बंगाल में बीजेपी 100 सीटों से नीचे कैसे खिसकी, कहां हुई चूक… कहीं ये वजह तो नहीं? h3>
हाइलाइट्स:
- पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत की ओर बढ़ते हुए तृणमूल कांग्रेस 200 प्लस सीटों पर आगे है
- प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी के अनुसार, बीजेपी 100 से भी कम सीटों पर सिमटती रही
- जोर-शोर से तैयारी और मेहनत के बाद भी आखिर बीजेपी बंगाल में कहां चूक गई, 5 वजह
कोलकाता
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी की सरकार बनती दिख रही है। बड़ी जीत की ओर बढ़ते हुए तृणमूल कांग्रेस 200 प्लस सीटों पर आगे है। वहीं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी के अनुसार, बीजेपी 100 से भी कम सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। ऐसे में सवाल है कि 200 प्लस के दावे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्रियों के हैवीवेट चुनाव प्रचार और सत्ताधारी दल में बड़े स्तर पर सेंधमारी के बाद भी बीजेपी से आखिर कहां पर चूक हुई। जानिए 5 बड़ी वजह-
1- ध्रुवीकरण की रणनीति फेल
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में इस बार ध्रुवीकरण को बड़े मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है। चुनावी माहौल बनने के पहले से ही बीजेपी लगातार ममता बनर्जी और टीएमसी पर अल्पसंख्यकों तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही। बीजेपी अपनी हर रैली और हर सभा में जय श्री राम के नारे पर हुए विवाद को मुद्दा बनाकर पेश करती रही। फिर टीएमसी भी इससे अछूती नहीं रही। ममता बनर्जी ने पहले सार्वजनिक मंच पर चंडी पाठ किया, फिर अपना गोत्र भी बताया और हरे कृष्ण हरे हरे का नारा दिया।
माना जा रहा था कि बंगाल के हिंदू वोटरों को रिझाने के लिए बीजेपी का यह दांव उसके पक्ष में जा सकता है लेकिन अभी तक के चुनावी रुझानों में यह आकलन उल्टा साबित होता नजर आ रहा है। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों के एक धड़े का यह भी मानना है कि बंगाल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सिर्फ माहौल बनाया गया जबकि जमीनी पर राजनीतिक ध्रुवीकरण देखने को मिला। छिटपुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर चरण के मतदान वहां शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए हैं।
2- मुख्यमंत्री चेहरे का ना होना
यह सच है कि इस चुनाव में बीजेपी काफी मजबूती के साथ तृणमूल कांग्रेस का सामना किया लेकिन ममता के बराबर कोई नेता या सीएम फेस न होना उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने भी कई बार इस पर चिंता जाहिर की।
कोलकाता और दिल्ली बीजेपी के गलियारों में बीजेपी की ओर से सीएम फेस के लिए कई नामों की चर्चा हुई जिसमें बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का नाम सबसे आगे रहा, हालांकि पार्टी के अंदर ही एक असंतुष्ट धड़ा है जो उनके नाम को लेकर राजी नहीं था। इस वजह से आलाकमान के मन में सीएम फेस को लेकर कई संदेह रहे और पार्टी ने पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा।
3- बाहरी नेताओं पर अधिक भरोसा
लोकसभा चुनाव में 19 सीटें जीतने के बाद बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव सबसे बड़ी लड़ाई थी जिसके लिए उसे प्रदेश के जमीनी और बड़े चेहरे चाहिए थे। इसके लिए बीजेपी ने दूसरे दलों खासकर टीएमसी में सेंधमारी शुरू की और सत्ताधारी दल के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में मिला लिया। इनमें सबसे बड़ा नाम सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय का माना जाता है जो ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी रहे और उन्हें बंगाल की सत्ता दिलाने में बड़ा योगदान दिया था।
