बोतल में टॉयलेट करने को मजबूर लोको-पायलट: रेलवे ने ठुकराई ब्रेक की मांग, महिला स्टाफ बोलीं- 8-8 घंटे बिना टॉयलेट ड्यूटी, पीरियड्स में क्या करें

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बोतल में टॉयलेट करने को मजबूर लोको-पायलट:  रेलवे ने ठुकराई ब्रेक की मांग, महिला स्टाफ बोलीं- 8-8 घंटे बिना टॉयलेट ड्यूटी, पीरियड्स में क्या करें

बोतल में टॉयलेट करने को मजबूर लोको-पायलट: रेलवे ने ठुकराई ब्रेक की मांग, महिला स्टाफ बोलीं- 8-8 घंटे बिना टॉयलेट ड्यूटी, पीरियड्स में क्या करें

इस स्टोरी की शुरुआत दो लोको पायलट यानी ट्रेन ड्राइवरों के बयान से, एक मेल और दूसरी फीमेल, दोनों की परेशानियां अलग-अलग हैं, लेकिन वजह एक। परेशानी और वजह उन्हीं से जान लीजिए…

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‘हम जो ट्रेन चलाते हैं, उनमें हमारे लिए टॉयलेट नहीं होते। कई बार ट्रेन लगातार 3-4 घंटे चलती हैं। इस दौरान टॉयलेट जाना हो, तो बहुत परेशानी हो जाती है। अगला स्टेशन आने तक हम यूरिन रोके रहते हैं। बहुत से मेल लोको पॉयलट पॉलिथीन और बोतल में यूरिन कर लेते हैं और बाहर फेंक देते हैं, लेकिन फीमेल एम्पलाई क्या करेंगी।’-संतोष सिंह, लखनऊ डिवीजन

‘टॉयलेट का प्रेशर तो हम रोक भी लें, लेकिन पीरियड्स में बहुत दिक्कत हो जाती है। वॉशरूम हो तो कम से कम चेंज तो कर सकते हैं। बिना चेंज किए लगातार 8-10 घंटे रहना मुश्किल है। इमरजेंसी में इंजन के अंदर जाकर सैनिटरी नेपकिन चेंज करते हैं।’ – अंजलि, सीनियर असिस्टेंट लोको पायलट, रांची डिवीजन

ये अंजलि हैं, 12 साल से ट्रेन चला रही हैं। लोको पायलट को होने वाली समस्याओं के लिए रेल मंत्री से मिल चुकी हैं, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।

इंडियन रेलवे के लोको पायलट लंबे अरसे से ड्यूटी के दौरान टॉयलेट और खाना खाने के लिए ब्रेक मांग रहे हैं। झारखंड की राजधानी रांची में तो वे 4 अप्रैल से हड़ताल पर हैं। लोको पायलट की मांगों पर रेलवे ने 26 जुलाई, 2024 को एक कमेटी बनाई थी। कमेटी को एक महीने में रिपोर्ट देनी थी, लेकिन अब 9 महीने बाद उसकी सिफारिशें सामने आई हैं।

कमेटी ने लोको पायलट की मांगें खारिज कर दी हैं। कहा कि सेफ्टी और टाइमिंग की वजह से ब्रेक देना मुमकिन नहीं है। एक मामला इंजन में कैमरे लगाने का भी था। लोको पायलट प्राइवेसी का हवाला देकर इसका विरोध कर रहे थे। कमेटी ने इसे प्राइवेसी का उल्लंघन नहीं माना है।

रेलवे बोर्ड ने 4 अप्रैल को सभी जोनल मैनेजर को कमेटी की सिफारिशें लागू करवाने के लिए लेटर लिखा है। लेटर सामने आते ही लोको पायलट नाराज हो गए। दैनिक NEWS4SOCIALने इस मसले पर अलग-अलग डिवीजन के लोको पायलट से बात कर उनकी परेशानी समझी। साथ ही एक्सपर्ट्स से भी पूछा कि वे कमेटी के फैसले को कैसे देखते हैं।

