बिहार की 13 लोकसभा और 81 विधानसभा सीटें होतीं वीमेन रिजर्व, राज्यसभा से 2010 में पास बिल में ऐसा था महिला आरक्षण h3>
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Women Reservation Bill: संसद के विशेष सत्र में मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल लाने जा रही है। अगर यह बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाता है तो महिलाओं को चुनाव में 33 फीसदी आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। लोकसभा और विधानसभा में कम से कम 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। सदन के अंदर महिलाओं के आरक्षण की मांग लंबी है। 1996 से लेकर अब तक कई बार अलग-अलग सरकारें संसद में आधी आबादी के रिजर्वेशन के लिए बिल ला चुकी हैं। मगर इसे कानून के तौर पर अमलीजामा पहनाने में सफलता हाथ नहीं लगी। 2010 में तो यह बिल राज्यसभा से पारित भी हो गया, लेकिन लोकसभा में अटक गया। 2010 में राज्यसभा से पारित बिल के अनुसार बिहार में लोकसभा की 13 और विधानसभा की 81 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। इनमें एससी और एसटी महिलाओं का रिजर्वेशन भी शामिल था।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2010 में महिला आरक्षण बिल लेकर आई थी। यह बिल भारी हंगामे के बाद राज्यसभा से पारित हो गया था। मगर लोकसभा में समाजवादी पार्टी और आरजेडी ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी। फिर इस पर वोटिंग नहीं हुई और लोकसभा में यह अटका रह गया। इस बिल में महिलाओं को तीन चुनावों तक 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान था। मगर नियमों की पेचीदगी के चलते यूपीए सरकार में इस पर एक राय नहीं बन सकी।
2010 में राज्यसभा से पारित महिला आरक्षण बिल के हिसाब से बिहार की 40 में से 13 लोकसभा सीटों को आधी आबादी के लिए आरक्षित रखे जाने का प्रावधान था। ऐसा लगातार तीन चुनावों तक होता। पहले चुनाव में जो सीट महिला के लिए आरक्षित रखी जाती, वो दूसरे और तीसरे चुनाव में रिजर्व नहीं होती। यानी कि तीनों चुनाव में अलग-अलग सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित रखा जाता। यही फॉर्मूला विधानसभा के तीन चुनावों में भी लागू होता। इसमें हर चुनाव में महिलाओं के लिए 81 सीटें आरक्षित रखी जातीं।
बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से 6 एससी यानी अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं। 2010 के महिला आरक्षण बिल पर नजर डालें तो इनमें से हर चुनाव में 13 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहतीं। इनमें से 11 सीटें जनरल यानी अनारक्षित वर्ग की, जबकि 2 सीटें एससी वर्ग की होतीं।
लालू की पार्टी के एमपी ने संसद में फाड़ दिया था महिला आरक्षण बिल, दोबारा सांसद नहीं बन पाए
विधानसभा चुनाव में ऐसे होता महिला आरक्षण
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं। इनमें से 38 एससी और दो एसटी के लिए आरक्षित हैं, जबकि 203 सीटें अनारक्षित हैं। 2010 में राज्यसभा से पास बिल के अनुसार इनमें से तीन चुनावों तक 81-81 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहतीं। पहले चुनाव में 1 एसटी, 13 एससी और 67 सीटें अनारक्षित रहतीं। दूसरे चुनाव में भी यही आंकड़ा होता। वहीं, तीसरे विधानसभा चुनाव में एससी की 13 और अनारक्षित वर्ग की 68 सीटें हो जातीं। क्योंकि बिहार में एसटी रिजर्व सीटें दो ही हैं, उनपर पहले दो चुनावों में महिलाओं को आरक्षण मिल गया, इसलिए तीसरे चुनाव में उसे वीमन्स रिजर्वेशन के दायरे से बाहर रखा जाता।
नए बिल में क्या है?
