भगवान की सैकड़ों एकड़ जमीन लुटी… … सरकारी अफसर देखते रहे सारा खेल | Hundreds of acres of God’s land was looted | Patrika News h3>
जिले में करीब 300 छोटे-बड़े सरकारी मंदिर हैं जिनकी संपत्तियां भी हैं। सैकड़ों एकड़ जमीनें हैं जो बेशकीमती हो गई हैं। 1980 से 1990 के दशक शहर के कुछ जमीन के जादूगर जमीनों को ठिकाने लगाने के काम पर लग गए थे। पुजारियों को हथियार बनाया गया और निचली अदालत में मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक को लेकर दावा किया गया। बकायदा इस खेल में सरकारी महकमे के कुछ जवाबदार भी शामिल थे जो कोर्ट में समय पर जवाब नहीं देते थे और निचली अदालत से पुजारी के पक्ष में डिग्री हो जाती थी। उसके बाद मामला हाई कोर्ट में जाता था वहां भी वही स्थिति रहती।
ऐसे खेल में इंदौर जिले के सरकारी मंदिरों की दो-तीन सौ एकड़ जमीन लुट ली गई। ऐसा ही एक देपालपुर का श्रीखेड़ापति हनुमान मंदिर था जिसकी करीब 10 हेक्टेयर जमीन थी। वर्तमान में उसका बाजार मूल्य 25 करोड़ रुपए है। 14 जुलाई 2013 को हाई कोर्ट में अफसरों की लापरवाही के कारण सरकार केस हार गई थी। उसके बाद से किसी ने ध्यान नहीं दिया और सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की गई। समीक्षा के दौरान कलेक्टर मनीष सिंह को इस विषय की जानकारी आई। उन्होंने अपर कलेक्टर राजेश राठौर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने के काम पर लगाया।
कल प्रशासन को मामले में एक बड़ी सफलता हाथ लग गई। सुप्रीम कोर्ट में याचिका स्वीकार कर ली, जबकि हाई कोर्ट का फैसला आए को 9 साल हो गए। हालांकि 2020 में रिव्यू याचिका लगाई गई थी जिसे 6 साल से अधिक का समय होने की वजह से खारिज कर दिया था। अब याचिका के स्वीकार होना प्रशासन के लिए बड़ी सफलता है।
बचाने का हो प्रयास
आजादी के पूर्व राजाओं के शासन में कई मंदिरों का निर्माण हुआ था जिनको जमीनें भी आवंटित की थीं। उद्देश्य था कि जमीन पर खेती बाड़ी होने से होने वाली आय से मंदिरों का रखरखाव हो जाएगा। पुजारी का खाना-खर्चा भी निकल जाएगा, लेकिन पुजारियों ने भगवान की जमीन को ही अपना मान लिया। इंदौर में ऐसी सैकड़ों एकड़ जमीन पर पुजारियों ने अपना हज जमाने का प्रयास किया।
कई जगहों पर वे सफल भी हो गए। उन जमीनों की खरीद-फरोख्त होकर जमीन माफियाओं के नाम पर दर्ज हो गई। ऐसे सारे सरकारी मंदिरों व उनकी जमीनों की जांच की जाना चाहिए। उसमें हकीकत निकलकर सामने आ जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में उनकी याचिकाएं लगाकर बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
दोषियों पर कार्रवाई की जाए
इस मामले में प्रशासन ने दो तहसीलदारों की एक-एक वेतन वृद्धि रोक दी तो तीन पर परिनिंदा का शास्ति आधिरोपित किया गया। अन्य मंदिरों की जांच की जाएगी तो ये आंकड़ा भी सैकड़ा पार कर जाएगा। इंदौर में कई अफसरों ने ऐसे प्रकरणों में जमकर चांदी काटी। उन्हें करना कुछ नहीं था सिर्फ कोर्ट में उदासीन रहकर सरकार के पक्ष को कमजोर करना था। जमीन लुटवाने वाले कई अफसर डिप्टी कलेक्टर हैं।
