फडणवीस के बहाने जानें क्या है ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट,बीकेसी साइबर पुलिस में दर्ज हुआ था केस h3>
मुंबई: गत रविवार को बीकेसी साइबर पुलिस स्टेशन से जुड़ी जांच टीम ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से उनके घर जाकर पूछताछ की। मामला, एक साल पुराना है, जब स्टेट इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट (एसआईडी) की तरफ से बीकेसी में ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। उसी मामले में पहले अडिशनल डीजी रश्मि शुक्ला और अब देवेंद्र फडणवीस से पूछताछ ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या इन लोगों ने वाकई ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट का उल्लंघन किया है? ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट में केस कब बनता है? एनबीटी ने कई पुलिस अधिकारियों से बात कर इस कानून को समझने की कोशिश की। एक अधिकारी ने बताया कि ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के लिए सरकार की तरफ से उसका नोटिफिकेशन होता है कि यह बात ऑफिशल सीक्रेट है, इसे लीक नहीं किया जा सकता। फोन टैपिंग के मामले में भी सरकार ने किसी जमाने में इसका नोटिफिकेशन निकाला होगा। नोटिफिकेशन एक ही बार निकलता है, बार-बार नहीं। जैसे रेलवे या आर्मी की तरफ से यदि एक बार यह नोटिफिकेशन निकल गया कि किसी का इस या उस इलाके में जाना मना है, तो वह आदेश तब तक लागू रहेगा, जब तक कि पुराने नोटिफिकेशन को रद्द करने का आदेश न निकले।
26/11 हमले में शामिल 9 आतंकी मारे गए। कई माह बाद उन्हें दफना दिया गया, लेकिन उनकी लाशों को किस जगह दफनाया गया, यह राज अभी भी राज है। क्या यह भी ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट में आता है? मुंबई पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि जहां तक उन्हें याद है्, सरकार का ऑर्डर तो उस वक्त निकला था कि यह खबर लीक नहीं होनी चाहिए, लेकिन उसका नोटिफिकेशन हुआ था या नहीं, उन्हें उस बारे में पता नहीं।
ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के संबंध में किस्सा
रिटायर्ड एसीपी विलास तुपे ने ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के संबंध में एक पुराना किस्सा सुनाया। साल, 1999 में वह सीआईयू में थे्, जब उन्होंने एक पाकिस्तान नागरिक सैय्यद देसाई व कुछ अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया था। तुपे के अनुसार, पाकिस्तान नागरिक ने खड़की एम्युनिशन फैक्ट्री में एक चपरासी डेविड को खरीद लिया था। डेविड जिस कर्नल के ऑफिस में काम करता था, उससे कहा गया था, कि कर्नल के केबिन में आने वाली हर फाइल की झेरॉक्स करवा कर वह उसे यानी पाकिस्तानी नागरिक को फैक्स कर दिया करे। डेविड को बदले में रोज 300 रुपये व एक शराब की बोतल दी जाती थी। पाकिस्तान नागरिक सैय्यद देसाई मुंबई के एक होटल में रहता था। उसे मुंबई के जिन लोगों ने फाइनेंस किया था, उन्हें भी पकड़ा गया था। बाद में केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया। करीब सात साल भारत में जेल में रहने के बाद उसे बाद में पाकिस्तान डिपोर्ट कर दिया गया था।
पूर्व मुख्यमंत्री क्यों हैं नाराज?
अब मूल मुद्दे देवेंद्र फडणवीस से की गई बीकेसी पुलिस की पूछताछ पर आते हैं। गत रविवार को हुई पूछताछ के बाद फडणवीस काफी नाराज दिखे। उन्होंने मीडिया से जो कहा, उसका कुल निचोड़ यह था कि पुलिस ने उनसे जो सवाल पूछे, ऐसा लगा, जैसे, उन्होंने ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट का उल्लंघन किया हो।
एक अधिकारी ने एनबीटी से कहा कि बीकेसी वाले केस में एसआईडी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में भले ही आरोपियों के नाम के आगे अज्ञात शब्द लिखा हो, लेकिन उस एफआईआर से पहले तत्कालीन होम सेक्रेटरी (होम) सीताराम कुंटे ने एक जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पेश की थी, जिसमें तत्कालीन एसआईडी चीफ रश्मि शुक्ला पर गोपनीय रिपोर्ट लीक करने का आरोप लगाया था। सवाल यह है कि शुक्ला ने यह गोपनीय रिपोर्ट किसे लीक की ? यदि देवेंद्र फडणवीस को लीक नही की, तो उनसे क्यों पूछताछ हुई?