बीजेपी जहां बार-बार कहती रही कि 2 मई तक टीएमसी पूरी साफ हो जाएगी, वहीं दूसरी ओर टीएमसी ने बीजेपी पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगाते हुए इन नेताओं को दल-बदलू, धोखेबाज और मीर जाफर तक की संज्ञा दे दी। ममता बनर्जी ने इसे इस तरह से प्रोजेक्ट किया कि उनके अपनों ने ही उन्हें धोखा दिया क्योंकि वे खुद बेईमान थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ममता के इस दांव से उन्हें फायदा मिला।
4- अपनों की नाराजगी मोल ली
विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल में जमीनी आधार बनाने के लिए बीजेपी ने दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी जॉइन कराई और उन्हें बड़े पैमाने पर टिकट दिए। हालांकि इसके चलते पार्टी ने अपने नेताओं की नाराजगी मोल ले ली। टिकट बंटवारे के दौरान बंगाल बीजेपी यूनिट में असंतोष की खबरें आईं और कई जगह बीजेपी के दफ्तर में तोड़फोड़ भी हुई। इससे विवश होकर बीजेपी को कई बार संशोधन भी करना पड़ा।
हालांकि अपनों के बजाय बाहरी नेताओं पर अधिक भरोसा पार्टी की अंदरूनी खटपट की बड़ी वजह बना। टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आए मुकुल रॉय और दिलीप घोष के बीच कोल्ड वॉर किसी से छिपा नहीं है। विधानसभा चुनाव के दौरान मुकुल रॉय को टिकट देने पर दिलीप घोष के समर्थकों ने काफी नाराज हुए थे।
5- ‘साइलेंट वोटर्स’ ने नहीं दिया बीजेपी का साथ
बंगाल में अभी तक के रुझानों में जो तस्वीर बन रही है उससे स्पष्ट है कि बीजेपी को उनके साइलेंट वोटर ने भी वोट नहीं दिया। दरअसल बिहार चुनाव के बाद पीएम मोदी ने देश की महिलाओं को बीजेपी का साइलेंट वोटर बताते हुए उन्हें विशेष रूप से धन्यवाद दिया लेकिन बंगाल में बीजेपी का यह वोटबैंक खिसकता नजर आया।
इसकी वजह यह भी मानी जा रही है कि पीएम मोदी का ममता बनर्जी पर अटैक करते हुए बार-बार ‘दीदी ओ दीदी’ कहकर संबोधित करना महिलाओं को रास नहीं आया। टीएमसी ने भी इस मुद्दे को उठाया। दूसरी वजह ममता बनर्जी का नंदीग्राम में घायल होना भी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि नंदीग्राम की घटना के बाद ममता बनर्जी सहानुभूति वोट बटोरने में कामयाब रहीं और महिलाओं ने उन्हें बढ़-चढ़कर वोट दिया।
पीएम मोदी ममता बनर्जी
हाइलाइट्स:
- पश्चिम बंगाल में बड़ी जीत की ओर बढ़ते हुए तृणमूल कांग्रेस 200 प्लस सीटों पर आगे है
- प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी के अनुसार, बीजेपी 100 से भी कम सीटों पर सिमटती रही
- जोर-शोर से तैयारी और मेहनत के बाद भी आखिर बीजेपी बंगाल में कहां चूक गई, 5 वजह
पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी की सरकार बनती दिख रही है। बड़ी जीत की ओर बढ़ते हुए तृणमूल कांग्रेस 200 प्लस सीटों पर आगे है। वहीं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी के अनुसार, बीजेपी 100 से भी कम सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। ऐसे में सवाल है कि 200 प्लस के दावे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय मंत्रियों के हैवीवेट चुनाव प्रचार और सत्ताधारी दल में बड़े स्तर पर सेंधमारी के बाद भी बीजेपी से आखिर कहां पर चूक हुई। जानिए 5 बड़ी वजह-
1- ध्रुवीकरण की रणनीति फेल
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में इस बार ध्रुवीकरण को बड़े मुद्दे के रूप में देखा जा रहा है। चुनावी माहौल बनने के पहले से ही बीजेपी लगातार ममता बनर्जी और टीएमसी पर अल्पसंख्यकों तुष्टिकरण का आरोप लगाती रही। बीजेपी अपनी हर रैली और हर सभा में जय श्री राम के नारे पर हुए विवाद को मुद्दा बनाकर पेश करती रही। फिर टीएमसी भी इससे अछूती नहीं रही। ममता बनर्जी ने पहले सार्वजनिक मंच पर चंडी पाठ किया, फिर अपना गोत्र भी बताया और हरे कृष्ण हरे हरे का नारा दिया।
माना जा रहा था कि बंगाल के हिंदू वोटरों को रिझाने के लिए बीजेपी का यह दांव उसके पक्ष में जा सकता है लेकिन अभी तक के चुनावी रुझानों में यह आकलन उल्टा साबित होता नजर आ रहा है। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों के एक धड़े का यह भी मानना है कि बंगाल में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सिर्फ माहौल बनाया गया जबकि जमीनी पर राजनीतिक ध्रुवीकरण देखने को मिला। छिटपुट घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर चरण के मतदान वहां शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए हैं।
