नीतीश कुमार को डैमेज करने के लिए शंभू शरण पटेल को मिला राज्यसभा का टिकट? BJP का प्लान जानकर घूम जाएगा माथा h3>
पटना: बिहार से बीजेपी ने सतीश चंद्र दुबे और शंभू शरण पटेल को राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है। शंभू शरण पटेल के नाम को लेकर राजनीतिक गलियारों में रविवार शाम से ही तरह-तरह की अटकलों का बाजार गरम है। टिकट मिलने के बाद शंभू शरण पटेल की ओर से आए बयान से भी साफ है कि उन्हें भी टिकट मिलने का तनिक भरोसा नहीं था। शंभू शरण जेडीयू के नेता रह चुके हैं। कुछ साल पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे। फिलहाल बिहार बीजेपी में सचिव हैं। इनके नाम की कहीं भी सुगबुगाहट नहीं थी, लेकिन बीजेपी की केंद्रीय टीम ने उनपर भरोसा जताया है। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में इसके मायने निकाले जा रहे हैं।
नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी में BJP?
शंभू शरण पटेल का नाम देखकर कुछ लोग अनुमान लगा रहे हैं कि वह कुर्मी जाति से आते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पटना के राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि बीजेपी के प्रवक्ता और कुर्मी जाति से आने वाले वरिष्ठ नेता प्रेम रंजन पटेल को राज्यसभा भेजा जा सकता है। प्रेम रंजन पटेल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा से ही आते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीजेपी की केंद्रीय टीम ने शंभू शरण पटेल पर दांव लगाकर दूर की चाल चली है।
शंभू शरण पटेल धानुक जाति से आते हैं। बिहार में धानुक जाति कुर्मी जाति की उपजाति मानी जाती है। सामाजिक और आर्थिक रूप से धानुक और कुर्मी जाति की तुलना करें तो बड़ा अंतर दिखता है। समाज में आमतौर पर कुर्मी जाति के लोग धानुक को खुद से नीचे स्तर का मानते हैं। इनकी आर्थिक स्थिति भी अपेक्षाकृत कमजोर होती है। इस वजह से बिहार के गांव कस्बों में कुर्मी और धानुक के बीच दूरियां साफ तौर से दिखती है। कानून भी कुर्मी पिछड़ी तो धानुके अति पिछड़ी जाति मानी जाती है।
पिछले 3 दशक से बिहार की राजनीति में धानुक समाज से कोई बड़ चेहरा नहीं दिखता है। इसलिए धानुक समाज का भी समर्थन नीतीश कुमार को मिलता रहा है। चर्चा है कि बीजेपी ने शंभू शरण पटेल को राज्यसभा का टिकट देकर नीतीश कुमार को कमजोर करने की कोशिश की है। अपने समाज के नेता के चेहरा बनने पर स्वभाविक है कि धानुक समाज का कुछ वर्ग उसके साथ खुद का जुड़ाव महसूस करेगा।
बीजेपी भली-भांति जानती है कि मौजूदा वक्त में वह कुर्मी समाज के नेता को चाहे जो भी पद दे, लेकिन शायद ही इस जाति का झुकाव नीतीश कुमार से कम होगा। बीजेपी ने नित्यानंद राय के चेहरे को आगे कर यादव वोटरों को अपने साथ लाने की कोशिश की थी, लेकिन लालू यादव और उनके परिवार के सामने इस समाज के लोगों ने किसी और चेहरे को तवज्जो नहीं दी है। इसकी बानगी 2020 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए उपचुनावों में दिख चुका है।
कुशवाहा और भूमिहार वोटरों को साधने की चाल चल चुके हैं नीतीश
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को महज 43 सीटें आने के बाद नीतीश कुमार लगातार संगठन को मजबूत करने और जातिय समीकरण का दायरा बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं। इसी के तहत उमेश कुशवाहा को जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष, उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष, खांटी भूमिहार नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है। कुशवाहा समाज के दो नेता को जेडीयू के पावरफुल पद देकर नीतीश कुमार ने लव-कुश समीकरण बनाने की कोशिश की है। बिहार में बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले भूमिहार समाज की नाराजगी को देखते हुए नीतीश कुमार ने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। बोचहां उपचुनाव में भूमिहार समाज की नाराजगी के चलते ही बीजेपी की हार हुई।
