भारत की जड़ी-बूटी का दुनियाभर में बज रहा डंका, WHO गुजरात में खोलेगा ग्लोबल सेंटर

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भारत की जड़ी-बूटी का दुनियाभर में बज रहा डंका, WHO गुजरात में खोलेगा ग्लोबल सेंटर

भारत की जड़ी-बूटी का दुनियाभर में बज रहा डंका, WHO गुजरात में खोलेगा ग्लोबल सेंटर

नई दिल्ली: कोरोना काल में ‘नमस्ते’ के लिए मजबूर हुए दुनियाभर के देशों ने भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ ऐसे ही नहीं कहा था। हमारे यहां के मसाले हों, पुदीना या नीम इसकी उपयोगिता सदियों से जगजाहिर है। हां, आधुनिकता के नाम पर थोड़ी धूल पड़ गई थी जो अब धुल रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैश्विक पारंपरिक औषधि केंद्र (India Traditional Medicine) की स्थापना के लिए भारत सरकार के साथ समझौता किया है। गुजरात के जामनगर में यह केंद्र स्थापित होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर प्रसन्नता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि भारत की पारंपरिक औषधि और बेहतर स्वास्थ्य के तरीके दुनियाभर में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। उन्होंने कहा यह डब्लूएचओ सेंटर हमारे समाज में तंदुरुस्ती बढ़ाने में काफी मदद करेगा।

ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रैडिशनल मेडिसिन की स्थापना से संबंधित समझौते पर स्विट्जरलैंड के जिनेवा में भारत सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। प्रधानमंत्री की मौजूदगी में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने 5वें आयुर्वेद दिवस पर 13 नवंबर, 2020 को इसकी घोषणा की थी। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक पारंपरिक औषधि केंद्र की स्थापना को 9 मार्च को मंजूरी दे दी।

WHO ने बताया है कि पारंपरिक चिकित्सा के लिए वैश्विक ज्ञान के इस केंद्र के लिए भारत सरकार ने 250 मिलियन डॉलर की सहायता की है। इसका उद्देश्य लोगों और पृथ्वी की सेहत में सुधार के लिए आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से दुनियाभर में पारंपरिक चिकित्सा का क्षमता का दोहन करना है। आज के समय में दुनिया की करीब 80 प्रतिशत आबादी पारंपरिक चिकित्सा का उपयोग करती है। आज की तारीख में 194 डब्लूएचओ सदस्य देशों में से 170 ने पारंपरिक चिकित्सा के उपयोग की सूचना दी है। इन देशों की सरकारों ने पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों और उत्पादों पर विश्वसनीय साक्ष्य और डेटा का एक निकाय बनाने में WHO के सपोर्ट के लिए कहा है।

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कम लोग ही जानते होंगे कि आज उपयोग में आने वाले लगभग 40 प्रतिशत फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट्स प्राकृतिक पदार्थों से प्राप्त होते हैं, जो जैव विविधता के संरक्षण के महत्व को सामने रखते हैं। उदाहरण के लिए, एस्पिरिन की खोज विलो पेड़ की छाल का इस्तेमाल करते हुए पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों पर आधारित है। इसी तरह गर्भनिरोधक गोली जंगली Yam (सूरन जैसा) पौधों की जड़ों से तैयार की गई थी और बच्चों में कैंसर का इलाज Rosy Periwinkle फूल पर आधारित है। मलेरिया के इलाज के लिए आर्टिमिसिनिन पर नोबेल पुरस्कार विजेता ने प्राचीन चीनी चिकित्सा ग्रंथों की समीक्षा से अपना शोध शुरू किया था।

WHO के महानिदेशक Dr Tedros Adhanom Ghebreyesus ने कहा कि दुनियाभर के लाखों लोगों के लिए कई बीमारियों के इलाज के लिए आज भी पारंपरिक चिकित्सा पहला विकल्प होती है। उन्होंने कहा कि हमारा मिशन सुरक्षित और प्रभावी इलाज सभी के लिए उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा कि यह नया चैप्टर पारंपरिक चिकित्सा के लिए तथ्य आधारित विज्ञान को मजबूती देगा। उन्होंने सहयोग के लिए भारत सरकार के प्रति आभार जताया है।

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