मदर डेयरी के बाद अमूल दूध भी ₹2 महंगा: नई कीमतें 1 मई से लागू होंगी, गोल्ड ₹67 और ताजा ₹55 प्रति लीटर मिलेगा

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मदर डेयरी के बाद अमूल दूध भी ₹2 महंगा:  नई कीमतें 1 मई से लागू होंगी, गोल्ड ₹67 और ताजा ₹55 प्रति लीटर मिलेगा

मदर डेयरी के बाद अमूल दूध भी ₹2 महंगा: नई कीमतें 1 मई से लागू होंगी, गोल्ड ₹67 और ताजा ₹55 प्रति लीटर मिलेगा

नई दिल्ली2 घंटे पहले

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तीन महीने पहले 24 जनवरी को अमूल ने दूध के दाम 1 रुपए घटाए थे।

मदर डेयरी और वेरका ब्रांड के बाद अमूल ने भी देशभर में दूध के दाम में 2 रुपए लीटर की बढ़ोतरी कर दी है। नई कीमतें कल यानी गुरुवार, 01 मई से लागू होंगी।

अमूल स्टैंडर्ड, अमूल बफैलो मिल्क, अमूल गोल्ड, अमूल स्लिम एंड ट्रिम, अमूल चाय मजा, अमूल ताजा और अमूल काऊ मिल्क की कीमतों में 2 रुपए की बढ़ोतरी हुई है।

तीन महीने पहले अमूल ने दूध के दाम 1 रुपए घटाए थे

तीन महीने पहले 24 जनवरी को अमूल ने दूध के दाम 1 रुपए घटाए थे। इससे पहले पिछले साल लोकसभा चुनाव नतीजों के 3 दिन पहले अमूल ने दूध की कीमत में बढ़ोतरी की थी, तब अमूल गोल्ड दूध में 2 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी की गई थी। वहीं अमूल शक्ति और टी स्पेशल की कीमतों में भी बढ़ोतरी की गई थी।

वेरका और मदर डेरी ने भी दूध के दाम 2 रुपए बढ़ाए

एक दिन पहले मदर डेयरी और वेरका ब्रांड ने देशभर में दूध के दाम में 2 रुपए लीटर की बढ़ोतरी की थी। दोनों कंपनियों की नई कीमतें 30 अप्रैल से लागू हो चुकी हैं। इस बढ़ोतरी के बाद अब मदर डेयरी के फुल क्रीम दूध की कीमत ₹67 से बढ़कर ₹69 प्रति लीटर और टोंड मिल्क की ₹54 से बढ़कर ₹56 प्रति लीटर हो गई है।

वेरका ने कहा था कि फुल क्रीम दूध की कीमत 2 रुपए बढ़ेंगी, टोंड और डबल टोंड दूध भी 2 रुपए महंगे होंगे, छोटे पैक जैसे 500ml या 200ml वाले दूध के पैकेट पर बड़े पैकेट के आधार पर कीमत बढ़ेगी। दूध की क्वालिटी में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। पूरी खबर पढ़ें…

अमूल का मॉडल तीन लेवल पर काम करता है:

1. डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी

2. डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन

3. स्टेट मिल्क फेडरेशन

  • दूध का उत्पादन करने वाले गांव के सभी किसान डेयरी को-ऑपरेटिव सोसाइटी के मेंबर होते हैं। ये मेंबर रिप्रजेंटेटिव्स को चुनते हैं जो मिलकर डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन को मैनेज करते हैं।
  • डिस्ट्रिक्ट यूनियन मिल्क और मिल्क प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग करती है। प्रोसेसिंग के बाद इन प्रोडक्ट्स को गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड डिस्ट्रीब्यूटर की तरह काम कर मार्केट तक पहुंचाता है।
  • सप्लाई चेन को मैनेज करने के लिए प्रोफेशनल्स को हायर किया जाता है। दूध के कलेक्शन, प्रोसेसिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में डायरेक्ट-इनडायरेक्ट रूप से करीब 15 लाख लोगों को रोजगार मिलता है।
  • अमूल का मॉडल बिजनेस स्कूल्स में केस स्टडी बन गया है। इस मॉडल में डेयरी किसानों के कंट्रोल में रहती है। यह मॉडल दिखाता है कि कैसे प्रॉफिट पिरामिड के सबसे निचले हिस्से तक पहुंचता है।

लाखों लीटर दूध कैसे इकट्ठा होता है?

