मनोज जोशी का कॉलम: अमेरिका और ईरान में तनाव बढ़ा तो नतीजे भयावह होंगे h3>
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4 घंटे पहले
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मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार
ट्रम्प ने एक बार फिर ईरान को धमकाना शुरू कर दिया है। पिछले सप्ताह उन्होंने कहा था कि ईरान के साथ तब तक ‘बुरी चीजें’ होती रहेंगी, जब तक कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिका से समझौता नहीं करता। उससे कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि ‘अगर वे समझौता नहीं करते हैं तो ऐसी बमबारी होगी, जो उन्होंने कभी नहीं देखी होगी।’
वे अपने उस पत्र पर ईरान के औपचारिक जवाब पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जो उन्होंने मार्च में यूएई के माध्यम से ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को भेजा था। पत्र में नई परमाणु वार्ता का प्रस्ताव था और दो महीने में समझौता नहीं होने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई थी।
ईरानियों ने भी अपना जवाब ओमान के जरिए ही भेजा। पत्र का विवरण ज्ञात नहीं है, लेकिन ईरान के विदेश मंत्री ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जब तक ट्रम्प की ‘अधिकतम दबाव’ की नीति लागू है, तब तक ईरान अमेरिका के साथ सीधे बातचीत नहीं करेगा। वह ओमानियों के जरिए अप्रत्यक्ष बातचीत को जरूर तैयार है। यानी दोनों पक्षों ने सख्ती भी दिखाई है और बातचीत के लिए दरवाजा भी खुला रखा है।
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड ने पिछले सप्ताह कहा था कि आईसी (इंटेलीजेंस कम्युनिटी) का निरंतर यह आकलन है कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है और खामेनेई ने 2003 में निलंबित किए गए परमाणु कार्यक्रम को अधिकृत नहीं किया है।
भारत के विपरीत ईरान ने एक गैर-परमाणु शक्ति के रूप में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किए थे। ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) में लगभग 3 लाख लोगों की मौत सहित महत्वपूर्ण अमेरिकी खतरों का सामना करने के बाद ईरान ने गुप्त रूप से परमाणु हथियार बनाने का फैसला किया था। लेकिन उसके कार्यक्रम का खुलासा हो गया और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद वह 2015 में संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (जेसीपीओए) पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हो गया।
ईरान ने अपनी परमाणु गतिविधि पर प्रतिबंध लगाने के लिए सहमति जताई थी। जेसीपीओए में ईरान की परमाणु सुविधाओं के यूरेनियम संवर्धन स्तर, अनुसंधान एवं विकास और संचालन पर सीमाएं शामिल थीं। इसमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) द्वारा विस्तृत निगरानी और सत्यापन भी शामिल था, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान सैन्य उद्देश्यों के लिए परमाणु सामग्री का उपयोग नहीं कर रहा है।
वर्ष 2018 में ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका इस एकतरफा समझौते से बाहर निकल गया था, हालांकि इस बात का कोई आरोप नहीं लगाया गया था कि ईरान समझौते का उल्लंघन कर रहा है। ट्रम्प- जाहिराना तौर पर इजराइल के इशारे पर- यह महसूस करते थे कि ओबामा प्रशासन द्वारा किया गया समझौता बहुत सॉफ्ट था। वे ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर प्रतिबंध चाहते थे और उन्होंने ईरान को सौदे पर फिर से बातचीत को मजबूर करने के लिए ‘अधिकतम दबाव’ की नीति शुरू की।
अमेरिका के वॉकआउट के बाद ईरान ने भी इस समझौते का पालन करने से इनकार कर दिया। अब आईएईए का कहना है कि ईरान ने 275 किलो यूरेनियम को 60% शुद्धता तक समृद्ध किया है और अगर इसे 90% तक समृद्ध किया जाता है तो वह कम से कम छह परमाणु हथियार बनाने में सक्षम होगा।
ट्रम्प ईरान के आत्मसमर्पण से कम कुछ नहीं चाहते, जिसमें उसके अधिकांश परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना शामिल होगा। ट्रम्प इजराइल के लिए अपने मजबूत समर्थन से प्रेरित हैं, जिसने पिछले साल के हवाई युद्ध में ईरानी सैन्य क्षमताओं को पहले ही काफी कम कर दिया है। लेकिन एक भी परमाणु हथियार इजराइल के अधिकांश हिस्से को नष्ट कर सकता है। तेल अवीव के पास भी गुप्त परमाणु हथियारों का भंडार है। लेकिन उसकी समस्या यह है कि इजराइल का आकार बहुत छोटा है। इसलिए वह अमेरिका पर ईरानी कार्यक्रम को खत्म करने के लिए दबाव डाल रहा है।
ईरान द्वारा समझौते में शामिल होने से इंकार करने की स्थिति में उस पर इजराइल और अमेरिका द्वारा मिलकर हमला किया जा सकता है। इस तरह के युद्ध के न केवल ईरान बल्कि पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र के लिए भयावह परिणाम होंगे।
बुशहर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर हमले से फारस की खाड़ी दूषित हो सकती है। जवाब में ईरानी मिसाइलें भी अमेरिका के खाड़ी सहयोगियों जैसे यूएई, कतर और बहरीन को तबाह कर सकती हैं। और तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी।
ट्रम्प इजराइल के लिए अपने मजबूत समर्थन से प्रेरित हैं, जिसने पिछले साल ईरानी सैन्य क्षमताओं को पहले ही काफी कम कर दिया है। लेकिन ईरान का एक भी परमाणु हथियार इजराइल के अधिकांश हिस्से को नष्ट कर सकता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार
