पत्रिका की 40 अंडर 40: यूपीएससी एस्प्रायरेंट से मेंटर तक का सफर, गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी नाम दर्ज | Journey from UPSC aspirant to mentor, also named in Guinness Book of W | Patrika News h3>
प्रतिज्ञा समाज सेवा कल्याण समिति की स्थापना कर समाज को शिक्षा, पर्यावरण और स्वास्थ्य के विषय में जागरूक कर रहे हैं। आओ जाने मध्य प्रदेश प्रतियोगिता का आयोजन कर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाया। आर्थिक रूप से असहाय बच्चों को बीते सात वर्षों से मंजिल तक पहुंचाते हैं। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल– सिविल सर्विसेज की तैयारी के बाद सरकारी नौकरी या अन्य कार्य की जगह समाजसेवा की तरफ रुझान कैसे हुआ।
जवाब– एमएससी तक मुझे यूपीएससी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसके बाद भी इंटरव्यू तक पहुंचा, लेकिन सफलता नहीं मिली। कुछ कमियां रही होंगी इसलिए चयन नहीं हुआ। इसके बाद एमपी हॉस्टल वॉर्डन में पहली रैंक आई। वर्ग 1 में शिक्षक के लिए चयन हुआ। परिजनों की इच्छा थी कि सरकारी अधिकारी बनूं, लेकिन सामाजिक कार्य को इसलिए चुना कि इतनी पढ़ाई के बाद एक मां निराश हुई, लेकिन एक हजार माओं को निराश नहीं होने दूंगा। अब यही सपना है।
सवाल- कैसे तय किया कि आपको बच्चों की शिक्षा के लिए ही काम करना है।
जवाब- जब यूपीएससी में चयन नहीं हुआ। उस रात चिंता में था कि कैसे माता- पिता का सामना करूंगा। तभी तय किया की समाज के लिए कुछ करूंगा और कोई सफलता मिलने पर ही माता- पिता से मुलाकात करूंगा। इस प्रण को लेकर पांच साल तक माता-पिता से नहीं मिला, क्योंकि मैं असफल व्यक्ति था। मैहर में सवा लाख छात्रों का क्विज कॉम्पीटिशन कराकर गुजरात और चीन का रिकॉर्ड तोड़कर ही माता- पिता से मिला। आज गर्व है कि पांच सौ बच्चों को अधिकारी बना चुका। 60 डिप्टी कलेक्टर, 12 डीएसपी, 250 एसआई बन चुके हैं।
सवाल- शिक्षा के उद्देश्य में फंड की चुनौती को कैसे पूरा करते हैं।
जवाब- प्रतिज्ञा कल्याण समिति के नाम से संस्था है। पैसे और मार्गदर्शन के अभाव में कोई दम नहीं तोड़ेगा इसकी प्रतिज्ञा ली है। 150 रुपए लेकर एक कमरे से एमपी नगर में कोचिंग की शुरुआत की। दिन में उसमें पढ़ाता, रात में वही आशियाना। अब संस्था से पढ़े बच्चे ही संस्था की चिंता करते हैं। 15 साल में कपड़े तक खुद नहीं खरीदे। मेरा जीवन समाज को समर्पित है। विवि और अन्य संस्थाओं के रिटायर्ड 293 लोगोंं की मदद से भोपाल और सीहोर के आसपास विश्वविद्यालय बनाने का प्रयास है। 101 से ज्यादा डोनर इसमें मदद कर रहे हैं। क्राउड फंडिग के जरिए और मदद जुटाएंगे।
सवाल- संस्था में विद्यार्थियों के चयन का आधार क्या होता है।
जवाब- मुख्य संस्थान भोपाल में और जिलों में 33 सेंटर्स हैं। इनमें नॉनस्टॉप 24 घंटे तक पढ़ा चुका हूं। संस्था में चयन टेस्ट के जरिए होता है, पहले जून में होता था, इस बार 10 जुलाई में है। यूपीएससी और पीएससी के सदस्य रहे लोग चयनित अभ्यर्थियों का मेन्स लेकर मैरिट बनाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर को प्राथमिकता दी जाती है। अपने स्तर पर भी बैकग्राउंड जांचते हैं।
सवाल- मौजूदा शिक्षा व्यवस्था को कैसे देखते हैं
