बाढ़ छुड़ा देती है घर-द्वार, फिर भी लोगों को रहता इसका इंतजार h3>
सीतामढ़ी। बागमती को ब्याघ्र नदी भी कहा जाता है। क्योंकि बाघ के चरित्र से…
Newswrapहिन्दुस्तान टीम,सीतामढ़ीMon, 17 Jul 2023 12:41 AM
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सीतामढ़ी। बागमती को ब्याघ्र नदी भी कहा जाता है। क्योंकि बाघ के चरित्र से मिलता जुलता इस नदी का भी चरित्र है। उसी के तरह उछलना कूदना, धारा परिवर्तन करना, कहीं बालू का टीला तो कहीं गड्ढा कर देना इसकी प्रकृति है। बहाव एवं कटाव के लिए कुख्यात बागमती नदी की लीला भी विचित्रता से भरी है। इसकी महिमा बाघ के तरह ही पल भर में विनाशकारी लीला करना है। अब बागमती की बाढ़ की बात करें तो यह भले ही लोगों का घर द्वार छुड़ा जाती है फिर भी लोगों को इसका इंतजार रहता है। इसका मुख्य कारण है कि बाढ़ लोगों को भंडार भरती है। जिले के मेजरगंज, बैरगनिया, सुप्पी, रीगा, परसौनी, बेलसंड, रुन्नीसैदपुर प्रखंडों के बड़ी आबादी बागमती तटबंध के अंदर निवास करती है। इनकी जीविका का साधन खेती है और यह तटबंध के अंदर खेती करते हैं। फिलहाल खरीफ का सीजन चल रहा है। धान की रोपाई हो रही है। कायदे से तटबंध के अंदर की रोपाई हो जानी चाहिए थी। 15 जून से बाढ़ की अवधि शुरू होती है। पानी के उतार-चढ़ाव के बीच किसान खेतों की रोपाई कर लेते थे। लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो रहा है। पिछले दिनों वर्षा की कमी से बागमती का जलस्तर नहीं बढ़ा। इसका नतीजा हुआ कि खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाया। तटबंध के बाहर जैसी बोरिंग एवं तालाब की व्यवस्था तटबंध के अंदर नहीं है। इसलिए यहां के किसान बाढ़ के पानी उतार-चढ़ाव से ही धान की रोपाई करते हैं। रोपाई के बाद वर्षा और बाढ़ का पानी खेतों में भर जाने से सिंचाई होती रहती है। बागमती तटबंध के अंदर के गांव के किसानों की मानें तो पिछले वर्ष इससे पहले ही बाढ़ का पानी खेतों में पहुंच चुका था और अधिकांश खेतों में धान की रोपनी हो गई थी। किसान रामाशंकर सिंह, संतोष कुमार सिंह, सुमित कुमार, रामबाबू सिंह, शंभू दास, भोला भगत, विश्वकर्मा साह ने बताया कि ऊंचे खेत में धान की रोपनी के लिए हर वर्ष बाढ़ के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। बागमती की बाढ़ की प्रवृत्ति है कि शुरुआती दिनों में इसमें उतार-चढ़ाव होता रहता है। जब खेतों में पानी प्रवेश कर जाता है तो किसान रोपाई की तैयारी में लग जाते हैं। दो-चार दिनों में पानी घट जाता है तो किसान धान रोप लेते हैं। लेकिन इस बार बागमती नदी में पानी बढ़ने के इंतजार में किसान खेतों में ऊंचे ऊंचे मेड़ बना कर बैठे हैं। किसानों को यह अंदेशा भी सता रहा है कि अगर यह किसी अन्य तरीके से रोपाई कर लेते हैं तो धान के जो बिचड़े धूप के कारण अपेक्षाकृत बढ़ नहीं पाए हैं। कहीं पानी बढ़ा तो यह डूब जाएंगे और इनके पास फिर से रोपने के लिए बिचड़े भी नहीं बचेंगे। अगर पानी नहीं बढ़ा तो बार-बार यह सिंचाई कैसे कर पाएंगे। अब किसानों को इस बात की चिंता सता रही है कि जिस खेती को लेकर तटबंध के अंदर रहने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। वहीं मारी जा रही है। अगर खेती नहीं हुई तो उनके आने वाले दिन कैसे कटेंगे। जिला कृषि पदाधिकारी ब्रजेश कुमार ने बताया कि जिले में बिचड़ा डालने का लक्ष्य पूरा हो चुका है। बारिश के अभाव में धान की रोपनी 24 हजार 648 हेक्टेयर में हुई है। जबकि 104864 हेक्टेयर में धान रोपने का लक्ष्य निर्धारित है।