इसके अलावा नीतीश कुमार ने दो तीन महीने के भीतर जिस तरह से मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुखिया लालू प्रसाद यादव के परिवार के साथ नजदीकियां दिखाने की कोशिश की है। कुल मिलाकर कहें तो नीतीश कुमार लगातार बीजेपी के साथ पावर पॉलिटिक्स का खेल खेल रहे हैं।
राज्य सभा चुनाव में बीजेपी ने भी चली चाल
राज्य सभा चुनाव में टिकट बटवारे में बीजेपी को मौका मिला तो उन्होंने भी शंभू शरण पटेल के सहारे नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीतिक चाल चल दी है। इतना ही नहीं, बीजेपी ने राज्य सभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर भी जेडीयू के मन में अंत समय तक धुकधुकी बनाए रखी। नीतीश कुमार और ललन सिंह की अगुवाई वाले जेडीयू ने तय कर लिया था कि तीसरी बात आरसीपी सिंह को राज्य सभा नहीं भेजेंगे। इसी बीच मीडिया में चर्चा शुरू हो गई कि बीजेपी RCP सिंह को अपने कोटे से राज्य सभा भेजकर नीतीश कुमार पर प्रेशर बनाएगी। इसी बात को लेकर जेडीयू नेताओं में धुकधुकी बनी रही।
जेडीयू को डर था कि अगर उन्होंने पहले अपने कैंडिडेट का नाम घोषित कर दिया तो कहीं बीजेपी RCP सिंह को राज्य सभा ना भेज दे। कहा जा रहा है कि इसलिए जेडीयू ने बीजेपी के राज्य सभा कैंडिडेट की घोषणा करने के बाद ही अपने पत्ते खोले। अटकलों पर बीजेपी या जेडीयू की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि राजनीति में संभावनाओं का अहम रोल होता है।
राज्य सभा का टिकट पाकर बेहद खुश दिखे शंभू शरण पटेल, कहा- ‘PM मोदी को शुक्रिया कहने को मेरे पास शब्द नहीं’
सतीश चंद्र दुबे और शंभू शरण पटेल के जरिए BJP ने दिया मैसेज
सतीश चंद्र दुबे और शंभू शरण पटेल को राज्य सभा चुनाव में प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने बिहार की जनता को मैसेज देने की कोशिश की है कि उनके दल में उच्च जाति के साथ पिछड़े वर्ग का सम्मान है। विपक्षी दल आरजेडी जिस तरह से A टू Z जातीय समीकरण पर काम कर रही है उसे देखते हुए बीजेपी भी मोर्चेबंदी में जुट गई है। यहां बता दें कि सतीश चंद्र दुबे ब्राह्मण समाज से आते हैं। उन्हें 2019 में राज्यसभा भेजा गया था, लेकिन वह पूरा कार्यकाल नहीं था। इस बार उनका कार्यकाल पूरा होगा। उसी तरह शंभू शरण पटेल अति पिछड़ा समाज से आते हैं।
बिहार की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Delhi News
शंभू शरण पटेल का नाम देखकर कुछ लोग अनुमान लगा रहे हैं कि वह कुर्मी जाति से आते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पटना के राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि बीजेपी के प्रवक्ता और कुर्मी जाति से आने वाले वरिष्ठ नेता प्रेम रंजन पटेल को राज्यसभा भेजा जा सकता है। प्रेम रंजन पटेल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा से ही आते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बीजेपी की केंद्रीय टीम ने शंभू शरण पटेल पर दांव लगाकर दूर की चाल चली है।
शंभू शरण पटेल धानुक जाति से आते हैं। बिहार में धानुक जाति कुर्मी जाति की उपजाति मानी जाती है। सामाजिक और आर्थिक रूप से धानुक और कुर्मी जाति की तुलना करें तो बड़ा अंतर दिखता है। समाज में आमतौर पर कुर्मी जाति के लोग धानुक को खुद से नीचे स्तर का मानते हैं। इनकी आर्थिक स्थिति भी अपेक्षाकृत कमजोर होती है। इस वजह से बिहार के गांव कस्बों में कुर्मी और धानुक के बीच दूरियां साफ तौर से दिखती है। कानून भी कुर्मी पिछड़ी तो धानुके अति पिछड़ी जाति मानी जाती है।
पिछले 3 दशक से बिहार की राजनीति में धानुक समाज से कोई बड़ चेहरा नहीं दिखता है। इसलिए धानुक समाज का भी समर्थन नीतीश कुमार को मिलता रहा है। चर्चा है कि बीजेपी ने शंभू शरण पटेल को राज्यसभा का टिकट देकर नीतीश कुमार को कमजोर करने की कोशिश की है। अपने समाज के नेता के चेहरा बनने पर स्वभाविक है कि धानुक समाज का कुछ वर्ग उसके साथ खुद का जुड़ाव महसूस करेगा।