जवाब- जैसा आप अपने बच्चे को बनता देखना चाहते हैं। ठीक वैसे ही शिक्षक उसे पढ़ाए। एक शिक्षक तभी तक शिक्षक रह सकता है जब 4 से 6 घंटे खुद विद्यार्थी बनकर रहे। आज ज्यादातर शिक्षकों ने पढऩा ही छोड़ दिया। जैसे साल भर में विद्यार्थी का मूल्यांकन होता है वैसे शिक्षकों का भी मूल्यांकन हो। निरंतर सिलेबस बदल रहा है, शिक्षक वही है। मूल्यांकन में कमजोर शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जाए। प्राथमिक शिक्षा में मेहनत की जरूरत है। गर्वनमेंट अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढऩे की बाध्यता हो ताकि वहां की पढ़ाई का स्तर सुधरे। सरकारी सिस्टम के बाद लोग निजी में जाते है तो समय सुधर जाता है, यही काम मॉनिटरिंग के अभाव में सरकारी में नहीं हो पाता।
सवाल- क्या शिक्षा पर व्यवसायीकरण हावी है।
जवाब- जी, सरकार शैक्षणिक संस्थानों को निजी कर रही है। निजीकरण राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं होता। सरकार का निजी सेक्टर में जाने का अर्थ है कि तंत्र विफल है, इसे रोकना होगा। बेसिक एजुकेशन पर कार्य करने की मौजूदा वक्त में सबसे ज्यादा जरूरत है। हमारे यहां हर दिन-हर भर्ती प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न है।
सवाल- डिजिटल शिक्षा को किस रूप में देखते हैं
जवाब- ऑनलाइन एजुकेशन एक माध्यम हो सकता है आधार नहीं। बेस ऑफलाइन एजुकेशन ही है। ऑनलाइन के चक्कर में बच्चों में फोन की लत लग रही है। दुबई में तो बच्चों में मोबाइल की लत छुड़ाने का कोर्स चल रहा है। क्योंकि इसके सोचने और समझने की शक्ति ही खत्म हो गई। ऑनलाइन एजुकेशन में ब्रेन का उपयोग ही नहीं हो रहा है। गूगल पर इतना आश्रित होना ठीक नहीं है।
प्रतिज्ञा समाज सेवा कल्याण समिति की स्थापना कर समाज को शिक्षा, पर्यावरण और स्वास्थ्य के विषय में जागरूक कर रहे हैं। आओ जाने मध्य प्रदेश प्रतियोगिता का आयोजन कर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवाया। आर्थिक रूप से असहाय बच्चों को बीते सात वर्षों से मंजिल तक पहुंचाते हैं। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश…
सवाल– सिविल सर्विसेज की तैयारी के बाद सरकारी नौकरी या अन्य कार्य की जगह समाजसेवा की तरफ रुझान कैसे हुआ।
जवाब– एमएससी तक मुझे यूपीएससी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसके बाद भी इंटरव्यू तक पहुंचा, लेकिन सफलता नहीं मिली। कुछ कमियां रही होंगी इसलिए चयन नहीं हुआ। इसके बाद एमपी हॉस्टल वॉर्डन में पहली रैंक आई। वर्ग 1 में शिक्षक के लिए चयन हुआ। परिजनों की इच्छा थी कि सरकारी अधिकारी बनूं, लेकिन सामाजिक कार्य को इसलिए चुना कि इतनी पढ़ाई के बाद एक मां निराश हुई, लेकिन एक हजार माओं को निराश नहीं होने दूंगा। अब यही सपना है।
सवाल- कैसे तय किया कि आपको बच्चों की शिक्षा के लिए ही काम करना है।
जवाब- जब यूपीएससी में चयन नहीं हुआ। उस रात चिंता में था कि कैसे माता- पिता का सामना करूंगा। तभी तय किया की समाज के लिए कुछ करूंगा और कोई सफलता मिलने पर ही माता- पिता से मुलाकात करूंगा। इस प्रण को लेकर पांच साल तक माता-पिता से नहीं मिला, क्योंकि मैं असफल व्यक्ति था। मैहर में सवा लाख छात्रों का क्विज कॉम्पीटिशन कराकर गुजरात और चीन का रिकॉर्ड तोड़कर ही माता- पिता से मिला। आज गर्व है कि पांच सौ बच्चों को अधिकारी बना चुका। 60 डिप्टी कलेक्टर, 12 डीएसपी, 250 एसआई बन चुके हैं।
