प्रदेश में सरकार बदलने के साथ ही ग्रेटर निगम से आई ऐसी बड़ी खबर, यहां जानें | Approval to 7 committees of Jaipur Greater Municipal Corporation | News 4 Social h3>
ये भी बने चेयरमैन
नगरीय विकास कर के विकास बारेठ, सामाजिक सहायक एवं लोक कल्याण के गजेंद्र सिंह चिराना, वर्षा जल पुनर्भरण एवं संरक्षण शंकर लाल शर्मा, फुटकर व्यवसाय पुनर्वास अरुण शर्मा, सीवरेज संधारण के अक्षत खुंटेटा, अतिक्रमण निरोधक समिति के लक्ष्मण लूणीवाल और अवैध भवन निर्माण निरोधक समिति के नरेंद्र सिंह को चेयरमैन बनाया गया है।
आपसी विवाद में नहीं हो पाया मनोनयन
राजधानी के दोनों नगर निगम में पिछली कांग्रेस सरकार ने पार्षदों का मनोनयन नहीं किया। इसके पीछे उस समय कांग्रेस के क्षेत्रीय विधायकों का आपसी विवाद माना जा रहा था। राज्य में सरकार बदलने के बाद अब भाजपा दोनों निकायों में पार्षदों के मनोनयन पर काम कर रही है।
पहले होते थे तीन अब हुए 12
जयपुर नगर निगम के पहले बोर्ड में मनोनीत पार्षदों की संख्या तीन होती थी। पिछली सरकार ने नगर निगमों में यह संख्या बढ़ाकर 12 कर दी। राजधानी में दो नगर निगम होने से यह संख्या 24 हो गई।
इनका अलग होता प्रभाव
– इन पार्षदों का मनोनयन सरकार करती है। ऐसे में हर मनोनीत पार्षद का अपना प्रभाव होता है। यही वजह है कि नगर निगम में इन पार्षदों की सुनी जाती है। आम पार्षदों की तरह विकास कार्य के लिए बजट मिलता है।
– इन पार्षदों को वोट डालने का अधिकार नहीं होता। बाकी साधारण सभा की बैठक में चुने हुए पार्षदों की तरह हिस्सा ले सकते हैं।
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हैरिटेज: संगठन चुप, पार्षदों में बेचैनी
हैरिटेज निगम में भाजपा पार्षद अपना महापौर बनाने के लिए लामबंद हैं। लेकिन संगठन के चुप होने से पार्षदों में बेचैनी है। इन पार्षदों का कहना है कि कांग्रेस सरकार में भी विकास कार्य नहीं हुए और अब भाजपा की सरकार है फिर भी महापौर की कुर्सी कांग्रेस के खाते में है। हालांकि, भाजपा पार्षद सीधे तौर पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। कांग्रेस का बोर्ड होने के बाद भी अब तक यहां समितियों का गठन नहीं हो पाया है। बीते दिनों शहर भाजपा कार्यालय पर पार्षदों की बैठक भी हुई थी। लेकिन, बैठक के बाद संगठन के स्तर पर कोई हलचल देखने को नहीं मिली। इधर, भाजपा की ओर से महापौर पद के दावेदार कांग्रेस पार्षदों से सम्पर्क बनाए हुए हैं।
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आपसी विवाद में नहीं हो पाया मनोनयन
राजधानी के दोनों नगर निगम में पिछली कांग्रेस सरकार ने पार्षदों का मनोनयन नहीं किया। इसके पीछे उस समय कांग्रेस के क्षेत्रीय विधायकों का आपसी विवाद माना जा रहा था। राज्य में सरकार बदलने के बाद अब भाजपा दोनों निकायों में पार्षदों के मनोनयन पर काम कर रही है।
पहले होते थे तीन अब हुए 12
जयपुर नगर निगम के पहले बोर्ड में मनोनीत पार्षदों की संख्या तीन होती थी। पिछली सरकार ने नगर निगमों में यह संख्या बढ़ाकर 12 कर दी। राजधानी में दो नगर निगम होने से यह संख्या 24 हो गई।
इनका अलग होता प्रभाव
– इन पार्षदों का मनोनयन सरकार करती है। ऐसे में हर मनोनीत पार्षद का अपना प्रभाव होता है। यही वजह है कि नगर निगम में इन पार्षदों की सुनी जाती है। आम पार्षदों की तरह विकास कार्य के लिए बजट मिलता है।
– इन पार्षदों को वोट डालने का अधिकार नहीं होता। बाकी साधारण सभा की बैठक में चुने हुए पार्षदों की तरह हिस्सा ले सकते हैं।
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