बुआ और हसन में 388 साल पहले हुआ प्यार, ताजमहल जैसी है मोहब्बत की इस इमारत की कहानी

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बुआ और हसन में 388 साल पहले हुआ प्यार, ताजमहल जैसी है मोहब्बत की इस इमारत की कहानी

बुआ और हसन में 388 साल पहले हुआ प्यार, ताजमहल जैसी है मोहब्बत की इस इमारत की कहानी

शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में ताजमहल बनवाया था, ये तो हम सभी जानते हैं। लेकिन आज हम आपको अमर प्रेम की ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जहां प्रेमिका ने अपने प्रेमी की याद में ताजमहल जैसा ही मकबरा बनवाया। जहां प्रेमी और उसकी प्रेमिका की कब्रें बिल्कुल साथ-साथ बनी हुई हैं। हीर रांझा और सोहनी महिवाल जैसा ही है झज्जर की बुआ और हसन का प्यार और दर्द था। आज से करीब 388 साल पहले झज्जर से सिलानी क्षेत्र के बीच में मुस्तफा की बेटी बुआ और एक लकड़हारे हसन के बीच प्यार हुआ, लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था। उनकी प्रेमकथा एक सुनहरे अंत तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन आज भी यहां बना तालाब और मकबरे में बुआ व हसन की कब्र उनके सच्चे प्यार की कहानी बयां करती है।

1635 में प्रेम का गवाह बना था झज्जर

दोनों के बीच के प्यार की पींग बढ़ने की दस्तक साल 1635 की एक शाम से हुई। जब 16 वर्षीय बुआ अपने सफेद घोड़े पर सवार होकर अपने घर से निकली थी। बताते हैं कि सूरज पश्चिम की ओर बढ़ रहा था और बुआ का घोड़ा गति पकड़ रहा था। इसी बीच झाड़ियों में हुई एकाएक आहट को सुनकर बुआ का घोड़ा सन्न होकर रुक गया। इससे पहले की बुआ कुछ समझ पाती, घोड़े ने अपने आगे के दोनों पैर ऊपर उठा लिए। बगैर किसी घबराहट के बुआ ने अपनी कमान से तीर को निकालते हुए धनुष पर चढ़ाया ही था, कि सामने से एक शेर झाड़ियों से निकला और उसने बुआ पर हमला बोल दिया, इससे उन्हें काफी चोटें आईं। इस दौरान वहां लकड़ियां काट रहा लकड़हारा हसन पहुंचा और हिम्मत दिखाते हुए शेर को मौत के घाट उतार दिया। घायल बुआ को वह वहां से उठाकर एक तालाब के पास ले गया। बताते हैं कि जब बुआ को होश आया तो चांदनी रात में हसन बुआ के नजदीक था। बस यहीं से दोनों में प्यार की शुरुआत हुई।

सेना के युद्ध में मारा गया था हसन

सेना के युद्ध में मारा गया था हसन

होश आने के बाद घायल अवस्था में जब हसन बुआ को उसके घर ले पहुंचा तो मुस्तफा व उसके परिवार ने हसन का शुक्रिया अदा करते हुए वहां रुकने के लिए कहा। अगले दिन हसन की वापसी के समय में जब उसके परिवार ने उसकी इस मदद की एवज में इच्छा पूछी तो हसन ने बुआ का हाथ मांग लिया। सहमति मिलने के बाद दोनों अक्सर जंगल के नजदीक उसी तालाब पर चांदनी रातों में मिला करते थे। कुछ दिनों के बाद, एक दिन मुस्तफा ने हसन को बुलाकर उसे राजा की सेना में भर्ती होने के लिए कहां। इसके बाद एक दिन उसे युद्ध में सेना के साथ भेज दिया गया, जहां उसकी मौत हो गई। जब बुआ को इस दर्दनाक घटना की जानकारी मिली तो वह सदमे में आ गई। उसने अपने प्रेमी हसन को उसी तलाब के पास दफनाया, जहां वे अक्सर मिला करते थे। बुआ ने अपने प्रेमी की याद में एक कब्र का निर्माण भी करवाया। चांदनी रात में बुआ अक्सर अकेली वहां जाकर आंसू बहाया करती थी और 2 साल के बाद उसने हसन की याद में अपना देह त्याग दिया। बुआ को भी हसन की कब्र के साथ ही दफनाया गया।

आज भी प्रेमी जोड़े की कब्र पर फूल चढ़ाकर जोड़ी सलामत रहने की मांगते हैं दुआ

आज भी प्रेमी जोड़े की कब्र पर फूल चढ़ाकर जोड़ी सलामत रहने की मांगते हैं दुआ

बुआ और हसन की कब्र को आज भी प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यहां आने से लोगों को आनंद की अनुभूति होती है। कब्र के पास जाने से भी लोग नहीं डरते बल्कि आज भी प्रेमी जोड़े यहां आते हैं और अपनी जोड़ी सलामत रहने की दुआ मांगते हैं। दोनों प्रेमियों की कब्र एक साथ एक ही जगह बनाई गई है। जो इस मकबरे की सुंदरता को बढ़ाती है। मकबरे के रखरखाव की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग की है। यह समय के साथ साथ खंडहर में तब्दील होता जा रहा है। इसे ताजमहल की तरह जीर्णोद्धार और बेहतर संरक्षण की आवश्यकता है। ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इसे देख सके और बुआ हसन के अमर प्रेम की कहानी जान सके।

बॉलीवुड फिल्म मंगल पांडे की शूटिंग भी हुई थी बुआ हसन के मकबरे पर

बॉलीवुड फिल्म मंगल पांडे की शूटिंग भी हुई थी बुआ हसन के मकबरे पर

सूर्य उदय और सूर्यास्त के समय बुआ हसन के मकबरे और तालाब अदृश्य बेहद मनमोहक हो जाता है। बॉलीवुड स्टार आमिर खान की 1857 की क्रांति पर बनी फिल्म मंगल पांडे के कुछ दृश्य भी यहां फिल्माए गए थे। फिल्म के विद्रोह की रणनीति बनाने के दृश्य में बुआ हसन का मकबरा साफ देखा जा सकता है।

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