पॉजिटिव स्टोरी- MBA वाला बेच रहा आटा, दाल-चावल: 12 करोड़ का बिजनेस; ₹28 लाख का पैकेज छोड़ शुरू की बायो-फोर्टिफाइड कंपनी h3>
‘2018-19 का साल था। मैं दिल्ली से सटे गुड़गांव की एक कंपनी में जॉब कर रहा था। सालाना 28 लाख का पैकेज था। एक रोज अचानक मन बना लिया कि अब नौकरी नहीं करनी। अपने शहर लौटना है।
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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पला-बढ़ा हूं। रहने वाला सीतापुर का हूं। मैं अपने शहर लौट आया। जॉब छोड़ने से पहले तय कर लिया था कि अब बिजनेस करूंगा। पापा का ट्रांसपोर्टेशन और एग्रीकल्चर से जुड़ा हुआ बिजनेस था।
जब मैंने एग्रीकल्चर सेक्टर में बिजनेस करने का प्लान बनाया, तब सभी चौंक गए। पापा कभी नहीं चाहते थे कि मैं एग्रीकल्चर सेक्टर में बिजनेस करूं। उनका कहना था- देश के टॉप इंस्टीट्यूट से इकोनॉमिक्स ऑनर्स किया है। देश के टॉप मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से MBA किया है।
अब खेती करना चाहते हो। दाल-चावल बेचोगे। पागल हो गए हो क्या…। ’
बायो-फोर्टिफाइड, दाल-चावल जैसे न्यूट्रिशन बेस्ड अनाज बेचने वाली कंपनी ग्रीनडे ‘बेटर न्यूट्रिशन’ के को-फाउंडर प्रतीक रस्तोगी ये बातें बता रहे हैं। मैं अभी लखनऊ में हूं।
प्रतीक के टेबल पर कुछ पैकेट्स रखे हुए हैं। पूछने पर कहते हैं, ‘यह बायो-फोर्टिफाइड चावल, दाल, बाजरा, रागी, आटा जैसे प्रोडक्ट्स हैं। हम इसे बेचते हैं। ग्रीनडे मतलब किसान की दुकान।’
प्रतीक की कंपनी ‘ग्रीनडे’ बेटर न्यूट्रिशन नाम से न्यूट्रिशन बेस्ड अनाज बेचती है।
प्रतीक मुझे अपना ऑफिस और वेयरहाउस दिखा रहे हैं।
बातचीत में प्रतीक बार-बार बायो-फोर्टिफाइड का जिक्र कर रहे हैं। पूछने पर कहते हैं, ‘बायो-फोर्टिफिकेशन एक प्रोसेस है। जिसमें किसी भी अनाज के सीड्स की ब्रीडिंग कराई जाती है। लैब टेस्टिंग के बाद खेतों में ट्रायल किया जाता है। इससे पता चलता है कि किसी भी अनाज में जो सामान्य न्यूट्रिशंस होते हैं वो बायो-फोर्टिफिकेशन के बाद कितना बढ़ जाते हैं।
हरित-क्रांति का एक दौर चला था, तब हम लोग भुखमरी के शिकार थे। इसके बाद पैदावार बढ़ाने पर फोकस किया जाने लगा। इस रेस में हम भूल गए कि जो अनाज हमारी थाली में परोसा जा रहा है, उसमें कितना न्यूट्रिशन है।
यही वजह है कि हमारे शरीर में कई तरह के विटामिन, मिनरल्स की कमी हो रही है। हम अनाज तो खा रहे हैं, लेकिन जो पोषक तत्व चाहिए, वो नहीं मिल रहे। इसी प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए हमने बायो-फोर्टिफाइड अनाज बेचना शुरू किया।’
प्रतीक के साथ उनकी पत्नी और इस कंपनी की को-फाउंडर, डायरेक्टर एश्वर्या भटनागर हैं।
प्रतीक के वेयर हाउस में एक-एक करके अलग-अलग साइज के चावल-आटे, दाल, दलिया जैसे प्रोडक्ट्स के पैकेट पैक किए जा रहे हैं।
वे कहते हैं, ‘यहां से 100 किलोमीटर दूर सीतापुर एक शहर है। मूल रूप से यहीं का रहने वाला हूं। इसी जगह के किसानों के साथ मिलकर हम लोग बायो-फोर्टिफाइड खेती करते हैं। करीब एक हजार एकड़ में ये खेती होती है। 700 से ज्यादा किसान जुड़े हुए हैं।
फसल को प्रोसेस करने के बाद लखनऊ में पैकेजिंग और फिर कस्टमर तक पहुंचाया जाता है। अब ऑनलाइन का जमाना है। हर कोई घर बैठे हेल्दी ग्रेन्स मंगवाना चाहता है। अभी हम लोग ऑनलाइन ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर सेल कर रहे हैं।
देशभर के 25 शहरों में अभी हमारी सर्विस है। अब हम सुपर मार्केट में जाने का प्लान कर रहे हैं।’
प्रतीक और एश्वर्या की सीतापुर में किसानों के साथ काम करने के दौरान की तस्वीरें।
आपका एग्रीकल्चर में इंट्रेस्ट था क्या?
