ब्लैकबोर्ड- मेरा आधा चेहरा देखकर भागते हैं लोग: एक दिन सोचा लिपस्टिक लगाकर ही रहूंगी, करीब से खुद को देखा तो रोने लगी

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ब्लैकबोर्ड- मेरा आधा चेहरा देखकर भागते हैं लोग:  एक दिन सोचा लिपस्टिक लगाकर ही रहूंगी, करीब से खुद को देखा तो रोने लगी

ब्लैकबोर्ड- मेरा आधा चेहरा देखकर भागते हैं लोग: एक दिन सोचा लिपस्टिक लगाकर ही रहूंगी, करीब से खुद को देखा तो रोने लगी

मैं जानती हूं लोग मुझे देखना पसंद नहीं करते। इसलिए हर वक्त मास्क लगा कर रहती हूं। मैं जब छोटी थी तो हर वक्त मास्क लगाकर रहना पसंद नहीं था। हमारे मोहल्ले में कोई मास्क नहीं लगाता, लेकिन मुझे लगाना पड़ता था।

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काश मैं भी ठीक होती तो बिना मास्क के घूमती। जब भी घर से बाहर निकलती तो लोग मुझे घूर कर देखते हैं। कोई हंसता है तो कोई देखता ही रह जाता। मुझे ऐसा लगता कि मैं उनके बीच की नहीं हूं बल्कि इनसे अलग हूं।

कैंसर से ज्यादा परेशान मैं लोगों के सवालों से हो जाती हूं। कभी-कभी लोगों के सवालों से बचने के लिए कह देती हूं कि मुझे टीबी है, फिर वो खुद ही मुझसे दूर भाग जाते हैं।

ब्लैकबोर्ड में आज स्याह कहानी उन कैंसर पीड़ितों की जो अपने बदलते लुक्स की वजह से आत्म सम्मान खो देते हैं। शारीरिक बदलाव की वजह से लोगों के बीच असहज महसूस करते हैं…

दिल्ली की रहने वाली 15 साल की मुस्कान जब हंसती हैं, तो उसकी बड़ी-बड़ी कजरारी आंखों में एक अलग ही आकर्षण होता है। शायद इसी आकर्षण से मोहित होकर उनकी मां ने मुस्कान नाम दिया होगा।

माथे पर लगी छोटी सी काली बिंदी उनके सांवले रंग पर बहुत जंचती है। मुस्कान ने मास्क लगाया हुआ है, लेकिन जब वो मास्क हटाती हैं तो उनकी मुस्कान के पीछे छिपा दर्द साफ नजर आता है। मुस्कान को माउथ कैंसर है।

मुस्कान कहती हैं जबसे होश संभाला तब से मुझे कैंसर है। अक्सर मेरे अम्मी-अब्बू में मुझे लेकर खूब लड़ाई हुआ करती थी। अब्बू नहीं चाहते थे कि अम्मी मेरा इलाज करवाएं। अम्मी से कहते थे कि इसका इलाज मत करवा, अगर ये चली भी जाएगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बाकी और बच्चे भी तो हैं। उनके ये शब्द मैं कभी नहीं भूल सकती। उनकी नजरों में मैने कभी अपने लिए प्यार नहीं देखा।

मुस्कान कहती हैं कि मुझे हर वक्त मास्क लगाना पड़ता है, वरना लोग मेरा चेहरा देखकर हंसते हैं।

मुस्कान लड़खड़ाती आवाज में कहती हैं कि एक दिन वो मेरी बीमारी के चलते हमें छोड़कर गांव चले गए। वहां दूसरी शादी कर ली। मेरी अम्मी घरों में झाड़ू पोछा लगाकर हम भाई बहनों को पाल रही हैं। एक बाप छोड़कर जा सकता है पर एक मां कभी अपने बच्चे को छोड़कर नहीं जा सकती। अब वही मेरे लिए अम्मी और अब्बू दोनों हैं।

