फुटबॉलर्स का गांव ढींगसरी, हर घर में फुटबॉलर; 12 लड़कियां राजस्थान टीम में – Jaipur News h3>
राजस्थान के बीकानेर जिले का ढींगसरी गांव। एकदम पिछड़ा हुआ इलाका। यहां ज्यादातर घरों में बच्चे बकरियां चराने का या खेतों में दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते हैं। 12-13 साल में बच्चियों की शादी कर दी जाती है। बच्चियों के घर से बाहर निकलने तक पर पाबंदी रह
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इस गांव की लड़कियां फुटबॉल में नेशनल चैम्पियन बन रही हैं। पिछले साल ही राजस्थान की जिस टीम ने बेलगाम, कर्नाटक में जूनियर फुटबॉल चैम्पियनशिप (टियर-2) जीती थी उसमें 12 लड़कियां इसी ढींगसरी गांव की थीं।
पिछले साल जूनियर नेशनल का खिताब जीता था इन बेटियों ने
अब 1 मई से खेलो इंडिया यूथ गेम्स में भी राजस्थान की गर्ल्स फुटबॉल टीम हिस्सा लेने जा रही है। इस टीम की लिस्ट पर नजर दौड़ाई तो आश्चर्य हुआ। इस टीम की 12 खिलाड़ियों के पीछे सरनेम कंवर लिखा हुआ था। पता चला कि ये सब लड़कियां इसी ढींगसरी गांव की हैं। इन लड़कियों को फुटबॉल से जोड़ने का काम किया एक प्रथम श्रेणी फुटबॉलर बिक्रम सिंह राजवी ने। बिक्रम के पिता मगन सिंह राजवी भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान रह चुके हैं। उन्हीं के नाम पर एमएसआर फुटबॉल एकेडमी है।
बिक्रम बताते हैं, ‘शुरू में तो ढींगसरी गांव से लड़कियों को मैदान तक लाने में काफी दिक्कतेंं हुई। गांव का कल्चर ही ऐसा था। एक बार एक लड़की जिला चैम्पियन बनी टीम में बेस्ट फुटबॉलर चुनी गई तो खुशी-खुशी घर पहुंची। लेकिन शाबाशी के बजाय घर में उसकी खूब पिटाई हुई। उसके सर्टिफिकेट तक फाड़ दिए गए। उसे भविष्य में फुटबॉल न खेलने की चेतावनी भी दी गई। वह गिड़गिड़ाती रही लेकिन किसी ने उसकी नहीं सुनी और कुछ समय बाद उसकी शादी कर दी गई। ऐसे ही हालात हर घर में थे। धीरे-धीरे इस स्थिति में बदलाव आया। अब एक-एक घर से 2-2, 3-3 लड़कियां भी एकेडमी में ट्रेनिंग के लिए आ रही हैं। इनसे ट्रेनिंग के लिए एकेडमी में फीस वगैरह भी नहीं ली जाती। मैं खुद अपने रेलवे की नौकरी से जो पैसा मिलता है और कुछ भामाशाहों से पैसा एकत्रित कर एकेडमी चला रहे हैं। नोखा के भामाशाह हैं, जो कर्नाटक में बिल्डर हैं। एकेडमी में खाने-पीने का खर्चा वे उठाते हैं। अब 36 कमरों का एक हॉस्टल भी वे अपने खर्चे पर बना रहे हैं।’
नेशनल कैम्प तक में पहुंच चुकी ढींगसरी की फुटबॉलर
बिक्रम बताते हैं, ‘ढींगसरी गांव में करीब 2500 से 2700 वोटर हैं। हर घर में फुटबॉलर हैं। लड़कों से ज्यादा लड़कियां फुटबॉल खेलती हैं। कई सालों की मेहनत के बाद बदलाव इतना आया है कि अब खुद परिवार वाले बच्चियों को फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इनमें से दो लड़कियां तो नेशनल कैम्प भी पहुंची हैं। एक इंडिया टीम में रही। माता-पिता को अब लगने लगा है फुटबॉल से उनके बच्चे-बच्चियों का करियर बन सकता है। फुटबॉल उन्हें स्वतंत्रता से जीने की ताकत दे सकता है।
टीम : कनिका जैन, दुर्गा कंवर, किरन कंवर, हंसा कंवर, दाशु कंवर, सुमन कंवर, संजू कंवर, निशा कंवर, पुष्पा कंवर, धन्नु कंवर, राधा गोदारा, मोनू शर्मा, किरन जाट, आगन्या सिंह, रागिनी लाहोटी, इश्पिता कुल्हारी, रितिक्षा झाला, मैना चौधरी, मंजू कंवर, लिक्षमी कंवर, रुक्साना, गुड्डू कंवर।
ये टीम बिहार में मई में होने वाले खेलो इंडिया यूथ गेम्स में हिस्सा लेगी