सवाल- शिक्षा के उद्देश्य में फंड की चुनौती को कैसे पूरा करते हैं।
जवाब- प्रतिज्ञा कल्याण समिति के नाम से संस्था है। पैसे और मार्गदर्शन के अभाव में कोई दम नहीं तोड़ेगा इसकी प्रतिज्ञा ली है। 150 रुपए लेकर एक कमरे से एमपी नगर में कोचिंग की शुरुआत की। दिन में उसमें पढ़ाता, रात में वही आशियाना। अब संस्था से पढ़े बच्चे ही संस्था की चिंता करते हैं। 15 साल में कपड़े तक खुद नहीं खरीदे। मेरा जीवन समाज को समर्पित है। विवि और अन्य संस्थाओं के रिटायर्ड 293 लोगोंं की मदद से भोपाल और सीहोर के आसपास विश्वविद्यालय बनाने का प्रयास है। 101 से ज्यादा डोनर इसमें मदद कर रहे हैं। क्राउड फंडिग के जरिए और मदद जुटाएंगे।
सवाल- संस्था में विद्यार्थियों के चयन का आधार क्या होता है।
जवाब- मुख्य संस्थान भोपाल में और जिलों में 33 सेंटर्स हैं। इनमें नॉनस्टॉप 24 घंटे तक पढ़ा चुका हूं। संस्था में चयन टेस्ट के जरिए होता है, पहले जून में होता था, इस बार 10 जुलाई में है। यूपीएससी और पीएससी के सदस्य रहे लोग चयनित अभ्यर्थियों का मेन्स लेकर मैरिट बनाते हैं। आर्थिक रूप से कमजोर को प्राथमिकता दी जाती है। अपने स्तर पर भी बैकग्राउंड जांचते हैं।
सवाल- मौजूदा शिक्षा व्यवस्था को कैसे देखते हैं
जवाब- जैसा आप अपने बच्चे को बनता देखना चाहते हैं। ठीक वैसे ही शिक्षक उसे पढ़ाए। एक शिक्षक तभी तक शिक्षक रह सकता है जब 4 से 6 घंटे खुद विद्यार्थी बनकर रहे। आज ज्यादातर शिक्षकों ने पढऩा ही छोड़ दिया। जैसे साल भर में विद्यार्थी का मूल्यांकन होता है वैसे शिक्षकों का भी मूल्यांकन हो। निरंतर सिलेबस बदल रहा है, शिक्षक वही है। मूल्यांकन में कमजोर शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जाए। प्राथमिक शिक्षा में मेहनत की जरूरत है। गर्वनमेंट अधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढऩे की बाध्यता हो ताकि वहां की पढ़ाई का स्तर सुधरे। सरकारी सिस्टम के बाद लोग निजी में जाते है तो समय सुधर जाता है, यही काम मॉनिटरिंग के अभाव में सरकारी में नहीं हो पाता।
सवाल- क्या शिक्षा पर व्यवसायीकरण हावी है।
जवाब- जी, सरकार शैक्षणिक संस्थानों को निजी कर रही है। निजीकरण राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं होता। सरकार का निजी सेक्टर में जाने का अर्थ है कि तंत्र विफल है, इसे रोकना होगा। बेसिक एजुकेशन पर कार्य करने की मौजूदा वक्त में सबसे ज्यादा जरूरत है। हमारे यहां हर दिन-हर भर्ती प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न है।
सवाल- डिजिटल शिक्षा को किस रूप में देखते हैं
जवाब- ऑनलाइन एजुकेशन एक माध्यम हो सकता है आधार नहीं। बेस ऑफलाइन एजुकेशन ही है। ऑनलाइन के चक्कर में बच्चों में फोन की लत लग रही है। दुबई में तो बच्चों में मोबाइल की लत छुड़ाने का कोर्स चल रहा है। क्योंकि इसके सोचने और समझने की शक्ति ही खत्म हो गई। ऑनलाइन एजुकेशन में ब्रेन का उपयोग ही नहीं हो रहा है। गूगल पर इतना आश्रित होना ठीक नहीं है।