देवेंद्र फणडवीस ने कहा कि उन्होंने पिछले साल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक फॉरवर्डिंग लेटर दिखाया था (रश्मि शुक्ला के तब के डीजीपी सुबोध जायसवाल को लिखे पत्र)। लेकिन यह भी कहा था कि वह किसी को ट्रांसक्रिप्ट या पेन ड्राइव नहीं दे सकते क्योंकि यह संवेदनशील सामग्री है। उन्होंने यह सामग्री सक्षम प्राधिकारी को दी। सक्षम प्राधिकारी कौन है? देवेंद्र फणडवीस ने कहा कि चूंकि इन पत्रों में कुछ आईपीएस अधिकारियों (ट्रांसफर, पोस्टिंग से जुड़े) के नाम थे और चूंकि केंद्रीय गृह सचिव इनके सक्षम प्राधिकारी हैं, इसलिए उन्होंने केंद्रीय गृह सचिव को कागजात दिए। फणडवीस का कहना है कि उन्होंने संवेदनशील सामग्री को सार्वजनिक डोमेन में नहीं लाया था। इसलिए उन पर ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट लागू ही नहीं होता।
लेकिन मुंबई पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, जब फणडवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि उनके पास पेन ड्राइव में इतना-इतना डेटा है, तो इसका मतलब साफ है कि उन्हें वह गोपनीय सामग्री लीक तो की ही गई, जो ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के तहत लीक नहीं की जानी चाहिए थी।
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26/11 हमले में शामिल 9 आतंकी मारे गए। कई माह बाद उन्हें दफना दिया गया, लेकिन उनकी लाशों को किस जगह दफनाया गया, यह राज अभी भी राज है। क्या यह भी ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट में आता है? मुंबई पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि जहां तक उन्हें याद है्, सरकार का ऑर्डर तो उस वक्त निकला था कि यह खबर लीक नहीं होनी चाहिए, लेकिन उसका नोटिफिकेशन हुआ था या नहीं, उन्हें उस बारे में पता नहीं।
ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के संबंध में किस्सा
रिटायर्ड एसीपी विलास तुपे ने ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के संबंध में एक पुराना किस्सा सुनाया। साल, 1999 में वह सीआईयू में थे्, जब उन्होंने एक पाकिस्तान नागरिक सैय्यद देसाई व कुछ अन्य आरोपियों को गिरफ्तार किया था। तुपे के अनुसार, पाकिस्तान नागरिक ने खड़की एम्युनिशन फैक्ट्री में एक चपरासी डेविड को खरीद लिया था। डेविड जिस कर्नल के ऑफिस में काम करता था, उससे कहा गया था, कि कर्नल के केबिन में आने वाली हर फाइल की झेरॉक्स करवा कर वह उसे यानी पाकिस्तानी नागरिक को फैक्स कर दिया करे। डेविड को बदले में रोज 300 रुपये व एक शराब की बोतल दी जाती थी। पाकिस्तान नागरिक सैय्यद देसाई मुंबई के एक होटल में रहता था। उसे मुंबई के जिन लोगों ने फाइनेंस किया था, उन्हें भी पकड़ा गया था। बाद में केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया। करीब सात साल भारत में जेल में रहने के बाद उसे बाद में पाकिस्तान डिपोर्ट कर दिया गया था।
पूर्व मुख्यमंत्री क्यों हैं नाराज?
अब मूल मुद्दे देवेंद्र फडणवीस से की गई बीकेसी पुलिस की पूछताछ पर आते हैं। गत रविवार को हुई पूछताछ के बाद फडणवीस काफी नाराज दिखे। उन्होंने मीडिया से जो कहा, उसका कुल निचोड़ यह था कि पुलिस ने उनसे जो सवाल पूछे, ऐसा लगा, जैसे, उन्होंने ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट का उल्लंघन किया हो।
एक अधिकारी ने एनबीटी से कहा कि बीकेसी वाले केस में एसआईडी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में भले ही आरोपियों के नाम के आगे अज्ञात शब्द लिखा हो, लेकिन उस एफआईआर से पहले तत्कालीन होम सेक्रेटरी (होम) सीताराम कुंटे ने एक जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पेश की थी, जिसमें तत्कालीन एसआईडी चीफ रश्मि शुक्ला पर गोपनीय रिपोर्ट लीक करने का आरोप लगाया था। सवाल यह है कि शुक्ला ने यह गोपनीय रिपोर्ट किसे लीक की ? यदि देवेंद्र फडणवीस को लीक नही की, तो उनसे क्यों पूछताछ हुई?
देवेंद्र फणडवीस ने कहा कि उन्होंने पिछले साल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक फॉरवर्डिंग लेटर दिखाया था (रश्मि शुक्ला के तब के डीजीपी सुबोध जायसवाल को लिखे पत्र)। लेकिन यह भी कहा था कि वह किसी को ट्रांसक्रिप्ट या पेन ड्राइव नहीं दे सकते क्योंकि यह संवेदनशील सामग्री है। उन्होंने यह सामग्री सक्षम प्राधिकारी को दी। सक्षम प्राधिकारी कौन है? देवेंद्र फणडवीस ने कहा कि चूंकि इन पत्रों में कुछ आईपीएस अधिकारियों (ट्रांसफर, पोस्टिंग से जुड़े) के नाम थे और चूंकि केंद्रीय गृह सचिव इनके सक्षम प्राधिकारी हैं, इसलिए उन्होंने केंद्रीय गृह सचिव को कागजात दिए। फणडवीस का कहना है कि उन्होंने संवेदनशील सामग्री को सार्वजनिक डोमेन में नहीं लाया था। इसलिए उन पर ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट लागू ही नहीं होता।
लेकिन मुंबई पुलिस के एक अधिकारी के अनुसार, जब फणडवीस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि उनके पास पेन ड्राइव में इतना-इतना डेटा है, तो इसका मतलब साफ है कि उन्हें वह गोपनीय सामग्री लीक तो की ही गई, जो ऑफिशल सीक्रेट ऐक्ट के तहत लीक नहीं की जानी चाहिए थी।
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