संतोष सिंह लोको पायलट, लखनऊ डिवीजन, उत्तर प्रदेश संतोष सिंह को रेलवे में नौकरी करते हुए करीब 30 साल हो चुके हैं। वे काम के घंटे और ब्रेक को लेकर नाराज हैं। उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी टॉयलेट ब्रेक न मिलने से है। वे कहते हैं, ‘जहां ट्रेन 5 या 10 मिनट के लिए खड़ी होती है, वहीं कोशिश करते हैं कि जल्दी से कुछ खा लें और टॉयलेट कर लें। मैं लगातार लंबी दूरी वाली ट्रेनें चलाता हूं। यूरिन रोकने से किडनी पर बुरा असर होता है। सरकार को हमारे ड्यूटी आवर्स कम करने चाहिए।’

बीके तिवारी लोको पायलट, बिलासपुर डिवीजन, छत्तीसगढ़ बीके तिवारी पहले मालगाड़ी चलाते थे, अब पैसेंजर ट्रेन में लोको पायलट हैं। ड्यूटी के बारे में कहते हैं, ‘11-12 घंटे की ड्यूटी तो आराम से हो जाती है। लोकोमोटिव में सीटें ऐसी हैं, जिन पर लगातार बैठने से नसें खिंच जाती हैं।’

वे बताते हैं, ‘आम लोगों के लिए नियम तय हैं कि 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे परिवार के लिए। हमें सिर्फ 30 घंटे का वीकली रेस्ट मिलता है। हमारे लिए बोला जाता है कि ये सेफ्टी कैटेगरी में हैं, इन्हें रेस्ट की ज्यादा जरूरत है। 30 घंटे का पीरियॉडिक रेस्ट भी हर जगह चार के बदले ढाई-तीन दिन ही मिल रहा है। लोको पायलट की कमी है, इसलिए काम का बोझ हमारे ऊपर है। हम ठीक से सो भी नहीं पा रहे हैं।’

झुन्नू कुमार मुजफ्फरपुर, ईस्ट-सेंट्रल रेलवे, बिहार झुन्नू कुमार 15 साल से लोको पायलट हैं। अभी बिहार के मुजफ्फरपुर में क्रू कंट्रोलर का काम करते हैं। वे कहते हैं, ‘लोको पायलट्स को 9 से 11 घंटे तक काम करना पड़ रहा है। इसके बाद वे 8 घंटे आराम करते हैं। फिर उन्हें 9-10 घंटे के लिए काम पर लगा दिया जाता है। ये सेफ्टी के लिहाज से ठीक नहीं है।’

झुन्नू कुमार आगे कहते हैं, ‘लोको पायलट 15 से 17 घंटे भी काम कर रहे हैं। मान लीजिए कि दिल्ली से कोई ट्रेन लेकर 8-9 घंटे में जम्मू पहुंचा। जम्मू आउट स्टेशन है, इसलिए उसे 8 घंटे ही रेस्ट मिलेगा। फिर 8 घंटे के बाद वो ट्रेन वापस लेकर आएगा। यानी फिर 8-9 घंटे ट्रेन चलाएगा। इस तरह वो 24 घंटे में दो बार ड्यूटी कर रहा है।’

कैलाश चंद लोको पायलट, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ कैलाश चंद को ड्यूटी करते हुए 29 साल हो चुके हैं। वे कहते हैं कि समय से ब्रेक नहीं मिलता इसलिए लोको पायलट बीमार रहने लगे हैं। कई लोग ये जॉब छोड़ना चाहते हैं। यूरिन कंट्रोल करके कोई अगर ट्रेन चलाता रहेगा, तो उसका गलत असर पड़ेगा।

थकान से परेशान होकर ट्रेन खड़ी की, एक साल सैलरी नहीं बढ़ी सियालदह डिवीजन में मालगाड़ी चलाने वाले एक लोको पायलट ने हमसे बात की। पहचान न बताते हुए वे कहते हैं, ‘मैं महीने में कई बार 12 घंटे से ज्यादा ड्यूटी करता हूं। इतनी लंबी ड्यूटी करने के बाद सिर्फ 8 घंटे का रेस्ट मिलता है। हमारे डिवीजन में स्टाफ की कमी है। इसलिए ऐसा हो रहा है। हेडक्वार्टर रेस्ट 16 घंटे है, लेकिन समय पूरा होने से 2 घंटे पहले ही कॉल आ जाता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि आप घर में जाकर सोए और कॉल आ गई।’

