पारम्परिक पगड़ी-साफा की खूबसूरती दूल्हे की पहचान, मंडप सामग्री हुई फैंसी | matrimonial material market in jabalpur | Patrika News

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पारम्परिक पगड़ी-साफा की खूबसूरती दूल्हे की पहचान, मंडप सामग्री हुई फैंसी | matrimonial material market in jabalpur | Patrika News

पारम्परिक पगड़ी-साफा की खूबसूरती दूल्हे की पहचान, मंडप सामग्री हुई फैंसी | matrimonial material market in jabalpur | Patrika News

विवाह सीजन के दौरान शहर में साफा-पगड़ी का दो करोड़ रुपए का कारोबार

जबलपुर। बस कुछ ही दिन का इंतजार, फिर गली मोहल्लों से लेकर होटल मॉल तक में शहनाइयों की गूंज सुनाई देगी। इसके लिए अभी खरीददारी जारी है। विवाह सामग्री में आवश्यक साफा-पगड़ी की खूबसूरती ही दूल्हे की पहचान होती है। शहर में हर बजट के अनुसार दूल्हे की पगड़ी मौजूद हैं।
एक अनुमान के अनुसार दूल्हे को लगने वाली सामग्री का शहर में दो करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार होता है। वहीं मंडप, खाम में भी अब लोग फैंसी आइटमों की मांग करने लगे हैं।
250 से 3500 रुपए तक की पगड़ी
निवाडग़ंज स्थित बाजार में वैवाहिक सामग्री विक्रेता अब्दुल हमीद ने बताया कि यहां की दुकानों में आज भी पारम्परिक सामग्री की बिक्री की जाती है। यहां 250 से 500 रुपए वाली दूल्हे की टोपी मिल जाती है। वहीं ऑर्डर पर बजट और डिमांड के अनुसार 3500 रुपए तक की पगड़ी, साफा तैयार किया जाता है। पगड़ी के साथ लगने वाली अन्य वस्तुएं कलगी, माला, कटार को मिलाकर करीब पांच से पंद्रह हजार रुपए तक की सामग्री दूल्हे के लिए खरीदी जाती है। एक वैवाहिक सीजन में शहर में दो करोड़ रुपए का कारोबार दूल्हे के साजो सामान में होता है। इसमें मंडप व शादी में लगने वाली अन्य सामग्री भी शामिल होती है।
ब्रांडेड की डिमांड बढ़ी
शहर में अब पारम्परिक पगड़ी या साफा बांधने वालों के साथ दूल्हे के लिए ब्रांडेड शेरवानी के साथ मैङ्क्षचग करते हुए साफा, पगड़ी और उसमें लगने वाली एसेसरीज की डिमांड लगातार बढ़ रही है। शोरूम में एक आम साफा और पगड़ी की न्यूनतम कीमत 3000 रुपए से शुरू होती है, जिसकी अधिकतम कीमत 15 हजार रुपए तक जाती है। इन्हें महंगे कपड़ों और मोतियों व अन्य फैंसी डेकोरेटिव आइटमों से तैयार किया जाता है।
लोकल मैन्यूफैक्चङ्क्षरग से बड़ा बाजार बना
स्थानीय व्यापारियों ने बताया शहर में पगड़ी, साफा की लोकल मैन्यूफैक्चङ्क्षरग होती है। बेस से लेकर कपड़े और डिजाइन का पूरा काम यहीं के कारीगरों द्वारा किया जाता है। यहां बने पगड़ी, साफा आसपास के जिलों में भी सप्लाई किए जाते हंै। कोतवाली, नरघैया, गलगला क्षेत्रों में कई छोटे-छोटे कारखाने हैं।
खाम, पंखा भी सजावटी हुआ
पहले आम लकड़ी पर पीला लाल रंग पोतकर खाम तैयार किया जाता था। पिछले कुछ साल में इस पर भी सजावट होने लगी है। खाम लगाने के लिए तैयार डिब्बे को भी खूबसूरती से सजाया जाने लगा है। जिससे इसकी कीमत 100 रुपए से बढकऱ 500 से 600 रुपए तक पहुंच गई है। लोग अब पारम्परिक खाम की बहुत कम ही डिमांड करते हैं। इसी तरह पंखा भी फैंसी आइटमों से सजा हुआ मांगा जा रहा है।
इतना है दाम
बाराती साफा – 100-150 रुपए
दूल्हे की टोपी- 250-350 रुपए
राजस्थानी पगड़ी- 2000-2500
शाही साफा- 3000-4000 रुपए
कटार- 150-2500 रुपए
खाम डिब्बा- 600-700 रुपए
ङ्क्षसदूर दानी- 50-500 रुपए
डेकोरेटेड पंखा- 100-300 रुपए
स्वागत कलश- 50-500 रुपए



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