पिता की संपत्ति में बेटियों के हक पर ‘सुप्रीम’ फैसला, पर खेती वाली जमीन में बराबर हिस्सेदारी कब? h3>
हाइलाइट्स
- पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
- बिना वसीयत पिता की मृत्यु पर बेटियां होंगी संपत्ति पाने की हकदार
- खेतिहर जमीन के उत्तराधिकार में महिलाओं से अब भी हो रहा भेदभाव
- दिल्ली में बेटियों के कृषि भूमि में उत्तराधिकार नहीं, यूपी में बेटियां पीछे
नई दिल्ली : संपत्ति की विरासत से जुड़ा एक और अधिकार महिलाओं को मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि बेटियों को उनके पिता की संपत्ति में बराबरी का हक मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि बिना वसीयत के मृत हिंदू पुरुष की बेटियां पिता की स्व-अर्जित और अन्य संपत्ति पाने की हकदार होंगी। उनका हक हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 लागू होने के पहले से मान्य होगा। अदालत ने यह भी कहा कि महिलाओं की परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा वरीयता होगी। 51 पन्नों का यह फैसला महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत की रूप में देखा जा रहा है।
भारत जैसे देश में महिलाओं को उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में खासी सामाजिक और कानूनी अड़चनों से जूझना पड़ता है। हाल ही में जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 में 43% महिलाओं ने घर/जमीन का मालिकाना हक होने की बात कही। इसके बाद भी महिलाओं के संपत्ति पर असल अधिकार और नियंत्रण पर संदेह होता है। 2020 में मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी की एक स्टडी बताती है कि गांवों में केवल 16% महिलाएं ही जमीन का मालिकाना हक रखती हैं।
खेती की जमीन पर हक कब मिलेगा?
महिलाओं के लिए संपत्ति के अधिकारों में बड़ा पेच कृषि भूमि का है। कृषि भूमि का उत्तराधिकार राज्य के कानूनों के हिसाब से चलता है और वह धर्म आधारित नहीं है। सेंट्रल पर्सनल लॉ और राज्य के कानूनों में काफी विरोधाभास है। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर व पंजाब में बेटियों और बहनों को कृषि भूमि में अधिकार नहीं मिलता। विधवाओं और महिलाओं को कुछ अधिकार जरूर मिले हैं मगर वे वरीयता के क्रम में पुरुषों से पीछे हैं। दिल्ली में विधवाओं को कृषि भूमि पर अधिकार दिया गया है मगर बेटियों को नहीं।
उत्तर प्रदेश में बेटियां और बहनों को कृषि भूमि में हिस्सा मिलता है मगर वे वरीयता क्रम में नीचे हैं। 2015 में लागू हुए यूपी रेवेन्यू कोड, 2006 के अनुसार, कृषि भूमि के संबंध में जहां कोई वसीयत नहीं है, शादीशुदा बेटियों को तभी हिस्सा मिलेगा जब मृतक की विधवा, पुरष उत्तराधिकारी, मां, पिता या कोई अविवाहित बेटी न हो।
हरियाणा ने तो दो बार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत महिलाओं को मिले अधिकार भी छीन लेने की कोशिश की। इसके अलावा भी कई राज्यों में महिलाओं को संपत्ति देने का विरोध होता रहा है। जब तक कृषि भूमि के संबंध में भी महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिलता, उनके संपत्ति अधिकारों का यह विषय अधूरा ही रहेगा।
सांकेतिक तस्वीर
हाइलाइट्स
- पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
- बिना वसीयत पिता की मृत्यु पर बेटियां होंगी संपत्ति पाने की हकदार
- खेतिहर जमीन के उत्तराधिकार में महिलाओं से अब भी हो रहा भेदभाव
- दिल्ली में बेटियों के कृषि भूमि में उत्तराधिकार नहीं, यूपी में बेटियां पीछे
भारत जैसे देश में महिलाओं को उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में खासी सामाजिक और कानूनी अड़चनों से जूझना पड़ता है। हाल ही में जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 में 43% महिलाओं ने घर/जमीन का मालिकाना हक होने की बात कही। इसके बाद भी महिलाओं के संपत्ति पर असल अधिकार और नियंत्रण पर संदेह होता है। 2020 में मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी की एक स्टडी बताती है कि गांवों में केवल 16% महिलाएं ही जमीन का मालिकाना हक रखती हैं।
खेती की जमीन पर हक कब मिलेगा?
महिलाओं के लिए संपत्ति के अधिकारों में बड़ा पेच कृषि भूमि का है। कृषि भूमि का उत्तराधिकार राज्य के कानूनों के हिसाब से चलता है और वह धर्म आधारित नहीं है। सेंट्रल पर्सनल लॉ और राज्य के कानूनों में काफी विरोधाभास है। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर व पंजाब में बेटियों और बहनों को कृषि भूमि में अधिकार नहीं मिलता। विधवाओं और महिलाओं को कुछ अधिकार जरूर मिले हैं मगर वे वरीयता के क्रम में पुरुषों से पीछे हैं। दिल्ली में विधवाओं को कृषि भूमि पर अधिकार दिया गया है मगर बेटियों को नहीं।
उत्तर प्रदेश में बेटियां और बहनों को कृषि भूमि में हिस्सा मिलता है मगर वे वरीयता क्रम में नीचे हैं। 2015 में लागू हुए यूपी रेवेन्यू कोड, 2006 के अनुसार, कृषि भूमि के संबंध में जहां कोई वसीयत नहीं है, शादीशुदा बेटियों को तभी हिस्सा मिलेगा जब मृतक की विधवा, पुरष उत्तराधिकारी, मां, पिता या कोई अविवाहित बेटी न हो।
हरियाणा ने तो दो बार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत महिलाओं को मिले अधिकार भी छीन लेने की कोशिश की। इसके अलावा भी कई राज्यों में महिलाओं को संपत्ति देने का विरोध होता रहा है। जब तक कृषि भूमि के संबंध में भी महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिलता, उनके संपत्ति अधिकारों का यह विषय अधूरा ही रहेगा।
सांकेतिक तस्वीर