महाभारत का इंद्रप्रस्थ कैसे बना दिल्ली: पांडवों ने नागों को भगाकर बसाया; यहीं के महल में बेइज्जत हुए दुर्योधन h3>
यूं तो दिल्ली का शुरुआती ऐतिहासिक दस्तावेज पहली शताब्दी ईसा पूर्व में मिलता है। जब राजा ढिल्लू ने अपने नाम पर ये शहर बसाया, लेकिन दिल्ली दुनिया के सबसे पुराने निरंतर बसे हुए शहरों में से एक है।
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दिल्ली का इतिहास भारत की माइथोलॉजी यानी पौराणिक कथाओं जितना पुराना है। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की बड़ी भूमिका थी। हालांकि तब इसे इंद्रप्रस्थ कहा जाता था…
गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित महाभारत के पहले खंड के अध्याय 206 ‘विदुर आगमन राज्यलंभ पर्व’ के अनुसार, धृतराष्ट्र जानते थे कि कौरवों और पांडवों में नहीं बनेगी। उन्होंने दोनों को संतुष्ट रखने के लिए राज्य का बंटवारा करने का सोचा। भीष्म और द्रोणाचार्य भी इससे सहमत थे।
बंटवारे की बात मामा शकुनी को रास नहीं आई। उसने धृतराष्ट्र से कहा- अगर आधा राज्य ही देना है तो हस्तिनापुर क्यों दे रहे हैं, पांडवों को खांडवप्रस्थ दे दीजिए।
हस्तिनापुर राजधानी, जबकि खांडवप्रस्थ भयानक जंगल था। इतना घना कि सूर्य की रोशनी भी नहीं आती थी। शकुनी की बात मान धृतराष्ट्र ने पांडवों को खांडवप्रस्थ दे दिया। हस्तिनापुर आज के मेरठ का इलाका और खांडवप्रस्थ दिल्ली है।
लेखक आदित्य अवस्थी अपनी किताब ‘दास्तान ए दिल्ली’ में लिखते हैं कि जो आज की दिल्ली है यहां पहले नाग रहते थे। पांडवों ने अपनी राजधानी स्थापित करने के लिए अपने मामा के बेटे कृष्ण से सहायता मांगी।
महाभारत के ‘आदिपर्व’ के अनुसार एक किस्सा है कि महाराज श्वैतकि ने लगातार 12 साल तक एक यज्ञ किया था। उसमें लगातार घी की आहुति दी। जब अग्नि ने ये घी की आहुति ली तो उनका पेट खराब हो गया। परेशान होकर वे ब्रह्माजी के पास पहुंचे और समस्या का निदान मांगा।
ब्रह्मा ने कहा कि अगर आप खांडवप्रस्थ के वनों को जला देंगे तो पेट ठीक हो जाएगा। अग्नि देव ने कई बार खांडव वन को जलाने की कोशिश की, लेकिन इंद्र के कारण नहीं जला पाए। महाभारत के अध्याय ‘खांडववदाह पर्व’ में लिखा है कि अग्नि ने ब्राह्मण का रूप बनाया और अर्जुन-कृष्ण के पास आए और कहा कि क्या आप मेरा पेट भर सकते हैं।
ब्रह्मा कहते हैं कि यदि तुम खांडव वन को खा जाओ तो तुम्हारा पेट ठीक हो जाएगा। Photo AI Generated
कृष्ण-अर्जुन ने वचन दिया तो ब्राह्मण असली रूप में आए और कहा- मैं अग्नि हूं, इस खांडव वन को जलाकर मेरा पेट भर जाएगा, लेकिन इंद्र ऐसा नहीं होने दे रहे। अर्जुन ने पूछा- वो ऐसा क्यों करते हैं? तब अग्नि ने बताया कि
यहां इंद्र के मित्र नागराज तक्षक परिवार सहित रहते हैं। उनकी रक्षा के लिए वे ऐसा करते हैं।
महाभारत के अनुसार खांडव वन जलाने के लिए अर्जुन और इंद्र में युद्ध हुआ। इस बीच तक्षक परिवार समेत भाग गया, तो इंद्र ने युद्ध रोक दिया। उधर अग्नि ने खांडव वन को खाकर अपनी भूख और पेट दोनों ठीक कर लिए। इस बीच इंद्र अर्जुन के पराक्रम से प्रभावित हुए।
इंद्र ने देवों के शिल्पकार विश्वकर्मा से खांडवप्रस्थ में एक दिव्य और रमणीय नगर बनाने को कहा। दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग की प्रोफेसर डॉ उपिंदर कौर अपनी किताब ‘दिल्ली: प्राचीन इतिहास’ में महाभारत की घटनाओं का जिक्र करते हुए लिखती हैं कि मायासुर ने विश्वकर्मा के साथ इंद्रप्रस्थ नगर बसाया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पहले डायरेक्टर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम के एक लेख के अनुसार इंद्रप्रस्थ वर्तमान दिल्ली में हुमायूं के मकबरे से लेकर फिरोजशाह कोटला के बीच वाले क्षेत्र में फैला शहर था। हालांकि इसे साबित करने वाले कोई पुख्ता दस्तावेज नहीं मिलते।
