ममता ने क्यों कहा- प्रयागराज-वाराणसी से चुनाव लड़ें राहुल, ये है इसके पीछे की कहानी? | Why did Mamata say Rahul should contest elections from Prayagraj Varanasi know behind story | News 4 Social h3>
लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को मुर्शिदाबाद में जनसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि मुझे समझ नहीं आता कि कांग्रेस पार्टी को इतना अहंकार किस बात का है। ‘मैंने कांग्रेस से कहा कि बंगाल में 2 सीटें ले लो, लेकिन उन्होंने (कांग्रेस) मना कर दिया। जाओ यूपी के प्रयागराज और बनारस में बीजेपी को हराकर आओ।” उन्होंने आगे कहा, “मुझे नहीं लगता कि आने वाले आम चुनाव में कांग्रेस 300 में से 40 सीट भी जीत पाएगी। कांग्रेस जिन-जिन स्थानों पर पहले जीतती थी, अब वहां भी वह हारती जा रही है।”
ममता का यह बयान ऐसे वक्त आया है जब गुरुवार को राहुल गांधी ने उनकी पार्टी और टीएमसी के बीच सीट बंटवारे को लेकर जारी तनातनी पर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि दोनों दलों के बीच चर्चा चल रही है। बहुत जल्द समाधान निकलेगा।
अब आइए जानते हैं लोकसभा चुनाव में वाराणसी और प्रयागराज सीट का इतिहास
पहले बात कर लेते है वाराणसी सीट की
वाराणसी सीट पर अभी तक 17 लोकसभा चुनाव हुए हैं। सात बार कांग्रेस और सात बार भाजपा जीती है। एक-एक बार जनता दल और सीपीएम उम्मीदवार को भी जीत नसीब हुई है। भारतीय लोकदल ने भी इस सीट पर एक बार जीत हासिल की है। समाजवादी पार्टी और बसपा ने इस सीट पर अभी तक कभी भी जीत दर्ज नहीं की है। वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें वाराणसी उत्तरी, वाराणसी दक्षिण और वाराणसी कैंट शहर की सीटें हैं।
अगर पिछले चार चुनावों की बात करें तो 2004 में भाजपा का गढ़ कही जाने वाली सीट को कांग्रेस ने जीत कर बड़ा झटका दिया था। इसके बाद 2009 के चुनाव में भाजपा के त्रिमूर्ति में से एक मुरली मनोहर जोशी को यहां भेजा गया। जोशी से मुकाबला माफिया मुख्तार अंसारी का हुआ। बेहद करीबी मुकाबले में मुरली मनोहर जोशी यहां से जीत सके थे। इसके बाद 2014 में पीएम मोदी के साथ ही दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी मैदान में उतर गए थे। 2019 में पीएम मोदी दोबारा मैदान में उतरे और एकतरफा मुकाबले में जीत हासिल की। वह अपने प्रचार के लिए भी नहीं आए और बड़ी विजय मिली। पीएम मोदी के आने से VVIP क्षेत्र हो गया है। यहां कांग्रेस के लिए चुनाव जीतना गागर से सागर भरने जैसा है।
अब बता करते हैं प्रयागराज सीट की
आजादी के बाद से अब तक हुए 17 आम और दो उप चुनावों में इस क्षेत्र से सर्वाधिक सात बार कांग्रेस और दो बार कांग्रेस (आई) को जीत मिली है। वहीं भारतीय जनता पार्टी ने 5 बार जीत हासिल की है। इलाहाबाद लोकसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुए थे। पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी से श्रीप्रकाश ने जीत हासिल की।
प्रयागराज सीट परी 1952 से 1971 तक कांग्रेस ने हासिल की जीत
1952 से 1971 तक हुए 5 चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जीत हासिल की। इस दौरान 1957 और 1962 के चुनावों में लालबहादुर शास्त्री इलाहाबाद के सांसद बने। 1973 और 1977 के चुनाव में भारतीय क्रांतिदल के ज्ञानेश्वर मिश्र ने जीत हासिल की। 1980 के चुनाव और उपचुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) को जीत मिली। 1984 में इलाहाबाद लोकसभा सीट से अमिताभ बच्चन ने चुनाव लड़ा। अमिताभ ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत हासिल की। 1996, 1998 और 1999 के चुनाव में इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के मुरली मनोहर जोशी जे जीत हासिल की। 2004 और 2009 में सपा से चुनाव लड़े रेवती रमण सिंह ने जीत दर्ज की। 2014 में बीजेपी ने एक बार फिर वापसी की और श्याम चरण गुप्ता ने भारतीय जनता पार्टी को जीत दिलाई। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी ने रीता बहुगुणा जोशी मैदान में उतारा और रीता बहुगुणा जोशी ने जीत दर्ज की।
दरअसल, इलाहाबाद में कांग्रेस पार्टी की स्थिति इस समय बेहद दिलचस्प है। पार्टी में बहुगुणा परिवार यानी रीता बहुगुणा जोशी और अशोक वाजपेयी कभी एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते थे। लेकिन आज दोनों ही लोग कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। 2014 में कांग्रेस पार्टी से इसी सीट से चुनाव लड़ने वाले नंद गोपाल नंदी भी इस समय भाजपा में हैं।
पिछले कई चुनाव से कांग्रेस मुकाबले में ही नहीं
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय पत्रकार अखिलेश मिश्र कहते हैं, “कांग्रेस में चुनाव लड़ने के लिए नेता की कमी नहीं है, लेकिन हां, कार्यकर्ता की कमी जरूर है। पिछले कई चुनाव से कांग्रेस दूसरे नंबर पर भी नहीं रही या यों कहें कि मुकाबले में ही नहीं रही। ऐसे में कांग्रेस पार्टी इलाहाबाद में पुराने जुड़ाव और आनंद भवन के चलते सक्रिय जरूर दिखती है, लेकिन जमीन पर उसके लोग न के बराबर हैं। रही सही कसर रीता बहुगुणा जैसे उन नेताओं ने पूरी कर दी जो पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए। इसके बाद से कांग्रेस की राह प्रयागराज में आसान नहीं दिख रही।