प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: ‘जलवायु-कुम्भ’ मनाकर एक नया विश्व-धर्म अपनाएं

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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम:  ‘जलवायु-कुम्भ’ मनाकर एक नया विश्व-धर्म अपनाएं

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: ‘जलवायु-कुम्भ’ मनाकर एक नया विश्व-धर्म अपनाएं

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9 घंटे पहले

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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर

प्रयागराज में महाकुम्भ के रूप में पृथ्वी का सबसे बड़ा धार्मिक समागम चल रहा है। रसद और बुनियादी ढांचे से लेकर भीड़-प्रबंधन और सुरक्षा तक, महाकुम्भ मानवता की एक साझा उद्देश्य की दिशा में एक साथ काम करने की अद्वितीय क्षमता को दर्शाता है। इस समागम को सम्भव बनाने में शामिल सभी लोगों को दिल से नमस्कार! यह उपलब्धि एकता, समन्वय और प्रतिबद्धता की शक्ति का प्रमाण है।

जब मैं इस विशाल आयोजन को देखकर अचम्भित होता हूं, तो यह सोचने से खुद को रोक नहीं पाता कि क्या हो अगर हम इस अविश्वसनीय सामूहिक ऊर्जा को हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक- जलवायु परिवर्तन में सुधार की ओर निर्देशित करें?

कल्पना करें कि लाखों लोग साथ आ रहे हैं, न केवल पवित्र अनुष्ठान के लिए बल्कि पर्यावरण के लिए सार्थक कार्रवाई करने के लिए भी। कल्पना कीजिए अगर पर्यावरण संरक्षण मानवता का आधुनिक धर्म बन जाए, तो हम भविष्य की पीढ़ियों के लिए अपने ग्रह की सुरक्षा के लिए साझा मिशन में एकजुट हो जाएंगे।

महाकुम्भ दर्शाता है कि जब साझा लक्ष्य से प्रेरित होकर मनुष्य आगे बढ़ता है तो वह क्या हासिल कर सकता है। इस समागम को सम्भव बनाने के लिए हजारों सरकारी अधिकारी, स्वयंसेवक, सुरक्षाकर्मी, सफाईकर्मी अथक परिश्रम करते हैं। अगर हम मनुष्य आध्यात्मिक समागम के लिए एकजुट हो सकते हैं तो जलवायु संकट को सम्बोधित करने के लिए हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते? यकीनन, कर सकते हैं।

जलवायु सुधार की जरूरत पहले कभी इतनी नहीं थी। वर्ष 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया है। दुनिया भर में दुनिया कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन हर साल बढ़ते जा रहा है। पिछले वर्ष 40 अरब मीट्रिक टन से ज्यादा उत्सर्जन हुआ। इस कारण दुनिया भर में आपदाओं की संख्या और तीव्रता भी बढ़ती जा रही।

हाल के ​दिनों में अमेरिका के लॉस एंजेलेस में लगी भीषण आग से लाखों लोग प्रभावित हुए हैं। इस समय धरती पर 2 अरब से ज्यादा लोग पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। साथ ही जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण पिछले साल ही 300 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ है।

महाकुम्भ हमें सिखाता है कि बड़े पैमाने पर सहयोग सम्भव है। अगर हम लाखों लोगों को गंगा में डुबकी लगाने के लिए संगठित कर सकते हैं तो हम अपनी नदियों को स्वस्थ करने, हवा को साफ करने और जंगलों की रक्षा करने के लिए क्यों नहीं इकट्ठा हो सकते?

पर्यावरण-बहाली मानवता का साझा पवित्र लक्ष्य क्यों नहीं बन सकती? पर्यावरण संरक्षण हमारी दुनिया का आधुनिक धर्म बन सकता है और बनना भी चाहिए। धर्म की तरह, इसके लिए साझा मूल्यों की आवश्यकता है- करुणा, प्रबंधन और प्राकृतिक दुनिया के प्रति सम्मान।

यह सस्टेनेबल जीवन जीने के अनुष्ठानों की मांग करता है- ऊर्जा की खपत घटाना, जल-संरक्षण, पेड़ लगाना और कचरे का जिम्मेदारी से प्रबंधन। भी पवित्र नदी और प्राकृतिक संसाधन दोनों है। गंगा की रक्षा आध्यात्मिक कार्य ही नहीं, पर्यावरणीय आवश्यकता भी है। पर्यावरण संतुलन बहाल करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी बननी चाहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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