‘महाराष्ट्र में दो का गठबंधन ही टिकने योग्य, तीसरा सिर्फ भीड़ बढ़ाता है…’ MVA में रार के पीछे क्या है असली वजह? h3>
मुंबई:मुंबई में एनसीपी प्रमुख शरद पवार और बिजनसमैन गौतम अडानी के बीच मुलाकात ने कांग्रेस को एक बार फिर अपने सहयोगियों पर शक करने की वजह दे दी है। एनसीपी ने भले ही कह रही हो कि अडानी-पवार की मुलाकात राजनीति से परे हैं लेकिन इसने अडानी ग्रुप के खिलाफ जेपीसी मांग के लिए लगातार प्रदर्शन कर रही कांग्रेस को असहज कर दिया है। गुरुवार को मुंबई स्थित शरद पवार के आवास सिल्वर ओक में अडानी और एनसीपी चीफ के बीच दो घंटे तक मुलाकात हुई।
एनसीपी नेता अजित पवार ने इस मुलाकात का बचाव करते हुए कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, ‘पवार और अडानी एक दूसरे को लंबे वक्ते से व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। हमारे पास राजनीति के बारे में किसी तरह अनुमान लगाने को कुछ नहीं है।’ उन्होंने आगे कहा कि ‘कांग्रेस में कोई अनिश्चितता नहीं है और हम जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी (जेपीसी) मांग पर अडिग हैं।’
केवल ढाई साल टिक पाई MVA सरकार
महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी 1999 विधानसभा चुनाव के बाद से गठबंधन के सहयोगी रहे हैं। आंतरिक संघर्षों के बावजूद कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन एक धर्मनिरपेक्ष की तख्ती पर टिका रहा, जिसने 1999 से 2014 तक सफलतापूर्वक काम किया। हालांकि 2019 के बाद कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (अविभाजित) गठबंधन की सरकार केवल ढाई साल ही टिक सकी। शिवसेना में बगावत और फिर इसके टूट के कारण महाराष्ट्र में बीजेपी फिर सत्ता में लौट आई।
कांग्रेस-एनसीपी को उद्धव से बैर!
फिलहाल विपक्ष में रहते हुए महाविकास आघाड़ी गठबंधन (एमवीए) लड़खड़ाता दिख रहा है। जब उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम थे तब बीजेपी के वापस लौटने के डर से, कांग्रेस और एनसीपी उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। लेकिन विपक्ष में रहते हुए न ही एनसीपी नेता अजित पवार और न ही महाराष्ट्र कांग्रेस चीफ नाना पटोले, उद्धव ठाकरे को एमवीए के नेता रूप में स्वीकार करना चाहते हैं।
विदर्भ क्षेत्र से कांग्रेस के पूर्व मंत्री कहते हैं, ‘कांग्रेस ही हमेशा बैक सीट क्यों ले? हमें एमवीए में फंड आवंटन और पोर्टफोलियो में सेकेंडरी ट्रीटमेंट मिल रहा था। लेकिन कम से कम मंत्रियों के रूप में हम बराबर थे। अब हम एनसीपी और शिवसेना (यूटीबी) के नेतृत्व को क्यों स्वीकार करें?’ पूर्व मंत्री ने आगे कहा, ‘वह राहुल गांधी ही थे जिन्होंने बीजेपी और पीएम मोदी से टक्कर लेने का साहस दिखाया।’
‘महाराष्ट्र में दो का साथ, तीन की भीड़’
महाराष्ट्र के तमाम सियासी एक्सपर्ट और राजनीतिक दलों के नेता कहते हैं कि राज्य में दो दलों का गठबंधन काम करने योग्य है लेकिन तीसरे के आने से इसका टिकना मुश्किल हो जाता है। अजीत पवार के दलबदल की अफवाहें इसका एक मामला है जिसे बीजेपी लपकने की फिराक में है। बीजेपी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसके रास्ते सभी के लिए खुले हैं।
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एनसीपी नेता अजित पवार ने इस मुलाकात का बचाव करते हुए कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, ‘पवार और अडानी एक दूसरे को लंबे वक्ते से व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। हमारे पास राजनीति के बारे में किसी तरह अनुमान लगाने को कुछ नहीं है।’ उन्होंने आगे कहा कि ‘कांग्रेस में कोई अनिश्चितता नहीं है और हम जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी (जेपीसी) मांग पर अडिग हैं।’
केवल ढाई साल टिक पाई MVA सरकार
महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी 1999 विधानसभा चुनाव के बाद से गठबंधन के सहयोगी रहे हैं। आंतरिक संघर्षों के बावजूद कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन एक धर्मनिरपेक्ष की तख्ती पर टिका रहा, जिसने 1999 से 2014 तक सफलतापूर्वक काम किया। हालांकि 2019 के बाद कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (अविभाजित) गठबंधन की सरकार केवल ढाई साल ही टिक सकी। शिवसेना में बगावत और फिर इसके टूट के कारण महाराष्ट्र में बीजेपी फिर सत्ता में लौट आई।
कांग्रेस-एनसीपी को उद्धव से बैर!
फिलहाल विपक्ष में रहते हुए महाविकास आघाड़ी गठबंधन (एमवीए) लड़खड़ाता दिख रहा है। जब उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के सीएम थे तब बीजेपी के वापस लौटने के डर से, कांग्रेस और एनसीपी उनके साथ मजबूती से खड़े रहे। लेकिन विपक्ष में रहते हुए न ही एनसीपी नेता अजित पवार और न ही महाराष्ट्र कांग्रेस चीफ नाना पटोले, उद्धव ठाकरे को एमवीए के नेता रूप में स्वीकार करना चाहते हैं।
विदर्भ क्षेत्र से कांग्रेस के पूर्व मंत्री कहते हैं, ‘कांग्रेस ही हमेशा बैक सीट क्यों ले? हमें एमवीए में फंड आवंटन और पोर्टफोलियो में सेकेंडरी ट्रीटमेंट मिल रहा था। लेकिन कम से कम मंत्रियों के रूप में हम बराबर थे। अब हम एनसीपी और शिवसेना (यूटीबी) के नेतृत्व को क्यों स्वीकार करें?’ पूर्व मंत्री ने आगे कहा, ‘वह राहुल गांधी ही थे जिन्होंने बीजेपी और पीएम मोदी से टक्कर लेने का साहस दिखाया।’
‘महाराष्ट्र में दो का साथ, तीन की भीड़’
महाराष्ट्र के तमाम सियासी एक्सपर्ट और राजनीतिक दलों के नेता कहते हैं कि राज्य में दो दलों का गठबंधन काम करने योग्य है लेकिन तीसरे के आने से इसका टिकना मुश्किल हो जाता है। अजीत पवार के दलबदल की अफवाहें इसका एक मामला है जिसे बीजेपी लपकने की फिराक में है। बीजेपी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसके रास्ते सभी के लिए खुले हैं।
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