  • गुजरात के 33 जिलों में 18,600 मिल्क को-ऑपरेटिव सोसाइटीज और 18 डिस्ट्रिक्ट यूनियन हैं। इन सोसाइटीज से 36 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं, जो दूध का उत्पादन करते हैं।
  • दूध को इकट्ठा करने के लिए सुबह 5 बजे से ही चहल-पहल शुरू हो जाती है। किसान मवेशियों का दूध निकालते हैं और केन्स में भरते हैं। इसके बाद दूध को कलेक्शन सेंटर पर लाया जाता है।
  • सुबह करीब 7 बजे तक कलेक्शन सेंटर पर किसानों की लंबी लाइन लग जाती है। सोसाइटी वर्कर दूध की मात्रा को नापते हैं और फैट कंटेंट भी नापा जाता है। ये सिस्टम पूरी तरह से ऑटोमेटेड होता है।
  • हर किसान के दूध के आउटपुट को कंप्यूटर में सेव किया जाता है। किसानों की आमदनी दूध की मात्रा और फैट कंटेंट पर निर्भर करती है। किसानों को हर महीने एक निश्चित तारीख पर पेमेंट किया जाता है।
  • किसानों के लिए एक ऐप भी बनाया गया है, जिसमें उन्हें दूध की मात्रा और फैट से लेकर पेमेंट की जानकारी मिलती है। पेमेंट सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किया जाता है।

मवेशियों का दूध कैन्स में भरने के बाद कलेक्शन सेंटर पहुंचाया जाता है।

अमूल से जुड़े अन्य तथ्य

  • अमूल के पिरामिड मॉडल में सबसे नीचे मिल्क प्रड्यूसर्स आते हैं। खर्च होने वाले हर एक रुपए में से करीब 86 पैसे उसके मेंबर को जाते हैं और को-ऑपरेटिव बिजनेस चलाने के लिए 14 पैसे रखे जाते हैं। क्वांटिटी ज्यादा होने से ये रकम बहुत बड़ी हो जाती है।
  • डिस्ट्रिक्ट मिल्क यूनियन का प्रमुख चेयरमैन होता है, जो हर महीने मीटिंग करता है। यहां ये लोग को-ऑपरेटिव बिजनेस का जायजा लेते हैं। इसमें एक्सपेंशन प्लान, नई मशीनरी खरीदने और सदस्यों को बोनस देने जैसे मुद्दों पर चर्चा होती है।
  • प्रोडक्टिविटी में सुधार लाने के लिए मवेशियों की सेहत का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है। इसलिए, को-ऑपरेटिव मेंबर को मुफ्त ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें मवेशियों की देख-रेख कैसे करें और अन्य चीजें बताई जाती हैं। ट्रेनिंग प्रोग्राम से किसानों की बड़ी मदद होती है।
  • मवेशियों को दिन में तीन बार चारा और न्यूट्रिएंट्स दिया जाता है। यहां कैटल फीड प्लांट लगाए गए हैं। प्रोटीन, फैट, मिनरल को मिलाकर मवेशियों के लिए चारा बनता है। चारे बनाने वाले प्लांट की मशीनरी को डेनमार्क से इंपोर्ट किया गया है।
  • किसानों के लिए सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल की भी सुविधा है। को-ऑपरेटिव नए इक्विपमेंट खरीदने के लिए किसानों को सब्सिडी देती है। जैसे दूध निकालने वाली ऑटोमेटिक मशीन 40,000 की आती है। सब्सिडी से इसका दाम आधा हो जाता है।

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