भगवान बुद्ध के प्रतिमा के साथ खेली जाती है होली: रंगो से ही नहीं छठ में भी है अनूठी परंपरा, ग्रामीणों ने बताया मूर्ति का रहस्य – Nalanda News

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भगवान बुद्ध के प्रतिमा के साथ खेली जाती है होली:  रंगो से ही नहीं छठ में भी है अनूठी परंपरा, ग्रामीणों ने बताया मूर्ति का रहस्य – Nalanda News

भगवान बुद्ध के प्रतिमा के साथ खेली जाती है होली: रंगो से ही नहीं छठ में भी है अनूठी परंपरा, ग्रामीणों ने बताया मूर्ति का रहस्य – Nalanda News

भगवान बुद्ध के साथ ग्रामीणों ने खेली होली।

नालंदा जिले में एक अनूठी परंपरा दशकों से जारी है। जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से दस किलोमीटर दूर तेतरावां गांव में पाल कालीन बुद्ध की प्रतिमा के साथ होली का त्योहार मनाया गया। इस प्राचीन परंपरा में बुद्ध की प्रतिमा को सफेद चादर ओढ़ाकर उसे रंग-गुलाल लगाया

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गांव के वरिष्ठ निवासी राजीव रंजन बताते हैं कि यह परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितनी यह मूर्ति। हमारे पूर्वज पीढ़ियों से इस प्रतिमा के साथ होली मनाते आए हैं। यह हमारी धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विरासत का अनमोल हिस्सा है।

तेतरावां गांव में स्थित काले पत्थर की बुद्ध प्रतिमा भूमि स्पर्श मुद्रा में विराजमान है। होली के दिन इस प्रतिमा के साथ विशेष आयोजन होता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, इस दिन भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है और ग्रामीण बुद्ध प्रतिमा पर रंग-गुलाल लगाकर होली का समापन करते हैं।

भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ होली खेलने की परंपरा।

होली ही नहीं छठ में है अनूठी परंपरा

लोगों ने बताया कि सिर्फ होली ही नहीं, बल्कि छठ पर्व के दौरान भी यहां एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, छठ पर्व के दौरान सूर्य को अर्ध्य देने के पश्चात बुद्ध प्रतिमा को भी अर्ध्य देकर त्योहार मनाने की परंपरा है।

यह भी उल्लेखनीय है कि इस गाँव के लोग अन्य शुभ कार्यों की शुरुआत भी इस प्रतिमा की साफ-सफाई करके, मीठे रवे और घी का लेप लगाकर करते हैं। हालांकि, इस अनमोल धरोहर को अभी तक पुरातत्व विभाग का संरक्षण प्राप्त नहीं है।

होली गीतों पर झूमती ग्रामीणों की टोली।

स्थानीय निवासी ने कहा- अधूरा पड़ा है विकास

स्थानीय निवासी राजीव रंजन बताते हैं कि 2013 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भ्रमण के दौरान उन्होंने इस प्राचीन मूर्ति के इतिहास और महत्व को देखते हुए इसे पर्यटन स्थल घोषित किया था। इसी कड़ी में यहां एक भवन निर्माण करवा कर इस स्थल को विकसित करने की योजना बनी थी।

यह भवन निर्माण कार्य पर्यटन विभाग की उदासीनता के कारण अधूरा रह गया और उसके बाद इस दिशा में कोई ठोस कदम अब तक नहीं उठाया गया है।

प्रतिमा का ऐतिहासिक महत्व

इस प्रतिमा का ऐतिहासिक महत्व भी कम नहीं है। स्थानीय जानकारी के अनुसार, अंग्रेज़ों ने इस मूर्ति की तस्करी की कोशिश की थी, लेकिन विशालकाय प्रतिमा होने के कारण उन्हें सफलता नहीं मिली। स्थानीय निवासी मांग कर रहे हैं कि इस स्थल को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाए।

विदेशी पर्यटक भी बुद्ध प्रतिमा के दर्शन के लिए आते हैं। वे चाहते हैं कि सरकार इस प्राचीन धरोहर के संरक्षण और विकास के लिए आवश्यक कदम उठाए।

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