2- मुख्यमंत्री चेहरे का ना होना
यह सच है कि इस चुनाव में बीजेपी काफी मजबूती के साथ तृणमूल कांग्रेस का सामना किया लेकिन ममता के बराबर कोई नेता या सीएम फेस न होना उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने भी कई बार इस पर चिंता जाहिर की।
कोलकाता और दिल्ली बीजेपी के गलियारों में बीजेपी की ओर से सीएम फेस के लिए कई नामों की चर्चा हुई जिसमें बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का नाम सबसे आगे रहा, हालांकि पार्टी के अंदर ही एक असंतुष्ट धड़ा है जो उनके नाम को लेकर राजी नहीं था। इस वजह से आलाकमान के मन में सीएम फेस को लेकर कई संदेह रहे और पार्टी ने पूरा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा।
3- बाहरी नेताओं पर अधिक भरोसा
लोकसभा चुनाव में 19 सीटें जीतने के बाद बीजेपी के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव सबसे बड़ी लड़ाई थी जिसके लिए उसे प्रदेश के जमीनी और बड़े चेहरे चाहिए थे। इसके लिए बीजेपी ने दूसरे दलों खासकर टीएमसी में सेंधमारी शुरू की और सत्ताधारी दल के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में मिला लिया। इनमें सबसे बड़ा नाम सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय का माना जाता है जो ममता बनर्जी के करीबी सहयोगी रहे और उन्हें बंगाल की सत्ता दिलाने में बड़ा योगदान दिया था।
बीजेपी जहां बार-बार कहती रही कि 2 मई तक टीएमसी पूरी साफ हो जाएगी, वहीं दूसरी ओर टीएमसी ने बीजेपी पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगाते हुए इन नेताओं को दल-बदलू, धोखेबाज और मीर जाफर तक की संज्ञा दे दी। ममता बनर्जी ने इसे इस तरह से प्रोजेक्ट किया कि उनके अपनों ने ही उन्हें धोखा दिया क्योंकि वे खुद बेईमान थे। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ममता के इस दांव से उन्हें फायदा मिला।
4- अपनों की नाराजगी मोल ली
विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल में जमीनी आधार बनाने के लिए बीजेपी ने दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी जॉइन कराई और उन्हें बड़े पैमाने पर टिकट दिए। हालांकि इसके चलते पार्टी ने अपने नेताओं की नाराजगी मोल ले ली। टिकट बंटवारे के दौरान बंगाल बीजेपी यूनिट में असंतोष की खबरें आईं और कई जगह बीजेपी के दफ्तर में तोड़फोड़ भी हुई। इससे विवश होकर बीजेपी को कई बार संशोधन भी करना पड़ा।
हालांकि अपनों के बजाय बाहरी नेताओं पर अधिक भरोसा पार्टी की अंदरूनी खटपट की बड़ी वजह बना। टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आए मुकुल रॉय और दिलीप घोष के बीच कोल्ड वॉर किसी से छिपा नहीं है। विधानसभा चुनाव के दौरान मुकुल रॉय को टिकट देने पर दिलीप घोष के समर्थकों ने काफी नाराज हुए थे।
5- ‘साइलेंट वोटर्स’ ने नहीं दिया बीजेपी का साथ
बंगाल में अभी तक के रुझानों में जो तस्वीर बन रही है उससे स्पष्ट है कि बीजेपी को उनके साइलेंट वोटर ने भी वोट नहीं दिया। दरअसल बिहार चुनाव के बाद पीएम मोदी ने देश की महिलाओं को बीजेपी का साइलेंट वोटर बताते हुए उन्हें विशेष रूप से धन्यवाद दिया लेकिन बंगाल में बीजेपी का यह वोटबैंक खिसकता नजर आया।
इसकी वजह यह भी मानी जा रही है कि पीएम मोदी का ममता बनर्जी पर अटैक करते हुए बार-बार ‘दीदी ओ दीदी’ कहकर संबोधित करना महिलाओं को रास नहीं आया। टीएमसी ने भी इस मुद्दे को उठाया। दूसरी वजह ममता बनर्जी का नंदीग्राम में घायल होना भी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि नंदीग्राम की घटना के बाद ममता बनर्जी सहानुभूति वोट बटोरने में कामयाब रहीं और महिलाओं ने उन्हें बढ़-चढ़कर वोट दिया।
पीएम मोदी ममता बनर्जी