बीजेपी भली-भांति जानती है कि मौजूदा वक्त में वह कुर्मी समाज के नेता को चाहे जो भी पद दे, लेकिन शायद ही इस जाति का झुकाव नीतीश कुमार से कम होगा। बीजेपी ने नित्यानंद राय के चेहरे को आगे कर यादव वोटरों को अपने साथ लाने की कोशिश की थी, लेकिन लालू यादव और उनके परिवार के सामने इस समाज के लोगों ने किसी और चेहरे को तवज्जो नहीं दी है। इसकी बानगी 2020 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए उपचुनावों में दिख चुका है।
कुशवाहा और भूमिहार वोटरों को साधने की चाल चल चुके हैं नीतीश
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू को महज 43 सीटें आने के बाद नीतीश कुमार लगातार संगठन को मजबूत करने और जातिय समीकरण का दायरा बढ़ाने की कोशिश में जुटे हैं। इसी के तहत उमेश कुशवाहा को जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष, उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष, खांटी भूमिहार नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है। कुशवाहा समाज के दो नेता को जेडीयू के पावरफुल पद देकर नीतीश कुमार ने लव-कुश समीकरण बनाने की कोशिश की है। बिहार में बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले भूमिहार समाज की नाराजगी को देखते हुए नीतीश कुमार ने ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। बोचहां उपचुनाव में भूमिहार समाज की नाराजगी के चलते ही बीजेपी की हार हुई।
इसके अलावा नीतीश कुमार ने दो तीन महीने के भीतर जिस तरह से मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के मुखिया लालू प्रसाद यादव के परिवार के साथ नजदीकियां दिखाने की कोशिश की है। कुल मिलाकर कहें तो नीतीश कुमार लगातार बीजेपी के साथ पावर पॉलिटिक्स का खेल खेल रहे हैं।
राज्य सभा चुनाव में बीजेपी ने भी चली चाल
राज्य सभा चुनाव में टिकट बटवारे में बीजेपी को मौका मिला तो उन्होंने भी शंभू शरण पटेल के सहारे नीतीश कुमार के खिलाफ राजनीतिक चाल चल दी है। इतना ही नहीं, बीजेपी ने राज्य सभा चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर भी जेडीयू के मन में अंत समय तक धुकधुकी बनाए रखी। नीतीश कुमार और ललन सिंह की अगुवाई वाले जेडीयू ने तय कर लिया था कि तीसरी बात आरसीपी सिंह को राज्य सभा नहीं भेजेंगे। इसी बीच मीडिया में चर्चा शुरू हो गई कि बीजेपी RCP सिंह को अपने कोटे से राज्य सभा भेजकर नीतीश कुमार पर प्रेशर बनाएगी। इसी बात को लेकर जेडीयू नेताओं में धुकधुकी बनी रही।
जेडीयू को डर था कि अगर उन्होंने पहले अपने कैंडिडेट का नाम घोषित कर दिया तो कहीं बीजेपी RCP सिंह को राज्य सभा ना भेज दे। कहा जा रहा है कि इसलिए जेडीयू ने बीजेपी के राज्य सभा कैंडिडेट की घोषणा करने के बाद ही अपने पत्ते खोले। अटकलों पर बीजेपी या जेडीयू की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि राजनीति में संभावनाओं का अहम रोल होता है।
राज्य सभा का टिकट पाकर बेहद खुश दिखे शंभू शरण पटेल, कहा- ‘PM मोदी को शुक्रिया कहने को मेरे पास शब्द नहीं’
सतीश चंद्र दुबे और शंभू शरण पटेल के जरिए BJP ने दिया मैसेज
सतीश चंद्र दुबे और शंभू शरण पटेल को राज्य सभा चुनाव में प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने बिहार की जनता को मैसेज देने की कोशिश की है कि उनके दल में उच्च जाति के साथ पिछड़े वर्ग का सम्मान है। विपक्षी दल आरजेडी जिस तरह से A टू Z जातीय समीकरण पर काम कर रही है उसे देखते हुए बीजेपी भी मोर्चेबंदी में जुट गई है। यहां बता दें कि सतीश चंद्र दुबे ब्राह्मण समाज से आते हैं। उन्हें 2019 में राज्यसभा भेजा गया था, लेकिन वह पूरा कार्यकाल नहीं था। इस बार उनका कार्यकाल पूरा होगा। उसी तरह शंभू शरण पटेल अति पिछड़ा समाज से आते हैं।