प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं सांची के स्तूप | Sanchi stupas are a symbol of love, peace, faith and courage | Patrika News

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प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं सांची के स्तूप | Sanchi stupas are a symbol of love, peace, faith and courage | Patrika News

प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं सांची के स्तूप | Sanchi stupas are a symbol of love, peace, faith and courage | Patrika News

इस ऐतिहासिक स्तूप का निर्माण मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक अशोक द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पू. में किया गया था। इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिए गए ऊंचे समान का प्रतीक रूपी एक छत्र था। इसका निर्माण कार्य सम्राट अशोक की पत्नी महादेवी सक्यकुमारी को सौंपा था। जो विदिशा के व्यापारी की ही बेटी थी। सांची उनका जन्मस्थान और उनके और सम्राट अशोक के विवाह का स्थान भी था। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं।

इस स्तूप को पहले ईंटो से बनवाया गया था, जिसे शुंग काल के दौरान पत्थरों से ढंक दिया गया। इस स्तूप में तोरण द्वारो और कटघरों का निर्माण सातवाहन काल में किया गया था, जिन्हें सुंदर रंगो से रंगा गया था। माना जाता है की द्वार पर बनायी गयी कलाकृतियां और द्वारों के आकार को सातवाहन राजा सातकर्णी ने ही निर्धारित किया था। इसकी ऊंचाई लगभग 16.4 मीटर है और इसका व्यास 36.5 मीटर है।

इसलिए विशेष हैं सांची स्तूप

1. सांची में मौजूद स्तूप भारत में सबसे पुरानी पत्थर की संरचना है, जिसका निर्माण तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक मोर्य ने कराया था।

2. सांची के स्तूप 14वीं शताब्दी तक निर्जन हो गया था, क्योंकि इनके संरक्षण के लिए उस समय किसी भी शासक ने इस पर ध्यान नही दिया।

3. इन स्तूपों की खोज वर्ष 1818 में एक ब्रिटिश अधिकारी जनरल टेलर ने की थी।

4. जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन मार्शल को इसके पुनर्निर्माण का कार्यभार सौंपा था। वर्ष 19121919 तक इस स्तूप की संरचना कर इसे पुन: खड़ा किया गया।

5. यह स्तूप भारत के सबसे बड़े स्तूपों में से एक है, जिसकी ऊंचाई लगभग 21.64 मीटर और व्यास 36.5 मीटर है।

6. 6. इस स्तूप के निकट सबसे प्रसिद्ध अशोक स्तंभ, जिसमें सारनाथ की तरह चार शेर शामिल हैं पाया गया है। साथ ही यहां बड़ी संया में ब्राह्मी लिपि के शिलालेख पाए गए हैं।

7. सर जॉन मार्शल ने वर्ष 1919 में इसे संरक्षित रखने के लिए एक पुरातात्विक संग्रहालय की स्थापना की, जिसे बाद में सांची पुरातत्व संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया।

8. सांची नामक स्थान का गौतम बुद्ध द्वारा कभी भी दौरा नहीं किया गया था, भले ही आज इस स्थान पर बौद्ध धर्म का अपना एक ऐतिहासिक महत्व हो।

9. इस स्तूप का निर्माण बौद्ध अध्ययन और बौद्ध शिक्षाओं को सिखाने के लिए किया गया था।

10. यूनेस्को ने सांची के स्तूप की संरचना और शिल्पकारिता को देखते हुए वर्ष 1989 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।



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