पुराणों और महाभारत से जुड़ी किताबों के अनुसार इंद्रप्रस्थ में सफेद पत्थर से अनेक महल बनाए गए थे। इंद्रप्रस्थ की तुलना इंद्र के नगर अमरावती से की गई है। इंद्रप्रस्थ में एक किला बनाया गया था। इसके चारों ओर एक खाई थी। बताया जाता है कि पानी से भरी ये खाई 32 फुट गहरी और 6 एकड़ में फैली थी। इस खाई में हंस, कमल और कई जानवर रहते थे।
किले के दरवाजे बेहद बड़े थे। यहां की प्लांड सड़कें एक दूसरे को 90 डिग्री के कोण पर काटती थी। यानी हर सड़क एक-दूसरे से जुड़ी हुई थी। सड़कों के दोनों और बड़े-बड़े छायादार वृक्ष लगे हुए थे। शहर में कई बाग-बगीचे, तालाब और झीलें थीं। बाग-बगीचों में मोर और कई पक्षी, हिरण आदि रहते थे। सुरक्षा के लिए शहर के चारों ओर दीवार थी, जिसमें 64 दरवाजे थे।
पांडवों की नगरी इंद्रप्रस्थ जो अलौकिक होने के साथ समृद्ध भी थी। Photo AI Generated
किस्सा है कि महाराज युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ किया। इसमें उनके चचेरे भाई दुर्योधन भी पहुंचे। महाभारत के सभापर्व के अनुसार जब दुर्योधन महल देखने पहुंचा तो उसे कई अजूबे दिखे।
जब दुर्योधन भवन में घूम रहे थे, तो उन्हें लगा सामने पानी है। दुर्योधन ने वस्त्र ऊपर कर लिए, लेकिन वहां पानी नहीं था। आगे जाने पर सामान्य फर्श दिखा, लेकिन वह एक बावड़ी थी, जिसमें दुर्योधन गिर पड़े। ये देखकर भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव जोर-जोर से हंसने लगे। वहां मौजूद सेवक भी हंसने लगे। दुर्योधन ने खुद को अपमानित महसूस किया।
इसके बाद उसने शकुनी के साथ मिलकर साजिश रची और युधिष्ठिर को चौसर के खेल में उलझाकर देश निकाला दिया। यहीं से महाभारत युद्ध की नींव पड़ी।
वायु पुराण और मत्स्य पुराण सहित पौराणिक ग्रंथों में महाराज निचक्षु के शासनकाल का उल्लेख मिलता है।
पुराणों के अनुसार महाराज निचक्षु पांडवों की सातवीं पीढ़ी के राजा थे। ऐसा लिखा जाता है कि उस समय गंगा में बाढ़ आई जिससे हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ सब डूब गए। इसके बाद महाराज निचक्षु ने कौशांबी को नई राजधानी बनाया और वहां रहने लगे।
शोभित यूनिवर्सिटी मेरठ के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंक भारती ने इसे लेकर रिसर्च की है। उन्होंने महाभारत काल के प्रमाण खोजने का दावा किया है। एक रिसर्च पेपर में उन्होंने एआई की मदद से इन शहरों के डूबने के चित्र भी बनाए हैं।
वे बताते हैं कि महाभारत युद्ध में कौरवों के मारे जाने के बाद पांडव इंद्रप्रस्थ छोड़कर मुख्य राजधानी हस्तिनापुर में रहने लगे थे। उनके पौत्र यहां राज्य कर रहे थे। दोनों शहर कैसे उजड़े इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
पांडवों की सातवीं पीढ़ी के राजा निचक्षु के शासनकाल में इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर दोनों शहरों के गंगा की बाढ़ में डूबने की जानकारी वायु पुराण में मिलती है। Photo AI Generated
पांडवों के बाद दिल्ली के राजाओं में जिनका नाम आता है वो तोमर वंश था। इस वंश ने 676 से 1081 ईसवी तक शासन किया। आदित्य अवस्थी अपनी किताब ‘दास्तान ए दिल्ली’ में लिखते हैं कि एक बार तोमर राजा अनंगपाल द्वितीय के दरबार में एक ब्राह्मण आया। ब्राह्मण ने राजा को बताया कि लौह स्तंभ पृथ्वी को धारण करने वाले वासुकी शेषनाग के फन पर रखा हुआ है। ये उसी लौह स्तंभ की बात हो रही है जो कुतुब मीनार परिसर में है।