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार मंगलवार या बुधवार को महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश कर सकती है। इस बिल में भी महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। हालांकि, इसका पैमाना किस आधार पर रहेगा इस बारे में अभी पूरी जानकारी नहीं आई है। मगर इतना तय है कि अगर यह बिल पारित होता है तो लोकसभा की 13 और विधानसभा की 81 सीटों को आधी आबादी के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस आरक्षण को किस तरह विभाजित किया जाएगा। क्या 2010 के ड्राफ्ट के फॉर्मूले आधार पर 15 साल तक ही महिला आरक्षण रहेगा या इसकी अवधि लंबी होगी? क्या मोदी सरकार एससी-एसटी के अलावा ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण देगी? महिला आरक्षित सीटों का रोटेशन किस प्रकार होगा? यानी कि जो सीट पहले चुनाव में महिला आरक्षित हो गई, अगले चुनाव में भी वो ही सीट रिजर्व रहेगी या फिर किसी अन्य सीट को आरक्षित किया जाएगा।
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Women Reservation Bill: संसद के विशेष सत्र में मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल लाने जा रही है। अगर यह बिल संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाता है तो महिलाओं को चुनाव में 33 फीसदी आरक्षण मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। लोकसभा और विधानसभा में कम से कम 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहेंगी। सदन के अंदर महिलाओं के आरक्षण की मांग लंबी है। 1996 से लेकर अब तक कई बार अलग-अलग सरकारें संसद में आधी आबादी के रिजर्वेशन के लिए बिल ला चुकी हैं। मगर इसे कानून के तौर पर अमलीजामा पहनाने में सफलता हाथ नहीं लगी। 2010 में तो यह बिल राज्यसभा से पारित भी हो गया, लेकिन लोकसभा में अटक गया। 2010 में राज्यसभा से पारित बिल के अनुसार बिहार में लोकसभा की 13 और विधानसभा की 81 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। इनमें एससी और एसटी महिलाओं का रिजर्वेशन भी शामिल था।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार 2010 में महिला आरक्षण बिल लेकर आई थी। यह बिल भारी हंगामे के बाद राज्यसभा से पारित हो गया था। मगर लोकसभा में समाजवादी पार्टी और आरजेडी ने सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी। फिर इस पर वोटिंग नहीं हुई और लोकसभा में यह अटका रह गया। इस बिल में महिलाओं को तीन चुनावों तक 33 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान था। मगर नियमों की पेचीदगी के चलते यूपीए सरकार में इस पर एक राय नहीं बन सकी।
2010 में राज्यसभा से पारित महिला आरक्षण बिल के हिसाब से बिहार की 40 में से 13 लोकसभा सीटों को आधी आबादी के लिए आरक्षित रखे जाने का प्रावधान था। ऐसा लगातार तीन चुनावों तक होता। पहले चुनाव में जो सीट महिला के लिए आरक्षित रखी जाती, वो दूसरे और तीसरे चुनाव में रिजर्व नहीं होती। यानी कि तीनों चुनाव में अलग-अलग सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित रखा जाता। यही फॉर्मूला विधानसभा के तीन चुनावों में भी लागू होता। इसमें हर चुनाव में महिलाओं के लिए 81 सीटें आरक्षित रखी जातीं।
बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। इनमें से 6 एससी यानी अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं। 2010 के महिला आरक्षण बिल पर नजर डालें तो इनमें से हर चुनाव में 13 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहतीं। इनमें से 11 सीटें जनरल यानी अनारक्षित वर्ग की, जबकि 2 सीटें एससी वर्ग की होतीं।
लालू की पार्टी के एमपी ने संसद में फाड़ दिया था महिला आरक्षण बिल, दोबारा सांसद नहीं बन पाए
विधानसभा चुनाव में ऐसे होता महिला आरक्षण
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं। इनमें से 38 एससी और दो एसटी के लिए आरक्षित हैं, जबकि 203 सीटें अनारक्षित हैं। 2010 में राज्यसभा से पास बिल के अनुसार इनमें से तीन चुनावों तक 81-81 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रहतीं। पहले चुनाव में 1 एसटी, 13 एससी और 67 सीटें अनारक्षित रहतीं। दूसरे चुनाव में भी यही आंकड़ा होता। वहीं, तीसरे विधानसभा चुनाव में एससी की 13 और अनारक्षित वर्ग की 68 सीटें हो जातीं। क्योंकि बिहार में एसटी रिजर्व सीटें दो ही हैं, उनपर पहले दो चुनावों में महिलाओं को आरक्षण मिल गया, इसलिए तीसरे चुनाव में उसे वीमन्स रिजर्वेशन के दायरे से बाहर रखा जाता।
नए बिल में क्या है?
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार मंगलवार या बुधवार को महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश कर सकती है। इस बिल में भी महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। हालांकि, इसका पैमाना किस आधार पर रहेगा इस बारे में अभी पूरी जानकारी नहीं आई है। मगर इतना तय है कि अगर यह बिल पारित होता है तो लोकसभा की 13 और विधानसभा की 81 सीटों को आधी आबादी के लिए आरक्षित कर दिया जाएगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस आरक्षण को किस तरह विभाजित किया जाएगा। क्या 2010 के ड्राफ्ट के फॉर्मूले आधार पर 15 साल तक ही महिला आरक्षण रहेगा या इसकी अवधि लंबी होगी? क्या मोदी सरकार एससी-एसटी के अलावा ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण देगी? महिला आरक्षित सीटों का रोटेशन किस प्रकार होगा? यानी कि जो सीट पहले चुनाव में महिला आरक्षित हो गई, अगले चुनाव में भी वो ही सीट रिजर्व रहेगी या फिर किसी अन्य सीट को आरक्षित किया जाएगा।