‘मुझसे लगातार चार नाइट ड्यूटी करवाई जाती हैं। रेलवे के सारे स्टाफ को 48 घंटे का वीकली रेस्ट मिलता है, लेकिन लोको पायलट्स को सिर्फ 30 घंटे मिलते हैं। इसके लिए भी झगड़ा करना पड़ता है। मेरा अपना अनुभव है। कई बार आप झल्ला जाते हैं। एक बार मैंने थकान से परेशान होकर रात में ढाई बजे ट्रेन रोक दी थी। मुझे चार्जशीट कर दिया गया। एक साल तक मेरी सैलरी नहीं बढ़ी।‘

अंजलि सीनियर असिस्टेंट लोको पायलट, रांची अंजलि 12 साल से ट्रेन चला रही हैं। वे रांची में चल रही लोको पायलट्स की हड़ताल में शामिल होती हैं। अंजलि बताती हैं, ‘ड्यूटी के दौरान टॉयलेट जाना हो, तो कोई सुविधा नहीं है। अगर ट्रेन रोक दें तो मैनेजमेंट कहता है कि आप समय का नुकसान कर रहे हैं।’

रांची के हटिया में DRM ऑफिस के बाहर लोको पायलट हड़ताल कर रहे हैं। हड़ताल के साथ लोको पायलट्स काम भी कर रहे हैं।

अंजलि आगे कहती हैं, ‘प्रेग्नेंसी के दौरान भी महिला लोको पायलट्स की ड्यूटी लगाई जा रही है। रांची डिवीजन में दो लोको पायलट ने प्रेग्नेंसी के वक्त ऑफिस ड्यूटी मांगी थी, लेकिन उन्हें नहीं मिली। महिलाएं प्रेग्नेंसी के 4-5 महीने तक रनिंग स्टाफ के तौर पर ड्यूटी कर रही हैं।’

अंजलि अक्टूबर, 2024 में लोको पायलट्स के साथ रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मिली थीं। अंजलि बताती हैं, ‘मैंने उनसे कहा कि हमें इंजन के नीचे टॉयलेट करना पड़ता है क्योंकि बहुत देर तक ट्रेन रोककर दूर नहीं जा सकते। हमारे ऊपर बहुत प्रेशर है। टाइम काउंट होता है कि गाड़ी कितनी देर तक रुकी रही। महिलाएं प्रेग्नेंसी में चार-पांच महीने तक ड्यूटी कर रही हैं। इस पर उन्होंने कहा था कि बहन आप भरोसा कीजिए, सभी समस्याओं को दूर करने की कोशिश करेंगे।’

रीना सिंह लोको पायलट, कोटा डिवीजन, राजस्थान रीना 20 साल से लोको पायलट हैं। वे कहती हैं, ‘रेलवे ने महिला रनिंग स्टाफ की भर्ती कर ली है, लेकिन उन्हें जरूरी सुविधाएं नहीं दी जा रहीं। 8 घंटे तक हम वॉशरूम नहीं जा पाते। लोकोमोटिव में वॉशरूम नहीं है, इसलिए कम पानी पीते हैं।’

‘हमारे ड्यूटी आवर्स तय नहीं हैं। सोचकर जाते हैं कि 5 घंटे की ड्यूटी है, फिर पता चलता है कि दो दिन बाद वापस जा पाएंगे।’

आशिमा मुरादाबाद डिवीजन, उत्तर प्रदेश आशिमा ने 2021 में नौकरी जॉइन की थी। दो साल पहले वे लोको केबिन से उतरते हुए गिर गईं। इंजरी की वजह से काम नहीं कर रही हैं। आशिमा कहती हैं, ‘एक बार पीरियड्स के दौरान मैं सैनिटरी नैपकिन नहीं बदल पाई थी। इन वजहों से हम मानसिक तौर पर बहुत परेशान रहते हैं। बेबस महसूस करते हैं। पहले महिलाएं इंजन में पीछे जाकर सैनिटरी पैड चेंज कर लेती थीं। अब वहां भी कैमरे लगा दिए गए हैं।’

‘वॉशरूम जाने के लिए स्टेशन मास्टर को बताना पड़ता है’ मुंबई डिवीजन में काम करने वाली एक महिला लोको पायलट 9 साल से रेलवे में हैं। मालगाड़ी चलाती हैं। अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहतीं। वे बताती हैं, ‘अगर टॉयलेट नहीं करेंगे, तो काम पर असर होगा। पूरे वक्त दिमाग में चलता रहेगा कि वॉशरूम जाना है। आप हमें इंसान नहीं समझ रहे हैं। हम रोबोट नहीं हैं।’

