों की तरह है। उसे प्यार होता है लेकिन पहली बार प्यार में धोखा मिलता है। फिर उसे न्यूयॉर्क में खानुम (सयानी गुप्ता) से इश्क होता है। कहानी में लायला की इमोशंस और समलैंगिकता संबंध को लेकर परिवार में किचकिच को दिखाया जाता है।
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पार्च्ड (Parched)
साल 2015 में आई लीना यादव की फिल्म ‘पार्च्ड’ (Parched) इस विषय को मजबूती से दिखाती है। फिल्म में न केवल औरतों की यौन इच्छा बल्कि सोसाइटी की दकियानूसी विचार, भेदभाव, बाल विवाह, मैरिटल रेप, महिलाओं के खिलाफ हिंसा और ऐसे कई विषयों को दमदार तरीके से दर्शाया गया है। फिल्म की कहानी चार महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है। किसी का पति उसे पीटता है तो किसी का बेटा शराब के नशे में अपनी पत्नी पर जोर जबरदस्ती करने को मर्दानगी समझता है। साथ ही एक सेक्स वर्कर का किरदार भी है जो फिल्म को और मजबूती देता है। फिल्म में एक है लाजो, जिसे शादी के कई साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ। रोज उसका पति बांझ का दोष देकर उसे पीटता है। लेकिन एक दिन लाजो को पता चलता है कि बांझ औरत ही नहीं एक आदमी भी हो सकता है। बच्चे की चाहत में वह एक दिन अन्य पुरुष से संबंध बनाती है और इस तरह औरतों की सेक्शुअल डिजायर को प्राथमिकता से दिखाया जाता है।
लिपस्टिक अंडर माय बुर्का (Lipstick Under My Burkha)
साल 2017 में आई अलंकृता श्रीवास्तव एक अनूठे अंदाज में चार महिलाओं की कहानी को पर्दे पर लेकर आती हैं। जिनका मकसद सिर्फ इन महिलाओं के जरिए असल जिंदगी की औरतों के आजाद ख्याल और उनकी झिझक को पर्दे पर दिखाती हैं। बहुत सादगी और व्यंग के साथ निर्देशिका ने कई महत्वपूर्ण चीजें इस फिल्म में दर्शकों के लिए परोसी है। ऐसे ही एक 55 साल की औरत का किरदार है, जो शरारती और जवान लड़के से आकर्षित है। इस किरदार के जरिए बढ़ती उम्र की महिलाओं की इच्छाओं और उमंगों को फिल्म में जबरदस्त अंदाज में दिखाया गया है।
फायर (Fire)
साल 1996 में आई फायर फिल्म वाकई एक दमदार फिल्म थी। उस जमाने में इस फिल्म के विषय और इसके दृश्यों से काफी बवाल हुआ। दो महिलाओं के संबंध और रिश्ते पर बनी फिल्म में नंदिता दास और शबाना आजमी देवरानी और जेठानी के किरदार में नजर आईं। दोनों के बीच समलैंगिक संबंधों और उनकी यौन इच्छा को प्राथमिकता से दिखाया गया था।
मार्गरिटा विद स्ट्रॉ (Margarita with a Straw)
कल्कि कोचलिन और सयानी गुप्ता की बेहद खूबसूरत विषय पर साल 2015 में फिल्म मार्गरिटा विद स्ट्रॉ आई। शोनाली बोस की सबसे खूबसूरत फिल्मों में से ये एक है। फिल्म में एक मस्तिष्क पक्षाघात ( सेलिब्रल पेल्सी) बीमारी से पीड़ित लड़की लायला है, जो व्हील चेयर पर है। लेकिन उसकी ख्वाहिशें आसमान पर है। लायला की इच्छाएं आम लोगों और आम औरतों की तरह है। उसे प्यार होता है लेकिन पहली बार प्यार में धोखा मिलता है। फिर उसे न्यूयॉर्क में खानुम (सयानी गुप्ता) से इश्क होता है। कहानी में लायला की इमोशंस और समलैंगिकता संबंध को लेकर परिवार में किचकिच को दिखाया जाता है।