वो कहने लगे, ‘कुछ ही साल सीतापुर में रहा हूं। उसके बाद उत्तराखंड और फिर लखनऊ पढ़ाई के लिए आ गया। मैं घर का इकलौता हूं, जिसने इतनी हायर एजुकेशन ली है।
12वीं के बाद दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में इकोनॉमिक्स में एडमिशन ले लिया। फिर IIM अहमदाबाद MBA करने चला गया। वहां जब एडमिशन हुआ और बाकी बच्चों को देखा कि वह किस कदर परेशान हैं, तब मुझे भी शुरुआत में लगने लगा कि कहां आ गया।
जब पासआउट हुआ, तो गुड़गांव बेस्ड एक बड़ी कंपनी में जॉब लग गई। खेती-किसानी के बारे में सिर्फ किताबों में पढ़ा था। गांव के किसानों को खेती करते हुए देखा था।
लोगों को ऐसा लगता है कि जो खेती कर रहा है, वह अनपढ़ ही होगा, लेकिन अब समय बदल रहा है। पापा चाहते थे कि मैं बिजनेस तो करूं, लेकिन किसी और सेक्टर में।’
ये प्रतीक की फैमिली फोटो है। उनके पिता ट्रांसपोर्टेशन और एग्रीकल्चर बिजनेस करते हैं।
ऑफिस में प्रतीक के साथ उनकी पत्नी और इस कंपनी की को-फाउंडर ऐश्वर्या भी हैं।
प्रतीक कहते हैं, ‘गुड़गांव से शहर लौटने के बाद मैं बिजनेस को लेकर अलग-अलग रिसर्च कर रहा था। कई सेक्टर खंगाले। एजुकेशन, हेल्थ, एग्रीकल्चर…। इस तरह के दर्जनों आइडिया पर स्टडी के बाद मुझे एग्रीकल्चर सेक्टर में बायो-फोर्टिफाइड बेस्ड अनाज का गैप दिखा।
2018 की बात है। घर पर मेरी शादी को लेकर भी बात चलने लगी। सबको यही लग रहा था कि अब तो यह जॉब भी छोड़ चुका है। शादी में दिक्कतें आएंगी, लेकिन जब ऐश्वर्या से मिला, तो हम दोनों ने अपना फ्यूचर प्लान शेयर किया।
ऐश्वर्या ने मुंबई से फूड एंड न्यूट्रिशंस में पढ़ाई की है। शादी के बाद हम दोनों सीतापुर चले गए। वहां करीब 4 साल तक रहा। हमने वेयरहाउस में रातें गुजारी हैं। जिसमें हम दोनों रहते थे, उसी में एक तरफ अनाज की बोरियां भरी होती थीं।
किसानों से मिलना शुरू किया। उनका कहना था- हमें तो अनाज उपजाना है। सामान्य सीड्स का उपजाऊ या बायो-फोर्टिफाइड। हम एग्रीकल्चर के स्टूडेंट्स और एग्री साइंटिस्ट के साथ मिलकर सीड्स पर टेस्टिंग करने लगे। इसमें करीब 2 साल का वक्त लग गया।’
बायो-फोर्टिफिकेशन के बाद सीड्स को किसानों को दिया जाता है। किसान इसे उपजाते हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग करते हैं।
प्रतीक गेहूं के सीड्स दिखा रहे हैं। कहते हैं, ‘शुरुआत में बिजनेस करने के लिए तकरीबन 40 लाख रुपए की जरूरत थी। सेविंग्स के करीब 20 लाख रुपए थे। मैंने एक साल तक जॉब की थी। घर का कोई खर्च नहीं था। बाकी के 20 लाख रुपए मां से लिया।
ये सारे पैसे रिसर्च में खर्च हो गए। उसके बाद मैंने IIM अहमदाबाद के एलुमिनाई के साथ मिलकर फंड जुटाना शुरू किया। करीब 3 करोड़ रुपए मिले थे। मुझे याद है- सीतापुर में रहने के दौरान मेरे महीने के खर्च महज 20 से 25 हजार रुपए होते थे।
बिजनेस का पहला मंत्र यही है कि यदि हम बिजनेस करना चाहते हैं, तो अपने खर्चे में से कटौती करनी पड़ेगी। मैंने कई सालों तक फ्लाइट से ट्रैवल नहीं किया। जहां भी जाना होता, ट्रेन से जाता। लोगों को आश्चर्य होता था कि जो व्यक्ति 30 देशों में रह चुका है, घूम चुका है। वह अपना जीवन ऐसे बिता रहा है।’
ये प्रतीक की टीम फोटो है।
प्रतीक के प्रोडक्ट पर बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु की तस्वीर छपी है। पूछने पर बताते हैं, ‘2024 में मैंने अपना ब्रांड लॉन्च किया था। नया ब्रांड, कौन ट्रस्ट करता। कुछ सीनियर ने सजेस्ट किया कि पीवी सिंधु को अप्रोच करूं। मुझे लगा कि इतनी बड़ी हस्ती। वह मेरे ब्रांड के लिए क्यों मार्केटिंग करेंगी।
उनसे जब अपना विजन शेयर किया, तो वह मान गईं। कंपनी की ब्रांड एंबेसडर बन गईं। इसके बदले मैंने उन्हें कंपनी में शेयर दिया है।
हमारा टारगेट अर्बन कंज्यूमर है। लोग इसे खरीद रहे हैं। हर रोज एक हजार के करीब ऑर्डर आते हैं।’
प्रतीक का कहना है कि जैसे-जैसे लोग हेल्थ को लेकर जागरूक होते जा रहे हैं, आने वाले वक्त में अब लोग बायो-फोर्टिफाइड फूड की तरफ बढ़ेंगे। प्रतीक कहते हैं, ‘जो शुरुआत हम दोनों (प्रतीक-ऐश्वर्या) से हुई थी, आज 50 से ज्यादा लोगों की टीम है। 700 से ज्यादा किसान हैं और सालाना 12 करोड़ का बिजनेस है।