‘मालगाड़ी का कुछ फिक्स नहीं होता कि कब कहां रुकेगी। कभी लूप लाइन में खड़ी करते हैं, तो वहां से स्टेशन करीब 1 किलोमीटर होता है। हमें पहले स्टेशन मास्टर को बताना होता है कि वॉशरूम यूज करना है।’

काम के घंटों पर वे कहती हैं-

आमतौर पर 12 घंटे की ड्यूटी हो ही जाती है। महीने में सिर्फ 10 दिन ही 8-9 घंटे की ड्यूटी होती है।

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4 दिसंबर, 2024 को रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा में बताया था कि रेलवे में 2037 महिला लोको पायलट काम कर रही हैं। ये नंबर 31 मार्च 2024 तक के थे। रेलवे में कुल महिला कर्मचारियों की संख्या 99,809 है।

हमने जितनी भी महिला लोको पायलट्स से बात की, सभी ने कहा कि बुनियादी सुविधाएं न होने से काम करना मुश्किल हो रहा है। हमने रेलवे का पक्ष जानने के लिए अधिकारियों से बात की, लेकिन उन्होंने जवाब देने से इनकार कर दिया।

‘या तो लोको पायलट को ब्रेक दें या वर्किंग आवर कम करें’ फरवरी, 2025 में मालदा डिवीजन में एक असिस्टेंट लोको पायलट महारानी कुमारी की ट्रेन से टकराकर मौत हो गई थी। बताया जाता है कि वे टॉयलेट के लिए इंजन से नीचे उतरी थीं। लौटने के लिए ट्रैक पार कर रही थीं, तभी नवद्वीप धाम एक्सप्रेस से टकरा गईं। इसके बाद लोको पायलट्स एसोसिएशन ने कई दिन तक प्रदर्शन किया था।

देशभर में रेलवे ड्राइवर्स का संगठन ‘ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन’ रेलवे के हालिया फैसले से नाराज है। 9 अप्रैल को लोको पायलट्स ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया था।

एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी एसपी सिंह कहते हैं, ‘रेलवे का फैसला एकतरफा है। किसी का सुझाव नहीं माना गया। लोको पायलट्स 12-13 घंटे काम करते हैं। आप अगर खाने और टॉयलेट के लिए ब्रेक नहीं देंगे, तो हम नौकरी नहीं कर पाएंगे। बीमार पड़ जाएंगे। सरकार को फिर से सोचना चाहिए। पद खाली होने से लोको पायलट के ड्यूटी आवर्स ज्यादा हो रहे हैं। उन्हें आराम नहीं मिल पा रहा है।’

संगठन के जॉइंट सेक्रेटरी जनरल आरके राणा कहते हैं कि लोको पायलट्स ने 10 मिनट ब्रेक की मांग की थी। अगर ऐसा नहीं होता है तो हमारा वर्किंग आवर्स कम कर दें। अभी लोको पायलट्स या असिस्टेंट लोको पायलट्स के 40% पद खाली हैं। इसलिए 60 लोगों को 100 लोगों के बराबर काम करना पड़ रहा है।’

एक्सपर्ट बोले- खाने के ब्रेक के हिसाब से ट्रेन शेड्यूल नहीं कर सकते रेलवे में 38 साल नौकरी करने वाले सुधांशु मणि चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के जनरल मैनेजर रह चुके हैं। उन्हें ‘वंदे भारत’ ट्रेन का क्रिएटर माना जाता है। सुधांशु मणि कहते हैं, ‘रेलवे ड्राइवर्स का कम्फर्ट देखा जाना जरूरी है। टॉयलेट ब्रेक या मील ब्रेक देना ठीक बात तो नहीं है।’

‘ट्रेन चलने के दौरान या स्टेशन पर रुकने के दौरान ड्राइवर खाना खा सकते हैं। ट्रेन ऐसे शेड्यूल नहीं की जा सकती कि उन्हें खाने के लिए ब्रेक दिया जाए। ये भी है कि सारे लोकोमोटिव में टॉयलेट बनाने का टाइम आ गया है। शुरुआत हुई है, लेकिन ठीक से नहीं हो पाई है।’