ट्रम्प ने एक बार फिर ईरान को धमकाना शुरू कर दिया है। पिछले सप्ताह उन्होंने कहा था कि ईरान के साथ तब तक ‘बुरी चीजें’ होती रहेंगी, जब तक कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिका से समझौता नहीं करता। उससे कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि ‘अगर वे समझौता नहीं करते हैं तो ऐसी बमबारी होगी, जो उन्होंने कभी नहीं देखी होगी।’
वे अपने उस पत्र पर ईरान के औपचारिक जवाब पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जो उन्होंने मार्च में यूएई के माध्यम से ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को भेजा था। पत्र में नई परमाणु वार्ता का प्रस्ताव था और दो महीने में समझौता नहीं होने पर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई थी।
ईरानियों ने भी अपना जवाब ओमान के जरिए ही भेजा। पत्र का विवरण ज्ञात नहीं है, लेकिन ईरान के विदेश मंत्री ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि जब तक ट्रम्प की ‘अधिकतम दबाव’ की नीति लागू है, तब तक ईरान अमेरिका के साथ सीधे बातचीत नहीं करेगा। वह ओमानियों के जरिए अप्रत्यक्ष बातचीत को जरूर तैयार है। यानी दोनों पक्षों ने सख्ती भी दिखाई है और बातचीत के लिए दरवाजा भी खुला रखा है।
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया निदेशक तुलसी गबार्ड ने पिछले सप्ताह कहा था कि आईसी (इंटेलीजेंस कम्युनिटी) का निरंतर यह आकलन है कि ईरान परमाणु हथियार नहीं बना रहा है और खामेनेई ने 2003 में निलंबित किए गए परमाणु कार्यक्रम को अधिकृत नहीं किया है।
भारत के विपरीत ईरान ने एक गैर-परमाणु शक्ति के रूप में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर किए थे। ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) में लगभग 3 लाख लोगों की मौत सहित महत्वपूर्ण अमेरिकी खतरों का सामना करने के बाद ईरान ने गुप्त रूप से परमाणु हथियार बनाने का फैसला किया था। लेकिन उसके कार्यक्रम का खुलासा हो गया और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद वह 2015 में संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (जेसीपीओए) पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हो गया।
ईरान ने अपनी परमाणु गतिविधि पर प्रतिबंध लगाने के लिए सहमति जताई थी। जेसीपीओए में ईरान की परमाणु सुविधाओं के यूरेनियम संवर्धन स्तर, अनुसंधान एवं विकास और संचालन पर सीमाएं शामिल थीं। इसमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) द्वारा विस्तृत निगरानी और सत्यापन भी शामिल था, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान सैन्य उद्देश्यों के लिए परमाणु सामग्री का उपयोग नहीं कर रहा है।
वर्ष 2018 में ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका इस एकतरफा समझौते से बाहर निकल गया था, हालांकि इस बात का कोई आरोप नहीं लगाया गया था कि ईरान समझौते का उल्लंघन कर रहा है। ट्रम्प- जाहिराना तौर पर इजराइल के इशारे पर- यह महसूस करते थे कि ओबामा प्रशासन द्वारा किया गया समझौता बहुत सॉफ्ट था। वे ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम पर प्रतिबंध चाहते थे और उन्होंने ईरान को सौदे पर फिर से बातचीत को मजबूर करने के लिए ‘अधिकतम दबाव’ की नीति शुरू की।
अमेरिका के वॉकआउट के बाद ईरान ने भी इस समझौते का पालन करने से इनकार कर दिया। अब आईएईए का कहना है कि ईरान ने 275 किलो यूरेनियम को 60% शुद्धता तक समृद्ध किया है और अगर इसे 90% तक समृद्ध किया जाता है तो वह कम से कम छह परमाणु हथियार बनाने में सक्षम होगा।
ट्रम्प ईरान के आत्मसमर्पण से कम कुछ नहीं चाहते, जिसमें उसके अधिकांश परमाणु कार्यक्रम को खत्म करना शामिल होगा। ट्रम्प इजराइल के लिए अपने मजबूत समर्थन से प्रेरित हैं, जिसने पिछले साल के हवाई युद्ध में ईरानी सैन्य क्षमताओं को पहले ही काफी कम कर दिया है। लेकिन एक भी परमाणु हथियार इजराइल के अधिकांश हिस्से को नष्ट कर सकता है। तेल अवीव के पास भी गुप्त परमाणु हथियारों का भंडार है। लेकिन उसकी समस्या यह है कि इजराइल का आकार बहुत छोटा है। इसलिए वह अमेरिका पर ईरानी कार्यक्रम को खत्म करने के लिए दबाव डाल रहा है।
ईरान द्वारा समझौते में शामिल होने से इंकार करने की स्थिति में उस पर इजराइल और अमेरिका द्वारा मिलकर हमला किया जा सकता है। इस तरह के युद्ध के न केवल ईरान बल्कि पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र के लिए भयावह परिणाम होंगे।
बुशहर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर हमले से फारस की खाड़ी दूषित हो सकती है। जवाब में ईरानी मिसाइलें भी अमेरिका के खाड़ी सहयोगियों जैसे यूएई, कतर और बहरीन को तबाह कर सकती हैं। और तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी।
ट्रम्प इजराइल के लिए अपने मजबूत समर्थन से प्रेरित हैं, जिसने पिछले साल ईरानी सैन्य क्षमताओं को पहले ही काफी कम कर दिया है। लेकिन ईरान का एक भी परमाणु हथियार इजराइल के अधिकांश हिस्से को नष्ट कर सकता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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