महाकाल से लेकर खजुराहो तक अपार संपदा और खूबसूरती, ये है हिंदुस्तान का दिल | Immense wealth and beauty from Mahakal to Khajuraho, MP is the heart | Patrika News h3>
महाकाल मंदिर
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर दुनियाभर के शिवभक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है, श्रध्दालु यहाँ एक बार महादेव के दर्शन जरूर करना चाहते हैं। ऐसा कहा जाता है, जो महादेव को एकटक निहार कर देखता है, उसे एक अजीब अनुभूति होती है, लोग यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को स्वयंभू शिवलिंग मानते हैं। इस मंदिर की विशालता को देखते हुए यहाँ वैज्ञानिकों ने कई बार पड़ताल की है। वैज्ञानिकों को मंदिर की रिसर्च में कुछ न कुछ ऐसा मिला जिससे वे अचम्भित रह गए। 1980 और 2004 में मंदिर के आसपास हुई खुदाई में कुछ देवी देवताओं की मूर्तियां मिली थीं. इसी दौरान सुरंग निर्माण के लिए हो रही खुदाई में नर कंकाल मिले थे, जिससे वैज्ञानिकों की आंखें फटी की फटी रह गयी थी। 2019 में मंदिर के निर्माण कार्य में एक सूर्य यंत्र मिला था, हालांकि बाद में रखरखाव में वह टूट गया था। 2020 में मंदिर के आसपास हो रहे निर्माण कार्य में एक हजार साल पुराने मंदिरों के अवशेष मिले हैं, साइंटिस्ट अभी भी इस पर शोध कर रहे हैं, आखिर मंदिर के नीचे क्या है।
कोई भी पीएम-सीएम रात में नहीं रूकता
महाकाल को उज्जैन (अवंतिकापुरी) का राजा कहा जाता है, यहाँ राजा विक्रमादित्य के बाद कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री रात में नहीं रूक सके हैं, क्योंकि ऐसी धारणा है, कि ऐसा करने पर उनका बुरा हश्र होता है. देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई एक रात उज्जैन ठहरे थे, इसके एक दिन बाद ही उनकी सरकार गिर गई थी, वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री वीएस येदियुरप्पा भी महाकाल की नगरी में रूके थे, इसके 20 दिन बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इन्हीं मिथकों के कारण यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा प्रधानमंत्री मोदी भी कभी रात को नहीं ठहरते।
खजुराहो के रहस्यमयी कामुक मंदिर
ऐसा कहा जाता है, एक समय खजुराहो में 85 मंदिरों की श्रृंखला थी, लेकिन अब यहाँ 22 मंदिर ही शेष बचे हैं। बुंदेलखंड में प्रचलित एक कहानी के अनुसार एक बार राजपुरोहित हेमराज की पुत्री हेमवती सरोवर में स्नान करने पहुंची, तो आकाश में विचरते चंद्र्देव उन्हें देख मोहित हो गये। हेमवती और चंद्रदेव का जो पुत्र हुआ उसे लोकलाज के भय से हेमवती ने कर्णावती नदी के किनारे ही पाल-पोश कर बड़ा किया, उसका नाम चंद्रवर्मन रखा गया, चंद्रवर्मन बहुत प्रतापी राजा था। ऐसा कहा जाता है, एक बार उसकी मां ने उसे स्वप्न में ऐसे मंदिर बनाने को कहा, जिससे लोग कामुकता के प्रति खुलकर बात कर सकें। और ऐसा माना जाता है, चंद्रवर्मन ने ही छतरपुर जिले के पास खजुराहो में इन कामुक मंदिरों का निर्माण कराया था, और इसे अपनी राजधानी बनाया था।