मुस्कान कहती हैं, कभी-कभी अपनी मां को देखकर मुझे बहुत दुख होता है। इतना काम करने के बाद भी वो मेरा इलाज करवाने अस्पताल ले जाती हैं और घंटों लाइन में लगी रहती हैं। हर साल ईद पर मुझे बहुत बुरा लगता है, सबके पापा नए कपड़े दिलवाते हैं, घुमाने ले जाते हैं, ईदी देते हैं।

मेरे पापा तो कभी फोन तक नहीं करते, पैसे भेजना तो दूर की बात है। अब तक तो हमें वो भूल भी गए होंगे। उनका अब एक अलग परिवार है।

आंखों में गहरी उदासी का भाव लिए मुस्कान कहती हैं बचपन से मुझे कैंसर है, इसलिए मैं सामान्य बच्चों की तरह नहीं रह पाती। जब भी मैं पार्क में बच्चों को झूला झूलते देखती हूं तो मुझे बहुत दुख होता है। मेरा मन भी झूलने का करता है, लेकिन मैं झूल नहीं सकती। अगर चोट लग गई तो बहुत दिक्कत हो जाएगी क्योंकि मेरा इलाज चल रहा है।

मुस्कान कहती हैं कि हम तीन बहनें और दो भाई हैं। मैं सबसे बड़ी हूं। अपने छोटे बहन-भाई को स्कूल जाते देख मैं अक्सर रोने लगती हूं। उनको पढ़ता देख मेरा भी मन होता है कि मैं भी पेंसिल उठाकर कुछ लिखूं। अम्मी ने 4 बार दिल्ली के अलग-अलग स्कूलों में मेरा एडमिशन करवाने की कोशिश की लेकिन स्कूल वालों ने साफ मना कर दिया।

आंखों में आंसू लिए मुस्कान कहती हैं स्कूल में सिर्फ उन बच्चों का एडमिशन होता है जो बिल्कुल ठीक होते हैं। मेरे जैसे बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है। अगर कभी पढ़ने का मौका मिला तो मैं फौज में जाऊंगी और अपने देश की रक्षा करुंगी। मुझे अच्छा लगता है जब मैं महिलाओं को वर्दी पहन ड्यूटी पर जाते हुए देखती हूं। उम्मीद भरी निगाहों से मुस्कान कहती है कि मैं एक दिन जब ठीक हो जाऊंगी तो खूब खेलूंगी।

मुस्कान कहती हैं कि कई बार मैं सबकुछ भूलकर नॉर्मल लाइफ जीना चाहती हूं, लेकिन ये समाज भूलने नहीं देता।

दूसरी लड़कियों को लिपस्टिक लगाता देख मेरा भी मन करता है। एक दिन मैंने ठान ली कि लिपस्टिक लगाना सीखकर रहूंगी लेकिन अपनी शक्ल शीशे में देखकर मैं फूट-फूटकर रोने लगी। काश मैं भी ठीक होती तो सज-संवर कर रहती। अब मुझे मन मारकर जीने की आदत हो गई है। मेरे मोहल्ले की आंटियां बोलती हैं कि तेरी शादी नहीं होगी, पहले जब हुई थी तो कितनी सुंदर थी और अब कैसी हो गई।

मैं घर पर आकर रोने लगती हूं। अम्मी हमेशा मुझे समझाती हैं कि सबके लिए ऊपर वाला किसी न किसी को बनाता है। तुम्हारे लिए भी कोई होगा। अम्मी के समझाने पर मैं शांत होकर सब कुछ भूल जाती हूं लेकिन ये समाज मुझे कुछ भी भूलने नहीं देता।

कैंसर जैसी बीमारी भुलाई नहीं जा सकती। ये एहसास मुझे 38 साल की सुमन से मिलकर हुआ।

सुमन जब 13 साल की थी तब उनको ब्लड कैंसर हो गया था। सुमन कहती हैं की शुरू का एक साल तो बहुत मुश्किल गुजरा। मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जब मेरी कीमोथेरेपी शुरू हुई मेरे बाल झड़ने लगे। डॉक्टर ने मुझे बाल कटवाने के लिए कहा लेकिन मैंने साफ मना कर दिया। मुझे अपने बालों से बहुत प्यार था।

