पॉजिटिव स्टोरी- खदानों के लिए बनाई डिवाइस, टर्नओवर डेढ़ करोड़: डालमिया, अडाणी जैसी माइनिंग कंपनियां हैं कस्टमर

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पॉजिटिव स्टोरी- खदानों के लिए बनाई डिवाइस, टर्नओवर डेढ़ करोड़:  डालमिया, अडाणी जैसी माइनिंग कंपनियां हैं कस्टमर

पॉजिटिव स्टोरी- खदानों के लिए बनाई डिवाइस, टर्नओवर डेढ़ करोड़: डालमिया, अडाणी जैसी माइनिंग कंपनियां हैं कस्टमर

‘2015-16 की बात है। कॉलेज से माइनिंग इंजीनियरिंग करने के बाद कुछ माइनिंग साइट पर गया, जहां खदानों की खुदाई होती है। वहां देखा कि बड़ी-बड़ी मशीनें काम कर रही हैं।

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खदान से माल को मशीन के जरिए उठाया जा रहा है। लोड किया जा रहा है।

एक माइनिंग साइट पर कई मशीनें और दर्जनों लोग एक साथ काम कर रहे थे, लेकिन इन सारी चीजों की मॉनिटरिंग एक पेन-पेपर पर हो रही थी।

माइनिंग साइट से आने के बाद मैं कई दिनों तक सोचता रहा कि क्या इसका कोई सॉल्यूशन नहीं है? फिर मैंने अपने दोस्त के साथ मिलकर MDT यानी मोबाइल डेटा टर्मिनल डिवाइस और एक प्लेटफॉर्म ‘माइनोकूलर बनाया। इस डिवाइस और प्लेटफॉर्म के जरिए माइनिंग कंपनियों की पूरी एक्टिविटी एक साथ ट्रैक होने लगती है। आज डालमिया, अडाणी जैसी कंपनियां हमारी कस्टमर हैं।’

ये बातें छत्तीसगढ़ के रहने वाले मोहित साहू बता रहे हैं। उनके हाथ में एक डिवाइस है। इसे मोबाइल डेटा टर्मिनल डिवाइस कहते हैं।

मोहित साहू MDT डिवाइस दिखा रहे हैं। यही डिवाइस खदानों में वर्किंग एक्टिविटी को मॉनिटर करती है।

यह डिवाइस करती क्या है? मैं मोहित से पूछता हूं।

वह कहने लगे, ‘जिस तरह गाड़ी में जीपीएस लगा होता है। जिसकी मदद से गाड़ी की लोकेशन ट्रैक कर सकते हैं। यह डिवाइस भी बिल्कुल ऐसे ही काम करती है। किसी खदान में खुदाई के समय, कई लेवल पर अलग-अलग तरह के मैनपावर, मशीनें काम कर रही होती हैं।

साइट के भी अलग-अलग पॉइंट होते हैं। मान लीजिए कि माइनिंग एरिया 5 किलोमीटर तक फैला है, तो इसमें भी अलग-अलग लोकेशन होंगी। यहां जो मशीनें होती हैं। उसमें यह डिवाइस सेट किया जाता है।

इससे मैन्युअली मॉनिटर करने का झंझट नहीं रहता है। एक लोकेशन पर बैठकर हम मॉनिटर कर सकते हैं। हमने जो डिवाइस बनाई है, उसमें अलर्ट से लेकर मशीन के खराब होने तक की जानकारी मिलती है।’

माइनिंग से पहले साइट का सर्वे किया जाता है। उसी का ग्राफ और मैप मोहित दिखा रहे हैं।

मोहित आगे कहते हैं, ये डिवाइस हमें माइनिंग से जुड़ी लगभग सारी अपडेट देती है। किस गाड़ी को मेंटेनेंस की जरूरत है। दो गाड़ियां आमने-सामने आ जाएं, या बहुत नजदीक हों तो उसका अलर्ट। मशीन ऑपरेट करने में ऑयल कितना खर्च हो रहा है। हर दिन का प्रोडक्शन कितना है। ऐसी कई जरूरी बातों का अपडेट ये डिवाइस देती है।

मोहित के हाथ में एक लैपटॉप है। इसमें वो मैप दिखा रहे हैं। इसे मार्क किया गया है।

मोहित कहते हैं, ‘किसी भी साइट पर माइनिंग से पहले उस एरिया का सर्वे होता है। फिर ड्रिलिंग होती है। उसके बाद ब्लास्ट किया जाता है। फिर खुदाई की प्रोसेस शुरू होती है। चार स्टेप्स में इसे फॉलो किया जाता है।’