इस जगह का नाम खजुराहो भी इसलिये पड़ा, क्योंकि इसके मुख्य द्वार पर खजूर के दो पेड़ लगे हुऐ थे। हालांकि इन मंदिरों को बनाने के पीछे एक मान्यता ये भी है, जब महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को मोहमाया से दूर ब्रह्मचर्य का ज्ञान दे रहे थे, तब हिन्दू धर्मावलंबियों ने ऐसे मंदिरों को बनाने पर जोर दिया, जिससे ये संदेश दिया जा सके, कामुकता से भी जीवन सुखमय बन सकता है। सनातन हिन्दू धर्म में संभोग को एक कला माना गया है, जिससे शांति का मार्ग प्रसस्त होता है। खजुराहो में कन्दरिया महादेव आदि मंदिरों में ऐसी नक्काशीदार मूर्तियों को चित्रित किया गया है, जिसे देखकर वैज्ञानिक भी हैरान रह गऐ थे। खजुराहो के मंदिरों की विशालता को देखते हुए इसे यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है।
सांची स्तूप, जिसे अंग्रेजों ने तलाशा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 46 किमी. की दूरी पर स्थित 3 स्तूप हैं, जिन्हें देश के सबसे संरक्षित स्तूपों में से एक माना जाता है। स्तूप पवित्र बौध्द स्थल होते हैं, जिन्हें चैत्य भी कहा जाता है। इन स्तूपों का उपयोग अवशेषों को रखने के लिये किया जाता है। 483 ईसा पूर्व में जब भगवान बुद्ध ने अपना ध्येय त्यागा, तो राजा महाराजा आपस में झगड़ने लगे। सांची के इन स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक की पत्नि महादेवी सक्यकुमारी ने कराया था, जो विदिशा के एक व्यापारी की बेटी थीं। सांची उनका जन्मस्थान एवं उनके विवाह स्थल से संबंधित है। यह स्तूप तीसरी शताब्दी ईसा. पूर्व से 12 वी शतीब्दी ईसा. पूर्व के बताए जाते हैं। इस स्तूप में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के अवशेषों को रखा गया था। साथ ही इसके सम्मान में स्मारक को दिए गए ऊंचे सम्मान रूपी एक छत्र था।
सातवाहन काल के राजा सतकर्णी के काल में बनाए गए इस स्तूप को काफी सुंदर रंगों से सजाया गया है। इसकी लंबाई लगभग 16.4 मीटर जबकि इसका व्यास 36.5 मीटर है। 14 वीं शताब्दी में ये निर्जन हो गया था, क्योंकि इसके रखरखाव के लिये किसी राजा ने अधिक ध्यान नहीं दिया। हालांकि 1818 में एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने इन स्तूपों की खोज की थी, इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी। और सन् 1912-1919 के बीच इस संरचना को पुन: खड़ा कर दिया गया। इस स्तूप का निर्माण बौद्ध शिक्षाओं और बौद्ध अध्ययन को सिखाने के लिये किया गया था। हालांकि ये भी दिलचस्प है, कि यहां महात्मा बुद्ध के अवशेष जरूर रखे गए हैं, लेकिन बुध्द ने इस स्थान का दौरा कभी नहीं किया। सांची स्तूप के निकट आशोक स्तंम्भ पाया गया है, जिसमें सारनाथ की तरह चार शेर शामिल हैं। साथ ही यहां ब्राम्ही लिपि के कुछ शिलालेख भी पाए गए हैं। सांची के बौध्द स्तूप की अद्भुत वास्तुकला को देखते हुऐ इसे 1989 में यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया।
भीमबेटका गुफाऐं
रायसेन जिले में चट्टानों से बनी ऐसी विशाल गुफाऐं निर्मित हैं, जो हजारों साल पुरानी जीवनशैली को प्रदर्शित करते हैं। यह स्थान एमपी की राजधानी भोपाल से लगभग 45 किमी. दूर स्थित है। यहां 750 से ज्यादा रॉक पेंटिंग स्थित हैं। इसकी खोज 1957-58 में डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की थी। यहां गुफाओं में पाषाण कालीन महल, घोड़ों और हाथियों की सवारी, संगीत, नृत्य, आखेट, प्राचीन शैली के मंदिर इसके अलावा यहां जंगली सुअर, कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरों को चित्रित किया गया है। ऐसी धारणा रही है, कि इसे महाभारत के किरदार भीम ने अपनी मां कुन्ती के लिये बनवाया था, ताकि वो स्नान करने के बाद गुफा में अराधना कर सकें। इसकी अद्भुत नक्काशी को देखते हुऐ इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थान, जो प्रदेश की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं
भोजपूर का अधूरा शिव मंदिर
प्रदेश की राजधानी से 35 किमी दूर स्थित भोजेश्वर महादेव का भव्य मंदिर स्थित है, जिसे परमार वंश के राजा भोज द्वारा तैयार किया गया था। बेतवा नदी के किनारे बने इस मंदिर को अधूरा बना हुआ मंदिर बताया जाता है, पहले इस मंदिर की छत नहीं थी, लेकिन बाद में मंदिर का जीर्णोध्दार करा दिया गया। ऐसा भी कहा जाता है, कि इस मंदिर को एक रात में ही बनाया गया था। यहां महादेव का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थित है। इस मंदिर की अद्भुत वास्तुकला को देख आज के इंजीनियर भी हैरान रह जाते हैं।
ओरछा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले मंदिर
राज्य की खूबसूरती में ओरछा के मंदिरों का बहुत बड़ा स्थान है। प्रदेश के नेवड़िया जिले में स्थित व बेतवा नदी के किनारे बसा ओरछा अपनी अद्भुत छटा से देशी- विदेशी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहां स्थित राजा राम मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, जहांगीर महल, लक्ष्मी मंदिर जैसे दर्जनों मंदिर आगंतुकों को अपनी ओर खींच लेते हैँ। इन मंदिरों का निर्माण बुंदेला राजाओं के नेतृत्व में कराया गया था। साथ ही कुछ और भी ऐसे भव्य मंदिर हैं, जो अपनी अपार सुंदरता व अद्भुत वास्तुकला से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, जैसे मुरैना में स्थित 250 मंदिरों का समूह, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओमकारेश्वर महादेव का मंदिर इत्यादि।
ये महल जो राजस्थान को भी देते हैं मात
देश में जब भी शानदार महलों की बात होती है, तो राजस्थान का नाम ही जुबां पर आता है, लेकिन प्रदेश में भी ऐसे विशालकाय महल हैं, जो पूरी दुनिया में राज्य को एक अलग मुकाम देते हैं। अगर मध्यकालीन महलों की बात की जाए तो ग्वालियर के महलों ने एक अलग ही स्थान बनाया है। प्रदेश के कुछ जिले जैसे, भोपाल इंदौर, टीकमगढ़, छतरपुर, ओरछा, दतिया, बुरहानपुर, मंड़ला, शाजापूर, गोहद भिंड़, पन्ना, अजयगढ़ पन्ना, श्योपुर, अशोकनगर, मुरैना, रतलाम, निवाड़ी, धार, रायसेन ग्वालियर, जबलपूर, चंदेरी और माण्डू इन जिलों में इतने शानदार महल व किले बने हैं, जिसे देखकर हर कोई भावभिवोर हो जाता है।
प्रदेश के कुछ प्रमुख महल जैसे, सतखण्ड़ा महल, बघेलिन महल, राव रतन का महल, तारबाई महल, नया महल, राज अमन का महल, हिन्दुपत्त महल, राजमहल हुसैनपुरा महल, महाराजा नरसिंह महल, राजवाड़ा महल, क्राउन महल, सैलाना महल, तालकोठी महल, धुबेला महल, ह्रदयशाह का महल, शीशमहल, प्रवीण राय महल, पालकी महल, जहांगीर महल, सुपारी साव का महल, रायमन दाउ कोटी महल, जुझार सिंह महल, खरबुजा महल, ड़ाकन्या महल, समुरावाला महल, अदर गुम्मद महल, बोड़िया महल, अंधा महल, रोशन बाग महल, छप्पन महल, इत्रदार महल, राजा रोहित का महल, बादल महल, राजा रोहित का महल, बादल महल, गुजरी महल, जयविलास महल, शाहजहां महल, विक्रम महल, कर्ण महल, मोती महल, शौकत महल, गौहर महल, कमलापति महल, चमन महल, मदन महल, नौखण्ड़ा महल, हवा महल, जहाज महल, हिण्ड़ोला महल, रानी रूपमती का महल, अशरफी का महल और दाई का महल जौसे भव्य महल मध्य प्रदेश के आंगन में रहकर उसकी शोभा बढ़ाते हैं।
इनमें कुछ महल तो ऐसे हैं, जो केवल पत्थरों से बने हुऐ हैं, इनकी अद्भुत वास्तुकला को देख वैज्ञानिक भी हैरान रह जाते हैं। अपनी इसी अपार राजशाही, अकल्पनीय वास्तुकला एवं अतुलनीय प्राकृतिक सौंन्दर्यता के कारण मध्य प्रदेश को भारत का दिल कहा जाता है