घर आकर मैंने बाल धोए तो पानी के साथ बाल भी निकलते चले गए। उस दिन से मुझे एहसास हो गया था कि अब बाल नहीं बचेंगे। अपने बाल देख-देख कर मैं हर दिन रोती थी। धीरे-धीरे मैंने अपने दोस्तों से मिलना बंद कर दिया। शीशा देखना बंद कर दिया। जब भी घरवालों से अपने लुक्स के बारे में बात करती तो सब यही कहते पहले ठीक हो जाओ।

आखिर एक दिन मैं कैंसर से जंग जीत गई। फिर शादी हुई और मैंने बेटी को जन्म दिया। बेटी 13 साल की हुई तो बहुत बीमार रहने लगी। पता चला कि उसको ब्लड कैंसर है। ये सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई की मेरी बेटी को भी वही बीमारी हो गई जो कभी मुझे थी।

धीरे-धीरे मेरी बेटी का इलाज शुरू हुआ, डॉक्टर्स ने जब फैमिली हिस्ट्री के बारे में पूछा तो मुझे बताना पड़ा कि मुझे भी कैंसर था। डॉक्टर्स ने साफ कहा कि आपकी वजह से ही बेटी को कैंसर हुआ। ये बात मेरे पति को भी पता चल गई। शादी के वक्त मेरे घरवालों ने कैंसर की बात छिपा ली थी। मेरे माता पिता को लगा कि अगर कैंसर का जिक्र करेंगे तो शायद मेरी शादी न हो।

सुमन कहती हैं कि मेरे पति मुझसे नाराज रहने लगे। वो कहते थे कि तुमने मुझे धोखा दिया है और अब हमारी बेटी भुगत रही है। वक्त के साथ मेरे पति की नाराजगी कम हुई क्योंकि हमें अपनी बेटी पर भी ध्यान देना था।

मेरी बेटी के इलाज के शुरुआती साल में उसकी स्थिति बहुत खराब रही। उसको 4 बार वेंटिलेटर पर रखा गया। एक बार तो डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। उसके बाल झड़ने लगे, उसकी स्किन काली पड़ने लगी। दवाइयों के साइड इफेक्ट होने लगे। वो कभी भी बेहोश हो जाती थी। मेरी बेटी डिप्रेशन में चली गई थी।

कई बार वो कहती थी कि मेरे बाल झड़ गए हैं, मुझे विग दिलवाओ। हमने विग दिलवाई भी लेकिन उसका मटेरियल गर्मियों में चुभता था। बेटी पूछती थी कि मां मुझे क्या हो गया। हम इसको मोटिवेट करते, इसके साथ खेलते थे, बाहर घुमाने ले जाते, हमने कभी इसको ये फील ही नहीं होने दिया कि ये बीमार है। हमने इसका घर पर ही ट्यूशन लगवा दिया।

सुमन की 13 साल की बेटी को ब्लड कैंसर है। जब बाल झड़ने लगे तो बेटी ने विग लगवाने के लिए कहा। अब गर्मियों के मौसम में विग उसे चुभती है।

कभी उसके दोस्त लुक्स को लेकर कुछ कह देते तो पूरा-पूरा दिन गुमसुम बैठी रहती। शीशा देखती तो रोने लगती। उसे इस तरह परेशान देखकर मुझे अपने दिन याद आ जाते थे। धीरे-धीरे समझ गई कि उसको कैंसर है और ये सब झेलना पड़ेगा।

कैंसर के मरीज अक्सर अपने बदलते लुक्स की वजह से आत्म सम्मान की कमी महसूस करते हैं। शारीरिक बदलाव जैसे बाल झड़ना, चेहरे का रंग काला पड़ जाना और शरीर का आकार बदल जाना उन्हें असुरक्षा की भावना से भर देता है।

28 साल के सागर भी इस असुरक्षा के दौर से गुजर रहे हैं। ढाई साल पहले एक दिन उन्हें अचानक चक्कर आया और वो बेहोश होकर गिर गए। तब से सागर की जिंदगी आम नहीं रही। सागर कहते हैं 27 जुलाई 2022 आम दिनों की तरह मैं फोर्टिस हॉस्पिटल में ड्यूटी कर रहा था। काम करते-करते अचानक मैं चक्कर खाकर गिर पड़ा।