यह हिन्दुस्तान अखबार की ऑटेमेटेड न्यूज फीड है, इसे लाइव हिन्दुस्तान की टीम ने संपादित नहीं किया है।
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सीतामढ़ी। बागमती को ब्याघ्र नदी भी कहा जाता है। क्योंकि बाघ के चरित्र से…
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सीतामढ़ी। बागमती को ब्याघ्र नदी भी कहा जाता है। क्योंकि बाघ के चरित्र से मिलता जुलता इस नदी का भी चरित्र है। उसी के तरह उछलना कूदना, धारा परिवर्तन करना, कहीं बालू का टीला तो कहीं गड्ढा कर देना इसकी प्रकृति है। बहाव एवं कटाव के लिए कुख्यात बागमती नदी की लीला भी विचित्रता से भरी है। इसकी महिमा बाघ के तरह ही पल भर में विनाशकारी लीला करना है। अब बागमती की बाढ़ की बात करें तो यह भले ही लोगों का घर द्वार छुड़ा जाती है फिर भी लोगों को इसका इंतजार रहता है। इसका मुख्य कारण है कि बाढ़ लोगों को भंडार भरती है। जिले के मेजरगंज, बैरगनिया, सुप्पी, रीगा, परसौनी, बेलसंड, रुन्नीसैदपुर प्रखंडों के बड़ी आबादी बागमती तटबंध के अंदर निवास करती है। इनकी जीविका का साधन खेती है और यह तटबंध के अंदर खेती करते हैं। फिलहाल खरीफ का सीजन चल रहा है। धान की रोपाई हो रही है। कायदे से तटबंध के अंदर की रोपाई हो जानी चाहिए थी। 15 जून से बाढ़ की अवधि शुरू होती है। पानी के उतार-चढ़ाव के बीच किसान खेतों की रोपाई कर लेते थे। लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो रहा है। पिछले दिनों वर्षा की कमी से बागमती का जलस्तर नहीं बढ़ा। इसका नतीजा हुआ कि खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाया। तटबंध के बाहर जैसी बोरिंग एवं तालाब की व्यवस्था तटबंध के अंदर नहीं है। इसलिए यहां के किसान बाढ़ के पानी उतार-चढ़ाव से ही धान की रोपाई करते हैं। रोपाई के बाद वर्षा और बाढ़ का पानी खेतों में भर जाने से सिंचाई होती रहती है। बागमती तटबंध के अंदर के गांव के किसानों की मानें तो पिछले वर्ष इससे पहले ही बाढ़ का पानी खेतों में पहुंच चुका था और अधिकांश खेतों में धान की रोपनी हो गई थी। किसान रामाशंकर सिंह, संतोष कुमार सिंह, सुमित कुमार, रामबाबू सिंह, शंभू दास, भोला भगत, विश्वकर्मा साह ने बताया कि ऊंचे खेत में धान की रोपनी के लिए हर वर्ष बाढ़ के पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। बागमती की बाढ़ की प्रवृत्ति है कि शुरुआती दिनों में इसमें उतार-चढ़ाव होता रहता है। जब खेतों में पानी प्रवेश कर जाता है तो किसान रोपाई की तैयारी में लग जाते हैं। दो-चार दिनों में पानी घट जाता है तो किसान धान रोप लेते हैं। लेकिन इस बार बागमती नदी में पानी बढ़ने के इंतजार में किसान खेतों में ऊंचे ऊंचे मेड़ बना कर बैठे हैं। किसानों को यह अंदेशा भी सता रहा है कि अगर यह किसी अन्य तरीके से रोपाई कर लेते हैं तो धान के जो बिचड़े धूप के कारण अपेक्षाकृत बढ़ नहीं पाए हैं। कहीं पानी बढ़ा तो यह डूब जाएंगे और इनके पास फिर से रोपने के लिए बिचड़े भी नहीं बचेंगे। अगर पानी नहीं बढ़ा तो बार-बार यह सिंचाई कैसे कर पाएंगे। अब किसानों को इस बात की चिंता सता रही है कि जिस खेती को लेकर तटबंध के अंदर रहने का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। वहीं मारी जा रही है। अगर खेती नहीं हुई तो उनके आने वाले दिन कैसे कटेंगे। जिला कृषि पदाधिकारी ब्रजेश कुमार ने बताया कि जिले में बिचड़ा डालने का लक्ष्य पूरा हो चुका है। बारिश के अभाव में धान की रोपनी 24 हजार 648 हेक्टेयर में हुई है। जबकि 104864 हेक्टेयर में धान रोपने का लक्ष्य निर्धारित है।
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