महाकाल मंदिर
उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर दुनियाभर के शिवभक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है, श्रध्दालु यहाँ एक बार महादेव के दर्शन जरूर करना चाहते हैं। ऐसा कहा जाता है, जो महादेव को एकटक निहार कर देखता है, उसे एक अजीब अनुभूति होती है, लोग यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को स्वयंभू शिवलिंग मानते हैं। इस मंदिर की विशालता को देखते हुए यहाँ वैज्ञानिकों ने कई बार पड़ताल की है। वैज्ञानिकों को मंदिर की रिसर्च में कुछ न कुछ ऐसा मिला जिससे वे अचम्भित रह गए। 1980 और 2004 में मंदिर के आसपास हुई खुदाई में कुछ देवी देवताओं की मूर्तियां मिली थीं. इसी दौरान सुरंग निर्माण के लिए हो रही खुदाई में नर कंकाल मिले थे, जिससे वैज्ञानिकों की आंखें फटी की फटी रह गयी थी। 2019 में मंदिर के निर्माण कार्य में एक सूर्य यंत्र मिला था, हालांकि बाद में रखरखाव में वह टूट गया था। 2020 में मंदिर के आसपास हो रहे निर्माण कार्य में एक हजार साल पुराने मंदिरों के अवशेष मिले हैं, साइंटिस्ट अभी भी इस पर शोध कर रहे हैं, आखिर मंदिर के नीचे क्या है।
कोई भी पीएम-सीएम रात में नहीं रूकता
महाकाल को उज्जैन (अवंतिकापुरी) का राजा कहा जाता है, यहाँ राजा विक्रमादित्य के बाद कोई भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री रात में नहीं रूक सके हैं, क्योंकि ऐसी धारणा है, कि ऐसा करने पर उनका बुरा हश्र होता है. देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई एक रात उज्जैन ठहरे थे, इसके एक दिन बाद ही उनकी सरकार गिर गई थी, वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री वीएस येदियुरप्पा भी महाकाल की नगरी में रूके थे, इसके 20 दिन बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इन्हीं मिथकों के कारण यहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा प्रधानमंत्री मोदी भी कभी रात को नहीं ठहरते।
खजुराहो के रहस्यमयी कामुक मंदिर
ऐसा कहा जाता है, एक समय खजुराहो में 85 मंदिरों की श्रृंखला थी, लेकिन अब यहाँ 22 मंदिर ही शेष बचे हैं। बुंदेलखंड में प्रचलित एक कहानी के अनुसार एक बार राजपुरोहित हेमराज की पुत्री हेमवती सरोवर में स्नान करने पहुंची, तो आकाश में विचरते चंद्र्देव उन्हें देख मोहित हो गये। हेमवती और चंद्रदेव का जो पुत्र हुआ उसे लोकलाज के भय से हेमवती ने कर्णावती नदी के किनारे ही पाल-पोश कर बड़ा किया, उसका नाम चंद्रवर्मन रखा गया, चंद्रवर्मन बहुत प्रतापी राजा था। ऐसा कहा जाता है, एक बार उसकी मां ने उसे स्वप्न में ऐसे मंदिर बनाने को कहा, जिससे लोग कामुकता के प्रति खुलकर बात कर सकें। और ऐसा माना जाता है, चंद्रवर्मन ने ही छतरपुर जिले के पास खजुराहो में इन कामुक मंदिरों का निर्माण कराया था, और इसे अपनी राजधानी बनाया था।
इस जगह का नाम खजुराहो भी इसलिये पड़ा, क्योंकि इसके मुख्य द्वार पर खजूर के दो पेड़ लगे हुऐ थे। हालांकि इन मंदिरों को बनाने के पीछे एक मान्यता ये भी है, जब महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों को मोहमाया से दूर ब्रह्मचर्य का ज्ञान दे रहे थे, तब हिन्दू धर्मावलंबियों ने ऐसे मंदिरों को बनाने पर जोर दिया, जिससे ये संदेश दिया जा सके, कामुकता से भी जीवन सुखमय बन सकता है। सनातन हिन्दू धर्म में संभोग को एक कला माना गया है, जिससे शांति का मार्ग प्रसस्त होता है। खजुराहो में कन्दरिया महादेव आदि मंदिरों में ऐसी नक्काशीदार मूर्तियों को चित्रित किया गया है, जिसे देखकर वैज्ञानिक भी हैरान रह गऐ थे। खजुराहो के मंदिरों की विशालता को देखते हुए इसे यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है।