इलाज करवाने पर पता चला कि मुझे थर्ड स्टेज ब्रेन ट्यूमर कैंसर है। धीरे-धीरे इलाज शुरू हुआ। मेरे बाल झड़ने लगे, चेहरे का रंग काला पड़ने लगा और मेरा वजन तेजी से घटने लगा। जब दोस्तों को पता चला तो वो कहते कि तू न तो सिगरेट पीता, न दारु। कभी किसी प्रकार का नशा भी नहीं करता फिर तुझे कैंसर कैसे हो गया। हम तो सब करते हैं फिर भी हम ठीक हैं, हमें कुछ न हुआ। ये बातें सोच-सोच कर मैं डिप्रेशन में चला गया।

सागर की मां कहती हैं कि कैंसर ने मेरे बेटे को पूरी तरह बदल दिया। स्किन काली पड़ गई, वजन भी तेजी से घटा है।

मुझे मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ी। आज भी मेरे यार दोस्त जब मिलते हैं तो बातों-बातों में मेरे लुक्स को लेकर कमेंट पास कर देते हैं। वो लोग बिना सोचे समझे मेरे मुंह पर बहुत ही आसानी से बोल देते हैं कि यार तू पहले कैसा था और अब कैसा हो गया।

पहले मैं इस तरह की बातें सुनकर दुखी हो जाता था, लेकिन जब डिप्रेशन का इलाज शुरू हुआ तो खुद को संभालना शुरू किया। मुझे लगता है कि पहली लड़ाई मेरी कैंसर से है, मुझे इसको हराना है। मेरे लुक्स तो बाद में ठीक हो ही जाएंगे। अब मैं पॉजिटिव सोच के साथ खुश रहने की कोशिश करता हूं।

हम जितना बीमारी से नहीं टूटते, उतना हम समाज की निगेटिव बातों से टूट जाते हैं। टेंशन लेकर हम कई और बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। कई बार दोस्त ये भी बोल देते हैं कि तू शादी कर ले अभी तक तूने शादी क्यों नहीं की। तब मैं उनको यही समझाता हूं कि भाई अभी तो मैं बहुत बड़ी समस्या से जूझ रहा हूं। मैं शादी करके किसी और की जिंदगी खराब नहीं कर सकता।

सागर की मां कहती हैं कि बीमारी से पहले मेरा बेटा बहुत अच्छा दिखता था। वो 19 हजार रुपए महीना का कमाता था। हमारी जिंदगी में सबकुछ ठीक था। मेरे चार बच्चे हैं तीन लड़के और एक लड़की। 2007 में मेरे पति की एक्सीडेंट में मौत हो जाने के बाद बहुत मुश्किल से अपने बच्चे पाले।

मेरा बड़ा बेटा भी ज्यादा पढ़ नहीं पाया। घर का खर्च चलाने के लिए वो ऑटो चलाने लगा। जब सागर की जॉब लगी तो हमें लगा कि शायद अब जिंदगी पटरी पर आएगी, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। अब सागर बेरोजगार है। बमुश्किल ऑटो चलाकर मेरा बड़ा बेटा घर चला रहा है।

सागर के सिर के जिस हिस्से में ऑपरेशन हुआ वहां अब तक ठीक से बाल नहीं आए हैं।

कभी-कभी मैं ये सोचती हूं कि भगवान ने मेरे बेटे को ये दुख क्यों दे दिया, इससे अच्छा ये बीमारी मुझे हो जाती तो मैं झेल लेती। शुरुआत में जब इसके बाल झड़ते थे तो ये डॉक्टर से कहता था तो डॉक्टर अलग अलग तरह के शैंपू लिख देते थे, लेकिन उनसे कोई खास फर्क नहीं पड़ा। आज भी शीशे में देखकर कहता है कि मां जिस हिस्से में ऑपरेशन हुआ है वहां बाल ठीक से नहीं आए। जब ठीक हो जाऊंगा तब भी बाल आएंगे या नहीं। अगर नहीं आए तो कितना अजीब लगेगा। मैं उसे समझाती रहती हूं।

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