नीरजा चौधरी का कॉलम: पहलगाम के कई निहितार्थ धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं

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नीरजा चौधरी का कॉलम:  पहलगाम के कई निहितार्थ धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं

नीरजा चौधरी का कॉलम: पहलगाम के कई निहितार्थ धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं

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5 घंटे पहले

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नीरजा चौधरी वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार

पहलगाम के दीर्घकालिक निहितार्थ तो एक-एक कर सामने आएंगे, लेकिन कुछ चीजें स्पष्ट हो रही हैं। निर्दोष पर्यटकों की हत्या पर देश में बढ़ते गुस्से को देखते हुए सरकार पर पाकिस्तान के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का दबाव है।

सरकार के लिए यह दिखाना जरूरी हो गया है कि वो इस मामले को लेकर वाकई गंभीर है। जैसे-जैसे पर्यटकों के शव उनके परिवारों तक पहुंच रहे हैं और उनके अंतिम संस्कार के मार्मिक दृश्य प्रसारित हो रहे हैं- सरकार पर प्रेशर बढ़ता जा रहा है। लोगों का गुस्सा खासतौर पर इस तथ्य से और बढ़ गया है कि आतंकवादियों ने पहले पुरुषों का धर्म जानना चाहा और उन्हें उनके परिवार के सामने गोली मार दी।

हालांकि पाकिस्तान की हुकूमत ने इस कृत्य से खुद को अलग कर लिया है, लेकिन भारत में बहुत कम लोग इस बात से सहमत हैं कि पाकिस्तान का इससे कोई लेना-देना नहीं है। खास तौर पर तब, जब पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने कुछ दिन पहले ही कश्मीर को इस्लामाबाद की ‘गले की नस’ कहा था, जिसे वे कभी नहीं छोड़ेंगे।

दूसरा निहितार्थ जम्मू-कश्मीर के लिए है। उड़ानें और होटल बुकिंग तेजी से रद्द हो रही हैं और पर्यटक जितनी जल्दी हो सके कश्मीर से बाहर निकल रहे हैं। यह जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका है, और इसमें जल्दी बदलाव होने की संभावना नहीं है। इसका राज्य में पर्यटन पर असर पड़ना तय है, जो पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है। पिछले साल तो पर्यटकों की संख्या 2.3 करोड़ के रिकॉर्ड आंकड़े को छू गई थी।

हाल के सालों में भारत और विदेश से अनेक लोग कश्मीर में छुट्टियां मनाने आने लगे थे, जिससे स्थानीय लोगों की अच्छी कमाई हो रही थी। घाटी के लोग भले ही अनुच्छेद 370 के हटने से पूरी तरह सहमत न हुए हों, लेकिन वे नई सत्ता-संरचना के साथ सामंजस्य बिठाने लगे थे। आर्थिक लाभ में शांति में हिस्सेदारी कर रहे थे। तो क्या चीजें अब फिर से अनिश्चित हो जाएंगी? कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

लेकिन कहानी का सकारात्मक पक्ष यह है कि पहलगाम हत्याकांड के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के आम लोगों ने बड़ी संख्या में विरोध-प्रदर्शन किया है। राज्य में बंद रहा, लोगों ने विरोध मार्च निकाले और यहां तक ​​कि कश्मीर के प्रमुख समाचार पत्रों ने विरोध के तौर पर अपने मुखपृष्ठ को स्याह रंग से पोत दिया।

यह सब तीन दशकों से नहीं देखा गया था। उमर अब्दुल्ला सरकार के लिए भी इसके निहितार्थ हैं। वे जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा मांग रहे हैं, जिसका वादा केंद्र ने किया था। पहलगाम के बाद, क्या केंद्र जल्दबाजी में राज्य का दर्जा देना चाहेगा? जितने समय तक इसे स्थगित किया जाता है, उमर अब्दुल्ला के लिए स्थिति उतनी ही कठिन होती जाएगी।

वे मुख्यमंत्री हैं, लेकिन उनके पास पुलिस अधिकार भी नहीं हैं! इसका उस व्यापार समझौते पर भी असर पड़ सकता है, जिस पर भारत अमेरिका के साथ बातचीत कर रहा है और हमले का समय अपनी कहानी बयां करता है। जब यह हुआ, तब अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में थे।

वे डोनाल्ड ट्रम्प की जैसे-को-तैसा टैरिफ की धमकी के बाद अमेरिका के साथ नए व्यापार समझौते को तैयार करने में मदद करने के लिए यहां आए थे। ऐसे में कई लोग पहलगाम को पाकिस्तान द्वारा भारत और अमेरिका दोनों के लिए एक संकेत के रूप में देखते हैं कि वे इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते।

हालांकि चीन ने आतंकी हमले की निंदा की है- जैसा कि अमेरिका, रूस तथा यूरोपीय देशों ने भी किया है- लेकिन बीजिंग के पाकिस्तान के साथ गहरे ताल्लुक रहे हैं। अब भारत के लिए यह चुनौती और कठिन हो गई है कि चीन को अलग-थलग किए बिना अमेरिका के साथ व्यापार-समझौता कैसे करें।

आतंकवादी स्पष्ट रूप से भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार पैदा करना चाहते थे। पुरुषों को मारने से पहले उनका धर्म पूछने से पूरे देश के हिंदुओं में आक्रोश है। कुछ दिन पहले पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने द्विराष्ट्र सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा था कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते और उनके ये शब्द पाकिस्तानी सोच को दर्शाते हैं।

पहलगाम से जो ध्रुवीकृत माहौल बना है, उससे बिहार और बंगाल में होने वाले चुनावों में भाजपा को फायदा हो सकता है। और इसके बावजूद आज सरकार के सामने- और विपक्षी दलों और नागरिक समाज के सामने भी- यह चुनौती है कि वे ऐसा कुछ न करें, जिससे सांप्रदायिक संघर्ष फैले। क्योंकि तब हम केवल उस एजेंडे को आगे बढ़ा रहे होंगे, जो आतंकवादियों का मकसद है। और वह है भारत को विभाजित करना।

आज सरकार, विपक्ष और नागरिकों के सामने यह चुनौती है कि वे ऐसा कुछ न करें, जिससे सांप्रदायिक संघर्ष फैले। क्योंकि तब हम केवल उस एजेंडे को आगे बढ़ा रहे होंगे, जो आतंकवादियों का मकसद है- भारत को विभाजित करना। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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