क्या रेल हादसों और लोको पायलट्स के ज्यादा वक्त तक काम करने के बीच कोई संबंध है? सुधांशु जवाब देते हैं कि कोई कनेक्शन तो नजर नहीं आता है। हाल में जो हादसे हुए हैं, उसमें ऐसा कुछ निकलकर नहीं आया है।

10 साल में 51,856 लोको पायलट भर्ती जनवरी 2024 में आई वैकेंसी से पहले रेलवे में कई साल तक असिस्टेंट लोको पायलट की भर्ती नहीं की गई। आखिरी बार 2018 में भर्ती हुई थी। 2019 से 2023 के बीच कोई भर्ती नहीं निकली। 6 साल बाद 5,697 पदों के लिए भर्ती का नोटिफिकेशन जारी किया गया, लेकिन तैयारी करने वाले अभ्यर्थी नाराज हो गए।

कई शहरों में प्रदर्शन हुए। छात्रों का कहना था कि लोको पायलट्स के 20 हजार से ज्यादा पद खाली हैं। 6 साल बाद भी इतने कम पदों पर भर्ती निकाली गई। इसके बाद जून में वैकेंसी बढ़ाकर 18,799 कर दी गईं। ऐसा कंचनजंघा एक्सप्रेस हादसे के ठीक एक दिन बाद किया गया, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई थी।

मार्च में ही रेल मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि 2014 से 2024 के बीच असिस्टेंट लोको पायलट या लोको पायलट के पद पर 51,856 उम्मीदवारों की भर्ती की गई है। इस दौरान, 15,300 लोको पायलट रिटायर भी हुए। पिछले महीने रेलवे भर्ती बोर्ड ने असिस्टेंट लोको पायलट के 9,970 पदों के लिए फिर से वैकेंसी निकाली है।

सिर्फ 10% इंजन में ही टॉयलेट रेलवे को कवर करने वाले सीनियर जर्नलिस्ट राजेंद्र आकलेकर कहते हैं, ‘पिछले 10 साल में हुए हादसों का एनालिसिस करेंगे तो पता चलता है कि ट्रेन के बाहर, जैसे सिग्नल देने वाले या दूसरे लोगों की मानवीय भूल के कारण हादसे हुए हैं। ऐसे कुछ केस हो सकते हैं कि लोको पायलट्स की थकान की वजह से हादसा हुआ हो, लेकिन ज्यादातर केस ऐसे नहीं हैं।

राजेंद्र भारतीय रेल के इतिहास और रेल से जुड़े विषयों पर कई किताबें लिख चुके हैं। रेलवे के हालिया फैसले पर वे कहते हैं, ‘अनुशासन के हिसाब से तो ये सही है क्योंकि ट्रेन समय पर और स्पीड से चलनी है। फिर भी रेलवे को इंतजार करना चाहिए था। पहले सारे रेल इंजन में टॉयलेट बनाने चाहिए थे। उसके बाद ये सवाल ही नहीं आता। अभी तो सिर्फ 10% इंजन में ही टॉयलेट लगे हैं।’

कांग्रेस ने कहा- रेलवे का फैसला गलत, लोको पायलट बीमार हो रहे लोको पायलट को टॉयलेट के लिए ब्रेक न देने के रेलवे के फैसले को कांग्रेस ने असंवेदनशील बताया है। पार्टी का कहना है कि इससे लोको पायलट्स को इंफेक्शन और किडनी से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। कांग्रेस इस मुद्दे को पहले भी उठाती रही है।

5 जुलाई, 2024 को पार्टी के नेता राहुल गांधी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर देशभर से आए 50 लोको पायलट्स से मिले थे। उनकी समस्याएं पूछी थीं।लोको पायलट्स ने राहुल से ड्यूटी में कम आराम दिए जाने की शिकायत की थी। इस पर राहुल ने कहा कि वे रेलवे के निजीकरण और भर्ती की कमी का मुद्दा उठाते रहे हैं और आगे भी उठाते रहेंगे।

हालांकि, BJP ने दावा किया था कि राहुल जिनसे मिले, वे असली लोको पायलट नहीं थे। BJP नेता अमित मालवीय ने कहा कि पूरी संभावना है कि वे पेशेवर एक्टर्स थे, जिन्हें उनकी (राहुल) टीम ने बुलाया था।

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