जिले में करीब 300 छोटे-बड़े सरकारी मंदिर हैं जिनकी संपत्तियां भी हैं। सैकड़ों एकड़ जमीनें हैं जो बेशकीमती हो गई हैं। 1980 से 1990 के दशक शहर के कुछ जमीन के जादूगर जमीनों को ठिकाने लगाने के काम पर लग गए थे। पुजारियों को हथियार बनाया गया और निचली अदालत में मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक को लेकर दावा किया गया। बकायदा इस खेल में सरकारी महकमे के कुछ जवाबदार भी शामिल थे जो कोर्ट में समय पर जवाब नहीं देते थे और निचली अदालत से पुजारी के पक्ष में डिग्री हो जाती थी। उसके बाद मामला हाई कोर्ट में जाता था वहां भी वही स्थिति रहती।
ऐसे खेल में इंदौर जिले के सरकारी मंदिरों की दो-तीन सौ एकड़ जमीन लुट ली गई। ऐसा ही एक देपालपुर का श्रीखेड़ापति हनुमान मंदिर था जिसकी करीब 10 हेक्टेयर जमीन थी। वर्तमान में उसका बाजार मूल्य 25 करोड़ रुपए है। 14 जुलाई 2013 को हाई कोर्ट में अफसरों की लापरवाही के कारण सरकार केस हार गई थी। उसके बाद से किसी ने ध्यान नहीं दिया और सुप्रीम कोर्ट में अपील नहीं की गई। समीक्षा के दौरान कलेक्टर मनीष सिंह को इस विषय की जानकारी आई। उन्होंने अपर कलेक्टर राजेश राठौर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने के काम पर लगाया।
कल प्रशासन को मामले में एक बड़ी सफलता हाथ लग गई। सुप्रीम कोर्ट में याचिका स्वीकार कर ली, जबकि हाई कोर्ट का फैसला आए को 9 साल हो गए। हालांकि 2020 में रिव्यू याचिका लगाई गई थी जिसे 6 साल से अधिक का समय होने की वजह से खारिज कर दिया था। अब याचिका के स्वीकार होना प्रशासन के लिए बड़ी सफलता है।
बचाने का हो प्रयास
आजादी के पूर्व राजाओं के शासन में कई मंदिरों का निर्माण हुआ था जिनको जमीनें भी आवंटित की थीं। उद्देश्य था कि जमीन पर खेती बाड़ी होने से होने वाली आय से मंदिरों का रखरखाव हो जाएगा। पुजारी का खाना-खर्चा भी निकल जाएगा, लेकिन पुजारियों ने भगवान की जमीन को ही अपना मान लिया। इंदौर में ऐसी सैकड़ों एकड़ जमीन पर पुजारियों ने अपना हज जमाने का प्रयास किया।
कई जगहों पर वे सफल भी हो गए। उन जमीनों की खरीद-फरोख्त होकर जमीन माफियाओं के नाम पर दर्ज हो गई। ऐसे सारे सरकारी मंदिरों व उनकी जमीनों की जांच की जाना चाहिए। उसमें हकीकत निकलकर सामने आ जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में उनकी याचिकाएं लगाकर बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
दोषियों पर कार्रवाई की जाए
इस मामले में प्रशासन ने दो तहसीलदारों की एक-एक वेतन वृद्धि रोक दी तो तीन पर परिनिंदा का शास्ति आधिरोपित किया गया। अन्य मंदिरों की जांच की जाएगी तो ये आंकड़ा भी सैकड़ा पार कर जाएगा। इंदौर में कई अफसरों ने ऐसे प्रकरणों में जमकर चांदी काटी। उन्हें करना कुछ नहीं था सिर्फ कोर्ट में उदासीन रहकर सरकार के पक्ष को कमजोर करना था। जमीन लुटवाने वाले कई अफसर डिप्टी कलेक्टर हैं।