मोहित के साथ पुरु अग्रवाल हैं। पुरु अग्रवाल के पापा किसान रहे हैं।

मोहित के साथ उनके दोस्त पुरु अग्रवाल भी हैं। मोहित बताते हैं, ‘छत्तीसगढ़-ओडिशा बॉर्डर पर एक जिला है- रायगढ़। मैं वहीं का रहने वाला हूं। पापा पुलिस में थे। छत्तीसगढ़ में कई जगह माइनिंग होती रही है।

12वीं के बाद जब आगे की पढ़ाई के बारे में सोच रहा था, तो किसी ने पापा से कहा कि बेटे को माइनिंग इंजीनियरिंग करा दीजिए, बहुत पैसा है। अच्छी सैलरी मिलेगी। उन्होंने माइनिंग में एडमिशन लेने के लिए कहा।

मेरा पैशन कंप्यूटर साइंस और आईटी को लेकर था, लेकिन घरवालों की बात माननी पड़ी। जब कॉलेज आया, तो पढ़ाई के साथ-साथ साइबर सिक्योरिटी को लेकर गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ काम किया।

अब पापा कहने लगे, क्या चोरी-चकारी वाला काम करते हो। माइनिंग पर फोकस करो। इसी दौरान पुरु से मिलना हुआ। हमने शुरुआत में कुछ सॉफ्टवेयर और टेक-एजुकेशन स्टार्टअप भी शुरू किए, लेकिन फेल हो गए।’

मोहित एक किस्सा बताते हैं, ‘बाइजू की तरह हमने एक डिजिटल एजुकेशन का बिजनेस शुरू किया था, लेकिन स्केल न होने की वजह से उसे कुछ महीने बाद ही बंद करना पड़ा।

कॉलेज के बाकी बच्चों का प्लेसमेंट हो चुका था और हम अपना काम करने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे। जब पुरु ने बताया कि छत्तीसगढ़ माइनिंग हब है और यहां माइनिंग मॉनिटरिंग के लिए इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की दिक्कतें हैं, तब हमें इसमें बिजनेस स्कोप दिखा।’

मोहित की ये टीम फोटो है। उनकी टीम में अभी 20 से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं।

हम दोनों शुरू से घर में परिवार के साथ रहे हैं, कभी अकेले नहीं रहे। इसलिए कहीं दूर रहकर जॉब या बिजनेस करना भी मुश्किल था। 2016 में हम दोनों ने मिलकर ‘ब्लू बैनयन’ की शुरुआत की।’

मोहित बताते हैं, ‘करीब 6 महीने में हम दोनों ने इस MDT डिवाइस को तैयार किया। छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से 20 लाख का पहला इन्वेस्टमेंट फंड मिला। उसके बाद 35 लाख का एक फंड आईआईएम अहमदाबाद से मिला।

माइनिंग सेक्टर बहुत छोटा है। यह ओपन सेक्टर भी नहीं है। कोई भी माइनिंग कंपनी अपनी मार्केटिंग नहीं करवाती है। शुरुआत में हमने छोटी-छोटी माइनिंग कंपनियों को अप्रोच किया। उन्हें इस डिवाइस के बारे में बताया। इसके बाद रेफरेंस से दूसरे-तीसरे क्लाइंट मिलने लगे।

आज हम 5 से ज्यादा क्लाइंट के साथ, उनकी माइनिंग साइट्स पर काम कर रहे हैं। इसमें डालमिया, अडाणी जैसी बड़ी माइनिंग कंपनियां भी हैं।’

इस तरह से किसी साइट पर ब्लास्ट किया जाता है। उसके बाद माइनिंग होती है।

मोहित अपना बिजनेस मॉडल समझाते हैं। कहते हैं, ‘इसे हम वन टाइम इंस्टॉलमेंट या सब्सक्रिप्शन बेसिस पर माइनिंग कंपनी को प्रोवाइड कराते हैं। जो कंपनी सब्सक्रिप्शन मॉडल लेती है, इसमें डिवाइस के इंस्टॉलेशन से लेकर टेक्निकली मॉनिटरिंग, सबकुछ हमारी टीम करती है।

अभी कंपनी में 20 से ज्यादा लोग हैं। कुछ ऐसे भी लोग हमारी टीम में हैं, जिन्हें मैंने पढ़ाया है। दरअसल, मैं शुरुआत में लेक्चर लेने के लिए कॉलेज जाता था। वहां से भी कुछ लोगों की टीम बनाई। आज कंपनी का सालाना बिजनेस डेढ़ करोड़ का है। पहले साल जब हमने शुरुआत की थी, तो बमुश्किल 20 लाख का बिजनेस हुआ था।’

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