पलकी शर्मा का कॉलम: पश्चिमी मीडिया का दोहरा चरित्र भी उजागर हुआ है

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पलकी शर्मा का कॉलम:  पश्चिमी मीडिया का दोहरा चरित्र भी उजागर हुआ है

पलकी शर्मा का कॉलम: पश्चिमी मीडिया का दोहरा चरित्र भी उजागर हुआ है

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  • Palki Sharma’s Column The Dual Character Of Western Media Has Also Been Exposed

6 घंटे पहले

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पलकी शर्मा मैनेजिंग एडिटर FirstPost

भारत पर हमास-शैली का हमला हुआ। पाकिस्तानी आतंकवादियों ने पहलगाम में पर्यटकों को निशाना बनाया। उन्होंने गैर-मुस्लिमों की निशानदेही करके उनके परिवारों के सामने ही उन्हें गोली मार दी। 26 लोग मारे गए, 26 परिवार बर्बाद हो गए।

हमले के बाद कश्मीर से दो तस्वीरें सामने आईं। एक में हमले की तस्वीरें दिखीं, धमाकों और चीख-पुकार की आवाजें सुनाई दीं। दूसरे में कश्मीर का दु:ख और गुस्सा दिखा- लोग कैंडल-मार्च निकाल रहे थे, मस्जिदों से हमले की निंदा की जा रही थी, अखबारों ने अपने फ्रंट पेज को स्याह रंग दिया। कश्मीर एक स्वर में बोल रहा था कि अपनी दहशतगर्दी को जायज ठहराने के लिए हमारा इस्तेमाल ना करें। यह पाकिस्तान में बैठे मास्टरमाइंडों के लिए संदेश था।

पहलगाम हमले पर पाकिस्तान की छाप साफ देखी जा सकती है। हमलावर द रेजिस्टेंस फ्रंट से जुड़े हैं- जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा का नया रूप है। आतंकियों ने अमेरिका में निर्मित एम4 कार्बाइन असॉल्ट राइफलों का इस्तेमाल किया।

उनमें से कुछ पश्तो बोलते थे, जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बोली जाने वाली भाषा है। फरवरी में पीओके में एक बैठक हुई थी। यह कोई राजनीतिक वार्ता नहीं, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हमास का आतंकी शिखर सम्मेलन था! इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने अपने एक भाषण में कश्मीर को उनके गले की नस बताया था। और फिर, उन्होंने इस गले की नस पर प्रहार कर दिया!

संकट की घड़ी में पाकिस्तान अकसर यही करता है। यह ऐसा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, मुद्रास्फीति नियंत्रण से बाहर हो गई है, अंदरूनी कलह बढ़ रही है और नेतृत्व में विश्वास खत्म हो गया है। पाकिस्तानी सेना को अपनी नाकामियों से ध्यान भटकाने की जरूरत थी।

उन्हें एक ऐसी सुर्खी की जरूरत थी, जो कहती हो- पूर्वी सीमा के उस पार देखो। इसलिए उन्होंने हमास की रणनीति को कॉपी-पेस्ट करके वह हेडलाइन रची। और फिर वे इसे अमल में लाए। जाहिर है कि इसका मकसद दुनिया का ध्यान आकर्षित करना और भारत को कमजोर करना था, साथ ही कश्मीर की आर्थिक और राजनीतिक बेहतरी पर अंकुश लगाना था। घाटी में रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक आ रहे थे और विदेशी निवेश हो रहा था। पिछले साल वहां चुनाव हुए और जी20 बैठकें आयोजित की गईं। उसके इसी जज्बे पर हमला किया गया है।

लेकिन पश्चिमी मीडिया कहानी को ट्विस्ट करने के लिए अपने राजनीतिक फिल्टर का इस्तेमाल करना जारी रखे हुए है। शायद वे इसे भारत पर निशाना साधने और कश्मीर पर भारत के अधिकार पर सवाल उठाने के एक मौके के रूप में देखते हैं।

बीबीसी के लेख में तीन बार “आतंक’ शब्द का इस्तेमाल किया गया, लेकिन पहलगाम की घटना का वर्णन करने के लिए एक बार भी नहीं। उन्होंने केवल दुनिया के नेताओं को उद्धृत किया। गार्जियन ने हमलावरों को “संदिग्ध आतंकवादी’ कहा।

जबकि यहां केवल एक ही चीज संदिग्ध है, और वह है गार्जियन की पत्रकारिता का स्तर। तुर्किये के टीआरटी ने तो बाजी ही मार ली। उन्होंने हमले को “कश्मीर में गोलीबारी की घटना’ भर कहा। देखें तो वे सही हैं। यह गोलीबारी की घटना ही थी, जैसे 9/11 महज इमारतें ढहने की घटना थी! पश्चिमी मीडिया ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों को “गनमेन’ (बंदूकधारी) और “मिलिटैंट्स’ (उग्रवादी) कहा है। हां, वे बंदूकें लेकर चल रहे थे, लेकिन क्या वे सिर्फ बंदूकधारी थे? यह ऐसा ही है, जैसे यह कहना कि अमेरिकियों ने इराक में “सैन्य अभियान’ चलाया, जबकि उन्होंने उस पर धावा बोलकर बमबारी की थी।

इस तरह के शब्दों का चयन बहुत ही समस्याग्रस्त है और इसे एक्सपोज किया जाना चाहिए। उनके द्वारा प्रकाशित लेख लाखों लोगों द्वारा पढ़े जाते हैं। वे कई देशों में जनमत और उनकी नीतियों को आकार देते हैं। इनका दुनिया पर प्रभाव पड़ता है। लेकिन वे पश्चिमी मीडिया के राजनीतिक और नस्लीय पूर्वग्रह को उजागर करते हैं।

जब हमास ने इजराइल पर हमला किया, तो लगभग सभी अमेरिकी मीडिया आउटलेट्स ने एक स्वर में इसे “आतंकी हमला’ कहा। लेकिन जब भारत की बात आती है, तो वे इसे महज एक “घटना’ के रूप में क्यों आंकते हैं?

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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