महाकुंभ में पत्नी की तलाश में भूखे-प्यासे भटक रहा पति: 8 घंटे तक अनाउंसमेंट शिविर के पास बैठा रहा; गांववालों के साथ आई थी वाइफ – Nawada News h3>
60 साल के बाल्मीकि अपनी पत्नी मिनटा देवी को ढूंढने के लिए दिल्ली से महाकुंभ पहुंचे। यहां वे 3 दिनों से चक्कर लगा रहे हैं, एक घाट से दूसरे घाट पर दौड़ लगा रहे हैं। लेकिन उनकी पत्नी का कुछ पता नहीं चल पा रहा है।
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उन्होंने अपने दर्द को आसुओं के जरिए निकालते हुए कहा कि, ‘यहां अनाउंसमेंट के लिए भी बोल रहे हैं…लेकिन कोई सुन नहीं रहा है। कोई अनाउंसमेंट नहीं कर रहा है। ऐसे में हम अपनी पत्नी को कैसे ढूंढ पाएंगे।’
ये डिजिटल खोया पाया केंद्र का काउंटर है। यहां लोग बिछड़ने वाले का डिटेल दर्ज कराते हैं। इसके बाद यहीं से खोए लोगों की तलाश के लिए अनाउंसमेंट की जाती है।
पति दिल्ली में रहकर करता है मजदूरी
नवादा के कटिया गांव के रहने वाले बाल्मीकि दिल्ली में रहकर मजदूरी करते हैं। उनकी पत्नी कटिया गांव में ही रहती है। 8 फरवरी को मिनटा देवी अपने गांव के लोगों के साथ महाकुंभ में संगम नहाने आई थी।
9 फरवरी को उनके पति को गांव के एक व्यक्ति का फोन गया कि आपकी पत्नी प्रयागराज में खो गई है। ये खबर सुनते ही पति दिल्ली से तुरंत ट्रेन पकड़ कर पत्नी को ढूंढने महाकुंभ पहुंच गया। पत्नी के साथ आए ग्रामीण ने उसे मिनटा देवी की आईडी हाथ में थमाई और फिर वे गांव के लिए निकल गए।
ये सेक्टर-4 का डिजिटल खोया-पाया केंद्र है, जहां लोगों के ठहरने की भी व्यवस्था है।
3 दिन से पत्नी की तलाश में दर-दर भटक रहे
यहां 3 दिन से बाल्मीकि आंखों में आंसू लिए भूखे-प्यासे पत्नी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। लेकिन मिनटा देवी का कुछ पता नहीं चल पा रहा है। बाल्मीकि ने भारत सेवा के खोया-पाया दल पर भी शिकायत दर्ज करवाई है, लेकिन वहां से भी उसे कोई जानकारी नहीं मिल पाई है।
भूले-भटके शिविर के पास भी नहीं मिली मेरी पत्नी
बाल्मीकि ने कहा कि हम प्रयागराज महाकुंभ के सेक्टर-4 में त्रिवेणी मार्ग पर भारत सेवा दल का भूले-भटके शिविर के पास भी गए थे। वहां, भी अपनी पत्नी को ढूंढने का प्रयास किया, लेकिन वो नहीं दिखी। इसके अलावा वहां कई सारी महिलाएं थी, जिनकी आंखें अपनों का इंतजार कर रही थी।
महिला का आधार कार्ड। बाल्मीकि इसी से अपनी पत्नी की तलाश में जुटे हैं।
1946 में इस शिविर की हुई थी शुरुआत
भारत सेवा दल का भूले-भटके शिविर 1946 में पहली बार इसी जगह पर इसकी शुरुआत हुई थी। कोई ताम-झाम नहीं। आज भी काउंटर लगाकर 2 लोग यहां बैठे रहते हैं। हाथ में कलम और पर्ची होती है।
जो लोग खोए हैं उनका नाम लिखकर पुकारा जाता है। बुलाया जाता है कि फलां व्यक्ति आपका इंतजार कर रहे हैं, जहां कहीं भी हों भूले-भटके शिविर पर चले आएं। लेकिन बाल्मीकि करीब 8 घंटे तक यहां बैठे रहे उनकी पत्नी का एक बार भी अनाउंसमेंट नहीं हुआ।