पैसे का चक्कर बाबू भैया! MCD की स्टैंडिंग कमिटी को लेकर यूं ही नहीं गुत्थमगुत्था हैं BJP और AAP के पार्षद
एमसीडी की स्टैंडिंग कमिटी क्या है?
स्टैंडिंग कमिटी में छह सदस्य होते हैं जिनका चुनाव पार्षद सदन की पहली बैठक में करते हैं। चुनाव में हर जोनल/वार्ड कमिटी से 12 लोग भी शामिल होते हैं। एमसीडी की स्थायी समिति के सदस्यों का कार्यकाल अधिकतम दो साल के लिए होता है। रिटायर हो चुके सदस्य फिर से चुनाव लड़ सकते हैं। स्टैंडिंग कमिटी के पास सारे वित्तीय और नियुक्तियों से जुड़े मामलों पर फैसले लेने का अधिकार है।
स्टैंडिंग कमिटी के सदस्यों के चुनाव पर इतना बवाल क्यों?
एमसीडी की स्थायी समिति के पास सभी वित्तीय मामलों पर फैसले का अधिकार है। ऐसे में इसकी भूमिका बेहद अहम हो जाती है। बजट अनुमान को स्टैंडिंग कमिटी का अप्रूवल चाहिए होता है। प्रस्तावों में किसी तरह के बदलाव को स्थायी समिति से हरी झंडी की जरूरत होती है। यहां तक कि कमिश्नर को भी वित्त से जुड़े कई मामलों में स्टैंडिंग कमिटी से मंजूरी लेनी पड़ती है। केंद्र ने जो रकम तय की है, उससे ज्यादा के प्रस्ताव की मंजूरी देनी है तो कमिश्नर को पहले स्टैंडिंग कमिटी के पास जाना पड़ता है। सदन के पटल पर रखे जाने से पहले एमसीडी के सारे प्रस्ताव कमिटी के सामने रखे जाते हैं। स्टैंडिंग कमिटी में जिस पार्टी का बहुमत होगा, जाहिर है वित्तीय मामलों में उसी की चलेगी।
अपनी एमसीडी को जानिए, मेयर की शक्तियां
दिल्ली नगर निगम में चर्चा वाली विंग की कमान मेयर संभालते हैं। मेयर का रोल काफी कुछ विधानसभा के स्पीकर जैसा है। सदन की बैठकों की अध्यक्षता मेयर ही करते हैं। इस बार आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय मेयर चुनी गई हैं। उनके पास विवेकाधीन निधि जारी करने और प्रस्तावों को अग्रिम मंजूरी देने का अधिकार रहेगा। मेयर के पास निगम के सारे रिकॉर्ड्स का एक्सेस होता है। वे किसी भी मसले पर कमिश्नर से रिपोर्ट तलब कर सकते हैं।
एमसीडी के कमिश्नर क्या करते हैं?
कमिश्नर एमसीडी की नौकरशाही के मुखिया होते हैं। उनके जिम्मे एमसीडी की नीतियों और सिफारिशों को लागू कराने की जिम्मेदारी होती है। वह सेक्रेटरी और चीफ ऑडिटर को छोड़ सभी म्यूनिसिपल ऑफिसर्स को काम सौंपते हैं।