बिहार में नीतीश-तेजस्वी की सियासी राह में रोड़ा बनने वाले ‘PR’ प्लान के बारे में जानिए

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बिहार में नीतीश-तेजस्वी की सियासी राह में रोड़ा बनने वाले ‘PR’ प्लान के बारे में जानिए

बिहार में नीतीश-तेजस्वी की सियासी राह में रोड़ा बनने वाले ‘PR’ प्लान के बारे में जानिए

पटना: यह महज संयोग है या कोई प्रयोग कि बिहार को बदलने के लिए दो किरदार बेचैन दिख रहे हैं। उन्हें बिहार का पिछड़ापन दिखता है। रोजगार के लिए पलायन का एहसास होता है। शिक्षा की बदहाली से वे दुबले हो रहे हैं। जातिवाद की जकड़न से बिहार को उबारने के लिए बेताब हैं। वे बिहार के लिए विशेष राज्य या खास पैकेज की मांग नहीं करते। अपने ही संसाधनों से बिहार को आगे बढ़ाने का सपना देख रहे हैं। वे सीएम बनने का सपना भी मन में नहीं पालते, उन्हें तो जेपी की तरह सीएम-पीएम बनाने वाली भूमिका ही पसंद है। हम बात कर रहे हैं प्रशांत किशोर उर्फ पीके और बीजेपी के सांसद राजीव प्रताप रूडी की। प्रशांत किशोर आठ महीने से जन सुराज यात्रा पर गांव-गांव घूम रहे हैं तो राजीव प्रताप रूडी भी विजन बिहार एजेंडा 2025 (Vision Bihar Agenda 2025) लेकर बिहार की राजनीति करने में लगे हैं। रूड़ी कहते हैं कि अब तक केंद्र की राजनीति की। चार बार सांसद बने तो दो बार राज्यसभा के सदस्य बनाए गए। अब 365 दिन 24 घंटे बिहार की राजनीति करनी है। बिहार को बदलना है।

रूडी का विजन बिहार एजेंडा 2025 क्या है

राजीव प्रताप रूडी अभी बीजेपी के सांसद और प्रवक्ता हैं। केंद्र में मंत्री भी रहे, लेकिन नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट- स्किल इंडिया (Skill India) को धरातल पर उतार नहीं सके। उनसे मंत्री पद तो छीन ही लिया गया, दोबारा मौका भी नहीं मिला। अब वे पिछले कुछ महीनों से राज्य में विजन बिहार एजेंडा 2025 लेकर अभियान छेड़े हुए हैं। अब तक 25 जिलों में विजन बिहार एजेंडा 2025 की बातें लोगों को समझा चुके हैं। अगले दो चरणों में बाकी जिलों में वे पहुंच जाएंगे और तीन महीने में पूरे बिहार की परिक्रमा पूरी हो जाएगी। उनके विजन बिहार एजेंडा की खासियत यह है कि बड़े पैमाने पर अगड़ी जातियों के लोगों का जुटान होता है। आरोप तो यह भी लगता है कि रूड़ी अगड़ी जातियों को गोलबंद करने में लगे हैं। हालांकि वे इस बात को खारिज करते हैं। उनका कहना है कि जब बिहार ही बैकवर्ड हैं तो बिहार के लोग कैसे फॉरवर्ड हो सकते हैं।

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बिहार की दुर्दशा कुछ यूं बयान करते हैं रूडी

राजीव प्रताप रूडी को पीड़ा है कि बिहार से बड़े पैमाने पर रोजगार के लिए लोगों का पलायन होता है। 1990 के बाद से हर राज्य तरक्की के पथ पर आगे बढ़ रहा है। बिहार ही एक ऐसा राज्य है, जहां 50 प्रतिशत से अधिक गरीबी है। चार करोड़ लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर चुके हैं। बिहार की राजनीति दो ही चेहरों के इर्द गिर्द घूमती रही है। विकास की बात किसी को नहीं जंचती। बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग होती है। आजादी के बाद सभी राज्य तरक्की करते रहे। किसी ने विशेष दर्जे की मांग नहीं की, लेकिन बिहार के पिछड़ेपन की जब भी बात चलती है तो विशेष राज्य की मांग का शिगूफा छोड़ दिया जाता है।

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पीके भी लालू-नीतीश को ही दोषी बताते हैं

प्रशांत किशोर भी बिहार के पिछड़ेपन के लिए लालू यादव और नीतीश कुमार को ही दोषी मानते हैं। वे भी कहते हैं कि पिछले तीन दशक में बिहार के विकास के लिए किसी ने मुकम्मल कोशिश नहीं की। ऐसा इसलिए हुआ कि समाज सो गया है। बिहार को बदलना है तो इसे जगाना पड़ेगा। जनता के पास विकल्प ही नहीं बचा है। जनता दो चेहरों के बीच इधर-उधर होती रहती है। राज्य सरकार का इकबाल खत्म हो गया है। अफसर तो सरकार से डरते ही नहीं। भ्रष्टाचार चरम पर है। लालू राज में अपराधियों ने जनता को लूटा तो अब नीतीश राज में अफसर ही लुटेरे बन गए हैं। बिहार में सरकार जरूर बदल गई, लेकिन हालत जस की तस ही रही। बिहार में सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन जरूरी है। राजनीति में नए लोगों को आना होगा।

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कितना कामयाब होगा रूड़ी-पीके का प्रयास

बिहार की दुर्दशा का कारण प्रशांत किशोर (पीके) जनता का सोते रहना बताते हैं तो रूडी जनता के बंद दिमाग को। रूडी जनता का बंद दिमाग खोलने के लिए अपना अभियान चला रहे हैं। दोनों में बुनियादी फर्क यह है कि एक चुनावी रणनीतिकार है तो दूसरा कुशल राजनीतिज्ञ। चुनावी रणनीतिकार होने के कारण पीके के पास कोई पोलिटिकल प्लेटफार्म नहीं है तो रूडी के पास भाजपा का राष्ट्रव्यापी मंच है। फिर भी रूडी बीजेपी के हित में ही पार्टी के बैनर से अलग अपना अभियान चला रहे हैं। रूडी इसमें अपने नफा-नुकसान का कोई आकलन नहीं करते तो पीके वैकल्पिक राजनीति की बात करते हैं। रूडी यह भी स्वीकार नहीं करते कि उनका अभियान भाजपा के लिए है। वे कहते हैं- मुझे बिहार के गरीबों, पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों पर किसी का कब्जा कबूल नहीं है। इसीलिए लोगों का बंद दिमाग खोलने के अभियान में लगा हूं।
रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

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