सांची स्तूप, जिसे अंग्रेजों ने तलाशा
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 46 किमी. की दूरी पर स्थित 3 स्तूप हैं, जिन्हें देश के सबसे संरक्षित स्तूपों में से एक माना जाता है। स्तूप पवित्र बौध्द स्थल होते हैं, जिन्हें चैत्य भी कहा जाता है। इन स्तूपों का उपयोग अवशेषों को रखने के लिये किया जाता है। 483 ईसा पूर्व में जब भगवान बुद्ध ने अपना ध्येय त्यागा, तो राजा महाराजा आपस में झगड़ने लगे। सांची के इन स्तूपों का निर्माण सम्राट अशोक की पत्नि महादेवी सक्यकुमारी ने कराया था, जो विदिशा के एक व्यापारी की बेटी थीं। सांची उनका जन्मस्थान एवं उनके विवाह स्थल से संबंधित है। यह स्तूप तीसरी शताब्दी ईसा. पूर्व से 12 वी शतीब्दी ईसा. पूर्व के बताए जाते हैं। इस स्तूप में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के अवशेषों को रखा गया था। साथ ही इसके सम्मान में स्मारक को दिए गए ऊंचे सम्मान रूपी एक छत्र था।
सातवाहन काल के राजा सतकर्णी के काल में बनाए गए इस स्तूप को काफी सुंदर रंगों से सजाया गया है। इसकी लंबाई लगभग 16.4 मीटर जबकि इसका व्यास 36.5 मीटर है। 14 वीं शताब्दी में ये निर्जन हो गया था, क्योंकि इसके रखरखाव के लिये किसी राजा ने अधिक ध्यान नहीं दिया। हालांकि 1818 में एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने इन स्तूपों की खोज की थी, इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी सौंपी। और सन् 1912-1919 के बीच इस संरचना को पुन: खड़ा कर दिया गया। इस स्तूप का निर्माण बौद्ध शिक्षाओं और बौद्ध अध्ययन को सिखाने के लिये किया गया था। हालांकि ये भी दिलचस्प है, कि यहां महात्मा बुद्ध के अवशेष जरूर रखे गए हैं, लेकिन बुध्द ने इस स्थान का दौरा कभी नहीं किया। सांची स्तूप के निकट आशोक स्तंम्भ पाया गया है, जिसमें सारनाथ की तरह चार शेर शामिल हैं। साथ ही यहां ब्राम्ही लिपि के कुछ शिलालेख भी पाए गए हैं। सांची के बौध्द स्तूप की अद्भुत वास्तुकला को देखते हुऐ इसे 1989 में यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया।
भीमबेटका गुफाऐं
रायसेन जिले में चट्टानों से बनी ऐसी विशाल गुफाऐं निर्मित हैं, जो हजारों साल पुरानी जीवनशैली को प्रदर्शित करते हैं। यह स्थान एमपी की राजधानी भोपाल से लगभग 45 किमी. दूर स्थित है। यहां 750 से ज्यादा रॉक पेंटिंग स्थित हैं। इसकी खोज 1957-58 में डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की थी। यहां गुफाओं में पाषाण कालीन महल, घोड़ों और हाथियों की सवारी, संगीत, नृत्य, आखेट, प्राचीन शैली के मंदिर इसके अलावा यहां जंगली सुअर, कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरों को चित्रित किया गया है। ऐसी धारणा रही है, कि इसे महाभारत के किरदार भीम ने अपनी मां कुन्ती के लिये बनवाया था, ताकि वो स्नान करने के बाद गुफा में अराधना कर सकें। इसकी अद्भुत नक्काशी को देखते हुऐ इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। कुछ अन्य महत्वपूर्ण स्थान, जो प्रदेश की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं
भोजपूर का अधूरा शिव मंदिर
प्रदेश की राजधानी से 35 किमी दूर स्थित भोजेश्वर महादेव का भव्य मंदिर स्थित है, जिसे परमार वंश के राजा भोज द्वारा तैयार किया गया था। बेतवा नदी के किनारे बने इस मंदिर को अधूरा बना हुआ मंदिर बताया जाता है, पहले इस मंदिर की छत नहीं थी, लेकिन बाद में मंदिर का जीर्णोध्दार करा दिया गया। ऐसा भी कहा जाता है, कि इस मंदिर को एक रात में ही बनाया गया था। यहां महादेव का सबसे बड़ा शिवलिंग स्थित है। इस मंदिर की अद्भुत वास्तुकला को देख आज के इंजीनियर भी हैरान रह जाते हैं।
ओरछा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले मंदिर
राज्य की खूबसूरती में ओरछा के मंदिरों का बहुत बड़ा स्थान है। प्रदेश के नेवड़िया जिले में स्थित व बेतवा नदी के किनारे बसा ओरछा अपनी अद्भुत छटा से देशी- विदेशी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहां स्थित राजा राम मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, जहांगीर महल, लक्ष्मी मंदिर जैसे दर्जनों मंदिर आगंतुकों को अपनी ओर खींच लेते हैँ। इन मंदिरों का निर्माण बुंदेला राजाओं के नेतृत्व में कराया गया था। साथ ही कुछ और भी ऐसे भव्य मंदिर हैं, जो अपनी अपार सुंदरता व अद्भुत वास्तुकला से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, जैसे मुरैना में स्थित 250 मंदिरों का समूह, 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओमकारेश्वर महादेव का मंदिर इत्यादि।
ये महल जो राजस्थान को भी देते हैं मात
देश में जब भी शानदार महलों की बात होती है, तो राजस्थान का नाम ही जुबां पर आता है, लेकिन प्रदेश में भी ऐसे विशालकाय महल हैं, जो पूरी दुनिया में राज्य को एक अलग मुकाम देते हैं। अगर मध्यकालीन महलों की बात की जाए तो ग्वालियर के महलों ने एक अलग ही स्थान बनाया है। प्रदेश के कुछ जिले जैसे, भोपाल इंदौर, टीकमगढ़, छतरपुर, ओरछा, दतिया, बुरहानपुर, मंड़ला, शाजापूर, गोहद भिंड़, पन्ना, अजयगढ़ पन्ना, श्योपुर, अशोकनगर, मुरैना, रतलाम, निवाड़ी, धार, रायसेन ग्वालियर, जबलपूर, चंदेरी और माण्डू इन जिलों में इतने शानदार महल व किले बने हैं, जिसे देखकर हर कोई भावभिवोर हो जाता है।
प्रदेश के कुछ प्रमुख महल जैसे, सतखण्ड़ा महल, बघेलिन महल, राव रतन का महल, तारबाई महल, नया महल, राज अमन का महल, हिन्दुपत्त महल, राजमहल हुसैनपुरा महल, महाराजा नरसिंह महल, राजवाड़ा महल, क्राउन महल, सैलाना महल, तालकोठी महल, धुबेला महल, ह्रदयशाह का महल, शीशमहल, प्रवीण राय महल, पालकी महल, जहांगीर महल, सुपारी साव का महल, रायमन दाउ कोटी महल, जुझार सिंह महल, खरबुजा महल, ड़ाकन्या महल, समुरावाला महल, अदर गुम्मद महल, बोड़िया महल, अंधा महल, रोशन बाग महल, छप्पन महल, इत्रदार महल, राजा रोहित का महल, बादल महल, राजा रोहित का महल, बादल महल, गुजरी महल, जयविलास महल, शाहजहां महल, विक्रम महल, कर्ण महल, मोती महल, शौकत महल, गौहर महल, कमलापति महल, चमन महल, मदन महल, नौखण्ड़ा महल, हवा महल, जहाज महल, हिण्ड़ोला महल, रानी रूपमती का महल, अशरफी का महल और दाई का महल जौसे भव्य महल मध्य प्रदेश के आंगन में रहकर उसकी शोभा बढ़ाते हैं।
इनमें कुछ महल तो ऐसे हैं, जो केवल पत्थरों से बने हुऐ हैं, इनकी अद्भुत वास्तुकला को देख वैज्ञानिक भी हैरान रह जाते हैं। अपनी इसी अपार राजशाही, अकल्पनीय वास्तुकला एवं अतुलनीय प्राकृतिक सौंन्दर्यता के कारण मध्य प्रदेश को भारत का दिल कहा जाता है