जब तक यह स्तंभ स्थिर रहेगा तब तक तुम्हारा शासन और राज्य अचल रहेगा। तोमर राजा को ब्राह्मण की बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने अपने कर्मचारियों को इस लौह स्तंभ को उखाड़ने का आदेश दिया ताकि ये पता चल सके कि ब्राह्मण सच बोल रहा है या नहीं। स्तंभ उखाड़ा गया तो देखा गया कि उसके अंदर के हिस्से में कोई लाल रंग की चीज लगी हुई है। हो सकता है कि जमीन में गड़ा होने के कारण जंग लग गया हो।
राजा ने ये देखने के बाद तुरंत फिर से लौह स्तंभी को उसी जगह गाड़ने के आदेश दिए। तब से दिल्ली में एक कहावत प्रचलित हो गई कि ‘किल्ली तो ढिल्ली भई तोमर भए मतिहीन!’ चंदबरदाई रचित काव्य ‘पृथ्वीराज रासो” में इस कहानी का उल्लेख है।
चांदनी चौक से बहती थी यमुना
- इतिहासकार ब्रजकिशन चांदीवाला ‘दिल्ली की खोज’ में लिखते हैं कि दिल्ली के पुराने नक्शे में पूर्व दिशा में यमुना नदी बहती है। पश्चिम में अरावली पर्वत का सिलसिला है, जो घूमता हुआ दक्षिण में जा पहुंचा है। उत्तर में फिर यमुना नदी आ जाती है। उस समय पूर्व में तो यमुना बहती ही होगी।
- उस समय यमुना की कई धाराएं और भी थीं जो शहर की कई जगहों पर बहती थी एक धारा यमुना से बारहपुला, निजामुद्दीन के पास से होती हुई जन्तर-मन्तर के पास से निकलकर तुर्कमान दरवाजे तक पहुंचती थी।
- एक धारा सीधी चांदनी चौक से दरीबे के पास से होती हुई निगमबोघ घाट के पास यमुना में मिल जाती थी। ये भी बताया जाता है कि निजामुद्दीन औलिया की दरगाह भी यमुना किनारे बनाई गई थी।
- चांदनी चौक में जहां कोतवाली है, यमुना का बहाव इस कदर तेज था कि भंवर में नाव डूब जाया करती थीं। मोहल्ला बल्लीमारान में किश्ती चलाने वाले रहते थे।
मथुरा, कुरुक्षेत्र आज भी, इसलिए इंद्रप्रस्थ पर जोर
- पुराने किले में महाभारत के समय के प्रमाण जुटाने का पहला प्रयास आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व डायरेक्टर बीबी लाल ने 1954 और 1972 में किया था। तब उन्हें पहली और तीसरी सदी के कुछ मिट्टी बर्तन मिले थे।
- महाभारत होने के दावे पर जोर देते हुए लाल अपनी किताब ‘इंद्रप्रस्थ: द अर्लिएस्ट दिल्ली गाेइंग बैक टू द महाभारत टाइम्स’ में लिखते हैं कि अगर महाभारत काल नहीं था तो ये कैसे संभव है कि महाभारत में दिए गए नाम आज भी अस्तित्व में हैं।
- कृष्ण का जन्मस्थल मथुरा, युद्ध स्थल कुरुक्षेत्र आज भी है। केवल पांडवों के बनाए इंद्रप्रस्थ का नया नाम दिल्ली मिला है, जिसने सारे इतिहास को उलझा दिया है।
2014 और 2017 में ASI को दिल्ली के पुराने किले की खुदाई के दौरान 2500 पुराने मिट्टी के बर्तन मिले हैं। अनुमान है कि इस किले के नीचे 3000 साल पुराने अवशेष भी हो सकते हैं। फोटो पुराने किले की खुदाई का है।
खुदाई में मिले करीब 3 हजार साल पुराने बर्तन
- 2014 और 2017 में ASI को पुराने किले में खुदाई के दौरान पेंटेड ग्रे वेयर कल्चर (PGW) के टुकड़े मिले हैं। PGW एक अच्छी, चिकनी, ग्रे रंग की मिट्टी के बर्तन होते हैं। इन्हें 1100 ईसा पूर्व या 500 से 400 ईसा पूर्व का माना जाता है।
- जानकार मानते हैं कि महाभारत भी इसी समय के बीच लिखी गई है। अनुमान लगाया जा रहा है कि ये बर्तन उसी समय के हो सकते हैं। वहीं, ASI इन बर्तनों को 2500 साल पुराना मानता है।
- 2023 में भी एएसआई ने दिल्ली के पुराने किले सहित कई जगह पर खुदाई की थी। उसमें मुगल काल, सल्तनत काल, राजपूत काल, गुप्त काल, कुषाण काल और मौर्य काल के सबूत मिले थे।
- दिल्ली का पुराना किला 300 एकड़ में फैला है। अनुमान लगाया जाता है कि इस किले के नीचे 3000 साल पुरानी सभ्यता के सबूत हैं।
- किले के बाहर लगी शिला में महाभारत काल का उल्लेख हैं। माना जाता है कि किला जिस टीले पर है वो महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ रहा होगा। इस कारण यहां खुदाई की जा रही है।
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