भगवान शिव के इस मंदिर की सीढियों से निकलती है संगीत की धुन, श्रावण मास में यहां एक बार जरूर जाना चाहिए | The melody of music emanates from the stairs airavateshwara mahadev te | Patrika News h3>
इन्द्र के हाथी के नाम पर है मंदिर का नाम
दक्षिण भारत के तमिलनाडू राज्य स्थित कुम्भकोणम के पास 3 किमी की दूरी पर स्थित ये मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व बल्कि अपनी अद्भुत नक्काशीदार वास्तुकला के लिए भी विख्यात है। इस मंदिर की विशालकाय संरचना को देखने दूर दूर से लोग आते हैं। 12 वीं शताब्दी का यह शिव मंदिर अपनी विशालता से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है। राजा चोल द्वतीय ने इस चमत्कारिक मंदिर को बनवाया था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यहां इन्द्र का हाथी ऐरावत भगवान भोलेनाथ की अराधना किया करता था। इसी कारण इस मंदिर को ऐरावतेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।
सीढियों से निकलती है संगीत की धुन
महादेव का मंदिर वैसे तो भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता ही है, लेकिन एक बात जो मंदिर को और भी ज्यादा खास बना देती है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास स्थित सीढियां, जहां संगीत के सातों सुर सुनाई पडते हैं। सीढियों पर लकडी की छड़ या पत्थर से रगडने पर उसमें संगीतमय ध्वनि सुनाई पडती है। हालांकि मंदिर की सीडियों पर कुछ रगढ़ने की आवश्यकता भी नहीं होती। सीढियों पर चलने मात्र से संगीत के सातों सुरों की धुन कानों तक पहुंच जाती है। इसकी इस विशालता को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।
हैरान कर देती है वास्तुकला
मंदिर की अद्भुत वास्तुकला श्रध्दालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। मंदिर में चारों तरफ शानदार पत्थरों की नक्काशी देखने को मिलती है। ऐसा भी माना जाता है, मंदिर को प्राचीन द्रविण शैली में बनाया गया था, जहां रथ संरचना भी देखने को मिल जाती है। मंदिर में अनेक देवी देवताओं जैसे, ब्रम्हा, विष्णु, सूर्य, अग्नि, सप्तमत्रिक, वायु, वरुण, लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती, गंगा यमुना जैसे कई वैदिक देवी देवता भी मौजूद है। इस प्राचीन मंदिर का कुछ हिस्सा टूट गया है, लेकिन अभी भी मंदिर का एक विशाल परिसर मजबूती के साथ खड़ा है।
ऐसे पहुंचे महादेव के दरबार में
कुंभकोणम स्थित शिव मंदिर का बाहरी इलाका शहर से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। शहर से 70 किमी की दूरी पर त्रिची अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी स्थित है। कुम्भकोणम का अपना रेलवे स्टेशन भी है, जहां से मदुरै, चेन्नई और त्रिची जैसे शहरों तक आसानी से आवागमन किया जा सकता है। इन बडे शहरों से मंदिर तक बस से सफर भी किया जा सकता है। वहीं मंदिर तक पहुंचने के लिए कैब और ऑटो की सुविधा भी उपलब्ध है।
यह भी पढे- बुधवार के दिन इन मंत्रों के जाप से प्रसन्न होते हैं गजानन, जीवन की हर बाधा से मुक्ति मिलने की है मान्यता
इन्द्र के हाथी के नाम पर है मंदिर का नाम
दक्षिण भारत के तमिलनाडू राज्य स्थित कुम्भकोणम के पास 3 किमी की दूरी पर स्थित ये मंदिर न केवल अपने धार्मिक महत्व बल्कि अपनी अद्भुत नक्काशीदार वास्तुकला के लिए भी विख्यात है। इस मंदिर की विशालकाय संरचना को देखने दूर दूर से लोग आते हैं। 12 वीं शताब्दी का यह शिव मंदिर अपनी विशालता से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है। राजा चोल द्वतीय ने इस चमत्कारिक मंदिर को बनवाया था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यहां इन्द्र का हाथी ऐरावत भगवान भोलेनाथ की अराधना किया करता था। इसी कारण इस मंदिर को ऐरावतेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा।
सीढियों से निकलती है संगीत की धुन
महादेव का मंदिर वैसे तो भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता ही है, लेकिन एक बात जो मंदिर को और भी ज्यादा खास बना देती है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास स्थित सीढियां, जहां संगीत के सातों सुर सुनाई पडते हैं। सीढियों पर लकडी की छड़ या पत्थर से रगडने पर उसमें संगीतमय ध्वनि सुनाई पडती है। हालांकि मंदिर की सीडियों पर कुछ रगढ़ने की आवश्यकता भी नहीं होती। सीढियों पर चलने मात्र से संगीत के सातों सुरों की धुन कानों तक पहुंच जाती है। इसकी इस विशालता को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।
हैरान कर देती है वास्तुकला
मंदिर की अद्भुत वास्तुकला श्रध्दालुओं को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। मंदिर में चारों तरफ शानदार पत्थरों की नक्काशी देखने को मिलती है। ऐसा भी माना जाता है, मंदिर को प्राचीन द्रविण शैली में बनाया गया था, जहां रथ संरचना भी देखने को मिल जाती है। मंदिर में अनेक देवी देवताओं जैसे, ब्रम्हा, विष्णु, सूर्य, अग्नि, सप्तमत्रिक, वायु, वरुण, लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती, गंगा यमुना जैसे कई वैदिक देवी देवता भी मौजूद है। इस प्राचीन मंदिर का कुछ हिस्सा टूट गया है, लेकिन अभी भी मंदिर का एक विशाल परिसर मजबूती के साथ खड़ा है।
ऐसे पहुंचे महादेव के दरबार में
कुंभकोणम स्थित शिव मंदिर का बाहरी इलाका शहर से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। शहर से 70 किमी की दूरी पर त्रिची अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा भी स्थित है। कुम्भकोणम का अपना रेलवे स्टेशन भी है, जहां से मदुरै, चेन्नई और त्रिची जैसे शहरों तक आसानी से आवागमन किया जा सकता है। इन बडे शहरों से मंदिर तक बस से सफर भी किया जा सकता है। वहीं मंदिर तक पहुंचने के लिए कैब और ऑटो की सुविधा भी उपलब्ध है।
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