महंगाई की ऐसी पड़ रही मार, गरीब के लिए दो वक्त का खाना जुटाना हो रहा मुश्किल

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महंगाई की ऐसी पड़ रही मार, गरीब के लिए दो वक्त का खाना जुटाना हो रहा मुश्किल

महंगाई की ऐसी पड़ रही मार, गरीब के लिए दो वक्त का खाना जुटाना हो रहा मुश्किल

नई दिल्ली: दूध, दही, चीनी हो या फिर दाल या सब्जी…एक आम रसोई में इस्तेमाल होने वाली लगभग हर चीज महंगी हो चली है। ऐसे में घरेलू रसोई गैस सिलेंडर (Domestic LPG Cylinder) भी कहां पीछे रहने वाला है। उसकी कीमत भी ताजा बढ़ोतरी के बाद देश के कई शहरों में 1000 रुपये के पार चली गई है। शनिवार को घरेलू एलपीजी सिलेंडर के दाम 50 रुपये बढ़ा दिए गए। इसके बाद राजधानी दिल्ली में 14.2 किलो के डॉमेस्टिक LPG सिलेंडर की कीमत 999.50 रुपये प्रति सिलेंडर हो गई है। वहीं पीएनजी यानी रसोई घरों में पाइप के जरिए आने वाली गैस के दाम दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में 46 रुपये प्रति एससीएम के करीब पहुंच चुके हैं।

इस महंगाई के बीच गरीब का बजट हिल चुका है। क्या पकाएं और कैसे पकाएं…यह सवाल और गंभीर होता जा रहा है। इसके साथ-साथ एक और सवाल है। देश से कुपोषण को खत्म करना है लेकिन अगर थाली में खाने-पीने की सामान्य सी चीजें जुटा पाना भी बजट से बाहर हो गया तो कुपोषण के खिलाफ लड़ाई कैसे आगे बढ़ेगी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ने गरीबों को अनाज तो उपलब्ध कराया लेकिन क्या उस अनाज से बनी रोटी नमक से खाई जाए। थाली में दाल और सब्जी जुटा पाना उसके बस से बाहर होता जा रहा है। नींबू तक के दाम 250-300 रुपये किलो के बीच हैं। अगर घर में कोई बीमार हो जाए तो गरीब को यह टेंशन हो जाती है कि वह परिवार के लिए खाने का इंतजाम करे या फिर बीमार के लिए दवा का।

मार्च में खाद्य पदार्थों की महंगाई 7.68 फीसदी
मार्च में खाद्य पदार्थों की महंगाई 7.68 फीसदी पर जा पहुंची। कभी एक रेगुलर डायट का हिस्सा होने वाले दूध, अंडा आज यदा कदा ही थाली में जगह बना पाते हैं। बेहद कम आय वालों की थाली में दाल और हरी सब्जियों का भी यही हाल है। कुछ परिवार तो ऐसे भी हैं, जिनके लिए दो वक्त के खाने का इंतजाम कर पाना भी मुश्किल हो रहा है, इसलिए वे दिन में केवल एक बार ही खाने पर मजबूर हैं।

मुंबई की अफसाना इदरिसी की जिंदगी लॉकडाउन से पहले ठीकठाक चल रही थी। उनके पति एक कपड़ा दुकान पर सेल्समैन थे और वह पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर कुछ कमाई कर लेती थीं। उनकी कुल आय 50000 रुपये प्रतिमाह थी, जिससे वे अपनी तीन बच्चियों को पाल रहे थे। लेकिन फिर कोविड की वजह से लॉकडाउन लग गया और अफसाना के पति की नौकरी चली गई। साथ ही उनका ट्यूशन का काम भी बंद हो गया। अफसाना कहती हैं कि पहले वह बच्चों को दूध, अंडा, चिकन मुहैया करा पाती थीं लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि हर चीज महंगी हो चली है। सौभाग्य से थाली से दाल गायब नहीं हुई है। पिछले दो साल में उनकी सारी सेविंग्स खर्च हो चुकी है। ईद पर उन्होंने उधार लेकर बच्चों के लिए कपड़ों और सिवइयों का इंतजाम किया। उनके पति ने रमजान में फल बेचे लेकिन अब वह भी बंद हो चुका है। वह कर्ज में जी रहे हैं।

बच्चों को दूध भी मुहैया नहीं करा पा रहे कुछ लोग
ऐसी ही कहानी डॉमेस्टिक वर्कर प्रेमलता देवी की भी है। लॉकडाउन से पहले वह शेख सराय की 4 कोठियों में काम करने महीने के लगभग 10000 रुपये कमाती थीं। लेकिन अब वह केवल 1 ही कोठी में काम कर रही हैं। उनके पति कॉन्ट्रैक्चुअल लेबर हैं और उनका परिवार वर्तमान में वित्तीय अनिश्चितता से जूझ रहा है। प्रेमलता कहती हैं किमैं और मेरे पति बिना कुछ खाए ही काम पर जाते हैं। अगर दिन में हम कुछ कमा लेते हैं तो रात में बच्चों के लिए खाना बनाते हैं। घर में हर दूसरे दिन आलू की सब्जी और रोटी बनती है। बच्चे अगर बहुत जिद करते हैं तो वह 10 रुपये वाला दूध का पैकेट लाती हैं और इसे पानी में मिलाकर बच्चों को देती हैं। बच्चे चीनी की की मांग करते हैं लेकिन वह खरीद पाना उनके लिए मुश्किल हो चुका है।

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